Ram Mandir Praan Pratishtha - 7 in Hindi Mythological Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा - 7

Featured Books
  • انکہی محبت

    ️ نورِ حیاتحصہ اول: الماس… خاموش محبت کا آئینہکالج کی پہلی ص...

  • شور

    شاعری کا سفر شاعری کے سفر میں شاعر چاند ستاروں سے آگے نکل گی...

  • Murda Khat

    صبح کے پانچ بج رہے تھے۔ سفید دیوار پر لگی گھڑی کی سوئیاں تھک...

  • پاپا کی سیٹی

    پاپا کی سیٹییہ کہانی میں نے اُس لمحے شروع کی تھی،جب ایک ورکش...

  • Khak O Khwab

    خاک و خواب"(خواب جو خاک میں ملے، اور خاک سے جنم لینے والی نئ...

Categories
Share

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा - 7

"भैया यह सब मेरी वजह से
लक्ष्मण भाई को सम्हालने लगें।सीता का हरण दोनों भाइयों के आत्मसम्मान पर गहरी चोट थी।राम काफी देर तक विलाप करते रहे और लक्ष्मण भाई को सांत्वना देते रहे।काफी देर तक विलाप करने के बाद राम शांत हुए और शून्य को देखते रहे।लक्ष्मण बोले"भैया।ऐसे बैठने से काम नही चलेगा।हमे भाभी को खोजना होगा
"सही कह रहे हो
दोनों भाई उठे और सीता की खोज में चले।आगे जाने पर उन्हें हिरणों का झुंड मिला।हिरन आकाश की तरफ देखकर दःक्षिण दिशा की तरफ देखने लगे
"लक्ष्मण तुंमने हिरणों के इशारे को समझा
"क्या भैया
"हिरन आकाश की तरफ देखकर दःक्षिण की ओर देख रहे है
"इसका क्या अर्थ है
"कोई सीता को आकाश मार्ग से दःक्षिण दिशा की तरफ लेकर गया है
"इसका मतलब है हमे भाभी की खोज दःक्षिण दिशा में जाकर करनी चाहिए
"हाँ। लक्ष्मण
राम और लक्ष्मण दःक्षिण की तरफ चल दिये।केरल के जंगल मे राम ने जटायु को ग़याल अवस्था मे एक चटान पर गिरे थे।
जटायु राजा दशरथ के मित्र थे।एक बार दसरथ आखेट के लिए पंचवटी के जंगल मे गए थे।जटायु इसी जंगल मे रहते थे।दशरथ की जटायु से मुलाकात हुई और दोनों दोस्त बन गए थे।जब राम पंचवटी में कुटी बनाकर रहने लगे तब जटायु का राम से परिचय हुआ था।
जटायु राम के पिता के मित्र थे इसलिए राम उनका सम्मान अपने पिता कि तरह ही करते थे।जटायु को घायल मरणासन्न अवस्था मे देखकर राम ने पूछा था"यह गति आपकी किसने की
"रावण
और जटायु ने राम को सीता के बारे में बताया था।राम ने म्रत्यु के बाद जटायु का अंतिम संस्कार किया था।और फिर आगे चल दिये।वे दोनों भाई जंगल म भटकते रहे लेकिन सीता का पता नही चला।आखिर रावण सीता को लेकर गया कहाँ?और भटकते रहे
लक्ष्मण लगता है सीता अब हमें नही मिलेगी
"भैया आप निराश मत होइए।भाभी को हम जरूर ही ढूंढ लेगे
"लक्ष्मण तुम मुझे कितने दिन तक मुझे झूटी तसल्ली देते रहोगे
सीता का पता नही लग रहा था।लक्ष्मण भी निराश हो रहे थे लेकिन अपनी निराशा हताश भाई के सामने प्रकट न करके भाई को सांत्वना देते।और जंगल मे भटकते हुए वह किष्किंधा राज में ऋष्यमूक पर्वत के पास आ गए
"हनुमान वो देखो
दो वनवासी धनुर्धारी को हनुमान देखकर बोले,"लगता है ये लोग रास्ता भटक गए हैं
"नही हनुमान।यह बाली की चाल है।उसने मुझे मारने के लिए इन्हें भेजा है।
बाली और सुग्रीव दोनों भाई थे।बाली किष्कन्ध्या का राजा था।बाली बहुत बलशालीऔऱ बलवान होने के साथ वीर योद्धा भी था।उसने ब्रह्माजी से र प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक घनघोर तपस्या भी की थी।आखिर में ब्रह्माजी ने खुश होकर उससे वरदान मांगने के लिय कहा था।
"मेरे से कोई युद्ध करे तो उसकी शक्ति मुझे मिल जाये
ब्रह्माजी ने उसे वरदान दिया था।कोई भी बाली से युद्ध करता तो उसका आधा बल बाली को मिल जाता था।शत्रु की शक्ति आधी रह जाती थी।और शक्ति आधी रह जाने पर शत्रु हार जाता था।
सब राजाओं को बाली के वरदान के बारे में मालूम हो चुका था।इसलिए उससे कोई शत्रुता मोल लेकर युद्ध करके हारना नही चाहता था
मायावी नाम का एक राक्षस था।उसका भाई था दुन्दुभि।वह बहुत बलशाली था।कहते हे उसमे सौ हाथियों जितनी ताकत थी।उसे अपने बल का घमंड था