Chamkila Baadal - 15 in Hindi Fiction Stories by Ibne Safi books and stories PDF | चमकीला बादल - 15

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चमकीला बादल - 15

(15)

"तुम मुझे चकित कर रहे हो।" औरत ने कहा।

राजेश मौन रहा फिर दोनों गुफा से बाहर निकले। कुछ ही कदम चले होंगे कि विचित्र प्रकार का शोर सुनाई दिया। ऐसा ही लग रहा था जैसे विभिन्न प्रकार के बहुत सारे जानवर आपस में लड रहे हो।

"ठहर जाओ।" औरत ने राजेश की भुजा पकड़ कर कहा।

"यह है क्या?" राजेश रुकता हुआ बोला।

"टी_वी_ पर कोई प्रोग्राम आने वाला है। देख कर चलेंगे।" औरत ने कहा।

"मैं इन आवाजों के बारे में पूछ रहा था।"

"यह इस बात का संकेत है कि टी_वी_ पर कोई प्रोग्राम आने वाला है।" औरत ने कहा।

"मगर टी_वी_ है कहां?"

"आओ। चलो। मैं दिखाती हूं।" औरत ने कहा और उसे खींचती हुई उसी ओर ले चली जिधर से आवाजें आ रही थी।

वह भी किसी गुफा का मुख ही साबित हुआ। आवाजें उसी से निकल कर वायुमंडल में फैला रही थी। और गुफा का यह मुख प्राकृतिक भी नहीं प्रतीत हो रहा था। उसे काटने छांटने में किसी इंसानी हाथ ने अपनी कला अभ्यास का अति सुन्दर प्रदर्शन किया था। उसकी बनावट टी_वी_ के स्क्रीन जैसी थी।

अचानक एक चमकीली धूल सी उस पर छा गई और ऐसा ही लगा जैसे किसी टी_वी_ सेट स्क्रीन प्रज्वलित हो गई हो। फिर मोटे मोटे अक्षरों में लिखा हुआ नजर आया।

"प्रोजेक्ट विनाशकारी"

साथ ही किसी अज्ञात पुरुष ने कमेन्ट्री आरंभ कर दी।

"महिलाएं तथा सज्जन गण। जीरो लैन्ड टेलीविजन आपको प्रोजेक्ट विनाशकारी की ओर लिए चलता है। अफ्रीका में नया सूर्य उदय होने वाला है जिसका प्रकाश सारे विश्व में फैलेगा। गौर वर्ण नस्लें संसार से मिट जाएंगी और रंग दार जाति का उत्थान होगा। यह देखिए। यह रहा हमारा महाद्वीपी मीजाईल हलाकू प्रथम।

लांचिंग पैड पर एक बहुत बड़ा मीजाईल दिखाई दिया। जिस पर लिखा हुआ था। "हलाकू प्रथम _ वाशिंगटन के लिए।"

"और अब देखिए _ हलाकू द्वितीय _ मास्को के लिए। यह रहा हलाकू तृतीय_ पैरिस के लिए। यह हलाकू चतुर्थ है। लंदन के लिए। यह हलाकू पंचम। बर्लिन के लिए। सारांश यह कि हम इन्हीं जंगलों में रहकर संसार के समस्त बड़े नगरों को खंडर बना सकते है। एक मीजाईल कम से कम पचास मील के वर्ग क्षेत्र के लिए काफी होगा। प्रोजेक्ट विनाशकारी ऐसे ही डेढ़ सौ मीजाईलो पर आधारित है। अफ्रीका में नया सूरज अवश्य उदय होगा। गौर वर्ण हिंसको के खून की नदियां बहेंगी। जीरो लैन्ड जिंदाबाद।"

फिर चमकीली धूल गायब हो गई और गुफा का मुख सुनसान नजर आने लगा। राजेश का निचला होंठ दांतों में दबा हुआ था और चेहरे पर पसीने की बूंदें फूट रही थी। औरत ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा।

"यह क्या बकवास थी?" राजेश ने उसे ध्यानपूर्वक देखते हुए कहा।

"दिनभर ऐसी छोटी-मोटी खबरें टेलिकास्ट होती रहती है।" औरत ने कहा। कल खरगोश और कछुए की कहानी आई थी। चलो चलें।"

"अगर मैं चलने से इंकार कर दूं तो?" राजेश ने पूछा।

"कुछ नहीं। मगर जाओगे कहां?"

"कहीं भी नहीं। तुम्हारी वाली गुफा क्या बुरी है?"

"मैं वहां अकेली रहती हूं। कोई मेरे साथ नहीं रह सकता।" औरत ने कहा।

"इसके बावजूद भी मैं कहीं और जाने से इंकार करता हूं।"

"तुम्हारी इच्छा। लेकिन तुम मेरी गुफा में न रह सकोगे।"

अचानक फिर शोर सुनाई दिया मगर यह टेलीविजन वाले शोर से भिन्न था। ऐसा लग रहा था जैसे बहुत सारे लोग उसी ओर दौड़े आ रहें हो।

"नई बात _ बिल्कुल नई बात।" औरत चौकन्ना हो कर बोली और फिर इस नये शोर के आवरण में जो कुछ भी था सामने आ गया।

दूसरे जंगली संगही को दौड़ाते हुए इधर ही ला रहे थे। कदाचित वह सब संगही को पकड़ना चाहते थे मगर वह किसी बंदर के समान झुकाइया दे रहा था।

"ओह_ बेचारा लंबा आदमी।" राजेश बड़बड़ाया। "वह अकेला है। हमें उसकी सहायता करनी चाहिए।"

"क्या तुम भी मरना चाहते हो!" औरत ने कहा।

"क्या मतलब?"

"अगर झगड़ा हो जाए तो वह किसी को जीवित नहीं छोड़ते।"

"मैं उसे इस प्रकार मरने नहीं दूंगा।"

"ठहरो। कहां चले? तुम मेरी जिम्मेदारी में हो। मुझे कड़े शब्दों में आदेश दिया गया है कि तुम्हारे शरीर पर खरौंच तक नहीं आनी चाहिए।"

"किसने आदेश दिया है?" राजेश ने पूछा।

"यह मैं नहीं जानती।"

उधर अब उन जंगलियों ने संगही को घेर लिया था और उसे अपने भालों की नोंको से छेद डालने की कोशिश किए जा रहे थे। मगर अभी तक उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली थी। राजेश ने औरत से हाथ छुड़ा कर उसी ओर जाना चाहा।

"नहीं नहीं। यह क्या कर रहे हो?" औरत ने मना किया।

मगर राजेश उससे हाथ छुड़ाकर दौड़ पड़ा। साथ ही हिन्दुस्तानी में चीखता भी जा रहा था।

"घबड़ाना मत। मैं आ रहा हूं।"

निकट पहुंच कर उसने एक जंगली से भाला छीना और उन पर टूट पड़ा। उनमें से कुछ राजेश की ओर आकृष्ट हुए फिर राजेश को यह अनुमान लगाने में कठिनाई नहीं हुई थी कि वह सब भाला चलाने की कला में बिल्कुल अनाड़ी है। इसलिए उसने भाले को उल्टा करके लठ के समान घुमाना आरंभ कर दिया। ठीक उसी समय कहीं से सिंह की दहाड़ सुनाई दी। सारे जंगली मशीनी तौर पर ठिठक गए। सिंह की दहाड़ फिर सुनाई दी और वह सब उछल उछल कर इधर उधर भागने लगे। संगही खड़ा झूम रहा था। उसके शरीर पर कई जगह खराशें आई थी जिनसे रक्त रिस रहा था। राजेश ने आगे बढ़ कर उसे सहारा देना चाहा मगर वह गुर्रा उठा।

"मैं ठीक हूं। मेरे निकट न आना।"

"फिर किसी मुसीबत में पड़ोगे। चलो मेरे साथ।" राजेश उसका हाथ पकड़ कर बोला।

सिंह की दहाड़ फिर सुनाई दी मगर राजेश ने महसूस किया कि आवाज के व्यवधान में कोई अंतर नहीं हुआ है। न पहले से निकट की मालूम हुई थी न दूर की। वह संगही को औरत वाले गुफा की ओर ले चला और बोला।

"वहां एक औरत भी है इसलिए हम हिन्दुस्तानी में बातें करेंगे।"

"औरत?" संगही ने सिसकारी ली। "क्या कोई औरत भी है?"

"हां। काली कलूटी।" राजेश भन्ना कर बोला।

"कोई अंतर नहीं पड़ता।"

"जख्मी हो मगर औरत की प्यास है। अरे चाचा कुछ तो शर्म करो।"

"शर्म किस चिड़िया का नाम है भतीजे?" संगही हंस कर बोला फिर कहने लगा।

"मगर आखिर हम कहां आ फंसे हैं? थारसा ने अपनी पिछली पराजय का बहुत भयानक बदला लिया है।"

"जो हुआ भूल जाओ। देखा जाएगा।" राजेश ने कहा और उसे लिए हुए गुफा में दाखिल हुआ मगर उस औरत का कहीं पता नहीं था। संगही चारों ओर देखता हुआ बोला।

"मगर वह औरत है कहां?"

"नरक में गई। तुम इधर लेट जाओ।"

"वह सारे जंगली चीनी बोल रहे थे।" संगही ने कहा।

"हांगकांग के लफंगे होंगे।"

"मैं वानेडरी समझा था।"

"बनाए हुए वानेडरी है।" राजेश ने कहा। "ध्येय उपर ही वाला जाने।"

"मैं बहुत भूखा हूं।" संगही ने चारों ओर देखते हुए कहा और फिर फलों पर टूट पड़ा।

"हाथी का मांस नहीं खाया? तुम भी तो काट रहे थे।"

"इसकी नौबत ही नहीं आने पाई थी कि उतपात खड़ा हो गया।" संगही ने मुंह चलाते हुए कहा।

"उत्पात का कारण?"

"उनमें दो चार औरतें भी थी। एक पसंद आ गई। उसके सौन्दर्य की प्रशंसा कर ही थहा था कि सब आपे से बाहर हो गए।"

"तुम्हारा तेल निकाला जाए तो कम से कम पांच सौ रुपए तोला के हिसाब से अवश्य बिकेगा।"

संगही हंसने लगा। और ठीक उसी समय वही औरत गुफा में दाखिल हुई और राजेश से पूछा।

"क्या यह लंबा आदमी अंग्रेजी समझ सकता है?"

"हां।" राजेश ने कहा और औरत ने संगही को संबोधित करके बोलना आरंभ किया।

"इस बार तो मैंने बचा लिया लेकिन फिर कोई शरारत करोगे तो जिंदा नहीं बचोगे।"

"तुमने कैसे बचा लिया?" राजेश ने आश्चर्य से पूछा।

"सिंह की दहाड़ की व्यवस्था मैंने ही तो की थी।" औरत ने हंस कर कहा।

"मगर इस लंबे आदमी की गलती क्या थी?"

"इसने उनकी औरतों को छेड़ा था।"

"तुम तो किसी की औरत नहीं हो ना?" संगही ने हंस कर पूछा।

"मैं इसकी औरत हूं।" औरत ने बड़े प्यार से राजेश के कंधे पर हाथ रख कर कहा।

"भगवान। बचाना।" राजेश कराहा।

"तो यह ठाठ है भतीजे।" संगही ने कहकर बड़े फ़ूहड़ ढंग से अट्टहास लगाया।

"बस बस।"राजेश हाथ उठाकर बोला। "हंसने की आवश्यकता नहीं है। यदि यह मुझे अपना मर्द समझती है तो इसमें हर्ज ही क्या है? अब और किसी के योग्य कहां रह गया हूं?"

"क्यों? क्या तुम बहुत सुंदर थे?" औरत ने पूछा।

"जवाब नहीं था मेरा। इटालियन अभिनेत्रियां आगे पीछे फिरती थी। अलहमरा का गुलाब कहलाता था।"

"और अब सीख कबाब कहे जाओगे।" संगही ने हिन्दुस्तानी में कहा।

"तह क्या कह रहा है?" औरत ने पूछा।

"अपनी लंबाई पर लज्जा प्रकाशन कर थहा है।" राजेश ने कहा।

औरत ने जोर से हंस कर कहा। "इतना काला और इतना लंबा आदमी मैंने पहले कभी नहीं देखा। इसका संबंध किस जाति से है?"

"अह दो कि हरामियों की जाति का सरदार है।" संगही ने हिन्दुस्तानी में कहा मगर राजेश ने उत्तर दिया।

"अभी इसकी राष्ट्रीयता पर रिसर्च हो रहा है।"

"तुम इसके अभिभावक बनने का प्रयास न करो भतीजे।" संगही ने जहरीले स्वर में कहा।

"होश की दवा करो चाचा। यहां से हमें निकलने की कोशिश करनी चाहिए।"

"अगर इन औरतो ने मुझे स्वीकार नहीं किया तो फिर निकलने ही की कोशिश करनी होगी। मगर मैं इतनी जल्दी निराश होने वालों में से नहीं हूं।"

राजेश कुछ कहने ही वाला था कि शोर फिर सुनाई पड़ा और संगही चौंक कर बोला।

"क्या यहां कोई टेलि न्यूज कास्टर भी है?"

मगर औरत ने उत्तर नहीं दिया। उसने राजेश का हाथ पकड़ कर गुफा के मुख की ओर खिंचते हुए कहा।

"चलो। शायद अब कोई कहानी आएगी।"

राजेश उसके साथ निकला चला गया। संगही भी पीछे नहीं रहा था। तीनों साथ ही वहां पहुंचे। थोड़ी देर तक शोर होता रहा फिर स्क्रीन पर चमकीला रज आच्छादित हो गया।

और फिर उस रज से जो चेहरा उभरा था उसने राजेश जैसे आदमी को भी विचलित कर दिया। अत्यंत सुंदर चेहरा था। उसके अधरो में गति उत्पन्न हुई और संगीतमय आवाज वातावरण में गूंजी।

"संगही, शस्त्रों का दह भंडार कहां है जिसे तुम टंगानीका के पार ले जाना चाहते हो? उत्तर दो। तुम्हारी आवाज़ मुझ तक पहुंच जाएगी।"

"माई गॉड, ये तो थारसा?" संगही धीरे से बोला।

"हां मैं ही हूं।"

"मैंने तुम्हें इस रूप में कभी नहीं देखा।" संगही बोला।

"समय नष्ट न करो। बताओ कि वह भंडार कहां है?"

"यदि तुम मुझे अपने निकट आने दो तो सारी विजिनेस से विरक्त हो जाऊंगा और खुद ही सारा भंडार तुम्हारे हवाले कर दूंगा। अगर ऐसा न करूं तो मुझे गोली मार देना।"

"मैं कहती हूं गंभीरता धारण करो वरना तुम्हारी दशा पर कीड़े मकोड़े भी रो पड़ेंगे।"

"सुनो डार्लिंग।" संगही ने हंस कर कहा। "तुम मुझे प्रेम से पराजित कर सकती हो धमकी से नहीं।"

"अच्छा तो फिर सिसक सिसक कर मरने पर के लिए तैयार रहना।"

"ठहरो ठहरो।" राजेश हाथ उठाकर बोला। "मुझे भी कुछ कहना है।"

"तुम?" वह दुःख भरे स्वर में बोली। "तुमको क्या कहना है?"

"मुझे इस काली बिमारी का इलाज बता दो।"

"लिक्विड हाइड्रोजन पैराक्साइड। एक पाउंड पर्याप्त होगा।"

"तो कब भिजवा रही हो?" राजेश ने चहककर पूछा।

"किस भ्रम में ग्रस्त हो? क्या तुम यह समझ रहे हो कि मैंने तुम्हें चकित करने के लिए तुम्हारी यह हुलिया बनाई है?"

"फिर क्या समझूं?"

"इस काले कोट के बिना तुम एक मिनट भी यहां जीवित नहीं रह सकते। मच्छर ही तुमको खत्म कर देंगे। यह एक विशिष्ट प्रकार का पेंट है जो कीट पतंग को तुमसे दूर रखेगा। इसे स्थानीय निवासियों की रंगत के समान बनाने की चेष्टा की गई है।"