Bharosa - 7 in Hindi Fiction Stories by Gajendra Kudmate books and stories PDF | भरोसा - भाग 7

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भरोसा - भाग 7

भाग – ७
थोडी देर के बाद चाची स्थिती को सम्भालती है और बुधिया से कहती है, “ बेटा अब क्या किया जाये? हमे जो भी निर्णय लेना है अब बडी सोच समझकर लेना है. देख यहा पर उसका एक भरा पुरा परिवार है. हमारे एक गलत निर्णय से दो परिवार बिखर जायेंगे.” तब बुधिया कहती है, “ हा चाची, मै भी वही सोच रही हुं. अगर मै रामदिन पर हक जाताती हुं तो बेचारी ममता का हरा भरा परिवार बिखर जायेगा. मेरा तो क्या, मेरा तो कुछ भी नही हुआ है बस शादी के नाम पर हल्दी लगी थी. उसके बाद पती और पत्नी के संबंध तो दूर उसने मुझे आजतक छुआ तक नही है. लेकीन यहा पर ममता ने उसके साथ अपनी पुरी निष्ठा से अपना पत्नी धर्म निभाया है और निभा रही है. उसके फलस्वरूप उनके घर में चिंकी जैसा प्यारा सा फुल खिला है. तो मै कैसे इस हरे भरे बगिया को उजाडने कि बात कर सकती हुं.” तब चाची कहती है, “ वह तो नालायक निकला लेकीन ममता तो बहोत सुलझी और पढी लिखी औरत है. इसमें उस बेचारी का कोई दोष नही है तो फिर उस निर्दोष को सजा कीस बात कि मिलना चाहिये, बिलकुल नही.”
चाची और बुधिया दोनों हि अपनी आंखे पोछ्ती है और परिस्थिती का कैसे निपटारा किया जाये इसके बारे में सोचती है. तभी ममता कि आवाज आती है, “ चलो कुछ नाश्ता किया जाये. आईये सभी मिलकर नाश्ता करते है.” नाश्ता करते करते चाची पुछती है, “ चिंकी बेटा आपके पापा कहा है, हमे तो दिखाई नही दिये है कल से.” तब ममता बोली, “ कल रात को मै उन्हे हि तो स्टेशन छोडने गयी थी, वह किसी काम से किसी के गाव गये है.” इतना सुनते हि बुधिया और चाची का चेहरा एकदम देखने लायक हो गया था. तत्काल उन्होने फैसला ले लिया कि हमारा जो भरोसा था वह तो टूट गया अब उसका कोई भी अस्तित्व नही रहा. लेकीन ममता का भरोसा हम टूटने नही देंगे और बिना कुछ कहे हम यहा से वापस चले जायेंगे. तभी चाचीने कहा, “ अरे मै भी कितनी भूलक्कड हुं रामदिन ने कहा था के मै किसी गाव में काम करता हुं और मै न जाने क्या सुनती हुं. मेरी उम्र हो गयी है ना कुछ भी अनाप शनाप सून लेती हुं और बक भी लेती हुं. बेटी रामदिन तो रास्ते में हि जो गाव है वहा रहता है और मै भी पगली तुझे यहा शहर में मरने के लिये लेकर आयी. चल चलते है नही तो वह किसी काम से काही और चला जायेगा.” चाची ममता से कहती है, “ बेटी जरा हमको भी स्टेशन तक छोड दोगी क्या हमें अभी जाना पडेगा. इतनी मेहरबानी कर दो बेटी.”
ममता कहती है, “ अरे इतने जल्दी, कल चले जाना.” तभी चाची कहती है, “ नही बेटा, वक्त का काम सही वक्त पर करो तो हि अच्छा होता है. वक्त बित जाने पर उस काम का मूल्य कुछ नही रह जाता है. तो इसलिये बेटा, हमारे लिये थोडीसी और तकलीफ सहन कर लो और हमको स्टेशन पर छोड दो.” ममता कहती है , “ ठीक है बाबा, मै अभी आप लोगो को स्टेशन पर छोड देती हू. मै तयार होती हुं और आती हुं आप लोग भी तयार हो जाइये.” चाची बुधिया से कहती है, “ चल बेटा, यही सही वक्त है हमे यहा से निकल जाना चाहिये , इस हरे भरे परिवार को बचाना है तो हमे तुरंत निकलना चाहिये, चल सामान उठा .” तभी ममता तयार होकर आ जाती है और वह तीनो भी स्टेशन के लिये रवाना हो जाते है. स्टेशन पर जाकर ममता पुछती है, “ भाई साहब, मांझी गाव कि तरफ जानेवाली ट्रेन अभी है क्या?” स्टेशन मास्तर कहते है कि , हा अभी आधे घंटे में एक ट्रेन है. ममता दोनो कि तिकीट निकालकर देती है और वह लोग इधर उधर कि बाते करते है. तभी ट्रेन स्टेशन पर आ जाती है. चाची और बुधिया दोनों भी ट्रेन में बैठते है तभी ट्रेन चल पडती है और दोनों भी ममता को हाथ हिलाकर अंतिम अलविदा कहते है. वापस लौटते वक्त बुधियाने एक बहोत महत्वपूर्ण पाठ पढा,
” कभी किसी के उपर वह चाहे मर्द हो या औरत हो आंख मुंदकर भरोसा नही करना चाहिये. कोई अगर आप पर भरोसा करता है तो आपको उसका भरोसा तोडना नही चाहिये. ”
स्वलिखित
गजेंद्र गोविंदराव कुडमाते