Yado ki asharfiya - 3 in Hindi Biography by Urvi Vaghela books and stories PDF | यादों की अशर्फियाँ - 3.मॉनिटर का चुनाव

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यादों की अशर्फियाँ - 3.मॉनिटर का चुनाव

3. मॉनिटर का चुनाव 


       क्लासरूम में शोर करना तो जैसे स्टूडेंट्स का जन्मसिद्ध अधिकार था। और टीचर को इसे रोकना उसका मिशन था। टीचर तो हर वक्त क्लास में नही रह सकते इस लिए क्लास में से ही एक विद्यार्थी को चुनकर उसे क्लास की रखवाली करने का काम सोपते थे। मॉनिटर बनना मेरा सपना था पर वह अब तक पूरा नहीं हो पाया था। मॉनिटर का चुनाव होशियार बच्चो में से होता था। इस साल मेरे क्लास के होशियार स्टूडेंट्स स्कूल छोड़ कर चले गए थे। वह लोग कह कर भी गए थे अगले साल तुम ही मॉनिटर बनना। और मेरा कोई प्रतिस्पर्धी भी नही था तो हम सब निश्चिंत थे। इस बार मेरा ही नंबर लगेगा। 


* * * 

 

  आखिर वह दिना आ गया। सुबह की प्रार्थना सभा। हम सब आँखें बंद कर प्रार्थना कर रहे थे। फिर प्रार्थना पूर्ण हुई। बर्थडे गीत, समाचार वाचन हुआ और समूह गीत के बाद अचानक कनक टीचर खड़े हुए और धीरेन  सर से बोले

“सर, आज हम मोनिटर का चयन कर ले?”

“हां, कर लो”


    हम सब तो चौंक गए। हमे पता तक नहीं था की आज मोनिटर का चयन करने का कार्यक्रम होगा। कनक टीचर ने पांचवी कक्षा के विद्यार्थी से कहा कि पिछले साल जिसका भी टॉप 3 में नंबर आए वह खडे हो जाए। फिर उन सबसे पूछा की आपमें से कौन मॉनिटर बनना चाहता है। सबसे ने ऊंची ऊंगली की। फिर क्या होना वही था जो मंजूरे कनक टीचर था। ऐसे करते लड़को और लड़कियों में सभी कक्षा में चुनाव होते गए।


    जब 8th कक्षा की बारी आई तब मेरे सभी फ्रेंड्स मेरी और देखने लगे की अभी तुम हां ही कहना और तुम ही मॉनिटर बनोगी। में भी निश्चिंत थी की मेरा ही नाम मॉनिटर के चुनाव में आएगा। अब 9th की बारी आई। कनक टीचर ने कहा की

“टॉप 3 वाले खड़े हो जाओ"

   में खड़े होने ही वाली थी की तब स्टाफ रूम से दीपिका मेम बाहर निकले और मुझसे आगे बैठी रीति की और निशाना कर वह बोले,

“सर, इस लड़की को मॉनिटर रखो। यह सब काम अच्छे से हेंडल करती है।”


  हम सब तो यूं बिजली का करंट मिला हो ऐसे चौक गए क्योंकि रीति को तो टॉप 10 में भी स्थान नहीं मिला था और ऐसे कभी किसी को चुना भी नही गया था। और रीति का चहरा तो खिल गया था जैसे दीपिका मेम ने भगवान की तरह आशीर्वाद दे दिया। उनके लिए दीपिका मेम ने बिना मांगे ही वरदान दे दिया था। और मुझे एक मौका भी नहीं? 


  हम सब तो ज़ोर से चिल्लाना चाहती थे की यह तो नाइंसाफ है। सब कक्षा में हर साल होशियार विद्यार्थी को ही चुना जाता था और में तो हर बार सिर्फ एक-दो प्रतिशक के लिए सिलेक्ट नही हो पाती थी और रीति बिना कुछ किए इतना बड़ा प्रमोशन? 


  पर शायद यही सारे सवाल कनक टीचर के दिमाग उठें होंगे तभी हम सब के दिल की बात उन्होंने कह दी की 

" उरी, तुम्हारा नंबर पहला है ना?”

में ने सिर्फ हां में सिर हिलाया पर में चिल्लाना चाहती थी हा में ही हूं जिसको मॉनिटर बनना चाहिए। 

और मुझसे वह पूछा जो सब चाहते थे,

“ उरी, तुम मॉनिटर बनना चाहती हो?”


मेने हा कहा थी था की फिर दीपिका मेम बोले,

“रीति को मेने सारा काम करते देखा है बहुत ही अच्छे से विद्यार्थी और काम को संभाल सकती है। कनक टीचर आप इसे मॉनिटर बनाओ।”


  हमे बहुत ही मुश्किल से एक उम्मीद मिली थी कनक टीचर से वह फिर से दीपिका मेम की बात ने हम से यू छीन ली जैसे बच्चे के हाथ से चॉकलेट छीन ली गई हो।


 अब कोर्ट के जज की तरह धीरेन सर के मुंह में ही हमारे सपने को हकीकत में बनाने के लिए शक्ति थी। कनक टीचर जैसे हमारी और से वकील थे और दीपिका मेम बिन बुलाए रीति के पक्ष के वकील थे। 


  धीरेन सर ने युधिष्ठिर की तरह किसी का भी पक्ष नही या फिर कहो की दोनो को निराश भी नहीं किया। 

धीरेन सर ने कहा, " ऐसा हो तो दोनो को रख लो। कोई बात नहीं।”


  और हम सब ने चैन की सांस ली की मेरी बारी तो आ गई वरना दीपिका मेम तो जैसे अपनी बात में अड़ गए थे।


* * * 


  प्रार्थना के बाद जब हम सब क्लास में मिले तो सब अपने अपने गुस्सा की आग को हवन कुंड में डाल रहे थे। सब और सिर्फ एक ही बात आ रही थी की कोन जाने कहां से दीपिका मेम को रीति को मॉनिटर बनाने की बात सूझी और दूसरी और रीति की हालत भी देखने जेसी थी। वह अंदर से काफी खुश थी पर बेचारी बाहर कैसे दिखाए हम सब तो नाराज़, क्या गुस्सा थे इस बात पर आज उसकी वजह से मेरी बात बनते बनते रह जाती। वह तो यही कह रही थी की मुझे भी आश्चर्य हो रहा है की मेम ने मुझे क्यों चुना। 


  हम खुश भी नही थे और दुःखी भी नहीं। और यह बात जब पुराने स्टूडेंट को पता चली की रीति भी मॉनिटर है तो किसी को विश्वास ही नहीं हुआ। होता भी कैसे ऐसा तो पहली बार जो हुआ था। 

 
   आज तक दीपिका मेम मेरे मोस्ट फेवरिट टीचर रहे है। जब में लिख रही हूं तब भी लेकिन उस वक्त पहली बार मुझे मेम पर भी गुस्सा आया। और किसी टीचर कबाब में हड्डी बने होते तो कोई परेशानी नहीं थी पर दीपिका मेम को नहीं बनना चाहिए था। पर अब क्या ? हर रोज मेरे साथ रीति भी खड़ी होगी क्लास की रखवाली के लिए।


   मॉनिटर बन कर मेरे लिए तो जैसे एक आफत थी। क्योंकि मुझे अपनी ड्यूटी निभानी होती थी और उसमे सबसे ज्यादा परेशान करती थी धुवी। उसका काम ही मस्ती करना था। में उसे कहती तो वह भी मस्ती में जाने देती और फ्रेंड को टीचर्स से डांट खिलवाना भी अच्छा नहीं लगता था। मुझे तो ऐसा लगता की में धर्म संकट में हूं। कभी कभी तो लगता की में मॉनिटर का पद छोड़कर धुलु के साथ मस्ती में जुड़ जाऊ। आखिर वह कब तक मेरे साथ रहेगी? 


  सच कहूं तो में और रीति तो बोर्ड पर बात करने वाले स्टूडेंट यानी फ्रेंड के नाम लिखते पर फिर जैसे टीचर आते उसे मिटा देते यह तो सिर्फ खेल की तरह ही था कोई सीरियस ड्यूटी नही थी। 


  ज्यादा तकलीफ तो तब होती जब में चोक लेने जाती तभी मेना टीचर स्टाफ रूम में होते और अक्सर मुझे डांटते की


“इसे तो स्टाफ रूम में घूमने आना है” 

“में सिर्फ चोक लेने आई थी”

“चोक का तो सिर्फ बहाना है। ऐसे थोड़ी ना चोक खत्म हो जाता। क्या समझ के रखा है”


मेना टीचर को कभी कोई भी जवाब देने में नही पहुंच सकता। यह नामुमकिन है। 


* * * 


  एक बात मुझे बाद में समझ आई की जो हुआ अच्छा ही हुआ। रीति के कारण वह क्लास में ज़ोर से चिल्ला सकती थी जिसके लिए में समर्थ नहीं थी।


   मेरे दोस्त मेरी एक नज़र से बात करना बंद कर देते। में मॉनिटर थी इस लिए नही पर वह लोग दोस्ती के नाते बंद कर देते थे क्योंकि में हमेशा पढ़ना चाहती थी और में उनकी बातो से परेशान होती तो वह तुरंत बंद कर देते थे। मुझे कभी नही लगा की में शायद अच्छी मॉनिटर रही होंगी या नहीं पर मुझे पक्का यकीन है मेरे दोस्त काफी अच्छे थे जो मेरी कमी को भी अपनी अच्छाई से ढंक देते थे। 


    पर दोस्तो की अच्छाई से ज्यादा शरारते काफी मज़ेदार और यादगार होती है। अब तो सब कुछ तय हो गया था। पीरियड्स भी नियमित आ रहे थे अब बारी है धमाल मस्ती करने की। एक नही कई किस्से है जो हमे एक साथ हसीं और आंसू भी दे सकते है।


***