009 SUPER AGENT DHRUVA - 22 in Hindi Adventure Stories by anirudh Singh books and stories PDF | 009 सुपर एजेंट ध्रुव (ऑपरेशन वुहान) - भाग 22

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009 सुपर एजेंट ध्रुव (ऑपरेशन वुहान) - भाग 22

इंडिया में......
अंततः उस फ्लैट का दरवाजा खुला......एक लगभग पचपन साठ वर्ष के अधेड़ व्यक्ति ने दरवाजा खोला था.....चेहरे से वह हड़बड़ाया हुआ लग रहा था.....शायद वह इस फ्लैट का ऑनर था,जो पिछले कुछ समय में हुए इस घटनाक्रम से बुरी तरह ड़र गया था......हाथ के इशारे से उसने कोने में स्थित एक और कमरे की ओर इशारा किया,जिसका बन्द दरवाजा ड्राइंग रूम में खुलता था........विराज अपने अन्य कमांडोज के साथ फ्लैट के अंदर स्थित उस कमरें के दरवाजे तक पहुंच गए......एवं कुछ अन्य कमांडोज द्वारा उस वृध्द व्यक्ति को रेस्क्यू करते हुए लिफ्ट के द्वारा बिल्डिंग से बाहर भेज दिया गया.........अंदर वाला वह कमरा खुलवाने के लिए कई बार विराज द्वारा अल्टीमेटम दिया गया,फिर भी जब अंदर से कोई जबाब नही आया तो कमांडोज ने उस दरवाजे को ठोकरों से तोड़ डाला.......दरवाजा टूटते ही कमांडोज एक दूसरे को कवर करते हुए उस कमरे में दाखिल हो गए.......पर यह क्या........अंदर का दृश्य देखकर विराज के होश उड़ गए थे......
एक अधेड़ उम्र का पुरूष और लगभग उतनी ही उम्र की एक महिला के शव फर्श पर बिखरे पड़े है......बड़ी ही निर्दयता के साथ उनके गले रेत कर उनकी हत्या की गई थी........चारो ओर बिखरा हुआ ताजा खून इस बात का गवाह था,कि उस हत्याकांड को अंजाम दिए अभी ज्यादा समय नही हुआ था।

यह सब देखकर विराज का माथा बुरी तरह ठनका......वह भागता हुआ फ्लैट से बाहर निकला .....बाहर मौजूद कमांडोज से उस व्यक्ति के बारे में पूंछा ,जिसका अभी कुछ देर पहले ही रेस्क्यू किया गया था.........यह जानकर कि उस व्यक्ति को लिफ्ट से नीचे भेज दिया गया है,विराज ने अपना सिर पीट लिया........नीचे जाने के लिए लिफ्ट तक पहुंच कर देखा तो पता चला कि लिफ्ट अभी अपने स्थान पर आई नही है.........और अब आएगी भी नही......क्योंकि नीचे पहुंचने के बाद वह शख्स लिफ्ट का दरवाजा खुला ही छोड़ देगा ,जिससे लिफ्ट वापस ऊपर नही जाएगी.......वायरलैस पर नीचे मौजूद साथियों को सूचना देने के साथ विराज और कुछ अन्य कमांडोज अब सीढ़ियों के रास्ते नीचे की ओर भागे।

उधर बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर की पार्किंग में खड़ी ढेर सारी कारों में से एक कार की हेड लाइट्स ऑन हों चुकी थी........ड्राइविंग सीट पर वही अधेड़ व्यक्ति बैठा था,जो अभी कुछ देर पहले ही लिफ्ट द्वारा नीचे आया था........हल्की सी मुस्कुराहट के बाद उसने अपने चेहरे पर पहन रखे उस चेहरे की त्वचा जैसे दिखने वाले नकाब को उतार दिया.......उसका असली चेहरा अब जाकर नज र आया था..........यही था चांग-ली.......जो एक बार फिर इतनी कड़ी सिक्योरिटी के बीच से भागने की कोशिश करने का दुस्साहस कर रहा था।

कार स्टार्ट हुई.....एक्सीलेटर तेज हुआ.......इंजन से जोरदार आवाज........और अगले ही पल पार्किंग का बन्द मेन गेट तोड़ती हुई वह कार गेट तक पहुंच चुके इंडियन कमांडोज की तड़तड़ाती हुई गोलियों के बीच से निकलती हुई बिल्डिंग के बाहर तक जा पहुंची थी।

यह फुल्ली बुलेटप्रूफ कार थी,जो इसी प्रकार की परिस्थिति में से अपने ड्राइवर को निकालने में मदद करती थी......
यह सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि नीचे मौजूद ढेर सारे कमांडोज भी उसे रोक न पाए......चांग ली एक बार फिर से इतने मजबूत सुरक्षा घेरे को तोड़ कर आंखों से ओझल होने ही वाला था कि तभी अचानक एक जबरदस्त धमाके ने उस कार को हवा में कुछ फ़ीट ऊपर तक उड़ाते हुए जमीन में पटक कर कई सारी पलटी खिला दी........बिल्डिंग के दूसरे फ्लोर की बालकनी में कैप्टन विराज खड़ा हुआ दिखाई दिया.......उसके हाथ मे बड़ी सी ग्रेनेड लॉन्चर गन मौजूद थी.....उस गन से छोड़े गए ग्रेनेड्स ने ही बड़ी ही सटीकता के साथ अपने टारगेट पर हमला किया था........कार के बुलेटप्रूफ एवं फायरप्रूफ होने की वजह से उनकी धज्जियां उड़ने से तो बच गयी......पर एक साथ कई पॉवरफुल ग्रेनेड्स का वार वह न झेल सकी........और इस तरह से इस उल्टी हो चुकी कार के अंदर मौजूद चांग ली अगले ही पल इंडियन कमांडोज के बीच घिर चुका था.........
क़ई सारे गन प्वॉइंट्स में घिरे घायल हो चुके चांग ली को अब सरेंडर की अवस्था में ही लड़खड़ाते हुए उस कार से बाहर निकाला गया।

बिना कोई रिस्क लिए कैप्टन विराज ने सबसे पहले उसके घुटने में अपनी पिस्टल से गोली मारते हुए उसके द्वारा निकट भविष्य में भागने अथवा किसी और चालाकी करने की गुंजाइश को खत्म कर दिया.........एक बड़ी सफलता विराज के हाथ लगी थी...........हजारों लाखो भारतीयों की मौतों के जिम्मेदार,देश की तबाही के सौदागर चांग ली के रूप में।

कुछ ही देर बाद इंडियन आर्म्ड फोर्स का एक हेलीकॉप्टर पटना से दिल्ली के लिए उड़ान भर चुका था.......इसी हेलीकॉप्टर में मौजूद थे कैप्टन विराज और हाथों में मजबूत हथकड़ियां पहने चांग ली।

घायल होने एवं पकड़ें जाने के बावजूद चांग ली के चेहरे पर अफसोस एवं भय की जगह पर एक कुटिल मुस्कान तैर रही थी।

कैप्टन विराज को कुछ देर घूरने के बाद बड़े ही गर्व भरे विजयी अंदाज में वह बोला......
"अब मेरे पकड़े जाने का तुम्हे और तुम्हारे देश को कोई फायदा नही कैप्टन.....मैं अपना काम कर चुका हूँ.......अगले कुछ घण्टो में इंडिया की आधे से अधिक आबादी लाशों के ढेर में बदल जाएगी........तुम्हारा देश यह जंग हार चुके हो कैप्टन.....अरे हां एक और बात तो मैं बताना भूल ही गया......तुम्हारी आखिरी उम्मीद....यानि ऑपरेशन वुहान.....वो तो अब सीक्रेट नही रहा....और अब तक तो वहां पर तुम्हारे उस सुपर एजेंट का भी काम तमाम हो चुका होगा "

जी कर रहा था कि अपने देश के इस दुश्मन के जिस्म में अभी के अभी सारी गोलियां उतार दे.....पर वह तो अपना काम कर ही चुका था,उसे मार के कुछ भी हासिल नही होना था,शायद जिंदा रख के कुछ काम आ सके....बस यही सोच कर क्रोध का घूंट पी कर रह गया था विराज......और फिर वैसे सही ही तो कह रहा था चांग ली.........अब बस कुछ ही घण्टे तो शेष बचे थे मौत का वह क्रूर वीभत्स तांडव मचने में...…....। और विराज एवं भारत की सारी सिक्योरिटी एजेंसीज के लिए इस वक्त चिंता का सबसे बड़ा विषय तो अब यही था कि चांग ली और चाइना के पास उनके सीक्रेट 'ऑपरेशन वुहान' की जानकारी पहुंच चुकी थी......अब इतनी विषम एवं चिंताजनक परिस्थितियों में सबके दिमाग में बस एक ही सवाल कौंध रहा था कि क्या अब उनकी दम तोड़ती हुई अंतिम उम्मीद कायम हो पाएगी?

कहानी जारी रहेगी ।