Wo Billy - 21 in Hindi Horror Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | वो बिल्ली - 21

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वो बिल्ली - 21

(भाग 21)

अब तक आपने पढ़ा कि प्रेमलता को प्रेम की चाल के बारे में पता चल जाता है।

अब आगें...

प्रेम की बात सुनने के बाद मेरा पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। गुस्से से आग बगुला होती मैं स्टोर रूम में भनभनाते हुए गई।

मुझें देखकर प्रेम और उसकी पत्नी की हवाईय्या उड़ गई। वह दोनों पहले तो भयभीत होकर मुझें देखने लगे पर बोले कुछ भी नहीं।

थोड़ी देर कमरे में मातम जैसा सन्नाटा पसरा रहा फिर जब प्रेम की पत्नी धीरे से कमरे से जाने लगी तो मैंने उसे रोकते हुए कहा - " क्या हुआ बिना वसीयत लिए ही जाने लगीं। अभी तो मैंने हस्ताक्षर भी नहीं किए। मेरे इतना कहने के बाद दोनों पति पत्नी झेंप गए। मैं गुस्से से प्रेम की ओर मुख़ातिब हुई । मैंने उसकी कॉलर पकड़ ली।

धमकी देते हुए मैं नागिन सी फुफकारती हुई बोली - " प्रेम नाम को कलंकित कर दिया तूने ! इंसानियत होती तो मेरे हालतों पर तरस खाता। पर तूने तो मेरे मातापिता की मौत को भी अपने लिए सुनहरा अवसर समझा और तू मेरे अरमानों की चिता पर अपनी रोटियां सेंकने लगा। अरे लालची ! यह घर, दौलत जो कुछ भी चाहिए था यूँ ही आकर मांग लेता। मैं भीख समझकर दे देती। इतना बड़ा स्वांग रचाने की क्या जरूरत थी ? अब 420 के मामले में तुम दोनों जेल में सड़ोगे।"

अचानक पीछे से मेरे सिर पर किसी भारी वस्तु से तेज़ प्रहार हुआ। प्रेम की कॉलर से मेरी पकड़ ढीली हो गई। मेरी आँखों के आगें अंधेरा छा गया। मैं बेसुध होकर ज़मीन पर गिर गई।

इसके बाद घटित हुई घटना की मुझें कोई जानकारी नहीं है। मुझें बस यह याद है कि मेरे शरीर को जब वह लोग दफना रहें थे तब तक मैं जिंदा थीं।

मेरे मस्तिष्क में मेरी मृत्यु से पहले हुई सारी बातें अंतिम सांस तक चलती रहीं। यह उसी का परिणाम होगा कि मेरी आत्मा मरकर भी मुक्ति न पा सकी। मैंने आत्मा के रूप में खुद को कमरे में पाया। उन लोगों ने मेरे शरीर को दफ़न कर दिया था लेकिन आत्मा तो स्वतंत्र थी। मैं कमरे से बाहर निकली। बाहर निकलते ही मैंने देखा कि मेरे अपने घर पर अब किसी पराए इंसान ने अपना कब्जा कर लिया है। प्रेम उसकी पत्नी के साथ बेख़ौफ़ होकर रह रहा था। मेरे घर का सारा सामान जिसमे मेरी मम्मी की ड्रेसिंग टेबल, पापा का ग्रामोफोन और भी अनेक यादगार वस्तुएं कबाड़ समझकर आँगन में रख दी गई थी। शायद ! वह इन सबके लिए कबाड़ी से सौदा कर चूंके थे। अब तो बस रुपये के बदले सारा सामान घर से हटाने की देरभर थी।

मैंने ही अपनी शक्तियों से वह सारा सामान स्टोर रूम में रख दिया था।

इसी घटना से शुरू हो गया था मेरा भूतिया खेल। इस खेल में 'वो बिल्ली' भी मेरी सहयोगी बनी जो प्रेम की पत्नी की पालतू बिल्ली थी।

सामान के यूँ गायब हो जाने को शुरुआत में प्रेम और उसकी पत्नी अंशुला ने उसे चोरी की घटना ही समझा। लेक़िन एक दिन उन्हें जब सामान स्टोर रूम में व्यवस्थित रखा हुआ दिखाई दिया तो दोनों का माथा ठनका। दोनों ने एकदूसरे से यहीं प्रश्न पूछा - " यह सारा सामान यहाँ कैसे आया ?"

अंशुला बोली - " शायद ! उस दिन सफ़ाई करने के लिए जो लड़का आया था वहीं यह सारा सामान यहाँ रख गया होगा। उसने हमसे पूछना जरूरी नहीं समझा होगा क्योंकि सभी लोग कबाड़ को स्टोर रूम में ही रखवाते है।"

इसके बाद आश्वस्त होकर दोनों ने सामान से ध्यान हटाकर अपने मकसद पर ध्यान केंद्रित किया।

शेष अगलें भाग में....

प्रेम और अंशुला किस मकसद से स्टोर रूम में आए थें...? क्या इन दोनों का सामना प्रेमलता से होगा ? जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहिए।