Biwi se Panga, Pad gaya Mahenga - 1 in Hindi Comedy stories by Sanju Sharma books and stories PDF | बीवी से पंगा, पड़ गया महँगा - भाग 1

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

Categories
Share

बीवी से पंगा, पड़ गया महँगा - भाग 1



मेरी मति मारी गयी थी कि पिछले साल मई की एक दुपहरिया में "मर्द उद्धार शिविर" में एक दोस्त के साथ पहुँचा

शायद मेरे दोस्त ने मेरी बीवी के सामने मेरी बोलती बन्द जैसी हालत देख ली थी और मैं मिमियाने वाली स्थिति से बाहर निकल सकू इस लिए मुझे शिविर ले गया

शिविर ,शिविर न हुआ, कोरोना का कन्टेनमेंट जोन हो गया, एक बार अंदर घुश गया तोह बाहर निकल ही नही पाया, उनकी बातें सुन्न तीन बार भागने की कोशिश भी की पर सारे दरवाजे बंद आखिरकार छे घंटे बाद एक अलग इंसान बाहर निकल रहा था जो अपनी बीवी पर कैसे काबू पाया जाए, इसका मंत्र समझ चुका था

घर पहुँचा तोह बीवी गरम और उसके चिल्लाने से पहले "तुमसे पूछ कर कहीं आऊंगा जाऊंगा" कहकर बोलती बंद कर दी

मेरे अंदर के मर्द ने मुझे आशिर्वाद दिया और कहा" विजय भवः"

यह सिलसिला और मेरे कारनामे तीन दिन तक चालू रहे और मेरी बीवी ने मेरे मुंह लगना छोड़ दिया, सोची होगी कि कहीं गुस्से में आकर पति डंडे से मारना न सुरु कर दे।

मेरे रॉब का इतना प्रभाव पड़ा कि जो बीवी कभी टिफ़िन नही देती थी वो चौथे दिन से टिफ़िन देने लग गयी

ऑफिस पहुँचा तोह सीना थोक के लंच टाइम में अपनी बीवी के द्वारा दी गयी टिफ़िन कि नुमाइश कर दी और मैंने अपने एक करीबी सहकर्मी(वही जो मुझे शिविर ले गया था) को टिफ़िन शेयर करने का निमंत्रण दे दिया

उसे मेरी बीवी के हाथ का खाना इतना पसंद आया कि उसने अपनी टिफ़िन मुझे दे दी और मेरी टिफ़िन पूरी खाली कर दी

मेरा कद सिर्फ घर में ही नही ऑफिस में भी बढ़ चुका था, सेल्फ कॉन्फिडेंस जो बढ़ा हुआ था।

तीन दिन तक मेरे दोस्त ने मेरी बीवी के हाथ की बनाई टिफ़िन खाते रहा और उसका टिफ़िन मैं, बॉस मुझसे खुश, सारे सह कर्मी अब मेरी इज़्ज़त करने लगे क्योंकि अब मैं उनसे सवाल करने लगा था और ना बोलना सिख गया था

चौथे दिन मैं अपना टिफ़िन खोले बैठा रहा पर मेरा दोस्त उसदीन ऑफिस नही आया तोह मन में आया कि फ़ोन करके हाल चाल पूछा जाए
रोटी का एक निवाला तोड़ हाथो में रख मैंने नंबर लगाया तोह भाभीजी से बात हुई और सुनते ही निवाला वापस टिफ़िन में रख दिया

मेरा दोस्त हॉस्पिटल में भर्ती था, भाभीजी ने बताया कि डॉक्टर ने दोस्त को तीखा खाने से मना किया था , बवासीर हो गया है फिरभी उस इंसान का नाम नही बता रहा जो तीन चार दिन से इन्हें तीखा खाना खिला रहा था

मैंने फ़ोन रखा और सोच में पड़ गया की मेरा दोस्त तोह तीन चार दिन से मेरा ही टिफ़िन खा रहा है तोह क्या मेरा ही टिफ़िन तीखा है

मुझमें हिम्मत नही थी कि मेरी बीवी की बनाई टिफ़िन आज मैं टेस्ट करूँ( इसके पहले मेरे दोस्त ने मेरी बीवी के बने हाथ का खाना कभी खाने ही नही दिया) सो मैंने अपने पिउन को मेरे टिफ़िन से एक रोटी खाने की दरख्वास्त की

रोटी छोड़ो वो एक निवाले में ही शु शु !!! करने लग गया और उसके बाद चार से पांच गिलास पानी गटक गया, उसकी हालत अचानक से सुस्त हो गयी

मैं समझ गया कि मेरी बीवी इतने दिन से चुप क्यों थी और मैं पगला समझ रहा था कि मैं उसे सेह और मात दे दी है

हर शाम जब मैं घर पहुंच कर बीवी को टिफ़िन सौपता तोह कैसे वो मेरा चेहरा घूरते रहती, दरअसल वो यह देखना चाहती थी कि तीखे खाने का मेरे सरीर पर क्या असर हो रहा है क्योंकि तीखे से मुझे भी एलर्जी है
और जब मेरे चेहरे को देख उसे ऐसा लगता कि कोई असर नही हो रहा तोह जरूर दूसरे और तीसरे दिन मिर्ची और मसाले का डोज़ बढ़ाया होगा और चौथे दिन तोह पिउन की हालत तोह मैंने देखीं ही

वो बवासीर मेरे लिए था, बलि चढ़ गया मेरा दोस्त

मैंने तय कर लिया था कि कुछ भी हो जाए बीवी के ईगो को हर्ट नही करने का, भाड़ में गया "मर्द उद्धार के प्रिंसिपल्स" अर्रे सुकून से रहा तभी तोह ज़िंदा रहूंगा

घर पहुंचा, फिरसे बीवी का मूंह देखो अभियान चालू था, एक शब्द नही बोली इन् चार दीन्ह्यो में, मुझे सबक सिखाने का भूत जो सवार था उसके सिर पर

मैंने कहा" कल से ऑफिस में कैंटीन सर्विस सुरु कर रहे है सो टिफ़िन मत देना" कुछ नही बोली, एहि मझसे गलती हो गयी, कैंटीन के खाने वाली बात नही बतानी चाहिए थी।

दूसरे दिन की सुबह ब्रेड जाम और जूस टेबल पर रखा हुआ था, मैंने न खाना ही ठीक समझा" मुझे लेट हो रहा है, मैं ब्रेकफास्ट बाहर कर लूंगा " कहकर बाहर निकलने से पहले उसकी टेबल की तरफ रखी हुई पानी की ग्लास से पानी पी के निकला, वो मुझे देखे जा रही थी
पर यहीँ पर मार खा गया, मेरा ब्रेकफास्ट और जूस न लेना सही था पर ग्लास का पानी .... नही पीना चाहिए था,

मेरे पेट में गड़बड़ सुरु हुई और स्टेशन के रिक्शा स्टैंड के पास सुलभ शौचालय में हल्का हुआ, जब मुझे अच्छा लगने लगा तोह ट्रैन पकड़ी तोह तीसरे स्टेशन पर उतरना पड़ा और फिरसे शौचालय का मूंह देखना पड़ा और इस तरह घर से लेकर आफिस के बीच सारे म्युनिसिपल के शौचालय देख आया

पूरे दिन आफिस के बाथरूम को गंदा करने के बाद और सारी दवाईया फैल होने के बाद, घर पहुंचा तोह बीवी ने फिरसे मेरे चेहरे की पड़ताल की और आखिरकार उसने अपने मुंह से बोली" हॉस्पिटल में चले, आपकी तबियत खराब लग रही है"