Sathiya - 87 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 87

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साथिया - 87

अगले दिन अक्षत अमेरिका जाने के लिए तैयार था।

" इशू अगर तुम चाहो तो तुम भी जा सकते हो..!! शालू से भी मिलना हो जाएगा। बाकी यहां की फिक्र मत करो। मैं और साधना सब संभाल लेंगे और फिर नील और उनकी फैमिली भी है ही। मानसी की शादी तक तुम दोनों वापस आ जाना।" अरविंद ने कहा।

"नहीं पापा मैं नहीं जा रहा हूं..!! अक्षत को जाने दो। अगर सांझ भाभी वापस आएगी तो शालू भी वापस आ ही जाएगी। अब जो भी बातचीत होनी होगी वह यहीं आकर हो जाएगी। मैं अभी आपकी मदद करता हूं।" ईशान ने कहा।


मानसी ने अक्षत के कंधे पर हाथ रखा जिसकी आंखें सुर्ख लाल हो रही थी जो कि यह बता रही थी कि वह रात भर सोया नहीं है और साथ ही साथ बहुत ही ज्यादा दर्द और तकलीफ में है।

"तुम बिल्कुल भी फिक्र मत करो..!! सांझ ठीक होगी और तुम्हारे साथ वापस आएगी। बाकी मैं इंतजार करूंगी तुम्हारे वापस आने का। मेरी शादी तक तो आ जाओगे ना?" मानसी ने कहा।

"बिल्कुल आ जाऊंगा..!! तुम्हारी शादी में सांझ को लेकर आऊंगा प्रॉमिस करता हूं। बाकी अगर जल्दी आ सका तो ठीक है। हो सके तो अपने भाई को माफ कर देना पर तू समझ सकती है मनु इस समय में एक पल भी यहां नहीं रुक सकता। ऐसा लग रहा है कि अगर एक दिन भी डिले होगा तो जान ही निकल जाएगी मेरी। उसे देखना चाहता हूं मैं।" अक्षत ने कहा।

"मैं समझ नहीं हूं इसलिए भी बुरा नहीं मान रही हूं, बल्कि मैं खुश हूं कि सांझ जिंदा है। उसके बारे में पता चल गया। आखिर तुम्हारा विश्वास जीत गया बस अब उसे जल्दी से लेकर आ जाओ वापस अपनी जिंदगी में भी और इस घर में भी।" मानसी ने भावुक होकर कहा तो अक्षत ने उसके सिर पर हाथ रखकर थपका और फिर अरविंद और साधना के पैर छुए।

"हिम्मत रखना बेटा जानते हैं कि अभी वहां जाकर भी तुम्हें तकलीफ होने वाली है..!! जैसा कि सुरेंद्र जी ने बताया कि सांझ को कुछ भी याद नहीं पर मैं जानता हूं कि मेरा बेटा बहुत हिम्मती है और हर चैलेंज का सामना कर सकता है।" साधना ने कहा।

अक्षत ने कोई जवाब नहीं दिया।

"मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है और देखना सब कुछ बहुत जल्द सही हो जाएगा..!! बाकी तुम्हारा और सांझ का इंतजार रहेगा हम लोगों को..!!" अरविंद ने अक्षत को गले लगा कर कहा तो अक्षत की आंखों से दो बूंद आंसू निकल कर बाहर आ गए।

"तकलीफ पता है पापा किस बात की है..!! कि जब सब कुछ सही था फिर भी इतना कुछ गलत हुआ। और सबसे बड़ी बात हम सब उसके लिए कुछ भी नहीं कर पाए। वह अनाथ नहीं थी उसके मां-बाप थे पर उसके मां-बाप उसकी मदद नहीं कर पाए। उसकी बहन थी पर उसकी बहन उसके लिए कुछ नहीं कर पाई। उसका ससुराल था उसके इनलॉस थे आप थे मैं था ईशु था। उसका इतना बड़ा परिवार होने के बाद भी कोई उसके लिए कुछ नहीं कर पाया। वह दो दिन उसने कैसे निकाले होंगे और और कितनी मजबूर हुई होगी जो उसने सुसाइड करने का सोचा। बस यही तकलीफ मुझे मुझे बेचैन किए हुए हैं।" अक्षत ने कहा।

"बस जो बुरा वक्त था वह बीत गया और अब मुझे विश्वास है कि सब अच्छा ही अच्छा होगा..!!" अरविंद ने अक्षत की पीठ थपक कर कहा और फिर अक्षत ईशान के साथ एयरपोर्ट निकल गया जहां से उसे अमेरिका के लिए फ्लाइट लेनी थी।

* अमेरिका में*

पापा हम लोग इंडिया कब जायेंगे..? " माही ने अबीर के पास बैठकर कहा।

" अबीर ने एक नजर माही को देखा और फिर उसका हाथ थाम लिया।

" जब मेरी बच्ची पूरी तरह से ठीक हो जायेगी तब..!!" अबीर बोले।


" लेकिन पापा अब मैं ठीक हूँ, बाकी रही बात मुझे याद आने की तो पता नही कब याद आयेगा पर हम कब तक यूँ यहाँ रुके रहेंगे..? मतलब कि आपका बिजनेस इंडिया मे है..!! हमारा घर वहाँ है फिर हम यहाँ क्यों और कब तक रहेंगे..!!" माही बोली।

" कहा न बेटा जब तक तुम ठीक नही हो जाती तब तक हम यही रहेंगे।" अबीर ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रखकर कहा।

" लेकिन पापा अब मैं ठीक हूँ। मेरे कारण बहुत कोम्प्रोमाज कर लिया आप लोगो ने पर अब और नही..!! आपका बिजनेस हमारा घर और शालू दीदी के ईशान जी हमारा वेट कर रहे है।" माही बोली तो अबीर के साथ साथ मालिनी और सांझ की आँखे भी बड़ी हो गई।

" ईशान..?? ईशान को तुम कैसे जानती हो??" शालू के मुँह से निकला।

" सॉरी शालू दी..!! पर मैंने एक दिन आपका लिखा लैटर..!!" कहते कहते माही की नजर झुक गई।

शालु ने गहरी सांस ली और माही के कंधे पर हाथ रखा।

" तुम्हारी तबियत से पहले कुछ नही..!!" शालू बोली तभी अबीर का सरवेंट आया और उसने अबीर के पास आकर धीमे से कुछ कहा जिसे सुनकर अबीर के चेहरे पर तनाव आ गया।

" माही बेटा तुम्हारी इवनिंग वॉक का टाइम हो गया है..! जाओ तुम गार्डन मे वॉक करके आ जाओ।" अबीर बोले।

" जी पापा..!!" माही बोली और शालू की तरफ देखा।

" अभी तुमने कहा न कि तुम ठीक हो गई हो तो हिम्मत रखो और जाओ..!! शालू अभी कुछ देर मे आ जायेगी।" अबीर बोले तो माही मुस्कराते हुए पीछे के रास्ते गार्डन की तरफ चली गई।


मालिनी और शालू ने अबीर को देखा।

अबीर ने सरवेंट को देखा।

" जाओ उन्हे ले आओ...!!" अबीर बोले तो सेरवेंट चला गया।

" कौन है पापा जो आपने माही को भी भेज दिया।"

" हाँ जी कौन आया है?? मालिनी भी परेशान थी कि तभी नजर दरवाजे से सर्वेंट् के साथ खड़े अक्षत् पर उनकी नजर गई।

" अक्षत..!!" मालिनी के मुँह से निकला..!!

" अक्षत भाई..!!" शालू बोली और उसकी आँखे भर आई।


" आओ बेटा..!!" अबीर बोले तो अक्षत अंदर बढ़ने लगा पर उसकी नजरें वहाँ सांझ को तलाश कर रही थी।

अक्षत ने दोनों को नमस्कार किया और बेचैनी से चारों तरफ देखने लगा पर जब सांझ नजर नही आई तो उसने शालू कि तरफ देखा जोकि भरी आँखों से उसे ही देख रही थी।


" कैसी हो शालू..?? और बिना मिले बिना बताये यहाँ आ गई..?? कोई खास वजह..??" अक्षत ने शालू के पास आकर कहा।

शालू ने एक नजर अबीर को देखा और फिर अक्षत की तरफ देखा।

" मैंने इशू को मेसेज किया था कि मेरी बहिन माही के इलाज के लिए मैं आ रही हूँ।" शालू बोली।

" बस एक मेसेज..?? तुम्हे नही लगता कि या नाकाफी था..?? जब रिश्ता इतना गहरा था तो एक बार साफ बात और मुलाकात तो होनी चाहिए थी..! तुम दोनों सालों से रीलेशनशीप में थे। इंगेजड थे फिर क्या तुम्हे नही लगता कि एक बार इशू को सच्चाई बताना जरूरी था.?" अक्षत ने कहा।

" बताना जरूरी था पर उस समय सबसे जरूरी मेरी बहिन और उसकी जिंदगी थी।" शालू बोली।


" हाँ बहिन..!! वैसे कहाँ है तुम्हारी बहिन..?? दिखाई नही दे रही??" अक्षत बोला।

" वो बाहर गई है..!!" अबीर ने कहा।



" वैसे आपकी तो एक ही बेटी थी शालू..!!" अक्षत ने कहा।

" नही मेरी एक और बेटी थी माही जोकि मेरी बहिन मिनाक्षी के साथ रहती थी। उसी का एक्सीडेंट हुआ था और फिर इलाज के लिए हम उसे यहाँ ले आये।

" माही या सांझ..??" अक्षत ने अबीर की आँखों मे देखकर कहा।

" सांझ..!! सांझ का हमसे क्या लेना देना।" अबीर ने नजरे चुराते हुए कहा।

"कितना झूठ बोलेंगे राठौर साहब.. !! एक तो मुझसे बिना पूछे बिना बताये मेरी सांझ को यहाँ ले आये और उस पर झूठ बोले जा रहे है..!!" दर्द और नाराजगी से अक्षत बोला तो सबने उसकी तरफ आश्चर्य से उसकी तरफ देखा।

" तुमको कोई गलतफहमी हुई है अक्षत बेटा..!! सांझ का पता चला और बहुत दुःख हुआ पर यहाँ पर सांझ नही है। हम हमारी बेटी माही को लेकर आये है..!" अबीर की आवाज भी सख्त हो गई।



क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव