Sathiya - 27 in Hindi Fiction Stories by डॉ. शैलजा श्रीवास्तव books and stories PDF | साथिया - 27

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

साथिया - 27

नियति ने सोचा कि उस कागज को फेंक दें पर ना जाने क्या सोचकर उसने धीरे से अपने बैग में छुपा कर रख लिया और गहरी सांस ली।
दिल की धड़कन बेतहाशा दौड़ रही थी और आज पहली बार ना चाहते हुए भी नियति की कदम उस रास्ते पर चल दिए थे जिस पर ना चलने की उसने कसम खा रखी थी।


उधर नेहा सांझ के हॉस्टल पहुंची और सांझ को देखते ही उसके गले लग गई।

"कैसी है सांझ?" नेहा ने खुश होकर पूछा।

"बस ठीक हूं दीदी आपका इंतजार सुबह से कर रही हो इतने दिन हो गए इस बार आपको आए हुए...!" सांझ ने कहा।

"हां तो अब मेडिकल की पढ़ाई कर रही हूं ऐसे बार-बार अगर आती रहूंगी तो हो गया काम। तू बता तेरा कैसा चल रहा है? " नेहा ने बैग एक तरफ रखा और बिस्तर पर पैर फैला कर बैठते हुए बोली।

"मेरा भी सब ठीक ही चल रहा है दीदी और अभी तो मुझे बहुत टाइम है...! आप तो दो साल पहले गई थी आपका तो सेकण्ड ईयर हो भी गया है पर अभी मुझे तो फर्स्ट ईयर के एग्जाम देने हैं। बाकी सब ठीक है।" सांझ भी उसके पास बैठते हुए बोली।

"दिल्ली शहर कैसा लग रहा है? कुछ तो अच्छा लगता होगा आखिर उस घुटन भरे माहौल से बाहर निकलकर और फिर तेरे लिए उस घर में रहना और भी मुश्किल था । मैं समझ सकती हूं मम्मी और पापा तुम्हें खास पसंद जो नहीं करते।" नेहा ने कहा।

"कोई बात नहीं है दीदी जब कोई अनचाहा व्यक्ति जबरदस्ती किसी के कंधे पर लाद दिया जाए तो उसे ऐसे ही पसंद करते हैं।" सांझ बोली।

"ऐसा भी क्या है? भले वह मेरे मम्मी पापा है पर यहां में उनके विरोध में हूँ। अगर इतनी ही उन्हें आपत्ति थी तो तो नहीं रखते ना तुझे साथ बचपन में ही डाल देते किसी अनाथ आश्रम में पर नही समय और तो महान बन कर पूरे गांव वालों को दिखाने के लिए उन्होंने तुम्हें अपने घर में रख लिया यह कहकर कि भाई की औलाद है तो बाहर नहीं रहने देंगे।पर सच में कभी दिल से नहीं अपनाया, हमेशा एक बोझ ही समझते रहे।" नेहा बोली।


सांझ ने गहरी सांस ली।


" उनका भी तो दोष नही। तब तक उन्हे प्रोबलम नही थी पर मेरा सच जानकर उनकी नाराजगी जायज है। उस सच के साथ कि मै उनके भाई की खुद की संतान नही बल्कि गोद ली हुई हूँ उन्होंने मुझे रखा यही मेरे लिए काफी है और बहुत बड़ा एहसान भी।" सांझ बोली।


नेहा ने उसके कंधे पर हाथ रखा


" और सच बताऊँ दीदी तो मैं बहुत खुश हूं यहाँ आकर।" सांझ बोली।

" और मैं भी कि तू उस घर से बाहर निकली। बस अब कभी वापस उस घर में नहीं जाना है।" नेहा ने कहा तो सांझ ने आँखे छोटी करके उसे देखा।

"मेरा मतलब है रहने कभी नहीं जाना। पढ़ाई करते करते हैं जॉब ढूँढना और फिर यही दिल्ली में ही रहना। जिन लोगों को तेरी परवाह नहीं है उनके पास जाकर क्या ही करना। हम सब जानते हैं पूरा गांव जानता है कि के बड़े पापा और बड़ी मम्मी की अच्छी खासी प्रॉपर्टी थी और बहुत सारी जमीन भी जिसे आज पापा ही देख रहे हैं। बदले में उन्होंने सिर्फ तुम्हारा पालन पोषण पढ़ाई लिखाई ही तो कराई है। कोई एहसान नहीं किया है। पर हर समय एहसान जताते रहते हैं। वह मेरे मम्मी पापा है और तू मेरी कजिन पर फिर भी मुझे हमेशा तेरे लिए ही खराब लगता है।" नेहा बोली।

"कोई बात नहीं दीदी आप अपना मन खराब मत किया मेरे लिए। और मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगता है।" सांझ ने कहा।


" तू तो है ही महान पर मेरी बात का ध्यान से सुन ले। पढ़ाई करते करते हैं यहां पर जॉब कर लेना और अब बिल्कुल भी गांव में जाने की जरूरत नहीं है और ना ही उनके हिसाब से चलना है। तू अपने निर्णय खुद लेना। और कभी भी उनके सो कोल्ड एहसान के बदले ऐसा कुछ न कर जाना जो सही न हो। गलत बात का विरोध करना सांझ तभी तो अपने लिए कुछ ठीक कर पाएगी।" नेहा ने कहा तो सांझ मुस्कुरा उठी।

थोड़ी देर बातें करती रही दोनों दोनों फिर खाना खाने चली गई और उसके बाद आकर बिस्तर पर गिर गई क्योंकि सुबह की बस से उन्हें गांव जाना था।


"नेहा दीदी को कहती तो सही है हैं चाचा जी चाची जी तो उनके मम्मी-पापा है पर फिर भी नेहा दीदी उन्हें बहुत अच्छे से समझतीं हैं इसीलिए नेहा दीदी को शुरू से ही उनका बिहेवियर पसंद नही और हमेशा उन्होंने मेरा साथ दिया है। अपने मम्मी पापा के विरुद्ध और मेरे साथ खड़ी रही है और मैं भी तो खुद इसीलिए दिल्ली आई हूं। मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना है इसके अलावा और कुछ भी नहीं सोचना ताकि मैं चाचा चाची की एहसानों के बोझ से हट सकूँ। और फिर अपनी जिंदगी के फैसले खुद ले सकूँ वरना ना जाने क्या लिख दें वो मेरी भाग्य में उस गाँव के भाग्यविधाता। और इसके लिए जरूरी है कि मैं मिस्टर चतुर्वेदी से भी दूर रहूँ ।अभी मुझे सिर्फ और सिर्फ स्टेडी करनी है और खुद के पैरो पर खड़ा होना है।" सांझ ने मन ही मन सोचा और आंखें बंद कर ली।


"तुझे मैं गलत लग सकती हूँ सांझ क्योंकि मैं अपने मम्मी पापा के ही खिलाफ तुझे बोलती हूं पर मैं जानती हूं कि उस घर में तेरा कभी भला नहीं हो सकता। मैं तो उनकी इकलौती बेटी हूं इसलिए वह कभी मेरे लिए सख्ती नहीं करते पर बात जब तेरी आती है तो उन्हें सारे नियम कानून और गांव की मान्यता याद आ जाते हैं। बचपन से देखती आई हूं तेरे लिए ना ही उनके दिल में प्यार है ना ही कोई परवाह और मैं चाहती हूं कि तू अपनी जिंदगी में खुश रहे और इसके लिए जरूरी है कि तू उन लोगों से और गांव से दूर रहे। तु उन लोगों से जितनी ज्यादा दूर रहेगी उतना ही तेरे लिए बेहतर होगा।" नेहा ने मन ही मन कहा और फिर आंखें बंद कर ली और आनंद के साथ हुई बातचीत को याद करने लगी।

आनंद की ब बातों को याद कर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई
"कुछ तो खास है आपने आनंद बाबू पहली बार कोई बंदा मिला है जिसने मेरे दिल पर दस्तक दी है।" नेहा ने खुद से ही कहा और फिर उसके चेहरे की मुस्कुराहट और भी ज्यादा गहरी हो गई।


आनंद भी अपने घर पहुंचा और अपनी मां से मिलने के बाद फ्रेश होकर खाना खाकर अपने कमरे में आ गया और नेहा के साथ गुजरे समय को याद करने लगा।

"यकीन नहीं होता कि तुम ऐसे माहौल से आकर भी इतनी बोल्ड हो। और वैसे ही मुझे तुम्हारे जैसी बोल्ड और कॉन्फिडेंट लड़कियां पसंद है। कोई तुम्हें देख कर कह नहीं सकता कि तुम ऐसे गांव से आई हूं जहां की सोच आज भी इतनी पुरानी है। कुछ भी हो पर तुमसे बात करके अच्छा लगा कुछ खास है तुम्हारे अंदर । एकदम अलग हो तुम बिल्कुल अलग। " आनंद ने खुद से ही कहा और फिर आंखें बंद कर ली और नेहा को याद करते हुए उसके चेहरे की मुस्कुराहट भी बड़ी हो गई।

उधर गांव में सब का खाना पीना होने के बाद नियति अपने कमरे में आई और दरवाजा बंद कर लिया फिर कांपते हाथों से अपना बैग उठाया और उसमें रखा कागज निकाल लिया। इतनी देर से उसका ध्यान उसी कागज पर था पर वह सबके सामने नहीं पढ़ सकती थी? उसे डर था कि कहीं किसी ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी।

उसने कांपते हाथों से कागज निकाला और उसे खोलकर पढ़ना शुरू किया।

"डियर नियति...

तुम्हें अचंभा हो रहा होगा कि मुझे तुम्हारा नाम कैसे पता चला पर पिछले दो-तीन दिनों के अंदर मैंने तुम्हारा नाम ही नही बल्कि तुम्हारे बारे में सब कुछ पता कर लिया है। और सच कह रहा हूँ जब तक पता नहीं चला दिल बेचैन रहा। पता नहीं क्या है क्यों है मैं नहीं जानता? क्या सही है क्या गलत है नहीं जानता? पर जबसे तुम्हें देखा है सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे ही ख्यालों में मेरा दिल और दिमाग उलझा रहता है। कितनी भी कोशिश करूँ पर तुम्हारा ख्याल तुम्हारी यादें दिल से जाती ही नहीं। इसे ही पहली नजर का प्यार कहते हैं जो कि मुझे तुमसे हो गया है। तुम हां करो या ना करो इस बात की मुझे परवाह नहीं है। मैं तुम्हें प्यार करता हूं और आखिरी सांस तक करता रहूंगा।
फैसला तुम्हारे हाथ में है। मैंने अब तक तुम्हें अपने दिल की बात बता दी है । आज बहुत हिम्मत करके तुम्हें लेटर दे रहा हूं ताकि तुम समझ सको। इसके अलावा मेरे पास कोई उपाय नहीं था तुमसे बात करने का। तुम मुझसे बात करती नहीं हो। मुझे अवोइड करती हो और तुम्हारी सहेली ने मुझे तुम्हारा नंबर का पता कुछ भी बताने से मना कर दिया है
इसलिए मजबूर होकर आज तुम्हारे साथ तुम्हारी बस में आ रहा हूं और तुम्हें अपने दिल की बात बता रहा हूं। इस उम्मीद से कि तुम मेरी भावनाओं को समझोगे। मेरे दिल में कोई पाप नहीं है कोई गलत भावना नहीं है। मैं तो सच्चे दिल से तुम्हे चाहता हूं तुम्हारे साथ खूबसूरत दुनिया बसाने का ख्वाब देखा है जहाँ सिर्फ और सिर्फ प्यार होगा और ढेर सारी खुशियां।

तुम्हारे बिना जीवन की कल्पना नही कर सकता मै अब।

तुम्हारे जवाब का इंतजार रहेगा। कल फुटबॉल ग्राउंड मे तब तक इंतजार करता रहूँगा जब तक तुम न आई।

तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा सार्थक।

लेटर पढ़ते-पढ़ते नियति की आंखों में आंसू भर आए और चेहरे पर मुस्कुराहट खिल गई।

"मैं भी तुम्हें चाहने लगी हूं सार्थक पर मजबूर हूं..! पता नहीं इस बात का क्या अंजाम होगा? अगर मेरे घर वालों को पता चल गया तो ना जाने क्या होगा? नियति ने मन ही मन सोचा और फिर उस लेटर को संभाल कर छुपाकर रख दिया ताकि कोई ना देख सके।

आंखें बंद करके बिस्तर पर लेट गई पर दिमाग में लेटर में लिखी बातें गूंज रही थी।

'मैं क्या करूं? जाऊं उससे मिलने कि नहीं जाऊं समझ नहीं आ रहा है। अब दिल कह रहा है कि मुझे जाना चाहिए आखिर मैं भी तो उसे चाहती हूं और दिमाग कहता है कि ये गलत है । ये सब सही नहीं है। हमारे घर में एक्सेप्टेबल नहीं होगा।" नियति ने मन ही मन सोचा और इसी कशमकश में डूबी गहरी नींद में चली गई।

अगली सुबह सांझ और नेहा गाँव के लिए निकल गई तो वही नियति गाँव से कॉलेज के लिए

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव