Ardhangini - 10 in Hindi Love Stories by रितेश एम. भटनागर... शब्दकार books and stories PDF | अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 10

Featured Books
  • THE ULTIMATE SYSTEM - 6

    शिवा के जीवन में अब सब कुछ बदल रहा था एक समय पर जो छात्र उसक...

  • Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 4

    गांव का बूढ़ा गयाप्रसाद दीवान के जंगल में अग्निवेश को उसके अ...

  • स्त्री क्या है?

    . *स्त्री क्या है?*जब भगवान स्त्री की रचना कर रहे थे, तब उन्...

  • Eclipsed Love - 13

    मुंबई शहर मुंबई की पहली रात शाम का धुंधलापन मुंबई के आसमान प...

  • चंद्रवंशी - अध्याय 9

    पूरी चंद्रवंशी कहानी पढ़ने के बाद विनय की आँखों में भी आँसू...

Categories
Share

अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 10

जॉब छोड़ने की बात को लेकर जतिन परेशान हो गया और अपने बॉस के केबिन से बाहर आकर यही सोच कर और जादा परेशान होने लगा कि "अब मुझे क्या करना चाहिये... जॉब छोड़ना मतलब महीने की बंधी बंधायी इन्कम से हाथ धोना, लेकिन मै बिजनेस संभाल लूंगा... एक दो महीने मे सब ठीक हो जायेगा... इतने सालों से तो जॉब कर रहा हूं अच्छे खासे लोग मुझे जानते हैं... लेकिन अगर बिज़नेस मे नुक्सान हुआ तो सारा नुक्सान मुझे ही झेलना पड़ेगा... बहुत रिस्क है यार... छोड़ो जॉब ही ठीक है.... लेकिन मेरे सपनो का क्या... जॉब मे तो मै जिंदगी भर नौ बजे से सात बजे शाम की ड्यूटी मे बंध के रह जाउंगा... जिंदगी भर और कुछ नही कर पाउंगा"

जतिन एक ऐसी मानसिक परिस्थिति मे फंस गया था जहां उसके मन और दिमाग के बीच जैसे एक बहुत बड़ा द्वंद युद्ध हो रहा था... वो स्थिति बहुत बड़े असमंजस की थी.. जतिन उदास था, परेशान था, कंफ्यूज था... वो एक ऐसे दो राहे पर खड़ा था जहां एक तरफ देखने पर उसे नौकरी दिखाई दे रही थी जिसके चक्रव्यूह मे वो अपने आप को फंसते हुये देख रहा था.. तो दूसरी तरफ अपना बिजनेस जिसमे सफलता मिलने पर उसे अपने सपने पंख फैलाये दिख रहे थे, उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो उस दो राहे के इस तरफ जाये या उस तरफ, इसी उहापोह मे देर शाम को जब वो अपने घर पंहुचा तो भी उसका मन उदास, हैरान, परेशान ही था...

आमतौर पर जब जतिन शाम को घर वापस जाता था तो चाहे फल ले जाये या मीठे मे कुछ ले जाये चाहे अपनी छोटी बहन ज्योति के लिये चॉकलेट ले जाये.. वो ले के जरूर जाता था... वो कभी खाली हाथ घर नही जाता था लेकिन उस दिन वो खाली हाथ घर चला गया, ज्योति चूंकि छोटी थी और जतिन की लाडली थी तो जतिन के घर पंहुचते ही शैतानी भरे अंदाज मे ज्योति उसके सामने जाकर खड़ी हो गयी.... और अपने दोनो हाथ अपनी कमर पर रखकर जतिन को ऊपर से नीचे... नीचे से ऊपर देखने लगी... कभी उसके हाथो की तरफ आगे देखती तो कभी पीछे ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ खोज रही हो... काफी खोजने के बाद भी ज्योति को जब कुछ नही मिला तो वो जतिन से बोली- भइया... मेरी चॉकलेट...!!

ज्योति की बात सुनकर जतिन एकदम से चौंक गया बिल्कुल ऐसे जैसे किसी गहरे ख्याल से जागा हो.. और चौंकते हुये जतिन ने कहा- ओह... सॉरी बेटा... मै भूल गया... तू दो मिनट रुक मै अभी लाया..

ऐसा कहते हुये जतिन जब ज्योति के लिये चॉकलेट लेने जाने लगा तो उसका रास्ता रोकते हुये ज्योति बोली- अरे नही भइया आप अभी आये हैं... पानी तो पी लीजिये, मै तो ऐसे ही खड़ी हो गयी आपके आगे.. आप रोज कुछ ना कुछ लाते हो इसलिये...

जतिन ने कहा- कोई बात नही... तू चाय बना मै यूं गया और यूं आया...

ऐसा कहकर जतिन मुड़ा और ज्योति के लिये चॉकलेट लेने चला गया... जतिन जब घर वापस आया तो ज्योति तो खुश हो गयी पर जतिन के चेहरे पर वही उदासी बिखरी पड़ी थी जो अपने बॉस से बात करके उसके चेहरे पर आयी थी इसके बाद ज्योति ने जतिन को पानी दिया और चाय पिलायी.... जतिन फिर भी उदास था, वो मुंह लटकाये उसी असमंजस की स्थिति मे बिस्तर पर बैठा था कि तभी उसके पापा विजय सक्सेना उसके पास आये और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुये बोले- क्या बात है बेटा, जब से तू आया है... तब से एक अजीब सी उदासी है तेरे चेहरे पर, क्या हुआ ऑफिस मे कोई बात हो गयी क्या....?

अपने पापा की बात सुनकर जतिन ने कहा- अरे नही पापा ऐसी कोई बात नही है... बस थोड़ी सी थकान है और कुछ नही..

जतिन और उसके पापा की बात सुन रही पास ही खड़ी जतिन की मम्मी बबिता जतिन के पास आकर बोलीं- बेटा बीएससी सेकंड इयर मे था तू जब तूने अपने पापा का हाथ बंटाने के उद्देश्य से छोटे मोटे काम करके अपनी फीस का इंतजाम करना शुरू कर दिया था... आज कुल मिलाकर देखें तो तुझे करीब करीब 6 साल हो चुके हैं काम करते करते, आज तक तो थकान मे इतना डल और उदास तू कभी नही हुआ... फिर आज ऐसे क्यो... इतना तो मै जानती हूं कि किसी लड़की का चक्कर तो पक्का नही है... फिर क्या वजह है तेरी उदासी की बता तो सही....

अपनी मम्मी के मुंह से लड़की की बात सुनकर जतिन मुस्कुराने लगा और बोला- मम्मी मेरे पास इन फालतू चीजो के लिये टाइम ही नही है और रही बात कि कोई बात है तो मम्मी सच मे कोई बात नही है... आप लोग परेशान मत हो...

जतिन के अपनी बात कहने के इस लहजे मे भी बड़ी उदासी सी थी... उसकी मनस्थिति भांपते हुये उसकी मम्मी ने कहा- बेटा नौ महीने तुझे पेट मे पाला है... और तू मुझे समझा रहा है कि मेरी उदासी के पीछे कोई बात नही... तू बताना नही चाहता तो मत बता पर झूट मत बोल..

अपनी पत्नी बबिता की बात सुनकर विजय बोले- हां तुम सही कह रही हो... ये नही बताना चाहता तो कोई बात नही वैसे भी अब ये बड़ा हो गया है.. अपने निर्णय खुद ले सकता है... अब इसे हमारी क्या जरूरत...

ऐसा कहकर जतिन के पापा विजय जब जतिन के पास से उठकर जाने लगे तो जतिन ने उनका हाथ पकड़ते हुये कहा- अरे नही पापा जी ऐसी कोई बात नही है... बस ऑफिस मे बॉस से मैने बिजनेस के लिये बात करी तो उन्होने मेरा उत्साह तो बढ़ाया लेकिन.....

जतिन की बात सुनकर विजय बोले- क्या लेकिन बेटा...!!
जतिन ने कहा- लेकिन पापा उन्होनें ये भी कहा कि अगर मै बिजनेस करता हूं तो मुझे जॉब छोड़नी पड़ेगी... बस इसीलिये थोड़ा अपसेट हूं...

जतिन के पापा बोले - बस इतनी सी बात... बेटा जिस दिन तूने मुझे बिजनेस के लिये तेरी इच्छा के बारे मे बताया था.. मै उसी दिन तुझसे ये बात कहने वाला था कि जॉब और बिजनेस एकसाथ करने की अनुमति कोई कंपनी नही देगी... लेकिन मैने उस दिन तुझे टोका नही था ताकि कहीं तेरा मनोबल ना गिर जाये...

अपने पापा की बात सुनकर जतिन ने कहा- पर पापा महीने की बंधी बंधायी इन्कम को ऐसे कैसे छोड़ दूं...
जतिन के पापा विजय बोले- बेटा तूने समय से पहले ही मुझे सहारा देने के लिये घर का सारा भार अपने कंधों पर ले लिया... तो क्या मै इतना बड़ा होकर कुछ दिनो के लिये अपने बेटे का सहारा नही बन सकता? बेटा मैने जीवन भर अपनी इच्छाओ का गला घोंटा है... मै अपने बेटे को इतनी कम उम्र मे उसकी इच्छाओ का गला घोंट कर जीवन भर के लिये एक अवसाद के साथ जीने के लिये उसके पैरो मे अपेक्षाओ रूपी बेड़़िया नही डाल सकता.. बेटा तू समय से पहले परिवार की जिम्मेदारियां लेकर बहुत बड़ा हो गया है... वरना मेरे ऑफिस मे मै देखता हूं कि तेरी उम्र के लड़के आज भी एक अदद नौकरी के लिये रोज चक्कर काटते हैं... और बेटा अब मेरी सेलरी इतनी तो हो ही गयी है कि कुछ समय के लिये घर के सारे खर्चे मै उठा लूं और घर के खर्च मे तेरे हाथ बंटाने की वजह से मैने भी अच्छी बचत करली हैं.... बेटा तू चिंता मत कर मुझे तुझपर और तेरी काबीलियत पर पूरा भरोसा है.... तू अपने पंखो को मेरी तरह कुतर के जीवन के इस चक्रव्यूह मे मत फंस... तू उड़, खूब उड़ और अपनी मंजिल की तरफ पूरी ईमानदारी और निष्ठा से आगे बढ़.... तेरा बाप अभी जिंदा है.... मै तेरे हर निर्णय मे तेरे साथ हूं....

अपने पापा की बातो को सुनकर जतिन के मन मे खोई हुयी ऊर्जा जैसे फिर से जाग्रत हो गयी थी.... कि इतने मे उसकी मम्मी ने भी कहा- हां बेटा... तू पूरा दिल लगा के काम करता है, इतनी मेहनत करता है... इतना ध्यान रखता है हर बात का, हर चीज का... तू योद्धा है मेरे लाल... और तेरे जैसे योद्धाओ का भगवान भी साथ देते हैं, तेरे पापा की तरह मै भी तेरे साथ हूं... तेरे पापा सही कह रहे हैं... तू उड़ और तू खूब उड़...!!

सबकी बाते सुन रही ज्योति भी बीच मे बोल पड़ी- आप बेस्ट भइया हो इस दुनिया के... आपके जैसा कोई नही भइया..... मै भी आपके साथ हूं...!!

दिन भर की मानसिक उलझनो के बाद परिवार का जो साथ जतिन को मिला उसने उसके हारे हुये मन मे फिर से एक नयी ऊर्जा भर दी... उसका आत्मविश्वास एकदम से जैसे आसमान की ऊंचाइयो को छूने लगा था....

सच ही कहा है किसी ने कि जिस इंसान को परिवार का ऐसा साथ मिल जाये फिर वो बड़ी बड़ी चुनौतियो से हंसते खेलते लड़कर बाहर आ जाता है...

क्रमशः