Sathiya - 47 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 47

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साथिया - 47

"क्या करूं निशु को बोलूं कि मुझे रिश्ता मंजूर नहीं है। नहीं नहीं बात और बिगड़ जाएगी और वैसे भी वह शुरू से ही गंवार है। कम बुद्धि बैल है । मैं उसे कुछ भी नहीं कह सकती अब मुझे जो कुछ करना है वह चुपचाप ही करना होगा।" नेहा ने खुद से कहा।

"पर मैं करूं भी तो क्या करूं कैसे करूं? कुछ तो मुझे करना होगा।" नेहा का दिमाग इस समय बहुत तेज चल रहा था। वैसे भी वह बहुत शार्प माइंडेड थी और सबसे बड़ी बात विद्रोही थी। उसे नहीं स्वीकार थी यह रीति रिवाज और परिवार और गांव के नाम पर इस तरीके की जबरदस्ती


सब लोगों का नाश्ता पानी हुआ और उसके बाद फिर नेहा को सगाई के लिए बाहर ले आए।

नेहा के चेहरे पर कोई चमक नहीं थी और इस बात को गजेंद्र सिंह बहुत अच्छे से समझ रहे थे पर साथ ही साथ उन्हें इस बात का भी विश्वास था कि अवतार ने जरूर नेहा से पूछ लिया होगा।

नेहा को सगाई के लिए निशांत के पास बैठा दिया गया। निशांत की नजरे नेहा के चेहरे पर टिकी हुई थी।

" क्या हुआ नेहा तुमको खुश होना चाहिए..?? आज हमारी जिंदगी का इतना बड़ा दिन है। खुश नहीं हो क्या तुम? " निशांत ने नेहा से कहा।

"खुश हूँ न?? क्यों नहीं होऊँगी खुश? " नेहा ने उसकी तरफ देखकर कहा।

"पर तुम्हारे चेहरे से तो ऐसा नहीं लग रहा है...!" निशांत बोला।


"सबका अपना अपना तरीका होता है निशु ....!! और फिर मुझे हर समय उछल कूद और खिलखिलाते रहना पसंद नहीं है।" नेहा बोली


"हां हां कोई बात नहीं है...!! जानता हूं मुंबई में रहकर आई हो थोड़ा बहुत तो बदलाव आ ही गया होगा तुम में। पर कोई बात नहीं जब यहां रहोगी मेरे साथ तो वापस से तुम्हें इसी गांव के हिसाब से ढाल दूंगा। और मुझे विश्वास है कि जल्दी ही तुम यहां के हिसाब से और मेरे हिसाब से बदल जाओगी।" निशांत बोला।

"क्या हर समय लड़की बदले यही जरूरी है? लड़के लड़कियों के हिसाब से नहीं बदल सकते क्या?" नेहा ने कहा तो निशांत ने उसकी तरफ देखा।


" कैसी बातें कर रही हो...?? और हां एक बात मत भूलो। भले तुम मुंबई में रहकर आई हो...!! डॉक्टर हो पर जानती हो हमारे गांव और हमारे आसपास के इस क्षेत्र के नियम और कानून...!! यहां पर लड़कियों को बदलना पड़ता है अपने ससुराल और अपने पति के हिसाब से ना कि लड़के बदलते हैं। और हाँ आज से मुझे निशु बोलना बन्द करो। हमारे यहाँ पति का नाम नही लेते और फिर ये बचपने का नाम तुम लो मुझे भी पसंद नही। और मुंबई मे रहकर सोच विचार विद्रोही हो गए है जोकि यहाँ और मेरे साथ बिल्कुल नही चलेंगे। अपनी सोच को तुम जितनी जल्दी बदल लो उतना बेहतर होगा।" निशांत बोला तो नेहा ने उसकी तरफ देखा।


"बाकी मैं तुम्हें बेहद चाहता हूं पर फिर भी इस समाज से और यहां की सोच से ना ही तो मैं अलग हूं और ना ही मेरा परिवार... और न ही तुम और तुम्हारा परिवार। इसलिए खुद को बदलना शुरू कर दो।" निशांत ने दो टूक नेहा को जवाब दे दिया।

और नेहा को अब यह बात बहुत अच्छे से समझ में आ गई थी कि निशांत से किसी भी तरह की उम्मीद करना बेकार है।


दोनों की सगाई हो गई और सगाई के बाद निशांत ने बेशर्मी से नेहा का हाथ अपनी हथेलियां के बीच ले लिया।

नेहा ने अपना हाथ हटाने की कोशिश की तो निशांत ने पकड़ और भी ज्यादा कस दी।

"प्लीज निशु हाथ छोड़ो मेरा...!! इतने सारे लोगों के बीच में इस तरीके से अच्छा नहीं लगता है।" नेहा ने कहा।


" पहली बात तो निशु कहना बन्द करो और दूसरी बात क्यों अच्छा नहीं लगता है? होने वाली ठकुराइन हो तुम मेरी...!! मेरी पत्नी बनने वाली हो और अपनी पत्नी पर क्या इतना भी हक नहीं है मेरा कि मैं उसका हाथ पकड़ सकूँ..?? कब से बेचैन था मैं इन पलों के लिए और अब जब तुम आ गई हो तो इस तरीके के तुम्हारे नखरे और यूं दूर-दूर रहना मुझे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं होगा। बहुत इंतजार किया है मैंने तुम्हारा नेहा और अब जब जाकर तुम और मैं एक होने वाले हैं तो तुम्हें इस तरीके से बात करने की कोई भी जरूरत नहीं है और न मुझे रोकने की हक है मेरा तुम पर और तुम नहीं जानती कि मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं ।" निशांत बोला।



" पर इस तरीके से सबके बीच अच्छा नहीं लगता है निशु।" नेहा बोली.

" नहीं लगे तो न लगे अच्छा पर मेरे अपने तरीके हैं । और मुझे जो अच्छा लगता है मैं वही करता हूं और करूँगा भी। और तुम भी अच्छे से समझ लो इस बात को कि मुझे इनकार बिल्कुल भी पसंद नहीं है।" निशांत ने हल्की नाराजगी से कहा तो नेहा शांत होकर बैठ गई।

पर निशांत की हरकतें उसे बिल्कुल भी ना गवार गुजर रही थी। इस समय निशांत न सिर्फ उसकी हथेली को पकड़े थे बल्कि उसकी उंगलियां भी उसके हाथ पर चल रही थी जो कि नेहा को बहुत ही ज्यादा अनकंफरटेबल कर रही थी।

निशांत यूं सबके सामने ही उसके करीब आ रहा था। बार-बार उसके हाथ को पकड़ना कभी उसकी कमर पर हाथ रखना तो कभी उसके कंधे पर हाथ रखना और यह सब चीजे नेहा को उसकी घटिया मानसिकता के बारे में बहुत अच्छे से बता रही थी और नेहा अंदर ही अंदर गुस्से से उबल रही थी। पर सबके सामने अभी वह कोई भी तमाशा नहीं कर सकती थी वरना उसके ऊपर ही उल्टा पड़ सकता था। पर उसने इस समय पूरी तरीके से तय कर लिया था कि अब उसे जो भी करना है वह चुपचाप तरीके से करेंगी और किसी को कानों काम खबर नहीं होने देगी।


सगाई के बाद गजेंद्र और उनका परिवार वापस अपने घर चला गया तो वहीं नेहा अपने में कमरे में आई और आंखें बंद कर बिस्तर पर जा गिरी।

बंद आंखों से कुछ आंसू निकल कर बिस्तर में समा गए कि तभी अवतार ने आकर उसके सिर पर हाथ रखा।

नेहा ने अपने आंसुओं को समेटा और पलट कर देखा।


"जानता हूं आज तुम्हें मेरा निर्णय गलत लग रहा होगा..!!तुम्हें लग रहा होगा कि तुम पढ़ी-लिखी हो तुम्हें बाहर रहना चाहिए..!! बाहर के किसी पढ़े-लिखे लड़के से शादी करनी चाहिए पर बेटा कुछ चीजे ऐसी होती है जिन्हें हम चाह कर भी नहीं बदल सकते। जैसे कि इस गांव में जन्म लेने वाले बच्चों का भाग्य...!! हमारे यहां बच्चो को विवाह का निर्णय लेने की स्वतंत्रता नहीं है। हमने भी बचपन से यही देखा है और हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे भी हमारा अनुसरण करें। उम्मीद करते हैं कि तुम समझोगी क्योंकि बात जब मान सम्मान की हो तो उससे बढ़कर हम लोगों के लिए कुछ भी नहीं है।" समझ रही हो ना तुम..?" अवतार बोले।

नेहा खामोश रही।

" और तुमने आज अपने पिता का सम्मान और उनकी लाज रखकर साबित कर दिया कि तुम एक अच्छी बेटी हो और आगे जाकर एक अच्छी बहु साबित होगी।

जानता हूं कि कुछ दिनों शायद तुम्हें परेशानी हो पर धीमे-धीमे तुम यहां के माहौल में ढल जाओगी और उनके परिवार में तुम्हारा दिल लग जाएगा? और फिर सबसे बड़ी बात जब हमें यह बात पता है कि इसके अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है तो उस बात को हंसी खुशी स्वीकार कर लेना ही बेहतर होता है जो हमारे लिए निर्धारित है।" अवतार सिंह ने कहा।

नेहा ने अब भी कोई जवाब नहीं दिया बस नज़रें झुकाए रखी।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव