Insaan - 2 in English Short Stories by Rahul books and stories PDF | इंसान... - 2

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इंसान... - 2

..........गंगादास का घर जहा बाजार भरता था उसके लगभग एक किमी की दूरी पर था।इसीलिए उसे कोई वाहन लाने की आवश्यकता नहीं थी।आते समय ही अपने साथ हरिया को ले आया था।आज से कम से कम १० पूर्व हरिया काम मांगने आया था उनके पास।तबसे आज तक वही काम करता है।उसपर गंगादास को बहुत विश्वास है।और हो भी क्यों न..उसे कभी काम करने के कहा जाए तो कभी मना नहीं करता।न उसके आने का कोई समय है न जाने का...अगर उसे शाम में घर जाते हुए कहा जाए की .. हरिया कल सुबह सुबह हमे दूसरे काम से पहले यह काम खत्म करना है ..तो हरिया सुबह गंगादास को जगाने आ जाता था।लेकिन उसकी एक ही बुरी आदत थी।वह शराब पीता था।वह बात गंगादास को पसंद नही थी।उनका कहना था कि,तुम दिन भर काम करते हो और शराब में पैसे और अपना शरीर क्यों बर्बाद करते हो..?
पैसे तो तुम कमा लोगे पर शरीर का क्या..?यह दिन ब दिन कमजोर हो जायेगा।
लेकिन हरिया उनकी बात हंसकर टाल देता था ।
हरिया ने बैल की रस्सी को झटका देते जोर से आवाज लगाई..चलो रे..
आवाज से ज्यादा बैल उसके झटके से एकदम से चौकने होकर चलने लगे।
बैलों की आकृति आंखो से ओझल होते देख ,रामू के आंखो में आंसू आने लगे।उसने अपना गमछा उठाया और हल्के से मुंह पर लगाकर आंखो को बहने से रोक लिया।वो अपने मन को बार बार यही समझा रहा था की,मैने बहुत कोशिश की,तुम्हे न जाने देने की, न बेचने की।
लेकिन मैं रकम जुटा नही पाया।मन ही मन में बैलों के लिया कृतज्ञता का भाव लेकर वह घर के तरफ जाने वाली सड़क के ओर निकला।
उसके गांव तक जाने वाली यह एक आखिरी रिक्शा थी। आधी भर चुकी थी ।उसका चालक और लोग आने का इंतजार कर रहा था।
रामू पूछा कितनी देर लगेगी.?
बस ,बाबूजी एक दो सवारी और मिले तो निकल जायेंगे..कहकर वो और लोग आने का इंतजार करने लगा।रामू ने पास ही पहले से बैठे व्यक्ति को अंदर सरकने को कहकर बैठ गया।
सुबह इसके मन बैल बिक जाने की चिंता थी ।लेकिन ,अब उनकी यादों ने उसे वह दिन फिर से याद दिलाने शुरू कर दिए जब लोगो ने उसे कैसा बर्ताव किया था।वह वह बार अपनी बदनसीबी को कोस रहा था।और अच्छी शिक्षा न हासिल करने के लिए भी।
खेती एक ऐसा क्षेत्र है की जिसमे हम पहले से कुछ भी तय नहीं कर सकते।यह पूरी तरह से दूसरो की मेहरबानियो के नतीजे पर आधारित रहता है।कभी मौसम,कभी कृषि क्षेत्र की निविष्टाए तो कभी बाजार में मिल रहे दाम.मजदूरी।सब तरह से अनाकलनीय सा प्रतीत होता यह व्याप्त है।जिसमे हम जितना मूल्य का बीज खाद डालते है ,कभी कभी उतना भी नही निकलता.
फिर भी आज से कल अच्छा होगा इसी उम्मीद पे किसान काम करते रहते है।
रामू अब भी अपने ही ख्यालों में खोया था ।वह यह बात अच्छे से जानता था की सरिता घर पर आ चुकी होगी।और
उसे इस बात का जरूर पता चल गया होगा।और दो तीन सवारी पाकर रिक्शावाला भी खुश हो गया।वैसे वो जितने बैठे थे उतने में ही चला जाता तो भी उसे कोई दिक्कत नही थी ।
सूरज ढल रहा था ।लोग अपने अपने खेतों से घर की और चलने लगे थे।जानवर भी उनके पीछे पीछे चल रहे थे।
सच मायने में अगर देखा जाए तो खेती के लिए पशु से बड़ा कोई विकल्प नई है।