antrik ananad in Hindi Short Stories by Bharat(Raj) books and stories PDF | आंतरिक आनंद

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आंतरिक आनंद

आंतरिक आनंद,""
आंतरिक आनंद मतलब " सुकून"
वैसे देखा जाए तो इस समय भीड़भाड़ भरी दुनिया में आंतरिक आनंद लेना बहुत मुश्किल है बाह्य आनंद ठीक है सब लेते हैं पर सुकून किसी के पास नहीं होता सब दूसरे को दिखाने के लिए चेहरे पर झूठी मुस्कान के साथ यह दिखाते हैं कि हम अंदर से बहुत खुश है पर असल में वह एक सच्चा झूठ है।
आंतरिक आनंद के लिए पहले तो हमें खुद को जानने की बहुत जरूरत है जितना हम खुद को जानेंगे खुद को खुश रख पाएंगे हमें क्या बात अच्छी लगती है कैसा माहौल अच्छा लगता है किसके साथ अच्छा लगता है कौन सी चीज हमें पसंद है यह सब हमें जानने के आवश्यकता है यह सब जान ने के बाद हम खुद के लिए कुछ कर सकते हैं और खुद को आंतरिक आनंद दे सकते हैं
आजकल के जीवन में सबको परेशानी तकलीफ ,रहती है किसी के पास अपने लिए समय पर्याप्त मिलता ही नहीं है और इसीलिए सबको मन की जो शांति होती है वह मिलती नहीं
दिखावे की यह दुनिया में सबको बाहर से एक अच्छा इंसान दिखने की चाहत है और उसके रहते अंदर छुपे हुए इंसान को हम मार हीडालते हैं । हम क्या चाहते हैं यह जरूरी नहीं रहता ।दूसरे को क्या अच्छा लगता है क्या अच्छा लगेगा यह सब करने में इतने व्यस्त हो जाते हैं हमारी चाहत हमारे सोच सब धरे के धरे रह जाते हैं और खुशियां कोसो दूर चली जाती हैं।
और फिर हम यह चाहते हैं कि हम खुश रहें आनंद में रहे पर यह कैसे हो सकता है जब हम खुद ही दूसरे की चाहत पर ध्यान देने लगते हैं दूसरे के दिखावे पर अपने आप को ढालने लगते हैं तो क्या यह सही है कि हम खुद की पहचान बना पाएंगे और अपने आप को वह आनंद दे पाएंगे जिससे हमें सुकून मिलता हो। नहीं दे पाएंगे ना ।..?और इसीलिए हम ना चाहते हुए भी दुखी रहते हैं
""दूसरों की सोच से परे कुछ ऐसा कर गुजर
मिल जाओ खुद खुद से ऐसा नाम कर....""
हमारे अंदर प्रभु का वास है। जब तक हम खुदके मन को यानी की हमारे अंदर बिराजमान वो शक्ति वो प्रभु को खुश नहीं रखते तो हम केसे खुश रह सकते है। हमारे अंदर पूरे दिन इतनी नकारात्मक बाते सोच चलती रहती है, जो हम चाहते हुए भी बाहर नहीं निकल सकते । और इसीलिए हम जिदंगी का आनद नही ले पाते हे। नाही अपनी आत्मा को खुश रख पाते है।
प्रातः काल उठकर शांति से बैठकर अपने मन को शांत कर प्रभु को याद करो और खुद के अंदर चल रहे सारे तूफान को बाहर निकालो और यही सोच पूरे दिन रखो की में बहुत खुश हु। फिर हमारा आंतरिक आनंद इतना मजबूत होगा की हमे किसके सहारे की जरूरत नहीं रहेगी न कोई नकारात्मक सोच हमारे अंदर आ पाएगी।
आंतरिक आनद चाहिए पर उसकी सच्ची और कड़वी वास्तविकता ये है कि हम खुद ही खुद के दुख का कारण बन बैठे हे । मामूली सी बात को भी हम इतना महत्व दे जाते हे की खुदको ही नाराज कर देते है। फिर सोचते है की सब इतने खुश क्यू रहते हे , में ही क्यों दुखी हु। पर सबके अंदर तुम जाक कर नही देख पाते। सबकी यही विडबना रहती है।
तुम खुद को खुश रखो दुनिया खूबसूरत लगने लगेगी । मत सोचो की वो कितना सुखी ii हे में क्यू नही? ये सोचो में कितना भाग्यशाली हूं। फिर देखो आत्मा कितनी सकारात्मक बन जाती हे। तुम्हे कोई हरा नहीं पाएगा।
आंतरिक आनंद ढूंढना हे तो बच्चे से शिखिए। वो छोटी छोटी चीज से ही आनंदित हो उठते है। उन्हे कोई लालसा नहीं होती ज्यादा और कम पाने की , वैसे ही हमे भी लालसा नहीं रखनी चाहिए तो हमे हर क्षण आनंद की प्राप्ति होगी।
और जीवन पुष्प की तरह सुंगदित और खिला हुआ रहेगा । सारी परेशानी दूर हो जायेगी क्युकी हम उसको याद तक नही करते। कोई भी बात हो जो हमे तकलीफ देती हे चिंता का विषय बनती हे उनसे भूलना ही बहेतर है।
खुदको ऐसे महोलमे डाल दें की आनंद खुद ही तुम्हारी परछाई बनकर साथ चलता रहेगा। और हम बिल्कुल गुब्बारे से हल्के हो जायेगे। ना कोई फालतू की सोच ना किसीसे कोई आवश्यकता रहेगी की कोई हमे आनंद बक्से , हमारे आंतरिक मन में ही इतना आनंद रहेगा की किसीसे कोई अपेक्षा नहीं होगी।
सदा ही खुशियों को दोनो हाथोसे बटोरो और आंतरिक आनंद को जीवन में दिये की तरहां प्रज्वलित करो। खुश रहो सुकून से रहो।
भरत (राज)