colorful flowers in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | रंग बिखेरते फूल

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रंग बिखेरते फूल

1. मुझे माफ कर दो : -

श्याम लाल अत्यन्त सरल स्वभाव का व्यक्ति था । वह भाग्य से अधिक कर्म करने पर विश्वास करता था । इसके लिए उसका अपना परिचय कठोर सख्त - स्वभाव का था । अनुशासन और मान मर्यादा के लिए उसने घर - गाँव परिवार में नियम कठोर बनाये थे । जो उसके नियमों का पालन नहीं करता था, वह उन्हें कठोर सजा देता था । परिस्थितियों और संकटग्रस्त लोगों की वह भरपूर मदद भी करता था ।
उसके पोते आनंद ने देखा कि सब लोग दादा जी से डरते हैं । यहाँ तक पिता जी भी । ऐसे में मेरी स्वच्छन्दता तो नहीं चल सकेगी । एक दिन वह घर से भाग निकला ।
घर में अशान्ति सी छा गयी । सभी लोग दादा जी को उलाहना - दोष देने लगे। दादा जी भी परेशान हो उठे।
वे उसे ढूँढने निकल पड़े । बहुत दूर पहुँचकर एक सुनसान जगह पर उन्हें कुछ आवाजें सुनायी दीं । नजदीक जाकर देखा तो कुछ शरारती लड़के आनंद की पिटाई कर रहे थे। दादा जी ने आव देखा न ताव । फुर्ती से वहाँ पर आ धमके और उन लड़कों को भगाया ।
अब आनंद को अपनी गलती का एहसास हुआ । वह दादा जी के पैरों पर गिर पड़ा और गिड़गिड़ाकर बोला - "दादा जी ! मुझे माफ़ कर दो ! मैं जिसे आपकी सख्ती मानता था, वह तो एक मजबूत ढाल हमारी सुरक्षा है, जिसमें कोई सेंध नहीं ।" यह सुनकर दादा जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने आनंद को गले से लगा लिया ।

संस्कार सन्देश :- प्रकृति असत्य और बुरे कर्मों की सजा देती है, इसका हमें ध्यान रखना चाहिए ।



2. रंग बिखेरते फूल

एक कस्बे में एक सामान्य परिवार निवास करता था। परिवार में पति हरि प्रसाद और पत्नी नारायणी और दो बेटे थे - बड़ा बेटा सुरेश और छोटा बेटा मनोज। दोनों की विद्यालय जाने की उम्र हो गयी थी। दोनों का नजदीकी विद्यालय में नाम लिखवा दिया गया। पिता गाँव - गाँव जाकर कपड़े या अन्य मौसमी वस्तुएँ बेचते थे। माता - पिता कम पढ़े - लिखे थे। उनको बच्चों की पढ़ाई की बड़ी चिन्ता रहती थी कि हम तो नहीं पढ़ सके, बच्चों को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करेंगे। इसी प्रयास में दोनों कड़ी मेहनत करते थे।
पिता के मन में था कि बड़ा बेटा सुरेश वकील बने और छोटा बेटा मनोज पुलिस में जाये। धीरे - धीरे पढ़ाई आगे बढ़ी और बड़ा बेटा चाहता था कि वह खेलों में अपना भविष्य बनाये। खेलों में उसकी ज्यादा रुचि थी। छोटा बेटा अमित दसवीं पास होने के बाद ही पुलिस की तैयारी करने लगा और बारह पास होने के कुछ समय बाद वह पुलिस में भर्ती हो गया। बड़ा बेटा सुरेश बारहवीं के बाद अपने पिता के बताये अनुसार पढ़ाई में लगा रहा, लेकिन वह पढ़ाई उसके मन मुताबिक नहीं थी। कोशिश करते - करते कुछ वर्ष बीत गये। सफलता कोसों दूर थी।
उसके बाद पिता ने अपने पड़ोस में रहने बाले शिक्षाविद् से सलाह ली तो उन्होंने बताया कि सुरेश को जिस कार्य में रुचि है। उसे वह करने दो। उसके बाद पिता ने बेटे से कहा-, "सुरेश! अब तुम्हारी जिस कार्य में रुचि हो, उसी कार्य पर ध्यान लगायें।" कुछ ही सालों में सुरेश ने अलग - अलग खेलों में अपना नाम खूब आगे बढ़ाया और उसे भी सफलता प्राप्त हुई।

संस्कार सन्देश :- रुचिकर कार्यों को करने से जल्दी और निश्चित सफलता मिलती है। बच्चों के ऊपर अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिये।