Chirag ka Zahar - 18 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | चिराग का ज़हर - 18

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चिराग का ज़हर - 18

(18)

"चलिये- विनोद ने कहा और पूरी पार्टी सर्वेन्ट क्वार्टर को ओर चल पड़ी। एस० पी० और विनोद सब से आगे थे और एस० पी० कह रहा था ।

"रोमा ने बयान दिया है कि हमीद रोमा से प्रेम की बातें करता था— मगर उसने नूरा को यह धमकी भी दी थी कि अगर नूरा ने उसकी इच्छा पूरी न की तो वह नूरा को कत्ल कर देगा यहाँ तक तो बात समझ में आती है— मगर एक बात समझ में नहीं आतो।"

"समझ में आने वाली तो यह बात भी नहीं है मगर आपकी समझ मैं जो बात नहीं आ रही है—उसे बताइये।"  विनोद ने कहा।

"रोमा ने लाश देखी थी। उनका बयान यह है कि लाश बिल्कुल वैसी ही है जैसी लाशें पहले नीलम हाउस में पाई गई थीं— अर्थात सूजी हुई लाश।"

"अब मेरी सुनिये - विनोद ने कहा "अगर नूरा को हमीद ने कत्ल किया है तो फिर यह भी मानना पड़ेगा कि हमीद का सम्बन्ध अपराधियों की टोली से है- अब सवाल यह पैदा होता है कि हमीद तीन दिन पहले मेरे साथ न्यूयार्क से वापस आया है वो फिर पहले वाले कत्ल किसने किये थे।"

"खैर-पहले लाश देख लो फिर बातें होंगी। मैंने आसिफ को पहले ही नूरा के क्वार्टर पर भेज दिया था ।"

फिर जब दोनों क्वार्टर वाले बरामदे में पहुँचे तो आसिफ दिखाई नहीं दिया । दरवाजा खोलकर जब अन्दर दाखिल हुये तो देखा कि आसिफ खड़ा उस गुड़िय को देख रहा है जो चारपाई पर लेटी हुई थी। उसके पैरों पर कम्बल पड़ा हुआ था।-

"लाश कहाँ है ?" एस० पी० ने पूछा ।

"ज...ज – जी – !" आसिक चौंकता हुआ बोला, “यहाँ तो लाश थी ही नहीं सर-।"

विनोद ने कनखियों से रोमा—कार्टन तथा डोंगे की ओर देखा जिनके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। फिर उसने एस० पी० से कहा । "मेरा विचार है कि इन सभी आदमियों को भ्रम हुआ था। इन लोगों ने प्लास्टिक की इस गुड़िया ही को लाश समझ लिया था । "

"यह कैसे हो सकता है, एस० पी० भल्ला कर बोला ।

"नहीं हो सकता तो फिर उस लाश को तलाश कीजिये हवा में तो उड़ नहीं सकती थी और न धरतो के अन्दर समा सकती थी"

विनोद ने कहा । "सब कुछ हो सकता है एस० पी० साहब-" शापूर ने कहा। वह लाश न देखकर पूर्ण रूप से सन्तुष्ट हो गया था: "शायद आपने यह शेर नही सुना -बहन में हर इक नक्शा उल्टा नजर आता हैं---मजनूं नजर आती है लेला नजर आता है वास्तव में बात यह है एस० पी० साहब कि इस नीलम हाउस में लोग इतने भयमीत हो चुके हैं कि उन्हें हर ओर लाश ही नजर आती हैं। हो सकता है किसी दिन मुझे भी लाश समझ कर पोस्टमार्टम के लिये भिजवा दिया जाये ।"

"लाश गायब कर दी गई है श्रीमान" रोमा ने कहा । "तब तो तुम्हें यह भी मालूम होगा कि लाश किसने गायब की और और कहां गायब की——?” विनोद ने चुभते हुये स्वर में कहा।

"वैसे मेरा विचार है कि लाश कम्पाउन्ड से बाहर नहीं जा सकती थी और यहां..."

"क्यों नहीं बाहर जा सकती थी ?" रोमा ने बात काट कर पूछा । ' इसका उत्तर एस० पी० साहब ही दे सकते हैं।" विनोद ने कहा।

"मैं अभी तस्दीक किये लेता हूँ-" एस० पी० ने कहा फिर आसिफ से बोला "कोठी के बाहर कुछ सादे लिबास वाले हैं—उनमें खन्ना भी है जिसे तुम अच्छी तरह पहचानते हों वह दो घन्टे से बाहर मौजूद है। उससे पूछो कि इन दो घन्टों के अन्दर इस कम्पाउन्ड से कोई बाहर गया है और अगर गया है तो किस दशा में गया है—।"

आसिफ चला गया और रोमा ने कहा। "लाश कम्पाउन्ड के अन्दर ही होगी- "

"तब तो मिल ही जायेगी" विनोद ने हंसी उड़ाने वाले भाव में कहा फिर एस० पी० की ओर मुड़ कर बोला "आपका क्या विचार है?"

"क्या बताऊँ — इन लोगों के बयान पर इसलिये विश्वास हो रहा है कि नूरा भी गायब है जब कि वह यहाँ से कभी बाहर जाती ही नहीं थी। इमारत के अन्दर भी नहीं है-आखिर वह कहाँ चली गई— दूसरो ओर लाश भी गायब है-"

इतने में आसिफ आ गया और उसने एस० पी० से कहा, "दो घन्टों के अन्दर केवल कैप्टन हमीद यहां से मोटर सायकिल पर अकेला गया था—उसके अतिरिक्त न कोई दूसरा गया और न कोई आया ।"

"अब आप क्या कहेंगे ?” विनोद ने एस० पी० से कहा । "तुम यही कह कर हमीद की ओर से सफाई देना चाहते होना कि हमीद की मोटर सायकिल पर कोई लाश या कोई गठरी नहीं थी ?" एस० पी ने कहा ।

"जी नहीं-मैं यह कहना चाहता हूँ कि जब दो घन्टे के अन्दर कम्पाउन्ड में कोई दाखिल ही नहीं हुआ था तो फिर यह तीनों महाशय कब- कैसे और किधर से आये?

"हम लोग बहुत देर से यहाँ थे।" रोमा ने कहा ।

"तब तो यही कहा जा सकता है कि अगर आप लोग नूरा के क्वार्टर में थे तो फिर नूरा का आप लोगों के सामने ही कत्ल को गया था—और यदि आप सब नूरा के क्वार्टर में नहीं थे तो फिर कहाँ थे—? इसलिये कि कोठी में तो आप तीनों में से कोई नहीं था ।"

"हम लोग फिरोजा के पास थे।" कार्टन ने कड़क कर कहा, "फिरोजा इससे इन्कार नहीं कर सकती!

“मैंने आप लोगों की दोनों बातें मान लीं—मगर यह तो बताइये कि आप लोग किस ओर से कम्पाउन्ड में दाखिल होकर कोठी के अन्दर गये थे कि एस० पी० साहब के तैनात किये हुये आदमी भी आप लोगों को न देख सके थे ?” विनोद ने पूछा।

और जब तीनों में से किसी ने इसका उत्तर नहीं दिया तो विनोद ने एस. पी से कहा,  "अब दो ही बातें' हो सकतीं हैं—या तो यह लोग बिल्कुल झूठ बोल रहे हैं- या अगर इनके बयान सच हैं तो फिर यह मानना पड़ेगा कि कम्पाउन्ड में या इस कोठी में आने जाने के लिये कोई न कोई गुप्त मार्ग मौजूद है और जिसे यह लोग जानते हैं-"

"उस मार्ग को तुम भी जानते हो ।-" कार्टन गरज पड़ा "और नूर ने ही लाश गायब की है ।"

“श्रीमान जी ।” विनोद ने एस० पी० से कहा, “मिस्टर कार्टन ने यह कह कर कि 'उस मार्ग को तुम भी जानते हो "साबित कर दिया कि यह लोग उस गुप्त मार्ग को जानते हैं—अब इन से कहिये कि वह मार्ग यह लोग आपको भी दिखा दें—फिर लाश भी बरामद हो जायेगी।" एस० पी० ने कुछ कहने के बजाय विनोद और आसिफ को बाहर निकलने का सकेत किया फिर खुद भी बाहर निकल आया और आसिफ से बोला । "इन तीनों के पते तो तुम्हें मालूम ही हैं। इनसे जाने के लिये कह दो और यह भी कह दो कि यह लोग शहर छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते। और इनकी निगरानी के लिये बुछ आदमियों को लगा दो- इस आज्ञा के बाद जब तमाम लोग नूरा के क्वार्टर से निकल कर चले गये यहाँ तक कि आसिफ भी चला गया तो एस० पी० ने कहा ।

"अब मुझे ख सब बताओ कि क्या बात है ? "

"जो बात है उसे आप अच्छी तरह जानते हैं" विनोद ने मुस्कुरा कर कहा ।

एस० पी० का चेहरा एक दम से लाल हो गया। वह विनोद को लिये हुये फिर क्वार्टर में आया। पहले उसने खिड़की बन्द की, किर दरवाजा बन्द किया उसके बाद विनोद की ओर मुड़ा- और विनोद ने कहा ।

"अब आपको उस टेप रेकार्डर और उस आटोमेटिक कैमरे की तलाश होगी जो यहाँ थे— मगर मजबूरन उन दोनों वस्तुओं को मुझे यहाँ मे हटाना पडा ।"

"सब तो लाश भी तुमने ही हटाई होगी?" एस० पी० ने फुफकार कर कहा ।

"जी हाँ — मगर मैं यह नहीं जानता कि वह लाश किसकी थी और इस क्वार्टर तक कैसे पहुँची थी— " विनोद ने शान्त स्वर में कहा मगर इतना अवश्य जानता हूँ कि नीलम हाउस के बारे में भय और आतंक का वातावरण बनाये रखने के लिये वह लाश यहाँ भिजवाई गई थी और यह भी जानता हूँ कि अपराधी यह नहीं चाहते कि आज रात मैं और हमीद नीलम हाउस में रहने जायें- और यदि हम दोनों रहें भी तो पुलिस का पहरा अवश्य रहे— इसलिये रहे ताकि उनको अर्थात अपराधियों को अपना कार्य करने में सरलता रहे—यह इसलिये कह रहा हूँ कि दो भेड़िये पुलिस की वर्दी पहन कर पुलिस वालों के साथ रह रहे थे और अपने साथियों की सहायता कर रहे थे मगर यह उनकी अभाग्यता ही थी कि वह कुछ नहीं कर सके थे और अब क्या यह भी कह दूँ कि उनमें से एक टोली के साथ तुम।”

मगर विनोद अपनी बात पूरी नहीं कर सका था। एस० पी० ने रिवाल्वर निकाल कर फायर करना आरम्भ कर दिया था । विनोद अपने को बचाता भी जा रहा था और कहता भी जा रहा था।

"तुमने खुद ही अपनी मौत को दावत दे दी। मैंने तो सोचा था कि आज रात फरामुज जी के साथ तुम्हें भी डी० आई० जी० साहब के सामने प्रस्तुत करूंगा मगर तुमने बहुत जल्दी कर दी। तुम्हारे रिवाल्वर में साइलेन्सर लगा हुआ है और सर्विस रिवाल्वर में साइलेन्सर नहीं लगे होते। तुमने इस रिवाल्वर को प्रयोग करके खुद हो अपने को मुजरिम साबित कर दिया है और अब मेरे वार से बचो ।"

बात समाप्त करके विनोद ने वही गुड़िया कम्बल सहित खींच कर एस० पी० पर खींच मारी। एस० पी० ने फिर फायर किया था मगर गोली गुड़िया की खोपड़ी पर पड़ी थी— फिर वह उसी कम्बल में फँस कर रह गया था और साथ ही विनोद ने छलांग लगा दबोच लिया था और फिर उसने एस० पी० को विवश करके पहले उसके दोनों हाथ पीठ पर बांधे—फिर उसके मुँह में कपड़ा ठूंसा उसके बाद उसने चारपाई हटा कर फर्श पर एक जगह हथेली रख कर जोर से दबाया । फर्श का एक स्लेब हटा और सीढ़ियाँ नजर आने लगीं। उसने एस० पी० को उठा कर कन्धे पर लादा और सीढ़ियाँ से उतरता हुआ तहखाने में पहुँचा। एस० पी० को वहीं पटक कर ऊपर आया। हटा हुआ स्लेब उसके स्थान पर किया। चार पाई को भी उसके स्थान पर किया और फिर क्वार्टर से निकल कर कोठी की ओर बढ़ा। उधर से शापूर दौड़ा चला आ रहा था । उसके चेहरे पर दुख की गहरी छाप थी। उसने विनोद के निकट पहुँचते ही कहा।

"कर्नल साहब ! हम यहां आना नहीं चाहते थे मगर आप हमें विश्वास दिला कर यहाँ लाये थे मगर दुख है कि आप कुछ न कर सके।"

"बात क्या है शापूर ?” विनोद ने शान्त स्वर में पूछा ।

"फिरोजा मर गई।" - फिर पूछा। विनोद एक क्षण के लिये तो हतबुद्धि रह गया-।

"कब कैसे ?"

"मैं क्या बताऊँ — एस० पी० के आदेश पर हम लोग नूरा के क्वार्टर से बाहर निकल आये थे। मैंने देखा कि कार्टन और डोंगे धीरे धीरे फिरोजा से कुछ कह रहे थे। मैंने सोचा कि होगी कोई बात जब वह सब चले गये तो फिरोजा उसी मनहूस कमरे में गई ...।”

"तुमने उसे उस मनहूस कमरे में जाते देखा था ?” विनोद ने बात काट कर पूछा ।

"जी नहीं-मैं तो ड्राइगरूम में चला आया था। नौकरों का बयान है कि वह उस कमरे में दाखिल हुई थी मगर बाहर नहीं निकली। मैं जान पर खेल कर उस कमरे में दाखिल हुआ था मगर मुझे फिरोजा दिखाई नहीं दी।”

"बस इतनी सी बात - " विनोद ने मुस्कुरा कर कहा फिर उसकी पीठ थपथपाता हुआ बोला “चिन्ता न करो—सब ठीक हो जायेगा । फिरोजा मरी नहीं है और हाँ सुनो-रेक्सन स्ट्रीट की चौथी इमारत में एक देश के दूतावास के एक जिम्मेदार आफिसर मिस्टर रेमन्ड रहते हैं। उनको टेलीफोन पर यह सूचना दे दो कि फरामुज जी जिन्दा है और आज रात में उससे मुलाकात हो सकती है। यह भी बता देना कि डाक्टर हेमियर भी शिकारी के भेस में मौजूद है और नीलम हाउस में उससे भी मुलाकात हो सकती है मगर रात के बाद--- अब जाओ और मुझ पर विश्वास करते हुये बिल्कुल निश्चिन्त रहो ।”