यह कहानी एक ब्रह्मम राक्षस की है। जिसे आप लोग जानते ही होगे। उस राक्षस का नाम है ब्रह्मम राक्षस है। इस पर कई कहानियां बनाई जाती है और राक्षस के अनेक नाम होते हैं। जैसे की पिसाच,राक्षस,डायन,चुड़ैल,आदि बहुत से नाम होते हैं। तो दोस्तों चलो मैं अपनी कहानी पर आता हूँ। हमारे गांव मैं एक ब्राह्मण रहते है। जिनका नाम दुर्जन सिंह है। दुर्जन सिंह को लोग दुर्जनजी कहकर बुलाते हैं। उनके घर से कुछ दूरी पर एक खेत था।
उस खेत में एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था। वह बरगद का पेड़ बहुत पुराना था।कुछ समय के बाद उन्होंने उस खेत पर घर बनाने की सोची। पहले वाला घर बहुत छोटा होने की वजह से उन्होंने खेत पर घर बनाने की सोची। उन्होंने उस बरगद के पेड़ को काट वाया और अपना घर बनवा लिया। कुछ दिन तो ठीक ठाक चला पर कुछ दिन बाद दुर्जनजी बड़े परेशान रहने लगे। वह कभी पूजा करते और कभी नहीं।
तो उनकी बीवी ने उनके बदले स्वभाव को देख कर पुछा की तुम आज-काल पूजा नहीं करते हो और आज कल बदले-बदले से रहते हो। कभी बच्चो को डांटते रहते हो। तुम्हे हुआ क्या है? दुर्जनजी के चेहरे पर मुस्कान आई और वह कहने लगे मेरे घर को तोड़ कर अपना घर तो बना लिया है। और इसे क्या पूजा करने के लिए कह रही हो। मैं हितों भगवान् हूँ। इसे पूजा करने की कोई जरूरत नहीं हैं। वो कभी दांत मिजते कभी बड़े प्यार से बोलते कभी आंखें लाल तो कभी सही हो जाते।
उनकी बीवी के शक हो गए। की ज़रूर किसी का साया है और वो बाते ऐसे नही करते हैं। जैसे की उनके अंदर से दो लोग बोल रहे हों। तब उनकी बीवी ने उनको बिठाकर हनुमान चालीसा पढने लगी। वो सोच रही थी अगर कोई होगा
तो भाग जायेगा पर दुर्जनजी पर उसका कोई असर नहीं पड़ा रहा था। वह एक टक लगाये देखे जा रहे थे।उनकी बीवी काफी मंत्र और गायत्री मंत्र पड़े । तभी दुर्जनजी की आंखें लाल हुई और कहने लगे की मैं किसी से नहीं डरने वाला नही हु और तू क्या समझ रही है। मैं इसे ऐसे नहीं छोड़ने वाला हू ।
तब तक उसका छोटा बच्चा वहां आ गया। दुर्जनजी ने उसे जोर से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा लिया और ऐसा लग रहा था की उसके सिर को कच्चा ही चबा जाएगे। उसकी मम्मी बोली कि बच्चे को छोड़ दो इसने क्या तुम्हारा बिगाड़ा है।
दुर्जनजी की पत्नी ने अपने बच्चे को अपनी तरफ खीच लिया। उसने फिर पुछा तुम कौन हो और मेरे पति के अंदर क्यू आए हो। आप हमसे क्या चाहते हो?आप हो कौन? तब उसने कहा की अगर अपना भला चाहती हो तो बरगद के पेड़ लगाओ जितना भी हो सकें। पेड़ लगाओ फिर मैं बताऊँगा कि मैं कौंन हूँ और फिर मैं चला जाऊँगा। तब दुर्जनजी की बीवी ने एक सौ एक पेड़ बरगद के लगाये।
एक दिन उसकी पत्नी ने देखा की आज दुर्जनजी सुबह उठकर पूजा पाठ कर के आ चुके हैं। तब दुर्जनजी के अंदर जो साया था उसने बोला मैं तुम्हारे पति को आज छोड़ के जा रहा हूँ। तुम सदा सुखी रहो तुम्हारे आचार-विचार बहुत अच्छे हैं। मैं ब्रह्मम राक्षस हूँ। वैसे मैं किसी को नहीं छोड़ता और न ही किसी से डरता हूँ।
तुम्हारे पति ने मेरे बरगद को काट दिया था। जिस पर मैं हजारों सालों से रह रहा था। मुझे गुस्सा तो आया पर मैं तुम्हारी अच्छाई के कारण मैंने इन्हें छोड़ कर जा रहा हूँ। तुम्हारे पति को छोड़कर तब दुर्जनजी अचानक सही हो गए। तब दुर्जनजी की बीवी की आँखों से आशु निकल आए। तो दोस्तों अगर बुरे के साथ अगर तुम अच्छा करोगे तो एक दिन वह भी अच्छा हो जाता है।