Sathiya - 79 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 79

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साथिया - 79

"बचपन तो सांझ का बहुत अच्छा बीता था क्योंकि उसके मम्मी पापा ने उसे गोद लिया था अपने दोस्त से और वह उसे बहुत प्यार करते थे। पर शायद किस्मत सांझ की उतनी अच्छी नहीं थी कि जब वह पांच या छः साल की थी तभी उसके माता-पिता दोनों का देहांत हो गया और वह हमेशा हमेशा के लिए अपने चाचा और चाची के ऊपर आश्रित हो गई।" सुरेंद्र ने कहा।

सब उनकी बातें गौर से सुनने लगे।

"उसके पास अपने पिता की कुछ निशानियां और खूब सारी प्रॉपर्टी और जमीन थी..!! जिनके लालच में अवतार और उनकी पत्नी ने सांझ को अपने घर रख लिया। और वैसे भी समाज को दिखाने के लिए उन्हें यह सब करना ही था, क्योंकि उस गांव में हर चीज से ज्यादा जरूरी है सामाजिक प्रतिष्ठा और समाज में दिखावा। तो वह समाज में यह कैसे साबित कर सकते थे कि अपने मरे हुए भाई की संतान को उन्होंने नही देखा। इसी के चलते उन्होंने सांझ को अपने घर में जगह दी और बदले में सांझ के पिता की पूरी प्रॉपर्टी और जमीन उनके पास आ गई। पर उस घर में कभी भी सांझ को एक बेटी की जगह नहीं मिली। हमेशा भावना ने उसे यही एहसास दिलाया कि वह किसी और का खून है और वह लोग उसे अपने घर में रख रहे हैं तो उस पर एहसान कर रहे हैं। अवतार ने कभी शब्दों से नहीं कहा पर अवतार के हाव-भाव और व्यवहार भी अक्सर ही सांझ को इस बात का एहसास करा जाते थे कि वह एक अनाथ है। और इन लोगों ने अपने घर में रखकर उस पर बहुत बड़ा एहसान किया है। और इन्हीं अहसानो के बोझ तले दबती हुई सांझ आगे बड़ी होने लगी।" सुरेंद्र ने कहा।


"उस घर में कोई था जो सांझ दी को अपना मानता था और उन्हे प्यार करता था वह थी नेहा दीदी पर नेहा दीदी ही अंजाने सांझ दीदी के साथ हुए हर गलत का जिम्मेदार बन गई।" आव्या ने कहा।

"सांझ ये सच जानती थी की उसे गोद लिया गया है पर अबीर उसके पिता है वो नही जानती थी!" सुरेंद्र ने कहा।


" फिर क्या हुआ..?? जब सांझ गाँव जा रही थी तब हमारी आखिरी बार बात हुई थी। उसके बाद से आजतक नही हुई बात। उसका फोन ट्रेस कराया तो चैंनई जाने वाले एक ट्रक मे ऑफ मिला। मैं उसका एड्रेस यूनिवर्सिटी से लेकर उसके गाँव भी गया था पर किसी ने कुछ न बताया सिर्फ सांझ के नदी मे कूद के मरने के अलावा और अवतार और भावना गाँव से जा चुके थे।" अक्षत ने धीमी आवाज मे कहा।

" भगोड़े थे वो लोग. ..!! खुद की बेटी भाग गई और जब सजा उन्हे और भावना को मिलने लगी तो मुआवजे के तौर पर सांझ और उसकी जमीन दोनों दे दी निशांत और गजेंद्र भैया को।
अपनी सजा के बदले सजा सांझ के लिए मांग ली। अपनी बेटी की गलती की सजा पाने सांझ को सामने कर दिया..!!
खुद की इज्जत बचाने और भावना को निर्वस्त्र होने से बचाने सांझ का सौदा कर दिया। अपनी हर गलती छिपाने और सजा से बचने उस मासूम को आगे कर दिया।

खुद की इज्जत बिकने से रोकने को उस बिन माँ बाप की बच्ची को बेच दिया निशांत के हाथो...!" सुरेंद्र ने गुस्से और दुख से कहा।

सबकी आँखे भर आई और अक्षत की मुट्ठिया भींच गई और आँखे एकदम लाल..!!

अक्षत भैया यह क्या किया आपने आपके हाथ से फिर से खून निकलने लगा है आव्या ने कहा और अक्षत का हाथ आगे करके देखा जहां उसे चोट लगी थी वहां पर मुट्ठी बंद करने के कारण फिर से खून निकलने लगा था। आव्या ने फिर से साफ करके बैंडेज की पर अक्षत ने कुछ भी नहीं कहा वह बस अभी भी भरी आंखों से सुरेंद्र को देख रहे थे।

"भले बचपन से मैं भी उसी गांव में रहा हूं उन्ही मान्यताओं के बीच रहा हूं और बहुत कुछ मैंने भी मानी है।उस गांव का हिस्सा होने के बावजूद उस परिवार का हिस्सा होने के बावजूद मैं हमेशा इन प्रथाओं और गलत मान्यताओं के विरोध में रहा हूं। पर शायद यह मेरी कमजोरी थी कि मैं कभी भी भैया का और पूरी पंचायत का विरोध नहीं कर पाया और वहां कभी कभी इस तरह की घटनाएं होती रहती है। जब भी कुछ ऐसा होता है जो गांव के नियमों के खिलाफ हो तब सजा निर्धारित की जाती है। ऐसी सजा खुद मेरी भतीजी नियति और उसके प्रेमी सार्थक को दी गई थी।" सुरेंद्र भरी आँखों के साथ बोले तो सौरभ की आँखे भी भर आई।

"उस समय भी मेरा कलेजा कट के रह गया था पर मैं कुछ नहीं कर पाया था..!! पर साथ ही साथ मैंने सोच लिया था कि अब अगर आगे कुछ होगा तो मैं विरोध करूंगा। पर सांझ के मामले में भी मेरी किसी ने एक नहीं सुनी और इसलिए मुझसे जितना बन पड़ा मैंने सांझ की मदद की।" सुरेंद्र ने अक्षत के कंधे पर हाथ रखकर कहा।

अक्षत खामोशी से उन्हे देखता रहा


"मुझे हमेशा इस बात का अफसोस रहेगा कि मैं भी उस जगह से जुड़ा हुआ हूं जहां पर इस तरह की घटना हुई। आज के समय में ये सब गलत है। मुझे इस बात का हमेशा अफसोस रहेगा और तकलीफ रहेगी कि मैं कि मैं ना चाहते हुए भी उन सब चीजों का हिस्सेदार हूँ। तुम्हारा मैं भी गुनहगार हूं। हो सके तो मुझे माफ कर देना क्योंकि सिर्फ गुनाह करना ही आपको गुनहगार नहीं बनाता बल्कि गुनाह होते हुए अपनी आंखों से देखना और कुछ भी ना कर पाना भी आपको गुनाहगार बनाता है।" सुरेंद्र ने दोनों हाथ जोड़कर अक्षत के सामने बैठकर कहा।

"क्या सौदा किया था अवतार ने और भावना ने सांझ का..? क्योंकि मैंने वीडियो देखा है जो कुछ उस चौपाल पर सांझ के साथ हुआ वह सब..?? पर वह सब क्यों हुआ यह मुझे नहीं पता...?" अक्षत ने कहा तो सुरेंद्र ने गहरी सांस लेकर सौरभ की तरफ देखा।

"हां पापा मुझे भी जानना है कि आखिर यह सब हुआ क्यों? मुझे लगा था कि यह सब नाराजगी के कारण हुआ है। निशांत भैया ने अपना गुस्सा निकाला है। ना मैंने कभी इसे आगे जानने का सोचा और ना ही कभी आपने बताया। पर अब आप सारा सच प्लीज बता दीजिए, क्योंकि यह सब बहुत जरूरी है।" सौरभ बोला।

" हाँ पापा..!!" आव्या ने भी कहा।

"और एक बात पापा...!! जब अक्षत जी उन लोगों को कटघरे में खड़ा करेगें तो गवाही आपको भी देनी होगी, क्योंकि यह सब चीजे आपने अपनी आंखों से देखी हैं। और इस बार आप अपने भाई के प्यार में पड़कर पीछे नहीं हट सकते।" सौरभ ने कठोरता से कहा।

" मैं तो केस और गवाही देने के लिए उस समय भी तैयार था जब अबीर सांझ को लेकर जा रहे थे पर अबीर ने ही तब मुझे रोका था क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी की जिंदगी पर अब कोई भी खतरा आए। दुनिया के लिए सांझ मर चुकी थी और अबीर ने इस सच को ही सबके सामने पेश किया ताकि सांझ को सुरक्षित यहां से ले जा सके वह नहीं चाहते थे कि अब अतीत की कोई भी काली परछाई सांझ के ऊपर पड़े या सांझ को किसी भी तरह की कोई भी तकलीफ हो इसलिए मैंने भी उनकी बात मानकर इस बात को वही खत्म कर दिया।" सुरेंद्र बोले।

"सच को चाहे कितना छुपा लो...!! गुनाहों के ऊपर चाहे कितने पर्दे डाल दो। हर सच एक न एक दिन बाहर जरूर आता है और हर पर्दा हटकर गुनहगार को वक्त खुद ही सामने लाकर खड़ा कर देता है। अब जब सारा सच सामने आ गया है तो मुझे पूरा सच बताइए। मुझे जानना है कि यह सब हुआ क्यों..?? क्या सौदा किया था अवतार और भावना ने..??" अक्षत ने फिर से वही बात दोहरा दी।

"मुझे शुरू से ही निशांत और नेहा का रिश्ता बेमेल लगा था। कहां नेहा पढ़ी-लिखी एमबीबीएस डॉक्टर और कहां निशांत मैट्रिक फेल..!! पर बावजूद इसके किसी ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया और सबसे बड़ी बात जब भैया रिश्ता लेकर अवतार सिंह के घर गए तो उन्होंने भी खुशी-खुशी रिश्ता स्वीकार कर लिया। उन्होंने भी इनकार नहीं किया और ना ही नेहा से पूछना और बताना जरूरी समझा, क्योंकि वही बात वह भी उन्ही मान्यताओं में और बेड़ियों में जकड़े हुए थे। जहां उन्हें कम पढ़ा लिखा लड़का स्वीकार था पर विजातीय विवाह स्वीकार नहीं था और ना ही नेहा का अपनी मर्जी से विवाह करना।" सुरेंद्र बोले

"नेहा दीदी यह शादी नहीं करना चाहती थी। और उन्होंने शायद अपने घर में विरोध भी किया होगा पर उनके विरोध को दवा दिया दिया अवतार चाचा और उनके परिवार ने। और शादी का दिन आ गया।" आव्या ने आगे कहा।

"हम लोग निशांत की बारात लेकर वहां पहुंचे थे जब हमें पता चला कि नेहा घर छोड़कर भाग गई है..!! उसकी चिट्ठी पढ़कर सारी बातें क्लियर हो गई थी कि वह किसी आनंद नाम के लड़के को चाहती है और उसके साथ जा रही है। और साथ ही साथ उसकी चिट्ठी में यह भी लिखा था कि यह सब करने के लिए उसे खुद अवतार और निशांत ने मजबूर किया क्योंकि न हीं अवतार ने उसे सुनना समझाना चाह रहे हैं और ना ही निशांत उसकी कोई भी बात समझ रहा है। इसलिए मजबूर होकर वह यहां से जा रही है।" सुरेंद्र बोले।

अक्षत अभी भी उन्हें एकटक देख रहा था।

आँखों की सुर्खी बढ़ गई थी।

"नेहा तो चली गई और उसने अपना भविष्य बना लिया...!! किस्मत उसकी अच्छी थी कि वह निशांत और उसके लोगों के हाथ नहीं आई। अगर वह उन लोगों के हाथ आ जाती तो शायद उसको भी सजा वही मिलती जो नियति को मिली थी। पर यहां वह किस्मत वाली निकली और चली गई और पीछे छोड़ गई अपना पूरा परिवार और अपनी बहन जिनके लिए सजा अब निशांत के कहने पर निर्धारित होनी थी, क्योंकि धोखा यहां निशांत के साथ हुआ था। गलत यहां निशांत के साथ हुआ और सामने था अवतार सिंह का परिवार जिन्होंने गलत किया था।
जिनकी बेटी ने निशांत की इज्जत के साथ खिलवाड़ किया था और जिन्होंने धोखा किया था निशांत के साथ।

पंचायत बैठी और सभी पंचों ने मिलकर निर्णय लिए।


*फ्लैशबैक नेहा की शादी वाला दिन*

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव

स्पेशल नॉट- प्रिय पाठकों और मित्रो। पहले भी कहा है और अब भी कह रही हूँ कहानी पूर्ण रूप से काल्पनिक है। सभी घटनाएं पात्र व दृश्य काल्पनिक है। किसी घटना या व्यक्ति के साथ मिलना महज संजोग है।
मैं इस तरह की मान्यताओं प्रथाओ और कुरुतियों का विरोध करती हूँ।

लेखक का उद्देश्य किसी धर्म जाती या समुदाय पर आरोप लगाना नही है। मै हर धर्म जाति और समुदाय का सम्मान करती हूँ। कहानी का एकमात्र उद्देश्य मनोरंजन है।
कुछ कुरुतियाँ समूल रूप से खत्म हो चुकी है हमारे देश में तो कुछ के कभी कभी संकेत मिल जाते है।
महिलाओ पर अत्याचार हमेशा से होते रहे है और आज भी हो रहे है। फिर चाहे वह भ्रूण हत्या हो या उन्हें शिक्षा के अधिकार से वंचित करना हो। बाल विवाह हो या पुरुष और महिला में असमानता हो। दहेज हत्या हो या फिर घरेलू हिंसा। छेड़खानी हो या बलात्कार। एसिड अटैक हो या मॉलेस्टेशन..!! सभी कुछ हमें अपने आसपास देखने को मिल जाता है।
इस कहानी में जो मैंने एक और मुद्दा दिखाया था वह था ऑनर किलिंग का। यह भी अक्सर ही हमें अपने आसपास देखने को सुनने को मिल जाता है। कुछ क्षेत्रों में आज भी ऑनर किलिंक का मामले आते रहते हैं। बाकी यहाँ जो मैंने दिखाया है महिलाओं के खरीद और फरोख्त का मामला यह भी आजकल देखने को मिल जाता है। औरतों और बच्चियों को अगवा करना और उन्हें खरीदना और उन्हें बेचना। देह व्यापार के धंधे में उतारना यह भी कई बार देखने को मिल जाते है

दास प्रथा हमारे देश से पूर्व पूर्ण रूप में खत्म हो चुकी है और मैं इस प्रथा का पूरी तरीके से विरोध करती हूं। पर अगर आप नजर दौड़ाएंगे ध्यान से तो दूर दराज कहीं ना कहीं आपको इस प्रथा की झलक अभी भी मिल जाएगी। जहां पैसों के लालच में तो कभी मजबूरी में कभी पैसों की जरूरत के लिए लोग अपने घर की महिलाओं को बच्चो कभी कभी पुरुषो को भी बेच देते है।


फिर भी किसी की भावना आहात हुई हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ 🙏🙏🙏
मै शराब जूआ शिगरेट। महिलाओ पर अत्याचार उन्हे खरीदने बेचने और ओनार् किलिंग का विरोध करती हूँ।
ये महज एक काल्पनिक रचना है।