Sathiya - 67 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 67

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

Categories
Share

साथिया - 67








कुछ दिन बाद अक्षत के पास उसके एजेंट का कॉल आया।

"हां बताओ कुछ इनफार्मेशन मिली?" अक्षत ने पूछा।

"सर इतनी जबरदस्त इनफार्मेशन मिली है कि आप सुनोगे तो खुश हो जाओगे..!!" एजेंट बोला।

"क्या पता चला है? "

"ऐसे नहीं आपसे मिलकर ही बता पाऊंगा अगर आप बोलो तो मैं आपसे मिलने आता हूं या तो आप फ्री हो तो आप मुझे मिल लो आकर।"


"ठीक है मैं आता हूं आज शाम को कोर्ट के बाद अक्षत ने कहा और कॉल कट कर दिया पर दिमाग में उस एजेंट की कही हुई बातें घूम रही थी।


"आज शाम को हमारी रियूनियन पार्टी है तुम आओगे ना अक्षत?" मनु ने पूछा

" हां आ जाऊंगा तुम पहले निकल जाना मैं थोड़ा देर से आ पाऊंगा...!! मुझे एक जगह कुछ जरूरी काम से जाना है!" अक्षत ने कहा

" प्लीज टाइम से आ जाना वैसे भी ईशान भी नहीं है वह मुंबई गया हुआ है तुम भी नहीं रहोगे तो मेरा तो मन ही नहीं लगेगा..!" मनु बोली।

" ठीक है मैं आ जाऊंगा शुरुआत से नहीं रहूंगा पर तुम्हें पिक करने के टाइम तक आ जाऊंगा!" अक्षत ने कहा और फिर निकल गया।


उधर ईशान मुंबई पहुंचा और अपनी मीटिंग के लिए होटल पहुंच गया जहां अलग-अलग कंपनीज के ओनर आए थे अपने तरफ से प्रेजेंटेशन लेकर ताकि कॉन्ट्रैक्ट उन्हें मिल सके...। .सब लोग कॉन्फ्रेंस हॉल में बैठे ही थे कि तभी अबीर राठौर वहां आए।

अबीर को जैसे ही देखा ईशान के चेहरे के भाव बदल गए तो वहीं अबीर भी ईशान को देखकर थोड़े अनकंफरटेबल हो गए।


ईशान ने उन्हें हेलो कहा और फिर मीटिंग में दोनों लोग बैठ गए।।बाकी लोग भी थे वहाँ मीटिंग खत्म हुई और उसके बाद सब लोग निकल जाने लगे।

ईशान ने अबीर से कोई बात नहीं की और वह भी होटल से बाहर निकलने लगा कि तभी कबीर की आवाज उसके कानों में पड़ी।


"अब नाराजगी इतनी ज्यादा है क्या जो मेरे सामने आने पर भी मुझसे बात नहीं करोगे?" अबीर ने कहा तो ईशान के जाते हुए कदम रुक गए और उसने पलट कर देखा...।।

" जो कुछ भी है आपकी तरफ से मिस्टर राठौर...!! मेरी तरफ से ना कोई नाराज़गी थी ना कोई दूरी थी। पर दूरी भी आपके परिवार की तरफ से आई है और शायद नाराज़गी भी!" ईशान ने कहा।

"कई बार परिस्थितियों इंसान के हाथों में नहीं होती है बेटा इसका मतलब ये नहीं है कि आप इंसान को ही गलत समझने लगे...।" अबीर बोले।.


"जिसके साथ गलत हुआ होता है वही समझ सकता है दूसरा कोई नहीं समझ सकता उसका हाल...!" ईशान बोला।


"हो सकता है जितना गलत तुम सोच रहे हो कि तुम्हारे साथ हुआ है उससे भी ज्यादा गलत सामने वाले के साथ हुआ हो और वह मजबूर हो गया हो तुम्हे कुछ ना बताने के लिए और तुमसे दूर जाने के लिए!" अबीर ने कहा तो ईशान के चेहरे पर फीकी मुस्कुराहट आई।

" कोई भी मजबूरी क्या इतनी बड़ी हो सकती है कि एक बात एक मुलाकात ना हो? " ईशान ने कहा।

" मैं तुम्हें बहलाने के लिए नहीं कह रहा हूं और ना ही मैं यह चाहता हूं। न हीं मैं यह कह रहा हूं कि तुम शालू को गलत ना समझो....। मैं शालू का पक्ष नहीं ले रहा पर बेटा पर कई बार सच्चाई कुछ और होती है जो हम नहीं जानते और सबसे बड़ी बात इंसान अपनों के कारण मजबूर हो जाता है तो बता भी नहीं पाता कुछ भी!" अबीर बोले।

" इसका मतलब है कि शालू के अपने सिर्फ आप मालिनी आंटी और उसकी बहन है..। मै तो उसका अपना कभी था ही नहीं और उसे मुझसे कोई लेना देना नहीं था इसलिए मुझे अपनी तकलीफ में अपने बातों में शामिल करना उसने जरूरी नहीं समझा।" ईशान नाराजगी से बोला।


"अभी मैं अगर तुमसे कुछ भी कहूंगा तो तुम समझना नहीं चाहोगे क्योंकि तुम्हारे मन में नाराजगी बहुत ज्यादा है...।। बस इतना कहना चाहता हूं बेटा की जिस तरीके से शालू और माही मेरी बेटी है तुम भी मेरे बेटे के जैसे ही हो..। तुम्हे कभी भी तकलीफ नहीं देना चाहता था पर कुछ परिस्थितियों ऐसी बनी की कुछ निर्णय हमें ऐसे लेने पड़े जो लोगों के लिए सही नहीं थे पर धीरे-धीरे सब सही हो जाएगा..!" अबीर ने कहा।

" कई बार रिश्तो के टूटने की आवाज नहीं आती है राठौर साहब पर रिश्ते टूट जाते हैँ...।। उन्हें दौबारा जोड़ भी लो तो वो बात नहीं रहती। हमेशा के लिए एक गांठ बन जाती है...। मुझे नहीं लगता कि अब कुछ भी पहले जैसा हो पाएगा!" ईशान ने कहा और तुरंत वहां से निकल गया।


अबीर के चेहरे पर हल्का सा तनाव आ गया।


"जानता हूं कि तुम नाराज हो और तुम्हारी नाराजगी का कारण भी वाजिब है पर मै अभी तुम्हें कुछ भी नहीं कह सकता न हीं कोई सफाई पेश कर सकता हूं... । अगर मजबूर ना होता तो कभी भी तुम्हारा और शालू का रिश्ता यूँ दांव पर नहीं लगने देता। पर एक तरफ मेरी एक बेटी की खुशिया थी तो दूसरी तरफ दूसरी बेटी की जिंदगी। खुशियों और जिंदगी के बाद बीच में चुनना था तो हम सब लोगों ने जिंदगी को चुना क्योंकि खुशियां तो जिंदगी में वापस फिर से आ जाएंगी पर एक बार जिंदगी चली गई तो दोबारा नहीं आएगी...!" अबीर ने कहा और फिर वह भी निकल गए शाम की फ्लाइट से उन्हें वस फॉरेन जाना था। वह सिर्फ यह मीटिंग अटेंड करने के लिए यहां आए थे क्योंकि बहुत बड़ा कॉन्ट्रैक्ट था और वह नहीं चाहते थे कि सिर्फ अपने मैनेजर के भरोसे रहे और उनका बहुत बड़ा नुकसान हो पर उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि यहां पर ईशान से उनकी मुलाकात हो जाएगी।


अबीर से मिलने के बाद ईशान अपने होटल में आ गया अभी भी आंखों के आगे कबीर तो कभी शालू का चेहरा आ रहा था और कानों में अबीर की आवाज पहुंच रही।

" समझता हूं मैं की कोई बड़ी मजबूरी रही होगी तभी शालू ने इतना बड़ा निर्णय लिया पर मुझे तकलीफ उसके निर्णय की नहीं है....।।मुझे तकलीफ इस बात की है कि अपनी तकलीफ में उसने मुझे शामिल नहीं किया...। एक बार मुझसे कहती तो सही की प्रॉब्लम क्या है? मैं उसका साथ ही देता कभी भी उसके रास्ते तो नहीं आता इतना तो इतने सालों के रिलेशनशिप में वह मुझे जान गई होगी? " ईशान ने खुद से ही कहा और फिर वह भी एयरपोर्ट निकल गया रात की फ्लाइट से उसे भी वापस दिल्ली आना था।


उधर दिन भर के कोर्ट के बाद अक्षत फ्री हुआ तो सीधा अपने एजेंट से मिलने चला गया।


" आइये उसने अक्षत से कहा और तो अक्षत उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया।

" बताइए मुझे क्या पता चला है क्या इनफार्मेशन मिली है? " अक्षत ने कहा।


" जैसा कि आपने मुझसे कहा था सर तो मैंने आपको अवतार और उनकी वाइफ भावना के बारे में तो बता ही दिया है..। . उनकी बेटी नेहा जोकि जर्मनी चली गई थी वहीं पर उसने हॉस्पिटल ज्वाइन कर लिया था और शादी कर ली है किसी आनंद नाम के डॉक्टर से। पर अब वह दोनों लोग वापस इंडिया आ गए हैं और यही दिल्ली में उन्होंने अपना हॉस्पिटल खोल लिया है। .आनंद के पास अच्छा खासा पैसा था क्योंकि उनका जर्मनी में भी हॉस्पिटल था उनकी मदर डॉक्टर थी।।पर उनकी मदर की डेथ हो गई और उसके बाद आनंद का जर्मनी में मन नहीं लगा तो वह लोग इंडिया आ गए हैं यहां पर उन्होंने अस्पताल खोल लिया है और दोनों अपना हॉस्पिटल चला रहे हैं। यह उनके अस्पताल का पता और डिटेल।" एजेंट ने एक फाइल खोलकर अक्षत को पेपर दिखाए।

अक्षत की आंखें सिकुड़ गई

" और कुछ।" अक्षत बोला

"और जो सबसे बड़ी बात जो मुझे आपसे बात करके आपको बतानी थी वह साँझ के बारे में हैँ...!" एजेंट ने कहा तो अक्षत ने उसकी तरफ देखा..।

" सबसे पहले तो मैं आपसे सिर्फ इतना जानना चाहता हूं सर कि साँझ से आपका रिश्ता क्या है? " एजेंट बोला।


"इससे क्या फर्क पड़ता है? "अक्षत ने कहा।


"बहुत फर्क पड़ता है सर क्योंकि अगर बहुत नजदीकी रिश्ता है तो आप ना ही जाने तो बेहतर होगा क्योंकि तकलीफ आपको उतनी ही ज्यादा होगी!" एजेंट ने कहा..!!

" मैं सब कुछ जानना चाहता हूं और रही बात नजदीकी रिश्ते की तो साँझ से मेरा रिश्ता इस तरीके का है जैसे जिस्म के साथ जान का रिश्ता....! जिंदगी है वह मेरी...!" अक्षत ने कहा.

एजेंट ने अक्षत कि तरफ देखा..


"मेरी वाइफ है मिसेज़ साँझ अक्षत चतुर्वेदी!" अक्षत ने कहा तो एजेंट की आंखें बड़ी हो गई।


" फिर जाने दीजिए सर बस इतना समझ लीजिए कि उस दिन एक तूफान आया था और उस तूफान में मिसेज चतुर्वेदी...! एजेंट अभी कह ही रहा था कि अक्षत ने उसके आगे हथेली कर दी।

" मैंने तुमसे यह नहीं पूछा है....!!मैंने पूछा है कि उन दो दिनों के अंदर वहां पर क्या हुआ था मुझे वह सब कुछ जानना है।"


"सर आसान नहीं था इनफॉरमेशन निकलना क्योंकि गांव के लोग अपनी पंचायत और वहां के नियम कानून के विरुद्ध नहीं जाते। बहुत ही मुश्किल से पता लगा पाया हूं वह भी सिर्फ उस दिन का जिस दिन नेहा भागी थी। और नेहा कि जगह उन लोंगो ने सजा के तौर पर साँझ को सामने कर दिया था....!"वह एजेंट बोला और उसके बाद अक्षत को बताने लगा।

उसकी हर एक बात के बाद अक्षत की मुट्ठी भींचती चली जा रही थी और उसकी आंखें लाल होकर एकदम अंगारे बन गई थी।।शरीर कांप उठा था और हाथों की नसें एकदम से दिखाई देने लगी थी....।।

एजेंट में तुरंत पानी का गिलास लेकर अक्षत को थमाया...।

" प्लीज सर इस तरीके से हाईपर मत होइए मैंने आपसे पहले ही कहा था कि जितना ज्यादा आप जानेंगे आपको तकलीफ इतनी ज्यादा होगी....!" एजेंट बोला।

अक्षत ने उस गिलास को देखा और एकदम से दीवार पर दे मारा।


"अवतार सिँह और निशांत ठाकुर ....!!जितने आंसू मेरी साँझ की आंख से गिरे हैं तुम सब की आंखों से उनसे दस गुना ज्यादा न निकाल दिए तो मेरा नाम अक्षत चतुर्वेदी नहीं...!" अक्षत ने नाराजगी से कहा।

तभी उसे एजेंट ने अपना फोन निकाल कर अक्षत के सामने कर दिया और उसमें एक वीडियो चल गया।

वीडियो देखते-देखते अक्षत की आंखों से आंसू निकल उसके गालों पर आ गए तो वही एजेंट के चेहरे पर भी दर्द उभर आया


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव