Misguided traveler in Hindi Travel stories by Shubham Tiwari books and stories PDF | गुमराह यात्री

Featured Books
  • અનોખી સગાઈ

    ત્રીશા મીઠાઈ લઈને ઘરે પહોંચે છે.બેઠક રૂમમાં ત્રીશાને જોવા આવ...

  • ગણદેવી

    ધારાવાહિક:- ચાલો ફરવા જઈએ.સ્થળ:- ગણદેવી.લેખિકા:- શ્રીમતી સ્ન...

  • ફરે તે ફરફરે - 103

    ૧૦૩   સવારે સાડાપાચ વાગે ઉઠીને નાહી ને સાડાછ વાગે તૈયાર...

  • અભિનેત્રી - ભાગ 26

    *અભિનેત્રી 26*                                          "મેં...

  • ખડબડ ખાં

    એક રાજા હતો. એ ઘણો જ સારો રાજા હતો. એના રાજયમાં બધા બહુ જ સુ...

Categories
Share

गुमराह यात्री

मे न जाने किस ख्वाब में डूबा था आचनक मेरे मन में न जाने कहा से ख्याल आया यात्रा करने को फिर मेने सोचा कहा जाऊ मेने अपना कपड़ा रखा और पैदल ही गांव के बाहर के बाहर के तरफ निकल दिया कुछ दूर पैदल चलने के बाद मुझे कुछ दूरी पर एक सवारी गाड़ी दिखी जो मेरे समीप आकर रूकी ड्राइवर ने पूछा कहा जाना है मेने कहा रेल्वे स्टेशन वह गाड़ी को चालू किया और चला और मुझे रेल्वे स्टेशन पर उतार कर अपना किराया लेकर आगे बढ़ा और कुछ देर बाद गाड़ी आ गई और उसमे में बैठ गया न जाने में किस ख्याल मे डूबा था की टिकट लेना भूल गया कुछ ही समय बाद मुझे गहरी नीद लग लग गई और जब उठा तब सुबह के चार बजने वाले थे गाड़ी लखनऊ जाकर रुक गई कुछ देर बाद टिकट चेक करने के लिए कुछ लोग चढ़े और वो मेरे पास पूछने ही वाले थे मेने उन से पूछा की में जल्दीबाजी में टिकट लेना भूल गया हु उन्हो ने कहा कोई बात नही टिकट बनवा लो फिर मेने में ख्याल आया टिकट कहा का लू फिर मेने उन से पूछा ये ट्रेन कहा तक जाएगी उन्होने कहा दिल्ली तक मैने उन से दिल्ली का टिकट बना दो वो टिकट बना कर दिए फिर जाकर आपने सीट पर में बैठा कुछ देर बाद मुझे भूख लगा गाड़ी के अंदर कुछ लोग समोसा बेच रहे थे मेने उन से चार समोसा लेकर खाया क्यों की भूख तेज लगा था में कुछ सोच रहा था और इतने में मुझे नीद लग गई और मैं सो गया सुबह आंख खुली तब मे न्यू दिल्ली स्टेशन पे आ गया था उस समय मुझे दिल्ली में पहचाने वाले आदमी थे किंतु मेरे पास ना तो मोबाइल था ना तो उनका नबर याद था अनजान शहर और अनजान लोग में गुमराह यात्री मेरे समझ में नहीं आ रहा था क्या करू और होटल वाले कमरा देने से मना कर रहे थे क्यों की मेरे पास मेरा कोई प्रूफ नही था में कोन हु कहा से हु बहुत देर मुझे एक कमरा मिल ही गया मेने बैग रखा और होटल के कर्मचारी से कह कर नाश्ता के लिए बोला उसने कहा समय लगेगा तब में नहा धो कर तैयार हो गया तब तक नाश्ता आ गया नाश्ता करने के बाद कुछ देर आराम किया और कुछ देर बाद होटल से बाहर निकला धूप अपने चरमसीमा पर थी कुछ देर में ही में पसीने से लथपथ हो गया और अपने कमरे के तरफ़ चल दिया रात हुआ खाना मंगवा खाया और रात के बारह बजे मेरी नीद खुली और मुझे याद आया की में अपने घर पर बताया ही नहीं की में कही जा रहा हु और ख्याल आया मुझे की वो सब की किस खयाल में डूबे होगे यही सब सोच कर मेरे आखों में आशु आ गाए सुबह के समय कमरा खाली कर दिया और फिर से रेल्वे स्टेशन के तरफ चल दिया और टिकट लेकर घर के तरफ चल दिया .............