Modi is not Hitler in English Short Stories by ABHAY SINGH books and stories PDF | मोदी इज नॉट हिटलर

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मोदी इज नॉट हिटलर

नो, मोदी इज नॉट हिटलर!!!
ये झूठ है।

विरोधियों में मोदी- हिटलर में तुलना की प्रवृत्ति देखी गयी है। चुनाव से सत्ता पाने, और तानाशाह बन जाने, विरोध को नष्ट करने, प्रोपगंडा व नफरती राजनीति की कुछ मामूली समानता के कारण, लोग उन्हें जोड़कर देखते है।

ये गलत है। आज इस बहस को खत्म करने का वक्त है।
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हिटलर की सत्ता दो हिस्सों में है- 1933-39 का शांतकाल, और दूसरा- युध्दकाल।

छोटी मोटी घुसपैठ (सर्जिकल स्ट्राइक) अलग बात है, पर हिटलर की तरह भूगोल और इतिहास बदलने वाले के युद्ध की आशा, मोदीभक्त भी नही करते। तो दोनो में में अकादमिक तुलना, हिटलर के 6 वर्षीय शांतकाल से ही हो सकती है।

सत्तारोहण के वक्त हिटलर का जर्मनी गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी के चरम पर था। वैश्विक मंदी,और वर्साइ संधि के प्रतिबंध थे। मोदी को प्रारंभ से दुनिया की 6वीं बड़ी इकोनॉमी मिली।

बेरोजगारी हिटलर की प्राथमिकता थी। नये हाइवे, नई रेल लाइन्स, फैक्ट्री, स्कूल, कॉलेज, प्रशासनिक भवन बनाने शुरू किये तो कंस्ट्रक्शन जॉब की बहार आयी। मोदी दौर में, तो बूम पर बैठा निर्माण सेक्टर, भसक चुका।

हिटलर ने 40 हजार डॉलर से कम के सब उद्योग डीरजिस्टर कर, छोटे उद्योग खत्म कर दिए। लेकिन तमाम छोटे लोगो को, बडे चैनल में फिट कर दिया, दोनो खुश। हमारे यहां छोटे मझोले व्यापारी का व्यापार बड़ी कम्पनियां खा रही हैं।

सरकार को कोई मतलब नही।
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हिटलर ने तमाम सरकारी उद्यम, नाजी समर्थक उद्योगपतियों को बेच मारे। रेलवे, बैंक, स्टील, इंश्योरेंस, पेट्रोलियम, सब उसके प्रिय कारपोरेट के हाथ मे। लेकिन मुनाफे की लिमिट 6% पर बांध दी।

कम्पनियों को बैंक से कर्ज, सरकार से ऑर्डर मिलते, लेकिन निर्धारित मुनाफे से ज्यादा पैसा, सरकार को देना पड़ता। नई तकनीक, नए अविष्कार पर इन्वेस्टमेन्ट जरूरी था। याने हिटलर की मुट्ठी में सारे उद्योगपति थे,

उनकी औकात, उल्टा हिटलर को नचाने की न थी।
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हिटलर ने यूनियन बैन किये, स्ट्राइक, तालाबंदी गैर कानूनी किये, काम के घण्टे बढ़ाये। लेकिन प्रोडक्शन इन्सेंटिवाइज किया। ट्रेनिंग, स्किल पर पेमेंट बढ़े। मजदूरों की आय 20% और मैनजर्स की आय 50% तक बढ़ी।

हमारे यहां फैक्ट्रियां अपनी कैपेसिटी का 50-60% उत्पादन पर विवश हैं। मैनेजर और स्किल्ड कर्मी निकाले जा रहे हैं।

हिटलर ने किसानो की इनकम 4 साल में डबल कर दी। उसे मालूम था कि युध्द करना है, तो खाद्य में "आत्मनिर्भर" होना होगा। चाहिए।सब्सिडी, एश्योर्ड प्राइज और मेकेनाइज फार्मिंग से यह चमत्कार किया। इधर हमारे किसान सूखे मुंह, MSP की बाट जोहते हैं।
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हिटलर की इंडस्ट्रियल बूम में बड़ा हिस्सा युद्ध सामग्री का था। वर्साय ट्रीटी को ठेंगा दिखाकर उसने सेना बढ़ानी शुरू की।

बंदूक, टैंक, प्लेन, गोलेबारूद, पनडुब्बी, फ्रिगेट, डिस्ट्रॉयर, शिप.. जर्मनी 6 साल में यूरोप की वो ताकत बन गया कि उससे आंखे मिलाने की हिम्मत किसी मे न थी।

हमारे यहां लैंड हुए 4 रफेल के बदले, ठेके पर फौजी रखे जाने की स्कीम आ गई। सेना का आकार,पेंशन, वेतन घटाने की जुगत है।
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6 साल में हिटलर की नेगेटिव इकॉनमी, 10% की ग्रोथ पर आई। बेरोजगारी 30% से 0 पर। हम तो ग्रोथ में 8% से -24% हो गए। कर्ज 200 लाख करोड़ के पार, बेरोजगारी 3 से 14% आने के बाद आंकड़े आने बन्द हो गए।
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हिटलर के 6 साल में, जर्मनी के घर घर मे, जनता की कार "वोक्सवैगन" खरीदी जा रही थी। किश्तों में खरीद का फंडा हिटलर लाया।हमारी किस्तें, छाती का बोझ हो चुकी हैं। कारो की सालाना बिक्री, कमोबेश घटी है।

हिटलर के देश मे शादी करने वाले को 1000 डॉलर मिलते, बच्चा होने पर 250। पांच बच्चे पैदा करने वाली महिला को ताम्र पदक और आठ से अधिक बच्चों पर स्वर्ण पदक। यहां बात बात पर अधिक जनसँख्या का रोना यूँ है, जैसे विगत सरकारो के वक्त, जनसँख्या थी नही।
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हिटलर जहां जाता, लोग दीवाने थे।

भाषण सुनते, उसे प्यार करते, क्योकि कि वो जो कहता था, कर दिखाता। तो जब 1000 साल के राएख का वादा किया, तो लोगो ने भरोसा किया। आम जर्मन काम छोड़, बन्दूक उठा दुनिया जीतने निकल पड़ा।

विलियम शीरर लिखते हैं-"जर्मन सिपाही बर्लिन से निकले, तब उनकी तरह तंदुरुस्त, सुदर्शन, डिस्प्लीण्ड, इक्विपड, और आत्मविश्वास से भरी सेना पूरे यूरोप न थी"
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लाख बुरा था हिटलर। पावर हंगरी, प्रोपगंडाबाज, झूठा, नफरती, हत्यारा। पर कायर डरपोक न था। मोर्चे पर लड़ा था, पहले विश्वयुद्ध में दो-दो आयरन क्रॉस जीते थे। जर्मन एथनिक नेशन की किस्मत उसने 6 साल में पलटकर रख दी।

मोदी उसके तौर तरीकों को अपनाते लग सकते है, मगर उससे ज्यादा वक्त, बेहतर स्थितियां पाने के बावजूद, नतीजों में हिटलर के आसपास नही फटकते। तो बिलिव मि..
मोदी इज नॉट इवन क्लोज टू हिटलर।
ये झूठ है।