friendship of purpose in Hindi Motivational Stories by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | मकसद कि दोस्ती

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मकसद कि दोस्ती




अहमद डार घर पंहुचते ही बेगम जीनत को देखा तो हतप्रद रह गए जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो ।

जीनत बेगम गम सुम विक्षिप्त सी अर्धचेतन अवस्था मे सिर्फ सुल्तान को पुकार रही थी अहमद के गांव पहुंचने कि खबर बिजली की तरह फैल गयी गांव वाले अहमद डार को समझाने कि कोशिश करने लगे सुल्तान को उग्रवादियों द्वारा अगवा कर ले जाने कि खबर ने अहमद को तोड़ कर रख दिया बेगम जीनत तो पहले ही टूट कर विखर चुकी थी अहमद की सुखी आंखे एक टक बेगम को ही देखती जैसे वह पत्थर के बुत में तब्दील हो चुके थे ।

क्या रुतबा था अहमद डार का धन दौलत रसूख गांव वाले भी बहुत इज्जत करते थे डार परिवार का केवल एक साल में ही ऐसा तूफान उग्रवाद का उठा कि सब टूट कर विखर गया।

बेटा उग्रवादियों के कैम्प में उग्रवादी कि ट्रेनिग ले रहा था तो बेगम बेटे के गम में लगभग मानसिक विक्षिप्त या यूं कहें पागल हो चुकी थी जिंदगी रेगिस्तान कि बिरानियो में सिमट गई थी घाटी की हरियाली केशर सेब डल झील सब इंसानी खून से रंगे बदरंग बेस्वाद हो चुके थे जिंदगी बोझ बन चुकी थी और ख़ूबशूरत त घाँटी कब्रगाह बन चुकी थी।

अहमद की जिंदगी गांव के मस्जिद में ही सिमट गई थी गुंजाईश सिर्फ इतनी थी कि गांव वाले बेगम जीनत का बहुत खयाल रखते यह हालात खूबसूरत चमन के विखरे निशान को ही बंया कर रहे थे जो मर चुकी इंसानी जज्बे कि गवाही देने के लिए पर्याप्त थी लगभग हर रोज किसी न किसी प्रकार की उग्रवादी घटनाएं घटना आम बात हो चुकी थी ।

घाँटी में अहमद डार के पारिवारिक हालात कि जनसंख्या में बेहताशा बढ़ोत्तरी हो रही थी जो इस बात का प्रमाण थी कि घाँटी के हालात कितने बेकाबू हो चुके थे अलगाववादी ताकतों के हौसले इतने बुलंद थे कि भारत के किसी भी प्रायास का सरेआम मजाक उड़ाते सामूहिक हत्याएं अपहरण बलात्कार जो इस्लाम मे नाजायज हराम है इस्लाम के नाम पर जायज ठहराए जा रहे थे।

पाकिस्तानी हुक्मरानों का संरक्षण आग में घी का काम कर रहा था सारे कूटनीतिक राजनीतिक प्रयास वेकार सावित हो रहे थे उग्रवाद नए नए चालों पैतरो से तेज होता जा रहा था अमन के सारे प्रयास नाकामयाब हो रहे थे।

चारो तरफ क्रूरता का नंगा नाच तांडव चल रहा था अमनपसंद कश्मीरी आवाम बेहाल था उंसे कोई रास्ता नही सूझ रहा था तरह तरह कि नई नई उग्रवादी घटनाएं घटित होती जा रही थी एक दिन जुमे की नमाज के समय उग्रवादियों का हमला हुआ जिसका नेतृव सुल्तान डार कर रहा था जब वह अपने उग्रवादी साथियों को निर्देशित कर रहा था ठिक उसी समय एक गोली उसके अब्बा हुजूर के पैर में लगी अचानक जमीन पर गिरने से पहले उनके चीत्कार से औलाद सुल्तान का नाम आया सुल्तान उर्फ जहीर (जहीर उग्रवादियों द्वारा दिया गया नाम) के कानों में घायल अब्बा कि आवाज गूंजी तो पत्थर दिल बन चुके सुल्तान का कलेजा पिघल गया वह अपने वालिद अहमद के करीब गया और उनकी दशा देखकर बच्चों की तरह रोने लगा तभी उसके उग्रवादी साथियों ने उसे ललकारते हुये कहा जहीर हमारे मकसद में रिश्ते नातों कि कोई कीमत नही होती ना ही कोई मतलब होता है हम तो अल्लाह ताला कि सल्तनत के लिए लड़ रहे है सुल्तान ने पूरे उग्रवादी ट्रेनिग के दौरान उग्रवाद मानसिकता को समझ चुका था अतः वह बिना कुछ भी तर्क कुतर्क किये अपने साथियों के साथ निकल पड़ा।
लेकिन वह विल्कुल शांत एव अंतर्मन से विचलित था उंसे कदम कदम अपने जख्मी अब्बू कि तस्बीर दिमाग मे छा जाती तो दिल में बाप कि चीख हलचल पैदा किए जा रही थी जिससे वह परेशान था लेकिन उसे अपने समाज के कायदे कानून का इल्म था अतः अंदर ही अंदर घुटते मन से वह अपने जज्बे को कायल किये हुए था वह अपने मुख्यालय पहुंचा ।

जहीर के पहुंचते ही उसके मुख्य कमांडर ने आगे बढ़कर उसका खैर मकदम करते हुए जल्लाद के मुताबिक़ सर आसमान कि तरफ करते हुए तेज हंसते एवं जहीर को सम्बोधित करते हुए बोला आओ बरफुदार आज तुमने खुदा के हुजूर में सबसे बड़ी कुर्बानी पेश किया मैंने इस खास मिशन पर इसीलिये भेजा था जिससे कि तुम इस्लाम कि तारीख में एक नई इबादद कि इबारत लिख सको मुझे मालूम था कि उड़ी की मस्जिद में तुम्हारा वालिद रहता है गांव वाले उसकी इज़्ज़त सिर्फ इसलिए करते है कि उसने दो काफ़िर औलादों को खुदा के कहर से बचाया था जिसके कारण खुदा का कहर उसके ऊपर टूटा और तुम्हारी अम्मी पागल है जिसकी सांसे गांव वालों के रहमत पर चलती है तुम खुदा के हुजूर में अपनी इबादत उसके इस्लाम वसूलों पर चलते हुए मजबूती से खड़े हो खुदा तुम पर मेहरबान है ।

कमांडर टाइगर की बाते सुल्तान उर्फ जहीर के कलेजे में तीर गोली एव भाले से भी अधिक तेज जख्म एव दर्द दे रही थी लेकिन वह बेवश लाचार पत्थर कि बुत बन कमांडर टाइगर की बाते सुन रहा था।

जहीर के मन मस्तिष्क में अब्बू का कराहता चेहरा छाया हुआ था जिसने उसे बड़े नाज़ो से पाला था अब्बा हुजूर जब बहुत खुश रहते तो अक्सर अम्मी से कहते सुन रही हो बेगम सुल्तान अपने नाम को रौशन करता रौशन चिराग होगा जिससे पूरे कश्मीर आवाम एव मुल्क को नाज़ होगा लेकिन आज वह कहाँ खड़ा है जहां से मुल्क कौम एव कश्मीरियत को शर्मसार होना पड़ रहा है लेकिन उसकी क्या खता ?
वह खुद तो आया नही उग्रवादियों में शामिल होने हालात के हाथों मजबूर हुआ और इस दोजख में जबरन डाल दिया गया।

अरमानों का सुल्तान उम्मीदों का सुल्तान जलालत का जहीर बन गया खुदा के हुजूर में यह कैसी इबादत में वह पहुंच गया जहां खुदा के वसूलों कुरान के उलट इंसानियत के कत्ल को ही इस्लाम कुबूल किया जाता है पता नही कब किसकी गोली उंसे छलनी करती मौत के घाट उतार दे वह गोली खुद उसी के लोंगो की हो सकती है जिसका सरगना टाइगर है वह गोली हिंदुस्तानी सेना सिपाही देश भक्त कि हो सकती है वह गोली खुद कि भी हो सकती है जो दम घुटती साँसों से आजादी के लिए हो सकती है जो कश्मीर कि छद्दम छलावा आजादी के फरेब लिए लड़ रहा है।

जहीर के जेहन में कभी कभार हर सुबह मुस्कुराते खिलखिलाते जमी के जन्नत कश्मीर का नज़ारा याद आता जब गांव में सब एक दूसरे के लिए जान देने के लिए तैयार रहते सुख दुख तीज त्योहार उसे तो दर्जा आठ तक यही नही मालूम था कि हिन्दू मुस्लिम भी कोई चीज होती है ।

गांव की खूबसूरत कश्मीरियत इंसानियत कि लौ उसके दिल के कोने में जल रही थी जिसके कारण वह नफरत कि उग्रता में रहते हुए भी वालिद के दर्द से विचलित व्यथित था तो अपने बचपन के दोस्तो निकिता गंजू एव किशन टिक्कू कि दोस्ती की तड़फ में उसकी सांसे धड़कने चल रही थी ।

जुमे की नबाज में मस्जिद की घटना को अंजाम देने के बाद उसे हर दम अपने वालिद के रिसते जख्म विलखती आवाजे परेशान किये हुए थी लेकिन वह ऐसे हालातो के कैद में था जहां उसकी मर्जी का कोई मतलब ही नही था सिर्फ मतलब था तो कमांडर टाइगर के आदेश का जो खुद भी गुलाम था पाकिस्तानी सेना आई एस आई जैसे अपने आकाओं का जिनके इशारे पर ही उसे नाचना होता।

कुल मिलाकर सबकी डोर पाकिस्तान में ही थी जहां से खाना खुराकी मौत के सौदागर के सामान आते थे जहीर कर भी क्या सकता था?

वह वाजिब मौके की तलाश में था जो मिल भी गया कमांडर टाइगर ने जहीर को आदेश दिया कि वह पाकिस्तान जाए और अगली मिशन का खाका ले आये और गुफ्तगू भी करता आये इस बार वह नही जा पाएगा ऐसा आदेश आकाओं का है क्योंकि इस एरिया कि कमान तुम्हे ही सौपना चाहते है आका लोग और मुझे तरक्की के साथ कहीं और भेजना चाहते है जहीर को भी लगा बैठे बैठाए उसका वजूद खत्म होने को है हो सकता है आका से मिलने के बाद कोई नई रौशनी नज़र आये उसने अपने कमांडर टाइगर के आदेश का पालन करते हुए सीमा पार पाकिस्तान गया जहां उसकी मुलाकात जलाल खान से हुई जिसने तीन महीने कि कार्यवाही पर चर्चा किया जिसमें कश्मीरी नौजवानों को इस्लामिक जेहाद के लिए दिमागी तौर पर अधिक से अधिक संख्या में राजी करना एव उन्हें प्रशिक्षित करना साथ ही साथ ऐसी जज्बाती जगहों पर धमाके करना जिससे दहशत का माहौल बढ़े और भारत सरकार एव भारतीय खून खराबे से ऊब कर अमन का बेसुरा राग अलापे तभी आजाद कश्मीर का इस्लामिक मिशन कायम हो सकेगा।

जहीर ने जलाल खान से भावी योजनाओं पर गुफ्तगू करने के बाद अपने अब्बा हुजूर के हालात को बताया और गुजारिश किया कि वह चाहता है कि अब्बू कि कुछ दिन तीमारदारी एव खिदमत करे ।

जालाल खान ने जहीर को समझाया बरफुदार हमारे सोसाइटी में जज्बा जज्बात इंसानियत रिश्ते नातो का कोई मतलब नही होता सिर्फ हम जीते है खुदा और इस्लाम के लिए इस्लामिक जिहाद के लिए जहीर ने बहुत मिन्नत किया जलाल खान ने कहा ठिक है तुम अपने अब्बा हुजूर को कुछ दिनों के लिए एरिया आफिस ला कर तीमारदारी एव खिदमत कर सकते हो लेकिन ख्याल रहे तुम्हे किसी जज्बात के दबाव में नही आना हो गया तुम नही जाओगे अपने अब्बा हुजूर को लाने हमारे लोग जाएंगे और एक महीने रमजान के बाद तुम्हारे अब्बू को वही छोड़ दिया जाएगा जाहिर को इससे अधिक क्या चाहिए था?

उसने जलाल खान के कदमो में सर झुका कर सजदा किया और चलने को तैयार हुआ दोबारा जलाल खान ने जहीर को हिदायत देते हुए बोला बरफुदार हमारे सोसाइटी में रिश्ता नाता प्यारे मोहब्ब्त सिर्फ फौरी तौर के लिए है तलब लगी हासिल किया और कचरे कि तरह फेंक दिया क्योकि हमारा मिशन ही है इस्लामिक जिहाद है जिसका मकशद है कायनात में कोई भी गैर मुस्लिम ना हो कोई भी मुल्क गैर इस्लामिक ना हो और जब तक हम अपने मिशन को हासिल नही कर लेते तब तक हमारे लिए चैन सुकून हराम है और तुम लोग एव कश्मीर इस बड़े मिशन का अहम हिस्सा है ।

इसलिए कोई कोताही चूक नाकाबिले बर्दास्त होगी तो बरफुदार हम लोगों का सिर्फ एक ही दोस्त है वह है वह है हमारा मकशद मिशन खुदा ।

कायनात को इस्लामिक बना कर उसके हुजूर में पेश करना जहीर ने जलाल से सवाल किया हुजूर जब खुदा का खूबसूरत कारनामा यह कायनात है और उसने ही मुकम्मल कायनात को इस्लामिक नही बनाया तो क्या हम लोगो का मिशन जायज है ।

यह सवाल जहीर के जुबान दिल दिमाग जेहन से इसलिए उठा और जलाल खान को भी जख्मी कर गया क्योकि जहीर खान के परवरिश में इंसानियत और खुदा कि सच्चाई की लौ अब भी टिमटिमा रही थी।।


नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।