Shayarana_Fiza... - 1 - untold feelings in Hindi Poems by Utpal Tomar books and stories PDF | शायराना फिज़ा... 1 - कुछ अनकहे ज़ज्बात

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शायराना फिज़ा... 1 - कुछ अनकहे ज़ज्बात


♡ रहने दे मोहब्बत में डूबने को, ऐ परिंदे आसमाँ के...
ये दरिया है नादान, बेमौत मारा जाएगा ||

~ याद आता है ~
मैं, तू और वो हंसी वक्त, याद आता है...
मेरा मुस्कुराना, तेरा शर्मा जाना, याद आता है...
मेरा देखना, तेरा वो छुप जाना, याद आता है...
मेरा छूना, तेरा मुरझाना, याद आता है...
मेरा चुप रहना, पर तेरा समझ जाना, याद आता है...
हमारा मिलना, वो हमारा अफसाना, याद आता है...
खातों में तेरी तस्वीर बन जाना, तुझे मेरी तकदीर बन जाना,
ख्वाबों में तेरा रोजाना आना जाना, तेरा हर लफ्ज़,
हर अफ़साना याद आता है, याद आता है...
याद आता है, याद आता है...
तोमर

♡ चाँद की कशिश बेहद है, मगर फीका लगता है जब उससे मिलता हूं,
जिंदा तो मैं यूं भी हूँ, मगर जीने लगता हूँ, जब उससे मिलताहूँ ||

~ मोहब्बत का ख़याल ~
दिल के दरिया में तूफान आया है...
नजरों में जब से, वो चांद आया है ||
मुद्दतों का सुकून, है दिल ने गंवाया...
आज फिर बेचैन सा होने में मजा आया है |
उसकी झुकी सी नजरों ने, इसे क्या बुलाया...
दिल ने तमाम सितम-गमों को भुलाया है ||
बरसों से हूँ बेजान सा जीता आया, मगर...
आज किसी पे, मरने में मजा आया है |
हुस्न के जलवों को तो कई दफा देख आया...
मगर, आज ख्याल मोहब्बत का आया है ||
तोमर

♡ उस रात सोई नहीं ये आँखें,
कि नींद से ज्यादा सुकून था उनके दीदार में...

~ पहचान ~
जब तू अनजान था,
कोई पहचान नहीं थी
तुझे खोने का गम नहीं था,
तू मेरी जान नहीं थी |
मगर अब जिस दिन तेरे साथ का
एक लम्हा भी खो देता हूं ,तो लगता है
आज सुबह नहीं हुई ,और कोई शाम नहीं थी ||
तोमर

तुम मिले हो जब से इस बीमार को,
कोई बीमारी नहीं रही, तुम्हारे सिवा...

~ इबादत ~
इस कदर इबादत की है उसकी,
मेरा यार ना होता, तो खुदा हो गया होता |
कल शब बिन मेरे, सुकूँ से सोया नहीं वो
क्या होता ग़र, मैं उससे जुदा हो गया होता ||
तोमर

♡ रूबरू होगी जब वो, तो आलम क्या होगा,
हम मर गए, नक़ाब में वो आंखें देख कर,
ये नकाब हटेगा तो क्या होगा...

~ खुली जुल्फ उसकी ~
कोई टूटता सा तारा बनी,
नाउम्मीदी के अर्श पर, बैठी है आंखें मेरी |
सूखा दरख्त हो जैसे,
ऐसे इंतजार में सुख जाते हैं लब उसके ||
आबादी से परे,
खाली मकान खाक हो गया हो, यूँ टूटी पड़ी है बाजुएं मेरी ,
तपते रेगिस्तान में कहीं,
छांव मिलती है, ऐसी लगती है, खुली जुल्फ उसकी ,
गीले किनारे पे आकर,
ज्यों मछली तड़पती है, वैसी है बिन उसके बसर मेरी ||

♡ कुछ लफ्ज़ थे लबों पे मेरे, जो देखकर उन्हें शर्मा रहे थे |
इज़हार करने की कोशिश तो पुरजोर की, मगर इंकार से घबरा रहे थे ||

~लिख दे तक़दीर मेरी ~
सदियों बाद ऐसा ख़ुमार छाया है,
ये चांद... आज इतना करीब आया है,
कई ने आरज़ू की होगी, कि उनकी जिंदगी में शामिल होकर,
तकदीर की किताब पूरी कर दे,
मगर ये दीवाना आज अपने नसीब के हर हर्फ़-हर पन्ने को,
तुझसे लिखने आया है...
तोमर