Shakral ki Kahaani - 1 in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | शकराल की कहानी - 1

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

Categories
Share

शकराल की कहानी - 1

(1)

लाल और सफेद गुलाबों का जंगल ढोल और तुरहियों की आवाजों से गुज रहा था।

गुलतरंग के मेले की अन्तिम रात थी। तीर्थस्थान के एक विशिष्ठ चबूतरे को फूलों में बसे हुये जल से धोया गया था और चबूतरे को धोने और स्वच्छ कपड़ों से पोंछने का काम शकराल की सारी बस्तियों से चुनी हुई कुमारी लड़कियों ने किया था । यही यहां की परम्परा थी ।

स्नान करने वाली अर्थात चबूतरे को धोने वाली रात में सरदारों के खेमों में ने तो तीमाल पी जाती थी और न गाना बजाना होता था । केवल तुरहियों पर आस्मान वाले की बन्दना के गीत गाये जाते थे और ढोल बजाये जाते थे । खेमों से सुगन्धित धुएं निकल कर गुलाबों की महक में मिलते जाते थे ।

चबूतरे के सूख जाने पर तीर्थ स्थानं का बड़ा उपासक चबूतरे पर आकर खड़ा हो जाता था। फिर वह हर बस्ती के सरदार को तलब करके उससे वह प्रण दुहराने को कहता जो उसने अपने सरदार बनने से पहले किया था।

इस समय भी यही हो रहा था। बड़ा उपासक चबूतरे पर खड़ा था । बस्ती के सरदार बारी बारी चबूतरे पर आते थे और अपना प्रण दुहराकर चबूतरे से नीचे उतर आते थे । उतरने से पहले बड़ा उपासक उनके सिरों पर हाथ रख कर आशीर्वाद देता था ।

जब सरदारों के आने और जाने का क्रम समाप्त हुआ तो बड़े उपासक ने आश्चर्य से चारों ओर देखा फिर गरजदार आवाज में बोला ।

"रजबानी सरदार लाहुल कहां है?"

कोई कुछ नहीं बोला । गहरा सन्नाटा छा गया था ।

कुछ ही क्षणों बाद बड़े उपासक की गर्जना फिर सुनाई दी । इस बार एक औरत चबूतरे की ओर बढ़ी। उसके शरीर पर बहुमूल्य वस्त्र था। वह चबूतरे के निकट आकर रुकी और कम्पित स्वर में बोली ।

"मान्यवर उपासक ! क्या मैं सरदार लाहुल का प्रतिनिधित्व कर सकती हूँ ?"

"तुम कौन हो?" बड़े उपासक ने विस्मय के साथ कहा ।

"मैं उनकी बीवी हूँ।" औरत ने कहा ।

"क्या तुम नहीं जानतीं कि यहां न कोई औरत सरदार बन सकती है और न किसी सरदार का प्रतिनिधित्व कर सकती है।"

औरत कुछ नहीं बोली -बड़े उपासक ने फिर प्रश्न किया ।

"क्या सरदार लाहुल बीमार हैं-?"

"मैं यकीन के साथ कुछ नहीं कह सकती।" औरत ने कहा ।

अचानक बड़े उपासक की आवाज तेज हो गई। उसने कहा ।

"अगर वह बीमार नहीं हैं तो फिर उन्होंने यहां का नियम भंग हैं किया है-"

"मैं एकान्त में कुछ निवेदन करना चाहती हूँ" औरत ने कहा ।

बड़े उपासक ने हाथ उठा कर घोषणा की कि रस्म समाप्त हो गई । उसके बाद वह चबूतरे पर से नीचे उतरा-औरत को अपने पीछे आने का संकेत किया और अपने मठ की और बढ़ गया। मठ के अन्दर पहुँच कर उसने कोमल स्वर में औरत से कहा ।

"यहां आस्मान वाले के अलावा और कोई तेरी आवाज नहीं सुन सकेगा ।" औरत के होंठ कांप रहे थे और आंखों में आंसू भर आये थे ।

"क्या सरदार लाहुल पर कोई मुसीबत आ पड़ी है?" बड़े उपासक ने पूछा !

"मैं कुछ नहीं कह सकती उपासक जो" औरत ने कहा ।

"क्यों ?" बड़े उपासक ने उसे घूरते हुये पूछा ।

"जब से वह पीले रेगिस्तान के सफर से वापस आये है तब से आजतक मैंने उनकी शक्ल नहीं देखी फिर मैं क्या बता सकती हूँ-।"

"तो क्या वह रजवान की बस्ती में नहीं हैं—?"

"हैं और अपने घर ही में हैं―" औरत ने कहा "मगर मैं उन्हें देख नहीं सकती - बस उनको आवाजें ही सुन सकती है-"

"यह कैसे हो सकता है कि जब वह घर ही में हैं तो तुम उनकी शक्ल न देख सको ।"

"मैं आपसे झूठ बोलने की हिम्मत नहीं कर सकती-" औरत ने कहा "असल बात यह है कि वह सफर से वापस आने पर अपनी कोठरी में बन्द हो गये हैं और अन्दर से कहते हैं कि अगर किसी ने मुझे देखने की कोशिश की तो गोली मार दूंगा ।"

बड़ा उपासक कुछ देर तक न जाने क्या सोचता रहा फिर बोला । "क्या उन्होंने अकेले सफर किया था?"

"नहीं— उनके साथ दस आदमी और थे" औरत ने कहा "और उन दसों का भी यही हाल है—अपने अपने घरों की कोठरियों में बन्द होकर रह गये हैं। किसी को अपनी शकलें नहीं दिखाते और वह सब भी यही धमकी देते हैं कि अगर उन्हें किसी ने देखने की कोशिश की तो वह देखने वाले को गोली मार देंगे ।"

"क्या तुम्हें यकीन है कि जो आवाज तुम सुनती हो वह तुम्हारे शौहर ही की आवाज है?"

"हां उनके अलावा किसी और की आवाज हो ही नहीं सकती-" औरत ने कहा ।

"और वह दस आदमी-?"

"उनके घर वाले भी उनकी आवाजों के आधार पर उन्हें अजनवी नहीं मान सकते । हम सब बहुत परेशान हैं। हमारे लिये कुछ कीजिये ।

“ग्यारह आदमी ।" बड़ा उपासक आँखें बन्द करके बड़बड़ाया । "जी हां—ग्यारह आदमी — जो कोठरियों में बन्द हो गये हैं और  किसी को अपनी शक्ल नहीं दिखाते ! वह इस तरह वापस आये थे कि उन्हें वस्ती का कोई भी आदमी नहीं देख सका था।"

"यह कैसे हो सकता है?" बड़े उपासक के मुंह से निकला ।

" यकीन कीजिये- हम एक रात अकेले सोये और सवेरे हमें मालूम हुआ कि हमारे मर्द वापस आ गये हैं मगर हम उन्हें देख न सके क्योंकि वह अपनी कोठरियों में बन्द हो चुके थे । "

"तो फिर अब तुम क्या चाहती हो ?"

"हम फिलहाल यही जानना चाहते हैं कि आखिर वह हमें अपनी शक्ल क्यों नहीं दिखा रहे हैं ?"

"तुम खुद मेरा सन्देश लेकर जाओगी या मैं अपना कोई आदमी भेजू ?"

"हमारी नहीं सुनी जायेगी -" औरत ने कहा |

"अच्छा तो फिर कल सवेरे मेरा कोई आदमी रजवान जायेगा- वहां की हालत देखेगा और सरदार लाहुल तक मेरा  सन्देश पहुँचायेगा - "

"शुक्रिया महान उपासक" औरत ने झुक कर कहा और वापसी के लिये मुड़ गई।

वह इससे अनभिज्ञ थी कि मठ से निकलते ही एक आदमी ने उसका पिछा करना आरम्भ कर दिया है।

लगभग आधा घन्टा बाद बड़े उपासक ने अपने शयन कक्ष की ओर खाने का इरादा किया ही था कि एक सेवक ने उपस्थित होकर किसी के गमन की सूचना दी।

"अच्छा आने दो-" बड़े उपासक ने कठोर स्वर में कहा- मंगर फिर आने वाले की शकल देखते ही उनके चेहरे की कठोरता विलीन हो गई। उसने कोमल स्वर में कहा ।

"आओ-आओ सरदार बहादुर-"

आने वाला सम्मान में कुछ झुका था फिर सीधा खड़ा होता बो था।

"महान उपासक ! वह सरदार लाहुन की बीबी नहीं थी । "

"यह क्या कह रहे हो सरदार बहादुर" बड़े उपासक ने विस्वय के साथ कहा ।

"आप जानते हैं कि बहादुर झूठ नहीं बोलता-" सरदार बहादुर ने कहा- "मैं लाहुल की बीवी को देख चुका हूँ--हजारों में पहचान सकता है-वह लाहुल की बीवी नहीं थी और फिर वह खेमों की ओर जाने के बजाय गुफाओं की ओर गई थी ।"

"क्या पूरे शकराज का कोई भी रहने वाला इस तीर्थ स्थान पर झूठ बोलने की हिम्मत कर सकता है?" बड़े उपासक ने तीव्र स्वर में कहा

"अगर वह शकराल का रहने वाला है तो नहीं कर सकता ।"

"सरदार बहादुर ! तुम उसी शकराल के सब से बड़े सरदार हो जिसकी एक बस्ती रजवान भी है ।"

"मेरा दावा है कि वह औरत रजवानी नहीं थी- " बहादुर ने कहा।

"अगर नहीं थी तो फिर इस हरकत का मतलब "

"आसमान वाला ही जाने" बहादुर ने कहा

"अच्छा तो सरदार बहादुर यह काम तुम्हें ही सौपा जाता है।

"मैं समझा नहीं महान उपासक?"

"यह एक कहानी लेकर आई थी" उपासक ने कहा और उस औरत की कहानी दुहराने लगा ।

बहादुर बड़े गौर से सुन रहा था मगर उसके चेहरे पर किसी प्रकार के लक्षण नहीं थे। जब उपासक मौन हुआ तो बहादुर ने कहा ।

"शकराल के खिलाफ फिर कोई चाल चली जा रही है—।"

"अगर आसमान वाले ने तुम्हें पूरे शकराल का रखवाला न बनाया होता तो तुम इस वक्त यहां मौजूद होते । तुम्हारे अलावा और किसी ने यह दावा नहीं किया फिर वह लाहुल सरदार की बीबी नहीं है-।"

"मैंने उसका पीछा किया था-" बहादुर ने कहा । बस--तो फिर तुम ही इस मामले को देखो-

"जो हुक्म — " बहादुर झुकता हुआ बोला ।

-:*:-

जीप अस्पताल मार्ग पर जा रही थीं इसलिये गति रेंगने की सीमा तक पहुँच गई थी। दूर दूर तक हरियाली का निशान नहीं था। नंगी और पूरी चट्टानें देखते देखते नेत्रों में चुभन होने लगी थी ।

खानम और प्रोफेसर दारा ऊँध रहे थे। राजेश ड्राइव कर रहा था और खान शहबाज चिन्ताजनक नजरों से इधर उधर देखता जा रहा या फिर अचानक उसने कहा ।

"या खुदा - अब क्या होगा ?"

"क्यों ! क्या हुआ ?" राजेश ने पूछा।

"वह दर्रा ही बन्द कर दिया गया है जिससे गुजर कर हम उस तिकोन तक पहुँचते ।

राजेश ने लम्बी सांस ली और इस प्रकार मुंह चलाने लगा जैसे -इसी क्रिया द्वारा शकराल तक पहुँच जायेगा ।

"अब तक तो बचे रहे मगर अब शायद मारे ही जायेंगे- शहवाज ने कहा ।

" मार डाले जाते तो अच्छा ही होता -" राजेश ने कहा ।

"यह तुम क्या कह रहे हो" शहबाज ने कहा |-

"ठीक ही कह रहा हूँ तुम लोगों के चक्कर में पड़ कर मारा मारा फिर रहा हूँ वर्ना न जाने कब अपने देश पहुँच गया होता-" राजेश ने कहा "खेर ! वह दर्रा तो दिखाओ जिसे बन्द कर दिया गया

"गाड़ी रोक दो -" शहबाज ने कहा ।

राजेश ने जीप रोक कर इन्जिन बन्द किया और शहबाज के साथ ही नीचे उतरा। जीप रुकते ही खान और प्रोफेसर दारा ने भी आंखें खोल दी थीं और चारों ओर देखने लगे थे ।

"सो जाओ..सो जाओ" राजेश ने दारा का कन्धा थपथपा कर कहा ।

"हम कहां हैं ?" दारा ने भराई हुई आवाज पूछा।

"बस जिन्दा हैं यही काफी है-" राजेश ने कहा और शहवाज के साथ आगे बढ़ गया ।

संकुचित सा दर्रा कुछ अधिक दूर नहीं था । उसे बड़े बड़े पत्थरों से बन्द कर दिया गया था। उसमें इतनी विशालता कभी न रही होगी कि एक जीप गुजर सकती

"अगर किसी प्रकार इसे ऊपर से देखा जा सके तो..." राजेश बड़-बड़ा कर रह गया।

"तुम देख रहे हो कि ऊपर पहुँचना कितना मुश्किल है-।"

"देख रहा हूँ मगर कोशिश तो करनी ही चाहिये ---और अब वापसी भी न हो सकेगी।"

"क्यों ! वापसी क्यों न हो सकेगी?" शहबाज ने पूछा।

“गाड़ी की टंकी में वापसी के लिये पेट्रोल काफी न होगा-' खानम और दारा भी गाड़ी से उतर कर उन्हीं के पास आ खड़े हुये थे ।

“अब क्या होगा?" खानम ने भयपूर्ण स्वर में पूछा ।

"मुझे वो नहीं मालूम कि अब क्या होगा--" राजेश ने बुरा जा मुह बना कर कहा और आगे बढ़ गया । "तुम्हारा यह चेला मेरो समझ में नहीं आ रहा-" खानम ने दरा से कहा ।

"क्या तुम अब भी इसे मेरा चेला ही कहती रहोगी" "क्यों?"

"मैं खुद हजारों सालों तक उसकी शिष्यता कर सकता हूँ ।"

"तो क्या यह गलत है कि वह तुम्हारा शिष्य है?"

"हां बिल्कुल गलत है-वह मेरा शिष्य नहीं है-"

"फिर वह कौन है?” खानम ने पूछा ।

"इस चक्कर में न पड़ो-" दारा ने कहा फिर चौंक कर बोला, “वह देखो' वह ऊपर पहुँचने की कोशिश कर रहा है-"

"सवाल तो यह है कि अगर वह ऊपर पहुँच भी गया तरह पहुँचेगे—कम से कम अपने बारे में तो कह सकती हूँ कि यह कान मेरे बस से बाहर होगा- "

"मैं खुद भी ऊपर नहीं पहुँच सकता-' दारा ने कहा । ‘“ओह.....देखो देखो....उत्तका वायां पैर फिसल रहा है अरे-" खानम उछल पड़ी ।

राजेश के दोनों पैर फिसल गये थे और वह चट्टान का नोकीला भाग थामें झूल रहा था ।

"अब बताओ--" उन्होंने राजेश को कहते हुये सुना "मुर्दा छिपकली की तरह टपक पडूं ?"

“अरे । यह बया कर रहे हो—'" शहवाज चीखा "हड्डियां चूर हो जायेंगी ।" मगर राजेश के दोनों पैर किसी बिच्छू की दुम के समान ऊपर जा रहे थे फिर वह उसके सिर पर से होते हुये ऊपर उठते गये और चट्टान के ऊपरी भाग पर जा टिके।

"अजीब आदमी है यह" खानम भयभीत होती हुई बड़बड़ाई।

मगर दूसरे ही क्षण हंस पड़ी। अब यह दूसरी बात थी कि उनकी हंसी में रो देने वाला भाव सम्मिलित था । राजेश चट्टान के उपर खड़ा सर्कस के किसी अभिनेता के से स्टाइल में झुक झुक कर दर्शको  की ओर से की गई प्रशंसा का शुक्रिया अदा कर रहा था।