Is Pyaar ko kya naam dun - 9 in Hindi Fiction Stories by Vaidehi Vaishnav books and stories PDF | इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 9

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इस प्यार को क्या नाम दूं ? - 9

(9)

उस तरफ़ से बिना ब्रेक की गाड़ी की तरह बिना रुके एक महिला कहने लगती है- अब चिंता की कोई बात नहीं है। सब ठीक है। यहाँ स्थिति हमने संभाल ली है। तुम अपने नई दिल्ली प्रोजेक्ट का मोर्चा संभालो।

मैं दो दिनों में लौटूंगा। आप तब तक नानी का अच्छे से ख्याल रखिएगा- चिंता जताते हुए अर्नव ने कहा।

अगले दृश्य में..

ख़ुशी और गरिमा अपने घर पहुंच जाती है। दरवाजे पर नाराज़ मधुमती खड़ी हुई मिलती है। गुस्से से दोनों को घूरते हुए वह कहती है- ई देखो, आज ही अस्पताल से आई है दुई और आज ही सैरसपाटे करने निकल पड़ी।

ऐसा कौन सा जरूरी काम आन पड़ा कि सेहत को ताक पर रख कर जाना पड़ा ?

मनोरमा के घर गए थे जीजी। हॉस्पिटल में ख़ुशी की चेन गुम हो गई थीं औऱ इत्तेफाक से वह चेन हमारी सहेली को मिल गई- गरिमा ने डरते हुए रुक-रुककर कहा।

दाल में कुछ तो काला है, या पूरी ही दाल काली है- सिर पर हाथ रखते हुए मधुमती ने कहा।

कुछ भी तो नहीं जीजी- घर के अंदर आते हुए गरिमा ने कहा।

मधुमती कहती है- हमारे गले से तुम्हारी कही कोई भी बात नहीं उतर रही। चेन मिली तो हॉस्पिटल में जमा करना थी..? औऱ तुम्हें कैसे पता चला चेन किसको मिली ?

मधुमती सी०आई०डी० बन गई और सच जानने के लिए प्रश्नों को कुरेद-कुरेद कर पूछती है।

गरिमा भी मंझे हुए खिलाड़ी की तरह डटी रही वह आत्मविश्वास से झूठ की कहानी गढ़ती जाती है। कहानी बनाते हुए वह कहती है- जीजी अस्पताल में तो न जाने कितने ही लोग आते हैं। अब सही व्यक्ति की पहचान कैसे हो पाती, इसीलिए उन्होंने वहां चेन न देकर अपना कार्ड दे दिया था। जब ख़ुशी ने हॉस्पिटल में अपनी चेन ढूंढ़ी तब उसे कार्ड दे दिया। फिर हम कार्ड का पता ढूंढते हुए जब घर पर पहुँचे तो वह हमारी पुरानी सहेली ही निकली। बस फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो खत्म ही नहीं हुआ।

गरिमा की झूठी कहानी पर मधुमती आसानी से भरोसा कर लेती है। मधुमती कहती है- अब आराम कर लो।

अगले दिन....

अगली सुबह ख़ुशी जल्दी उठकर अपना लन्च बनाने लगती है।

पायल भी स्कूल जाने की तैयारी करती है। वह ख़ुशी को किचन में देखती है तो चौंक जाती है।

पायल किचन में जाकर ख़ुशी से कहती है- क्या बात है, आज तो सुबह से ही भूख लग गई।

नहीं जीजी, अबसे हम भी रोज़ जॉब के लिए जाएंगे। हमने तुम्हारा भी डिब्बा तैयार कर दिया है- ख़ुशी ने जिम्मेदार कर्मचारी की तरह कहा।

पायल हैरानी से- जॉब और तुम ?

कहने के बाद पायल खिलखिलाकर हँस देती है।

ख़ुशी उत्साह से पायल को यक़ीन दिलाते हुए कहती है- जीजी, हम सच कह रहे हैं। ये बात और हैं कि हमें तुम्हारी तरह अपने काम के लिए सेलेरी नहीं मिलेगी।

ये कैसी जॉब है ?- पायल ने भौहें उचकाते हुए कहा।

वो आप अम्मा से पूछ लेना जीजी। हमें देर हो रही है। पहले ही दिन हम लेट नहीं होना चाहते- जल्दबाजी में किचन से बाहर से निकलते हुए ख़ुशी ने कहा।

अच्छा जीजी बाय...आकर बताएंगे कि हमारा दिन कैसा रहा- दरवाज़े से तेज़ आवाज़ में चिल्लाकर खुशी ने कहा।

ख़ुशी ठीक समय पर मनोरमा के घर पहुंचती है। मनोरमा डिब्बे को बंद करते हुए ख़ुशी को देखकर खुश होते हुए कहती है- अच्छा हुआ, तुम आई गई। अब जल्दी से हॉस्पिटल जाई के सासूमाँ को पहले चाय दे देना फिर नाश्ता करवा के दवाई।

हम आपकी सासूमाँ को कैसे पहचानेगे- ख़ुशी ने मनोरमा से पूछा

मनोरमा ख़ुशी को डायरी देते हुए कहती है- ई लियो हम इमा सारी डिटेलवा लिख लेब। रूम नम्बर से लेकर पूरा टाइम टेबल है। कब क्या करना है सब ईमा लिखत है।

ख़ुशी ने डायरी लेते हुए कहा- ठीक है, अब हम चलते हैं।

हाँ बिटिया, ई समझ लो कि जंग पर जा रही हो। हमरा आशीर्वाद तुम्हरे साथ है।

मनोरमा से विदा लेकर ख़ुशी हॉस्पिटल की ओर रवाना हो जाती है।

ख़ुशी कुछ ही देर में हॉस्पिटल पहुंच जाती है। मनोरमा के बताएं रूम नम्बर  के बाहर ख़ुशी खड़ी होकर सोचती हैं । कैसे हम अनजान बीमार, वो भी बुजुर्ग इंसान को भरोसा दिला पाएंगे कि हम उनके लिए यहाँ आये हैं। कही वह कोई गुस्सेल महिला हुई तो हमारा क्या होगा ?

क्या होगा ..? जॉब छोड़ देना- खुशी के मन में बस रही एक औऱ खुशी ने उससे कहा और उसमें हिम्मत भरते हुए कहा- जाओ, जो होगा देखा जाएगा..

रूम के दरवाज़े के बाहर खड़ी खुशी सोच विचार कर रहीं होती है, तभी वहाँ नर्स आती है। वह ख़ुशी से कहती है- आप देवयानीजी के घर से है ?

जल्दी कीजिये उनकी दवाई का टाइम हो गया है। डॉक्टर भी राउंड पर आने वाले हैं। नर्स अपनी बात खत्म करके वहाँ से चली जाती है।

ख़ुशी डरते हुए अपने कदम दरवाज़े की ओर बढ़ाती है। वह दरवाजा खटखटाते हुए कहती है- क्या हम अंदर आ सकते हैं ?

कमरे के अंदर से नम्रता लेकिन किसी अधिकारी द्वारा आदेश दिए जाने के लहजे में आवाज़ आती है- आ जाइये।

ख़ुशी धीरे से दरवाजा खोलती हैं। वह देखती है एक साठ-पैंसठ उम्र की सुंदर सी महिला पलंग पर बैठी हुई अख़बार पढ़ रही है। उन्हें देखकर लगता है मानों वह किसी रियासत की राजमाता हो। ख़ुशी डरकर दरवाज़े पर ही ठिठक जाती है।

रौबदार सी आवाज़ में देवयानी कहती है- तो अब मनोरमा ने आपको भेजा है। उन्हें समझ नहीं आया कि पहले भेजी हुई लड़की भी आकर चली गईं।

ख़ुशी मुस्कुराकर देवयानी के नजदीक जाकर कहती है- हमें यहाँ किसी ने नहीं भेजा। हम स्वयं आए हैं आपके पास।

देवयानी ख़ुशी को ऊपर से नीचे तक देखती है फिर कहती है- लगता है आप किसी गलत कमरे में आ गई है।

सामान को टेबल पर रखते हुए ख़ुशी कहती है- हम बिल्कुल सही जगह सही इंसान के पास आए हैं नानी जी।

ख़ुशी के अपनेपन के लहज़े से देवयानी नरम पड़ जाती है, वह कहती है- आप कौन है ? सच बताइये यहाँ कैसे आई ? किसने भेजा ? हमारे नाती ने तो नहीं भेजा ?

नहीं नानीजी, हम आपसे झूठ नहीं कहेंगे। हमें यहाँ तक पहुँचाने वाले तो मनोरमाजी ही है। उनकी सहायता के बिना हम यहाँ तक नहीं आ पाते।

देवयानी ने ख़ुशी से मुँह फेरते हुए कहा- तो आप उन्हीं की टीम की है। उनकी भेजी हुई नई सहायिका।

नहीं नानी जी, कुछ दिन पहले इसी अस्पताल में हमारी अम्मा भी भर्ती थीं। जब हम उनके लिए दवाई लेने जा रहे थे तब हमने मनोरमा जी को रोते हुए देखा था। हमने उनसे रोने के कारण पूछा तब उन्होंने बताया था कि उनका कोई क़रीबी अस्पताल में भर्ती हैं जिनकी सेवा वो चाहकर भी नहीं कर पा रही। तब हमने उनसे आपका रूम नम्बर लिया था औऱ फिर अम्मा का स्वास्थ्य सही होते ही हम यहाँ चले आए- थर्मस के ढक्कन को खोलते हुए खुशी ने कहा।

हैरानी से देवयानी ने पूछते हुए कहा- जो तुमने बताया वो सब सच है?

आत्मविश्वास से भरे शब्दों में ख़ुशी ने कहा- जी, सौ फीसदी सच है नानीजी ! वर्ना हम यहाँ कैसे आते ?

कहते हुए ख़ुशी ने चाय का प्याला देवयानी की ओर बढ़ा दिया।

चाय का प्याला लेते हुए देवयानी ने कहा- जो भी हो, आप बातें बड़ी प्यारी करती है।

ये तो हमारे लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है। अबसे हम दिनभर आपके साथ ही रहेंगे- ख़ुश होकर ख़ुशी ने कहा।

देवयानी चाय पी चूँकि थी। ख़ुशी ने लपककर उनके हाथ से प्याला ले लिया। ख़ुशी ने नाश्ता पहले से ही तैयार रखा हुआ था। उसने देवयानी को बातों में उलझाकर रखा औऱ नाश्ते की प्लेट को टेबल पर रख दिया। प्लेट के साथ हाथ पोछने के लिए नेपकिन भी रखा हुआ था।

ख़ुशी की फुर्ती, वाकपटुता और कार्य में कुशलता को देखकर देवयानी इम्प्रेस हो जाती है। वह एक ही दिन में ख़ुशी से ऐसे घुलमिल जाती है जैसे बरसों से ख़ुशी को जानती हो।

टेबल पर रखे हुए देवयानी के मोबाईल पर घण्टी बजती है। ख़ुशी मोबाईल स्क्रीन पर नाम पढ़कर देवयानी को बताती है- भोंदू कॉलिंग लिखा आ रहा है ?

ले आइये, हमारे नाती का ही कॉल है- ख़ुश होकर देवयानी ने कहा।

ख़ुशी मोबाईल को टेबल से उठाकर देवयानी को देती है। देवयानी कॉल रिसीव करती है। देवयानी ख़ुशी को देखते हुए कहती है- हम ठीक है , आप कैसे है?

आप बिल्कुल भी चिंता मत कीजिए।

हम ठीक है और सम्भव है आज घर भी चले जाएं। उस तरफ़ से चिंता जताते हुए शख्स की बात सुनकर देवयानी कहा।

फोन पर बात कर लेने के बाद, देवयानी ख़ुशी से कहती है। हमें यदि सबसे ज्यादा सुकून किसी के साथ महसूस होता है, तो वह हमारे नाती ही है। उनमें हमें आज भी अपनी बेटी का अक्स नजऱ आता है- कहते हुए देवयानी भावुक हो जाती है। वह कमरे की खिड़की से बाहर दूर क्षितिज को देखने लगती है...

ख़ुशी कुछ पल चुप रहती है फिर कमरे में पसरे सन्नाटे को अपनी आवाज़ से समाप्त कर देती है।

ख़ुशी कहती है- आपके नाती बहुत ही क्यूट होंगे न ..? हमें भी बच्चे बहुत प्यारे लगते है।

खुशी की बात सुनकर देवयानी खिलखिलाकर हँसते हुए कहती है- हमारे नाती कोई छोटे बच्चे नहीं है।

वह तो चौबीस बरस के युवा है।

ख़ुशी देवयानी की बात सुनकर लज्जित होकर कहती है- माफ कीजियेगा नानी, नाम पढ़कर हमें लगा कि वह कोई छोटे बच्चे हैं।

ख़ुशी की बात सुनकर देवयानी कहती है- इसमें शर्मिंदगी की कोई बात नहीं है। उनके नाम की तरह ही वह आज तक बच्चे ही है। उनकी ज़िद के आगे किसी की नहीं चलती। ख़ुशी को अपने पास बैठाते हुए देवयानी कहती है। नाम से याद आया कि हमने आपसे अब तक इतनी सारी बात कर ली पर अब तक आपका नाम नहीं पूछा।

ख़ुशी चहकते हुए अपना नाम बताकर कहती है- हमारा नाम ख़ुशी है।

बहुत ही बढ़िया नाम रखा है आपके मम्मी-पापा ने, अपने नाम की तरह ही आप ख़ुशमिज़ाज स्वभाव की है- देवयानी ने ख़ुशी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

हमारे मौसा जी ने रखा था ये नाम। हमारे जन्म के बाद ही हमारी माँ चल बसी थी- ख़ुशी ने ग़मगीन होकर कहा।

ओह ! माफ़ करना बिटिया हमें इस बारे में पता नहीं था।

आप हमसे माफ़ी माँगकर हमें शर्मिंदा कर रहीं हैं नानी जी- ख़ुशी ने नाराज़ होते हुए कहा।

देवयानी मुस्कुराते हुए कहती है- आप बातें भी उतनी ही प्यारी करती है, जितनी प्यारी आप लगती है।

ख़ुशी औऱ देवयानी बात कर रही होती है तभी नर्स कमरे में आती है और कहती है- आपने दवाई ले ली ? डॉक्टर बस आते ही होंगे शायद आपको आज डिस्चार्ज मिल जाए।

खुशी और देवयानी एक दूसरे को ऐसे देखती है मानों वो दोनों छोटी बच्चियां हो और उनकी शरारत की पोल खुल गई हो।

ख़ुशी हड़बड़ी में खड़ी होती है और अचकचाकर कहती है- हम बस दवाई देने ही वाले थे।

ख़ुशी देवयानी को दवाई देती हैं।

दवाई गटकने के बाद बुरा सा मुँह बनाते हुए देवयानी कहती है- चलो अच्छा ही है। आज इस कैदखाने से भी मुक्ति मिलेगी। बेस्वाद खाना और इन कड़वी दवाइयों को निगलकर हम तो ऊब गए थे।

ख़ुशी देवयानी से पूछती है- नानी आपकी तबियत को क्या हुआ है ?

देवयानी ख़ुशी के प्रश्न को सुनकर गम्भीर हो जाती है।

देवयानी ख़ुशी से कहती है। कुछ ख़ास बात नहीं है। बस यूँ ही इस उम्र के पड़ाव में हॉस्पिटल के चढ़ाव चढ़ रही हूँ।

ख़ुशी गंभीरता से देवयानी की बात का उत्तर देते हुए कहती है- हाँ, आप हमसें क्यों कहेंगी। हम ठहरे अजनबी। कुछ पल की मुलाक़ात में अपने थोड़ी न बन जाएंगे।

अरे ! पगली, इतनी बातें तो आज तक हमने अपनी बहू से नहीं कि होंगी जितनी इन कुछ ही क्षणों में आपसे की। अच्छी चर्चा में बीमारी को क्यों लेकर आए ? वैसे भी अब तो हम घर जाने ही वाले है। और हाँ, हम घर अकेले नहीं जाएंगे। आपको भी अपने साथ ले जाएंगे- मुस्कुराकर देवयानी ने रुठी ख़ुशी को मनाते हुए कहा।

ठीक है, आज तो आपसे मिले हैं। इसलिए आज कोई भी नकारात्मक बात नहीं करेंगे। पर आप हमसे प्रॉमिस कीजिए कि हमसे कभी कोई बात नहीं छुपायेंगे- ख़ुशी ने देवयानी की बात से सहमत होते हुए कहा।

देवयानी भी ख़ुश होकर कहती है- पक्का प्रॉमिस।

अगले दृश्य में...

हॉल में बैठी मधुमती माला हाथ में लिए हुए बार-बार दरवाज़े की ओर देखते हुए मन्त्र जाप करती है।

गरिमा चाय लेकर हॉल में आती है। वह मधुमती के सामने रखी टी टेबल पर चाय का प्याला रखती है और जाने लगती है, तभी जाप समाप्त करके मधुमती गरिमा को रोकते हुए कहती है- शशि बबुआ दुकान चला गया । पायलिया भी स्कूल चली गई। आज सनकेश्वरी अब तक नींद से जागी नहीं ? या सुबह से ही कहीं चली गई है ?

मधुमती के प्रश्न सुनकर गरिमा असमंजस में पड़ जाती है। वह समझ ही नहीं पाती है कि क्या उत्तर दे।

मधुमती कहती हैं- क्या हुआ गरिमा ?

मुँह में दही जम गया क्या ?

गरिमा हड़बड़ी में सच कह देती है। वह मधुमती को बताती है कि ख़ुशी मनोरमा के घर जॉब के लिए गई है।

हे मधुसूदन ! ई का कांड कर दिया ?

मधुमती ने अपने दोनों हाथ सिर पर रखकर कहा।

गरिमा मधुमती को यक़ीन दिलाते हुए कहती है- मनोरमा हमारी बहुत पुरानी सहेली है। ख़ुशी वहाँ उसकी मदद करने गई है। जॉब होती तो हम कभी नहीं भेजते।

जोन तौका ठीक लगे तौन करो- चाय का प्याला उठाते हुए मधुमती ने कहा।

अगले दृश्य में...

मनोरमा कुछ परेशान लगती है। वह अपने कमरे में चहलकदमी करते हुए अपनी हथेलियों को आपस में मलती है। वह बड़बड़ाते हुए कहती है- सासूमाँ घर आई का पड़ी। हमका तो अब यहाँ से एक्सिटवा लेई का पड़ी।

का करें ? रुकबे या जाएं ?

सोच विचार में उलझी मनोरमा के मोबाइल की घण्टी बजती है। वह स्क्रीन पर नाम देखती है। ख़ुशी इज़ कॉलिंग देखकर वह तुरन्त कॉल रिसीव कर लेती है।

ख़ुशी कहती है- आँटी हम नानी जी के साथ जल्दी ही घर आने वाले हैं।

ई अपडेटवा हमका मालूम है- मनोरमा ने कहा।

अच्छा, ये तो अच्छी बात है। आप नानी जी के रूम को देख लीजिए। साफ़ तो है न ? और नानी जी नहाने के बाद पूजाघर जाएंगे तो आप पूजा की थाली भी तैयार रखिएगा। अच्छा अब हम ऱखते है- ख़ुशी ने कहा औऱ कॉल डिसकनेक्ट कर दिया।

हम सारी तैयारी करवा देब और जल्दी ही ई जगह को बाय-बाय करें का पड़ी- बुदबुदाते हुए मनोरमा ने कहा और हरिराम को पुकारने के बाद वह तैयारी में जुट गई।

मनोरमा ने सुव्यवस्थित ढंग से सारी तैयारी कर ली। वह अब देवयानी के घर आने से पहले घर को छोड़ कर जाने की तैयारी में जुट जाती है।

अगले दृश्य में…