Chirag ka Zahar - 7 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | चिराग का ज़हर - 7

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चिराग का ज़हर - 7

(7)

"देखिये ! अभी तक न तो आप फिरोजा से मिले हैं और न यहां आप ने शापूर से मुलाकात की है— मैं यह भी समझ रहा हूँ कि आप मिस नूरा को भी उपेक्षित नहीं कर सकते और खुद मुझे भी अर्जुन पूरा जाना है।"

"मैं सोच रहा हूँ कि औरतें के सर्वाधिकार तुम्हारे नाम सुरक्षित कर दू" -

" विनोद ने कहा, फिर मुस्कुराकर बोला, “मगर अर्जुन पूरा इसलिये तुम्हारे साथ चलूंगा ताकि जरा में भी देख लूँ कि वह भोला चेहरा कैसा है जिसने तुम्हें व्याकुल बना रखा है— मगर नूरा से तुम्हीं मिलना मैं नहीं।"

“मेरे और आपके विचारों में कभी भी समानता नहीं पैदा हो सकती" हमीद ने कहा।

"क्या मतलब?” विनोद ने पूछा ।

"आप इस प्रकार सोच रहे थे और मैं यह सोच रहा कि मैं अर्जुन पूरा जाऊँगा और आप नीलम हाउस जायेंगे- हमीद कहा "वैसे अर्जुन पूरा चल कर आप घाटे में नहीं रहेंगे ——उसका भोला चेहरा- मुझे पूरी उम्मीद है कि वह आपको पसन्द आ जायेगी।”

"अच्छा अब चलने की तैयारी करो- " विनोद ने उठते हुये कहा इसके लगभग पन्द्रह मिनिट बाद दोनों लिंकन पर बैठे अर्जुन परा की ओर जा रहे थे ।

"अगर वह लड़की जो तुम्हें रात मिली थी, सचमुच फिरोजा ही थी तो फिर शापूर भी वहीं मिल जायेगा - " विनोद ने कहा ।

"हो सकता है- हमीद ने कहा "मुझे तो इस बात पर आश्चर्य है कि फराज जी जैसे करोड़पती की लड़की अर्जुन पूरा में कैसे रह रहीं है।"

"दोनों भाई बहन स्वर्ग में रहना नहीं चाहते -" विनोद ने कहा "क्या आप को शापूर पर किसी प्रकार का सन्देह नहीं?”

"बिलकुल नहीं— उसकी ओर से मेरे विचार बहुत अच्छे हैं-" विनोद ने कहा। "उस आदमी का कुछ सुराग लगा?".

"उसका सुराग लगते ही सारे मामले हल हो जायेगे " विनोद ने कहा । हमीद ने फिर कुछ नहीं कहा। विनोद भी खामोश ही रहा और लिंकन फर्राटे भरती रही ।

फिर लिंकन अर्जुन पूरा की गुंजान आबादी में दाखिल हुई और विनोद ने तेरह नम्बर के सामने उसे रोकते हुये कहा।

"मैं भी तुम्हारे साथ ही चलूँगा। '

"चलिये — मगर इस शर्त पर कि आप शापुर से मुलाकात कीजियेगा और मैं फिरोजा से बातें करूंगा।"

"तुम्हारी यह शर्त मुझे वोकार है-" विनोद ने हँसते हुये कहा "अभी तो यही निश्चित नहीं है कि दोनों मिलेंगे भी या नहीं और अगर मिले तो यह भी देखना होगा कि फिरोजा से मिलने के बाद तुम्हें खुशी मी हासिल होती है या निराशा हाथ लगती है।" "यह आप किस आधार पर कह रहे हैं ?" हमीद ने पूछा । "यह प्रश्न उससे मिलने के बाद करना" विनोद ने कहा और उसे उतरने का संकेत करके खुद भी गाड़ी से उतर गया ।

अर्जुन पूरा में श्रमिक वर्ग वालों की आबादी थी। कुछ मकान मध्यम श्रेणी वालों के भी थे, मगर इसकी तो कल्पना ही नहीं की जा सकती थी कि यहाँ कोई करोड़ पति भी रहता होगा— मगर तेरह नम्बर का मकान अपने बाह्य रूपरेखा से इसका एलान अवश्य कर रहा था कि इसमें रहने वाला खुश हाल है और कदाचित हाल में ही इस मकान में आया हैं इसलिये कि दीवारों पर ताजा चूना कली थी। दरवाजे पर जो पर्दा पड़ा हुआ था वह भी नया था और घन्टी भी लगी हुई थी।

विनोद ने बटन दबाया। एक आदमी बाहर निकला। कुछ देर पलकें झपकाता रहा और जब विनोद ने शापूर के बारे में पूछा तो वह उत्तर दिये बिना तेजी से अन्दर भाग गया।

थोड़ी देर बाद अन्दर ही से आवाज आई ।

"कौन साइब आ जाइये।"

विनोद ने हमाद को संकेत किया और पर्दा हटाकर अन्दर दाखिल हो गया।

सामने ही दालान में बेंत की कुर्सियां पड़ी हुई थीं जिसमें से एक पर एक नवजवान बैठा हुआ खरगोश से खेल रहा था। उसके चेहरे पर घनी मोंछे बहुत बुरी मालूम हो रही थीं और दो तीन निशान ऐसे थे जैसे कठहरे जख्म लगे हों। यह शापूर था।

हमीद ने केवल एक ही बार उसे देखा था मगर उससे बातें नहीं हुई थीं---- लेकिन वह विनोद से परिचित मालूम होता था उसका भाव भी झल्लाहट उत्पन्न करने वाला था इसलिये कि वह विनोद को देखकर भी स्वागत के लिये नहीं उठा था बल्कि खरगोश से खेलते हुये ही कहा था।"

"आहा— कर्नल विनोद - आइये आइये माय—यह महाशय कौन है।" उसने हमीद की ओर संकेत किया था ।

हमीद खून के घूंट पी कर रह गया। दिल तो यही चाहा था कि उसे कुर्सी से उठा कर बाहर फेंक दे । उसने झल्लाहट भरे भाव में विनोद की ओर देखा था मगर विनोद के चेहरे पर मुस्कुराहट देख कर बस तिलमिला कर रह गया था ।

"यह कैप्टन हमोद हैं-" विनोद ने अत्यन्त कोमल स्वर में कहा था।

"अच्छा- क्यों कैप्टन साहब आप फौज के कैप्टन हैं या क्रिकेट के ?" हमीद की झल्लाहट आकाश पर पहुँच गई — मगर प्रथम इसके कि वह कुछ कहता विनोद बोल पड़ा।

"जब मुझे राष्ट्रपति की ओर से कर्नल का सम्मान प्रदान किया गया था तो इन्हें भी कैप्टन का सम्मान मिला था।"

“मुझे तो आप से मिल कर हार्दिक प्रसन्नता हुई, मगर कदाचित। आप मुझसे मिल कर कुछ बोर दिखाई दे रहे है—क्या मैं इसका कारण जान सकता हूँ।" शापूर ने मुस्कुराते हुये कहा, "इसलिये कि तुम्हारे अन्दर सभ्य लोगों से बात करने की शिष्टता नहीं है। " हमीद उबल पड़ा ।

"व्हाट इज सभ्य लोग ऐन्ड व्हाट इज शिष्टता- प्लीज आनरेरी कैप्टन हमीद ! यह दोनों शब्द अवास्तवक हैं।" शापूर ने अत्यन्त गम्भीरता के साथ कहा "बहुत सारे लोगों की दृष्टि में न आप सभ्य रा हैं और न आप में बात करने की शिष्टता है- -और वो बहुत सारे लोग दूसरे बहुत सारे लोगों की नजरों में न सभ्य हैं और न उन्हें बात करने की शिष्टता है - इसी प्रकार वह दूसरे बहुत सारे लोग तीसरे बहुत सारे लोगों की नजरों में न सभ्य हैं और न उन्हें बात करते । '

"बस – समाप्त करो -” विनोद ने हाथ उठा कर कहा "केप्टन  हमीद को एकाकी जीवन व्यतीत करने वालों के नैनिक शास्त्र से कोई दिलचस्पी नहीं। मैं तुमसे इस विषय पर फिर कभी तर्क करूंगा-

"फिलहाल मेरे प्रश्नों का उत्तर दो।"

"पूछिये- —मगर पहले आप लोग बैठ तो जाइये! शापर ने कहा।

विनोद ने हमीद को बैठने का संकेत किया—फिर खुद एक कुर्सी पर बैठता हुआ बोला ।

"फिरोजा कहाँ है ?"

"क्षमा कीजियेगा कर्नल साहब। यह प्रश्नो नहीं है बल्कि एक ही प्रश्न है। कृपया यह बता दीजिये कि प्रश्न एक वचन होगा या बहु वचन ?"

हमीद बैठा हुआ ताव खा रहा था मगर विनोद के अधरों पर अब भी उसी प्रकार को मुस्कान थी। उसने हसते हुये कहा ।

"बहुवचन!"

"हाँ अब ठीक है" शापूर ने कहा। "फिरोजा घर में मौजूद है।"

"उसे बुलाओ।" ‎‫

"यह प्रश्न नहीं है कि आज्ञा है-" शापूर ने कहा। "मैंने यह तो नहीं कहा था कि में आज्ञा नहीं दूँगा-" विनोद फिर हँस पड़ा ।

"फिरोजा - यहाँ आओ ! कर्नल विनोद तुम से मिलना चाहते हैं-" शापूर ने ऊँची आवाज में कहा, फिर विनोद से कहा, "हाँ—अब सभ्य दूसरा प्रश्न कीजिये ?"

"तुम रात कहाँ रहे?” विनोद ने पूछा।

"अपने घर पर - अर्थात यहीं शापूर बिल्कुल गम्भीर हो गया "मुझे दुःख है कि रात मैं कब नहीं जा सका था - वास्तव में यह सोच कर मुझे क्रोध आ गया था कि ठण्डे देश में रहने के बाद भी मैंने अपना भारती पन स्थिर रखा था अर्थात शराब नहीं पी थो मगर यहाँ के लोग जिन के लिये शराब पीना अत्यन्त हानि कारक क्लब में पानी के समान शराब पीते हैं—आप ही फैसला कीजिये यह बात क्रोध दिलाने वाली है या नहीं ?"

"यह फैसला बाद में होगा—यह बताओ कि तुम अपनी कोठी नीलम हाउस गये थे या नहीं?"

"केवल दो बार गया था मगर अब नहीं जाऊंगा।”

"नूरा तुमसे मिलने आती है ?

“जो हाँ—कभी कभी –” थापूर ने कहा मगर इस बार उसके स्वर में पूरा सम्मान भर आया था।

"अपने पिता के धन पर पूरा अधिकार मिला ?" विनोद ने पूछा ।

"अभी तक मेरे और फिरोजा के हिस्से में केवल पचपन लाख आये।"

शापूर ने कहा "शेष घन विभिन्न रूपों में जमा है और मैं समझता हूँ कि मुझे उससे हाथ धो लेना चाहिये।" "तुम्हें यह मालूम था कि तुम्हारे पिता फरामुज जी विदेशी षड्यन्त्रों का शिकार थे ?"

"जी नहीं- आपके कहने पर यह बात मुझे मालूम हुई थी- पहले से मैं नहीं जानता था ।"

'उन्होंने तुम्हारे पास कुछ कागजात भेजे थे ?"

"जी हाँ—' शापूर ने कहा "मैंने आपको यह बता दिया था और यह भी बता दिया था कि पिता जी के आदेश ही पर मैंने उन काँगजों को फिजा के पास भिजवा दिया था ।"

उसी वक्त फिरोजा वहाँ आ गई । उसका कद लम्बा था। चेहरा भी लम्बोतरा था जो देखने में बेहग़म सा लग रहा था। रङ्ग श्वेत शत्रु- जम के समान नेत्र विशाल केश काले-शरीर इकहरा और हाथ लम्बे तथा सूखे थे। अगर उसका चेहरा छिरा दिया जाता मोर केवल -सके हाथ किसी को दिखाये जाते तो वह यही कहता कि मर्द के हाथ हैं।

उसने बड़े शिष्टता से विनोद और हमीद को सलाम किया था और एक कुर्सी पर बैठ गई थी।

एक बार उसने पूरी नजर से विनोद को देखना चाहा था, मगर विनोद के चेहरे पर नजर डालते ही उसकी नजरें अपने आप झुकतो चली गई थी !

विनोद एक दम से उसकी ओर मुड़ गया और बोला ।

"मैंने न्यूआर्क में आपको तलाश करने की बहुत कोशिश की थी मगर आप नहीं मिल सकीं।"

"मुझे इस की सूचना मिल चुकी थी...।" फिरोजा ने कहा । हमीद एक क्षण के लिये चौंक पड़ा था इसलिये कि बोलने वाली तो लड़की ही थी मगर उसकी आवाज - किसी साठ वर्षीय पुरुष की आवाज के समान थी। वह कह रही थी।

"मैं नहीं समझ सकी थी कि हिन्दुस्तानी के सी० आई० डी० विभाग को मुझसे क्या दिलचस्पी हो सकती है।"

"आरके भाई मिस्टर शापूर ने आपको कुछ कागजात भिजवाये थे ?" विनोद ने पूछा ।

"जी हाँ-"

"उन कागजात में क्या था ?"

"यह मुझे नहीं मालूम" फिरोजा ने कहा “कागजात एक लिफाफे के अन्दर थे और लिफाफे पर सील लगी हुई थी। प्रकट है कि मेरे देखने का प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होता था।"

'फिर वह कागजात क्या हुये?' विनोद ने पूछा ।

"पापा के आदेशानुसार वह लिफाफा उसी प्रकार मैंने कार्टन श्रोड को दे दिया था।"

हमीद जो बड़ी देर से उलझ रहा था अचानक बोल पड़ा ।

"कार्टन श्रोड और नूरा श्रोड में क्या सम्बन्ध है !"

"वह मुझे नहीं मालूप - " फिरोजा ने कहा ।

' तुम्हारे पापा का आदेश क्या उन्हीं कागजी के साथ मिला था या अलग से ?' विनोद ने पूछा ।

"अलग से -"

"कार्टन श्रोड का पता क्या है—?"

"मैं नहीं जानती – ।”

"आपने वह लिफाफा कार्टन ही को दिया था और आपको उसका पता नहीं मालूम है।" हमीद ने चुभते हुये स्वर में कहा।

“सन्देह मुक्ता बात नहीं है-" फिरोजा ने कहा, "पापा ने जो आदेश पत्र मुझे भेजा था — उसमें लिखा था कि उनकी तहरीर लेकर मेरे पास जो आदमी आयेगा उसका नाम कार्टन श्रोड होगा—उसी कार्टन श्रोड को मैं लिफाफा दे दूँ अतः मैंने वैसा ही किया था ऐसी दशा में मुझे कर्टन श्रोड का पता कैसे मालूम हो सकता था उसका पता तो उसी रूप में मुझे मालूम हुआ होता जब पापा ने अपने आदेश पत्र मैं लिख कर मुझे यह आज्ञा दी होतो कि मैं लिफाफा उस तक पहुँदा दूँ।

"पुराने नौकरों में से कोई दुबारा आप के पास यह ध्येय लेकर आया था कि वह दुबारा आपके यहाँ नौकर रख लिया जाये ?" हमोद ने पूछा।

"न तो हम पापा के वेतन दे सकते हैं और न उन तमाम नौकरों को जानते ही हैं जे। पासा ने रखे थे...।"

"मेरे प्रश्न का यह उत्तर नहीं है-" हमीद ने टोका । "हमारे पास कोई नहीं आया था" किरोज ने कहा । "नूरा थोड को आप जानती हैं?" हमीद ने पूछा।

"अभी हाल ही में उससे मुलाकात हुई है।"

"वह आपके पास आती है या आप उसके पास जाती हैं ?" हमीद ने पूछा।

"न वह मेरे पास आती है न मैं उसके पास जाती हूँ--" फिरोजा मै कहा 'हम लोगों की मुलाकात किसी होटल में हो जाती है—विशेष रूप से आर्लेक्चन में।"

"तब तो यह मुलाकातें सन्ध्या या रात हो में होती होंगी ?"