Sathiya - 52 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 52

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साथिया - 52







सांझ ने अक्षत से बात करने के बाद शालू को फोन लगाया।


"हां सांझ बोल निकल गई गांव जाने वाली थी ना तुम? " शालू बोली।

"हां मैं निकल गई हूं और तुम्हें एक जरूरी काम करना होगा...!! सॉरी मैं भूल गई इसलिए तुमसे बोल रही हूं।" सांझ ने कहा।

"हां बोलो ना अभी मैं दिन में फ्री हूं ..!! शाम को मुझे भी पापा के साथ लखनऊ जाना है पर अभी मैं तुम्हारा काम कर दूंगी। बताओ क्या करना है।" शालू ने कहा।

"मेरे हॉस्टल चली जाना...! वार्डन से मैंने बात कर ली है वह तुम्हे मेरे रूम की चाभी दे देगी। मेरे कबर्ड में मेरा एक बैग रखा है उसे बैग में एक एनवेलप है।

तु प्लीज उसे जाकर पोस्ट कर देना। एक जगह एप्लाई किया है जॉब के लिए वैकेंसी निकली थी तो मैंने फॉर्म वगैरह सब ऑनलाइन फिल कर दिया है। पर कुछ डाक्यूमेंट्स रह गए थे तो यह उसे एड्रेस पर सेंड कर देना है। बाकी मैनेज हो जाएगा मेरी वहां पर बात हो चुकी है।" सांझ ने कहा।

"ठीक है कर दूंगी मैं इतनी सी बात के लिए इतना क्या सोचती है?" शालू ने कहा और कॉल कट करके वह उसके हॉस्टल चली गई।


शालू सांझ के हॉस्टल पहुंची और उसके रूम में जाकर उसका बैग निकाल और एनवेलप ढूंढने लगी।

एनवेलप तो मिला ही मिला साथ ही शालू के हाथ में सांझ की डायरी और कुछ और भी समान लग गया।


शालू ने उत्सुकता बस खोला तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई और वह पूरा बैग उठाकर और वह एनवेलप लेकर तुरंत अपने घर आ गई।


मालिनी और अबीर हाल में ही बैठे हुए थे कि तभी शालू ने ले जाकर वह बैग और सारा सामान उनके सामने रख दिया।

"यह सब क्या है!" अबीर ने कहा।

"पापा सांझ ने मुझसे कहा था हॉस्टल जाकर उसका एक एनवेलप लेना था जिसे पोस्ट करना था। वह लेने गई तो यह सारा सामान मिला।" शालू बोली तो मालिनी और अबीर ने सारे सामान को देखा और उनकी भी आगे फटी की फटी रह गई।

"विश्वास नहीं होता कि ऐसा हो सकता है? " मालिनी ने कहा।


"बस अब सांझ गांव से वापस आ जाए फिर उससे हम खुद ही बात कर लेंगे और फिर हमें भी तो अभी लखनऊ जाना है तो लौटकर उससे बात करेंगे। और प्लीज शालू इस बारे में अभी सांझ से कुछ मत कहना मैं चाहता हूं कि अब जो भी बात हो आमने-सामने हो।" अबीर ने कहा।



"जैसी ईश्वर की मर्जी! "अबीर ने कहा और फिर भगवान के आगे जाकर हाथ जोड़ लिए ।


अबीर मालिनी और शालू भी अबीर के दोस्त के यहां जाने के लिए शाम को लखनऊ निकल गए वह भी इस बात से अनजान थे कि आगे वाला समय उनकी जिंदगी में भी बहुत कुछ बदलने वाला है...


शाम होते-होते तक साँझ गांव पहुंच गई थी...

गांव जाते हुए बेहद खुश थी वह यह सोचकर कि कुछ दिन शालू के साथ बिताएगी और फिर वापस आकर अक्षत के साथ शादी करके हमेशा हमेशा के लिए शहर में बस जाएगी पर जो हम सोचे वह हो जरूरी तो नहीं है...

साँझ घर पहुंची तो देखा कि पूरा घर खूबसूरती से सजा हुआ है... शामियाने लगे हुए हैं जगह-जगह डेकोरेशन हो रखी है...

आर्टिफिशियल फूलों और खूबसूरत लाइट से घर सजा हुआ है और पकवानों की खुशबू महक रही है...


साँझ को एक पल को अजीब लगा।


"यह क्या कोई प्रोग्राम है या कोई पूजा रखी है चाचा जी? ने पर मुझे तो कुछ बताया ही नहीं? इतनी सजावट और यह सब खाना पीना क्यों हो रहा है?" साँझ ने मन ही मन सोचा और घर के अंदर दाखिल हुई...

अवतार और भावना आंगन में ही बैठे थे और काम करने वालों को कुछ कुछ समझा रहे थे..

साँझ ने जाकर उन दोनों को प्रणाम किया...

" खुश रहो अच्छा हुआ जो आ गई...!" तुम अवतार बोले..

" जी चाचा जी आना तो पहले ही चाहती थी पर छुट्टी नहीं मिल पाई... हॉस्पिटल ज्वाइन कर रखा है ना इसलिए!" साँझ ने कहा..

" हां पता है कि कमाने लगी हो पर जताने की जरूरत नहीं है, अब तक खर्च हम ही उठाते आए हैं तुम्हारा...अब चार पैसे कमाने लगी तो हम लोगों को सुना रही हो!" भावना ने कहा तो साँझ की आंखों में हल्के सी नमी आ गई!

" नहीं चाची मेरा वह मतलब नहीं था... मैं तो बस यही कह रही थी कि मैं और पहले आ जाती पर छुट्टी नहीं मिल पाई कमाने की तो कोई बात ही नहीं है... और मैं कितना भी कमा लूं आपने जो किया है उसके बराबरी तो नहीं कर सकती ना?" साँझ ने कहा...

"अरे छोड़ो तुम और उसकी तो आदत है बेवजह की बात करने की और बताओ कैसा चल रहा है शहर में? अब पढ़ाई पूरी हो गई है तो नौकरी शुरू कर दी.. यहां आने का मन नहीं है क्या?" अवतार ने कहा...

"नहीं चाचा जी ऐसी कोई बात नहीं आप जब कहेंगे तब आ जाऊंगी पर मैंने सोचा जब पढ़ाई की है तो जॉब करना चाहिए वरना पढ़ाई करना बेकार हो जाता!" साँझ ने कहा


"ठीक है जैसा सोचा वैसा ठीक है, पर आगे ध्यान रखना कुछ भी नया शुरू करने से पहले एक बार पूछना जरूर,क्योंकि हम नहीं चाहते कि कुछ तुम भी ऐसा करो तुम जो सही नहीं हो!" अवतार ने कहा, ।

" जी चाचा जी ध्यान रखूंगी... वैसे नेहा दीदी कहां है दिखाई नहीं दे रही और यह इतनी सजावट कुछ पूजा है क्या घर में? कोई प्रोग्राम है? " साँझ ने उत्साह के साथ पूछा।

"नेहा की शादी है परसों...उसी की तैयारी है और नेहा अंदर कमरे में है..!" अवतार ने सपात लहजे के साथ कहा तो साँझ को एक पल को विश्वास नहीं हुआ

" क्या नेहा दीदी की शादी? यू अचानक मतलब मुझे तो पता ही नहीं था? ऐसे कैसे नेहा दीदी को पता था? " साँझ ने अचानक से कई सारे सवाल कर दिए तो अवतार की आंखें सिकुड़ गई

साँझ को जब एहसास हुआ तो उसने तुरंत बोलना बंद कर दिया.।

"नहीं मेरा मतलब था कि मुझे पता होता तो थोड़ा और जल्दी आ जाती है..!" साँझ बोली

" हमने बताना जरूरी नहीं समझा..!" भावना नाराजगी बोली।

" बेटा अचानक से ही सब कुछ तय हुआ और फिर नेहा उनको भी कोई आपत्ति नहीं थी तो फिर जो मुहूर्त समझ में आया उसमें उसमें शादी रखने का सोच लिया...। और फिर तुम्हें मैं बताने ही बोला था पर नेहा ने कहा कि तुम आने वाली हो तो मैंने सोचा कि आ जाओगी तो खुद पता चल जाएगा..। ऐसी कोई बड़ी बात भी नहीं है..!" अवतार बोलेl।


" क्यों बड़ी बात क्यों नहीं है मेरे लिए तो बहुत बड़ी बात है.l। मेरी नेहा दीदी की शादी है। वैसे लड़का कौन है?यहां का है या कोई शहर का है? मतलब नेहा दीदी के साथ पढ़ने वाला है कोई डॉक्टर है क्या? " साँझ ने खुश होकर कहा।


" कोई जरूरी नहीं है कि अगर लड़की डॉक्टर बन जाए तो उसकी शादी डॉक्टर से ही हो..और लड़का शहरी ही हो...। नेहा की शादी निशांत के साथ हो रही है वह भी परसों!" अवतार ने कहा तो साँझ का सिर घूम गया,

उसे विश्वास नहीं हुआ कि नेहा जैसी पढी-लिखी एमबीबीएस डॉक्टर लड़की की शादी निशांत जैसे अनपढ़ गवार के साथ करने का तय किया है उसके चाचा ने, और सबसे बड़ी बात की नेहा तैयार है ऐसा कैसे हो सकता है...!" साँझ ने सोच की अवतार से पूछे पर उसकी हिम्मत नहीं हुई।

"मैं नेहा दीदी से मिलती हूं..!"साँझ बोली और नेहा के कमरे की तरफ जाने लगी!

" सुनो..!" तभी अवतार की आवाज आई तो साँझ के कदम रुक गए और उसने पलट कर अवतार की तरफ देखा।

"किसी भी तरह की उल्टी सीधी बात करने का यह हरकत करने का सोचना भी मत...। मैंने और गजेंद्र ने मिलकर यह रिश्ता तय किया है और जिसे कोई भी नहीं बदल सकता। यह रिश्ता होकर रहेगा और हां अगर नेहा तुमसे कुछ बे मतलब की बात करें तो उसे भड़काने का या उसका साथ देने की कोशिश मत करना क्योंकि यह बात तुम भी बहुत अच्छे से जानती हो कि यहां के नियम किसी के लिए नहीं बदलते तो फिर नेहा के लिए कैसे बदल सकते हैं? और किसी भी किसी भी तरह की गलती की कोई भी माफी नहीं है, इसलिए गलती करने का सोचना भी मत...!" अवतार ने कहा तो साँझ का दिल एकदम से घबरा गया और हाथ पाँव कांप उठे।


"और हां तुम भी इस बात को कान खोल कर सुन लो चाहे जितना पढ़ लो नौकरी कर लो पर जिंदगी का फैसला हम ही करेंगे। यहां के भाग्य विधाता सिर्फ हम लोग हैं और हम लोग यहां पर निर्णय लेते हैं और जो अपने निर्णय खुद लेते हैं उनका नतीजा नियति के जैसा होता है !" अवतार ने कठोरता से कहा तो सांझ ने जैसे तैसे अपनी आंसुओं को रोका और नेहा के कमरे की तरफ धीमे कदमों से चल दी।


सांझ नेहा के कमरे में पहुंची तो देखा नेहा उदास बैठी है। आंखें भरी हुई है और न जाने क्या सोच रही है।

सांझ ने नेहा के कंधे पर हाथ रखा तो नेहा ने उसकी तरफ देखा।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव