Me and my feelings - 86 in Hindi Poems by Darshita Babubhai Shah books and stories PDF | में और मेरे अहसास - 86

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में और मेरे अहसास - 86

मैं और मेरे कृष्णा

कृष्ण की दिवानी बांसुरी आज दिवाना बना रहीं हैं l
कृष्णा की आश में वन उपवन सुरों से सजा रहीं हैं ll

कुछ ज़ख्म सयाने हो गये हैं कि दर्द भी नहीं देते l
सोए हुए बैचेन और बैखोफ अरमान फ़िर जगा रहीं हैं ll

बेपन्हा बेइंतिहा प्यार में पागल और दिवानी होकर l
प्रिये को रिझाने वो होठों से लग के दिल लगा रहीं हैं ll

अनगिनत छेद ही छेद अंदर और बाहर होते हुए l
फासला कम करने खुद को खुद के भीतर समा रहीं हैं ll

फ़िज़ाओं में मदमस्त बहलाने वाली सुरावली छेड़ कर l
सखी को मुहब्बत की राग और रागिनी सुना रहीं हैं ll
३१-८-२०२३

 

हार के बाद जीतने का मज़ा कुछ और ही होता है l
जीत उसी को हासिल होती है जो रात की नीद खोता है ll

जिंदगी तुम्हारे भीतर की भावनाओं की परीक्षा लेती है l
सुनो उसे कुछ नहीं मिलता है जो हर लम्हा सोता है ll

सब कुछ पा लेने की ज़िद में जो था वो भी गवाया l
उसे एसा ही फ़ल मिलता है जो फल ताउम्र बोता है ll

एक बाजी हारी तो टूट नहीं जाना है उठकर चलना है l
बिखर न जाए कहीं इस लिए हौसलों को संजोना है ll

दिनों या हप्तों की नहीं सालों की तपस्या से
खिलाड़ी l
सखी हार को खुशी से स्वीकार कर जीत में पिरोता है ll
१-९-२०२३

मन पक्षी उड़ान भर आज पूरा आसमान है तेरा  l
खुद को दिनभर हवाओं के साथ रखना ईमान है तेरा ll

ज़मीं हो या आसमाँ कहीं भी जगह नहीं छोड़ी है l
आशियाना गर मिल जाए तो समज ईनाम है तेरा ll

अकेले तुम परेशान नहीं हो हम भी घायल है भीड़ से l
दो चार पत्ते और सूखी पेड़ की डाली सामान है तेरा ll

मौसम कोई भी हो बस अपने खुद के सहारे से सखी l
हौसलों के साथ उड़ते रहने का सबक प्रदान है तेरा ll

सुन रहनुमाओ की अदाओं पर घायल है दुनिया l
पंखों की गति से उत्पन्न होती आवाज़ गान है तेरा ll
२-९-२०२३


दिन भी आएँगे बहारों के, यूँ ना परेशान हो l
रख अपनेआप पर भरोसा चल पशेमान हो ll

ख्वाइशों की अंधी दौड़ से बाहिर आ जाओ l
बाकी जिंदगी का सफ़र बहुत आसान हो ll

सपनों में बड़े ही रंगीलें और सुहाने दिनों का l
इंतिखाब करते हैं अब आराम ही आराम हो ll

देख उम्रदराज़ ख़त्म होने से पहले ही चाहते है l
सखी तमन्ना से देखे हुए पूरे सारे अरमान हो ll

प्यार और मुहब्बत बाँट दो दुनिया वालो को l
लूटो मजा खुशी का भले चार दिन की महमान हो ll

दोस्तों के साथ ताल्लुक ज्यादा बढ़ा दीजिये l
लबों पे कभी ना खत्म होने वाली मुस्कान हो l
३-९-२०२३

बचपन की मुहब्बत दूर तक साथ देती है l
सालों पुरानी शराब जीतना नशा देती है ll

रूह से रूह की पहचान होती है तब भी l
चेहरा देखकर बात दिल की जान लेती है ll

रफ्ता रफ्ता संजोये है नाजुक लम्हो को l
रठने मनाने सिलसिले में बारहा समेटी है ll

बाँकपन, बेफिफरी, मासूमियत में प्यार से l
साथ मिलके आँख मुचोली खूब खेली है ll

छुप के अह्सास में आज भी ज़िन्दा है वो l
एकदूसरे की अनगिनत नादानीयां झेली है ll
४-९-२०२३

एकाकी जीवन से यूँ ना परेशान हो l
नहीं कोई भी साथ तो ना हेरान हो ll

जो वक़्त सामने आया खुशी से जी l
चाहें बिन बुलाया हुआ मेहमान हो ll

एक उम्र लग जाती है जान से जाने में l
कोई पाती मिले तो जीना आसान हो ll

हौसलों से किरदार को मजबूत बना l
अपनी धुन में जिये जा ग़र इमान हो ll

जो महसूस कर सकते हो लिख डालो l
कहना और करना दोनों ही समान हो ll
५-९-२०२३


नशे की लत छोड़ने से कहा छूटती है l
छुटे जब के सांसो की डोर टूटती है ll

कोई प्यारा दूर चला जाता है तो l
लड़खड़ाते पैरों का मज़ा लूटती है ll

बोतल में नशा नहीं होता है मानो l
बेहोश होने के बाद ही फूटती है ll

धो रहा है आदमी अपने आप को l
वक़्त से पहले सांसे कहां रुकती है ll

लत छोड़नी इंसान के बस में नहीं l
मेरी क्या खता है बारहा पूछती है ll
६-९-२०२३


कुछ इस तरह एकाकी जीवन हो गया है l
नादानी में बैठे बिठाए रोग पाल रखा है ll

जरा सा जिंदगी में ठहरकर चले जाना l
बस खामोशी से जुदाई का दर्द सहा है ll

सालों गूजर जाते हैं पर लम्हा नहीं कटता l
जहां छोड़ के गये, वक़्त वहीं पर रुका है ll

भरोसे का ज़हर पीकर भी ज़िन्दा है आज भी l
आँखों से अश्क नहीं खून ए जिगर बहा है ll

तेरा मिलना उम्रभर के इंतजार का मुआवजा l
जहा तेरा जिक्र हुआ है, चैन ओ सुकून वहा है ll
७-९-२०२३

युवाओ में गिरते संस्कार, थाम लो उनकी डोर l
अंधाधुंध दोड़ से चारों और मचा हुआ है शोर ll

ख़त्म हो जायेगें वो एकदूसरे से जलने जलाने में l
आने वाले पल को बदलने के लिए लगाओ जोर ll

दुनिया तो जादू का खिलौना है पल में टूट जाता है l
एक ही धरेड़ में जीवन जीकर हो गये है बोर ll
८-९-२०२३

नशे की लत सिर चढ़ कर बोल रहीं हैं l
सालों से छुपाये हुए राज़ खोल रहीं हैं ll

ख्वाइशों का भी अजीब तमाशा है कि l
रूहों की गहराईयों को मोल रहीं हैं ll

इश्क में आगे बढ़ क्या कराता कोई l
इंतिहा से मुहब्बत को तोल रहीं हैं ll

आज पूछ रहे हैं बेचैनियों का सबब वो l
तन्हाइयों को बेहोशी में घोल रहीं हैं ll

कैसे और किसे बताये कहाँ से मिले हैं?
ज़ख्मो को होशों हवास में रोल रहीं हैं ll
८-९-२०२३

टूटते रिश्ते की डोर थाम लो l
चाहे जितने भी तुम दाम लो ll

बड़े हो गये हों समझकर ही l
बारहा भाईचारे का नाम लो ll

खामोशी से बेहतर है बोलना l
दिमाग नहीं दिल से काम लो ll

सदाकत की राह पर चलते रहो l
सखी रास्ता भले ही आम लो ll

अपनों की महफिल में बैठकर l
होठों पर शब्दों के जाम लो ll
९-९-२०२३

रात अकेली हैं l
याद अकेली हैं ll

अपने आप में l
बात अकेली हैं ll

ख़ुद के भरोसे l
जात अकेली हैं ll

अपनों ने दी हुईं l
मात अकेली हैं ll

किताब में लिखीं l
तान अकेली हैं ll

मान मेरा कहना l
जान अकेली हैं ll

शिकार के बिना l
जाल अकेली हैं ll

मूर्खो के बीच में l
शान अकेली हैं ll

राही रास्ता भटका l
राह अकेली हैं ll

जीत में शांति नहीं l
हार अकेली हैं ll

जिंदगी को ढोती l
लाश अकेली हैं ll

शतरंज के खेली l
चाल अकेली हैं ll
१०-९-२०२३

यादों के खंडहर में जी रहे हैं l
रोज़ अश्कों का जाम पी रहे हैं ll

ख्वाईश तो यूँही बढ़ती रहती है l
ख्वाबों से दामन को सी रहे हैं ll

मुस्कराने का ऋण उतरना होगा l
हँसी के तलबगार हम भी रहे हैं ll

पल पल तड़पे रहे जिस पल को l
बस आज तलक तड़पते ही रहे हैं ll

सब का साथ निभाने वाला तन्हा है l
जहां पे छोड़ा था खड़े वहीं रहे हैं ll
१०-९-२०२३


सलाह से पहले आचरण करना सीखो l
कम लब्जों में बात ब्यान करना सीखो ll

लिबास तो बाहरी दिखावा है अस्ल तो l
जिस्म में महज रूह को भरना सीखो ll

दिनभर जो ख्वाइशे अरमान पूरे न हो तो l
हसीं ख्वाब देखने नीद में सरना सीखो ll

जरा देखे तो सही कीतनी गहराई है कि l
झील से नीली आंखों में तरना सीखो ll

ख़ुद से मशवरा किया करो और l
अपने हक्क के लिए लडना सीखो ll
१२-९-२०२३


मुहब्बत के बाज़ार में महगाई बढ़ रही है l
अब मुलाकात भी किश्तों में होने लगीं है ll

जिंदगी के पन्नों में सुहाने पल रह गये हैं l
मुस्कुराहट और नमी रिश्तों खोने लगी है ll

तुझ से करीब रहने की ज़िद में आज सखी l
अकेलापन व् दूरियों के बीज बोने लगी है ll

तू जिसे खोना नहीं चाहता,वो तेरा है नहीं l
वो साथ रहने की ख्वाइशे सोने लगी है ll

ख़ुद पर ध्यान देने के दिन आ गये हैं l
मुद्दा ये है कि उम्मीद भी रोने लगी है ll
१३-९-२०२३

निगाहों से राजनीति करना छोड़ दें ए दिल l
ख्वाइशो से मनमानी करना छोड़ दें ए दिल ll

कौन कब और कैसे धोका दे जाए पता नहीं l
दिलों में नफ़रतों को भरना छोड़ दें ए दिल ll

रकीबों में इतनी हिम्मत नहीं के लूट भी सके l
कोई कुछ न छिनेगा डरना छोड़ दें ए दिल ll

छोटे बड़े हादसे होते रहते हैं यूँही जिंदगी में l
सुन मौत से पहले ही मरना छोड़ दें ए दिल ll

खुद के वास्ते जंग जीतने की कोशिश कर l
अब दूसरों के लिए लड़ना छोड़ दें ए दिल ll
१४-९-२०२३

प्रेम क़िताब के पन्ने में छुपकर रह गया है l
खुली आँखों में ख्वाब बनकर रह गया है ll

बदलने पे नहीं, ख़ुद के भरोसे पे शर्मिंदा है l
चाहत की चाहत में बूझकर रह गया है ll

उम्रभर दिल खोलकर जीने की चाहत में l
बहुत नजदीकीयों से टूटकर रह गया है ll

कुछ कह दिया और कुछ मुँह पे सुनाया l
सही गलत के खेल में मिटकर रह गया है ll

हक़ीक़त में न था, वो ख्यालों में ही रहा l
जुस्तजू ए इश्क में हंसकर रह गया है ll
१५-९-२०२३