Guldasta - 8 in Hindi Poems by Madhavi Marathe books and stories PDF | गुलदस्ता - 8

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गुलदस्ता - 8

        ४२

आँगन में रेखिक रंगोली

अपने सफेद रंग में उंगलियों से

उतरती जाती है तब

कलात्मक रेखाँए, बिंदु, महिरप

उसकी अस्तित्वता से सजती जाती है

उसके रंग, रूप, रेषा, जितने भगवान

के पास ले जाते है उतना ही रंगोली का

शुभ्रत्व, सांकेतिकता भगवान के

पास ले जाता है

...........................

            ४३

गुलमोहर के वृक्ष पर बैठा

एक पंछी विविधता से कलरव

कर रहा था, उसमें कोई

माँग नही थी, कोई अर्जी नही थी

वो केवल अपने अतीव आनंद में मग्न था

उसे जग की भी चेतना नही थी,

केवल अपने आनंद के लिये उसका जीवन गान था

..................................................... 

          ४४

अमलताशी का पेड ऐसे

फूलों से खिल गया, 

जैसे आसमान के तारे

धरती पर उतर आए हो

अमलताशी के फुलों पर

ओंस की बुंदे अटक गई

ऐसा लगा जैसे फुलों पर लोलक

के झुमके झूल रहे हो

..............................

          ४५

गुलमोहर फूलों से भरा

उपर लाल नीचे लाल,

ऐसा ही दिख रहा था

फूलों की पंखुडियाँ

नीचे गिरकर

रंगीन कालीन बिछा रहा था

गुलाब के गुलदस्ते पर

भँवरों का गुंजारव चालू था

दोनो काँटों से भरे लेकिन फिर भी

उन्हे एक दुसरे के साथ ही रहना था

.........................................

           ४६

मोगरे के फूल खिल गए  

और खुशबू बिखराई

तप्त धूप की हवाओं ने

सुखभरी साँस ली

आसमान के तारे

जब हम गिनने लगते है

तब उनमें से एक हो जाते है

बाज की छ्लाँग यह

सामर्थ्य दर्शक शब्द है

या जिन्होने इतनी ऊंची छ्लाँग लगाई

यह दर्शानेवाला मानदंड है

 बारिश के पानी में

पंछी अपने पंख भीगोकर

फडफडाता है तो

उसके आंनद में पानी भी

हर्षित हो जाता है

....................... 

            ४७

रजनीगंधा के फूलों की डाली

जब बहुत कलियाँ लेकर

उपर आती है तब एक ही कली को

पता रहता है सब साथी जाने के

बाद भी मुझे अकेले ही

अंत तक खिलना है

पंछी जब आसमान में उड रहे थे

तब वृक्ष, उनके तरफ देख रहा था

पंछी जब उसके डाल पर आकर बैठ गए

तब वह आसमान के अनुभव वृक्ष को बताने लगे

खुषी ढुंढते वक्त

दुःख का काटाँ चुभ गया

तो भी रुकना नही है क्यों की

वही तुम्हे याद दिलाता है

की रास्ता सही दिशा में जा रहा है

................................... 

             ४८

किसी की गलतियाँ ढूंढ निकाली

तो भी वह खुद के साथ

लेकर नही चलना है,

अपने ही जीवन का बोज

अपने पास रहता है तो

दूसरोंका बोजा व्यर्थ

क्यों संभालना है ?

......

शुभ्र सफेद सा झरना

ज़ोर से बहता नीचे आया

नदी में समाकर वह

सफेद से नीला हो गया

.......

पंछी जब अकेला होता है

तब वह स्वछंदता से

आसमान में विहार करता है

लेकिन झुंड के साथ उडते समय

उसे अनुशासन में उडना पडता है

......

समंदर की लहरे

किनारे पर उछलती रहती है

बीच में समंदर, शांती में मग्न होता है

...... 

सूरज की किरणे

समंदर पर चमचमाती फैल गई,

किनारे तब समझ गए

अब शाम होने वाली है

......

समंदर में जब ज्वार आता है

तो अतीव आनंद से वह गरजता रहता है

भाटा आने के बाद नाराज होकर पिछे

चला जाता है जीवन की तरह

बरिश की बुंदे गिरकर

मिट्टी में अदृश्य होती है

पत्थर के भँवरो में पानी जमा हो जाता है

......