Pathreele Kanteele Raste - 5 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | पथरीले कंटीले रास्ते - 5

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पथरीले कंटीले रास्ते - 5

पथरीले कंटीले रास्ते 

 

5

 

वह रात सब पर भारी गुजरी । इकबाल सिंह और उसके परिवार को अभी तक विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उनके साथ इतना बङा हादसा हो सकता है । उनका जान से प्यारा बेटा जिसको लेकर उन्होंने कई सुनहरे सपने देखे थे , अचानक उन्हे बीच रास्ते छोङकर चला गया । जैसे ही उन्हें बेटे की याद आती , वे रह रह कर सिसकियाँ भरने लगते । उनकी पत्नि की हालत उनसे कहीं ज्यादा खराब थी । उसे बार बार दंदौन लग जाती । दाँत भिंच जाते । बेहोश हो हो जाती । औरतें बङी मुश्किल से उसकी दंदल खोलती । पानी के छींटे मारती । जूते चप्पल प्याज बारी बारी से सुंघाती । जैसे ही उसे होश में लाया जाता तो वह विलाप करने लगती । उसका रुदन सबका हृदय विदीर्ण कर देता । औरतें उसे संभालते संभालते खुद रोने लग जाती । इकलौते जवान बेटे की असमय मृत्यु से घर की दीवारे तक रो रही थी ।
उधर बग्गा सिंह के घर में भी चूल्हा नहीं जला था । न किसी को भूख का अहसास हुआ । रात आधी जा चुकी थी पर किसी की आँखों में नींद नहीं थी । दोनों पति पत्नि दीवार से टेक लगाये लगातार यही सोच रहे थे कि रविंद्र ऐसा कर कैसे गया । वह तो निहायत ही सीधा सादा , शांत प्राणी था । कभी किसी का बुरा सोचा तक नहीं । इतना बङा हो गया , आजतक न स्कूल से कोई शिकायत आई , न कालेज से । सबसे खिले माथे मिलता । हँस कर बात करता । सबकी इज्जत करता । सारे गाँव में और अब तो पूरे बठिंडा में उसके दसियों दोस्त थे । न काहू से दोस्ती न काहू से बैर के अनुसार वह सब का था । दोनों बच्चे भी सहमे सिकुङे अपनी अपनी चारपाई पर करवटें बदल रहे थे ।

क्या भाई अब घर नहीं आएगा ।
यह खबर पूरे शहर में फैल गयी थी । पूरे शहर में जो सुनता , हैरान रह जाता – मर्डर ? वो भी रविद्र ने ?
न भाई , तूने कुछ गलत सुन लिया होना है । वह तो लङाई झगङे वाला है ही नहीं । उसने तो कभी किसी को गाली तक नहीं दी । हाथापाई की नहीं । और ये कत्ल ?
फिर ठंडी सांस लेकर कहता , होनी बलवान है जी । जो दिन दिखाये । ये होनी तो राजाओं रानियों से नहीं टली । कभी राम भगवान और कृष्ण भगवान पर भी बुरे दिन आये थे । ये बेचारा लङका ।
उधर मुंशी ने घर जाकर रोटी खाई और पलंग पर कंबल लेकर लेट रहा । लेटे लेटे जब थक गया तो हाथ बढाकर मोबाइल में समय देखा , अभी तो पौने ग्यारह ही हुए थे । मोबाइल बंद कर उसने आँखें बंद कर ली । घंटे से ऊपर हो गया था उसे करवटें बदलते हुए पर नींद आने का नाम ही नहीं ले रही थी । उसने करवट बदल कर सोने के लिए कोशिश कर ली पर हर पल उस हवालात में बंद लङके का भोला मासूम चेहरा उसकी आँखों के सामने आ जाता और नींद गायब हो जाती । सत्या बहुत देर से पति की बेचैनी देख रही थी । उसने मुंशी के माथे पर हाथ रखा – क्या हुआ जी , तबीयत तो ठीक है ? आप सोये क्यों नहीं अब तक ?
हाँ ठीक है । मुंशी ने पत्नि का हाथ हटाते हुए करवट बदल ली पर उससे लेटा न गया । थोङी देर में ही वह उठकर बैठ गया । बेचारा बच्चा उस कोठरी में बिना बिस्तर के बैठा होगा – उसके मुँह से अनायास निकला ।
कौन बच्चा जी ?
आज एक लङका हवालात में है । न जाने क्यों मुझे उसका चेहरा भुलाए नहीं भूल रहा ।
आपका तो हर रोज का काम है जी । रोज ही कोई न कोई मुजरिम पकङा जाता है । जो जैसे करम करेगा , वैसा ही न फल मिलेगा । कोई कसूर किया होगा ,तभी तो हवालात में है । एक दो दिन बाद जेल में होगा । पहले तो आपको किसी की फिकर करते नहीं देखा । आज क्या हुआ ।
सत्या यह लङका बेहद शरीफ है । निहायत सीधा सादा । सामान्य सा परिवार है । मेहनतकश लोग हैं । यह लङका पढ रहा था । कोलेज पढने जाता है । एम ए कर रहा था । पुलिस में भरती भी हो चुका है । यह बेवकूफी करके थाने कचहरी के चक्कर में फँस गया है । थाने कचहरी के चक्कर में जो एक बार फँस गया , निकलना बहुत मुश्किल होता है । इस पर गैरइरादतन हत्या का केस चलेगा । यह बेवकूफी उससे न हुई होती तो जल्दी किसी थाने में पोस्टिंग हो जाता । न भी होता तो किसी और जगह ट्राई करता । रोटी तो इज्जत से कमा ही लेता ।
पर हुआ क्या इससे ?
कत्ल हो गया है इससे और वह भी जानती है , इसने किसका किया है ? एक इकबाल सिंह नाम का आदमी है रामपुरा में । पूरी मालवा बैल्ट में उसका नाम है । शराब के कई ठेके हैं उसके । लीडर बंदा है । सीधे के साथ सीधा पर टेढे के लिए टेढा होने में मिनट लगाता है । उसके इकलौते बेटे शैंकी का ।
कहते कहते उसने पाँव में जूती फँसाई और लाईट जलाकर घङी देखी । घङी रात के साढे ग्यारह बजा रही थी ।
ऐसा कर तू दरवाजा बंद कर ले । मैं थोङी देर में आय़ा ।
इतनी रात गये जाओगे और ये कंबल और चादर लेकर कहाँ जा रहे हो ?
बस मैं यूँ गया और यूँ आया मैं ।
और वह मोटरसाइकिल स्टार्ट कर थाने की ओर चल पङा । सत्या उसे जाते देखती रही फिर सांकल लगाकर पलंग पर आ लेटी ।
मुंशी ने थाने में जाकर हवालात में गुमसुम बैठे रविंद्र को देखा । वह बुत बना दीवार की ओर ताके जा रहा था । उसे मुंशी के आने का आभास तक नहीं हुआ । वह तो जब मुंशी ने जाकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कंबल और चादर पकङाये तब उसे होश आया – साब आपने तकलीफ की । इस सब की क्या जरुरत थी साब । कोई न जी , रात तो कटने वाली है । बस बीत गयी समझो । आप बेकार में परेशान हुए । आधी रात को मेरे लिए यहाँ आए । उसकी आँखों में नमी झलक आई ।
मुंशी दो मिनट उसे देखता खङा रहा फिर उसने प्यार से उसका कंधा थपथपाया और बाहर आ गया । भीतर झांका तो रविंद्र नीचे जमीन पर चादर बिछा रहा था । उसे तसल्ली हुई । वह घर लौटा । घर पहुँच कर सुकून की गहरी नींद में डूब गया ।
सुबह दिन निकला । थाने में कलर्कों ने कागज बनाने शुरु किये । गैरइरादतन कत्ल का केस बना । फाईल तैयार की गयी । लङके को अदालत में पेश किया गया । रविंद्र ने जज के सामने भी वही कहा जो उसने थाने में कहा था ।
जज ने कहा – तुम जानते हो , इस तरह अपराध मंजूर करने से तुम्हे सजा हो सकती है । इसलिए बिना किसी दबाव के सोच समझकर बोलो । किसी से डरने या घबराने की जरुरत नहीं है ।
जी सच तो यही है जो मैंने आपको बताया ।
पुलिस की ओर से दलील पेश की गयी – अभी कत्ल का हथियार बरामद होना है । साथ ही हत्या में शामिल अन्य लोगों के बारे में भी इससे पूछताछ करनी है ।
रविंद्र की ओर से कोई वकील नहीं किया जा सका था । अदालत ने उसे अपना वकील तय करने के लिए कहा ।
अदालत ने पुलिस की दलील स्वीकार करली और तीन दिन की पुलिस रिमांड मंजूर कर ली ।