khandkavy ratnavali - 16 in Hindi Poems by ramgopal bhavuk books and stories PDF | खण्‍डकाव्‍य रत्‍नावली - 16

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खण्‍डकाव्‍य रत्‍नावली - 16

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खण्‍डकाव्‍य

 

श्री रामगोपाल  के उपन्‍यास ‘’रत्‍नावली’’ का भावानुवाद

 

 

रचयिता :- अनन्‍त राम गुप्‍त

बल्‍ला का डेरा, झांसी रोड़

भवभूति नगर (डबरा)

जि. ग्‍वालियर (म.प्र.) 475110

 

षोड़ष अध्‍याय – काशी

दोहा – गोस्‍वामी जा दिन गये, चल काशी की ओर।

तब से सबके मन उठे, काशी चलन हिलोर।। 1 ।।

मिलते जबही लोग पुराने। काशि गमन की चर्चा ठाने।।

यों चरचा फैली सब ग्रामा। मैया चले बने तब कामा।।

गणपति मां भगवती बाई। सोमवती पारो जुर ऑंई।।

रतना से मिलना ठहराई। स्‍वागत कर आसन बैठाई।।

पारवती बोली हरषाई। सभी गांव के मन यह भाई।।

मइया चले तो काशी जावैं। गोस्‍वामी के दर्शन पावें।।

चित्रकूट को गै इक बारा। हिय हरषा आनंद अपारा।।

अब सबके मन ये है आई। संग चले फिर रतना माई।।

दोहा – सुन रतना कहने लगी, जो चलने की बात।

टालूं किस विधि में भला, दर्शन की सौगात।। 2 ।।

चित्रकूट की भांति ही, काशी में मिल जांय।

हरको बोली मुदित हो, दरसन गुरु के पांय।। 3 ।।

सोमवार निश्चित कर डाला। चलीं मुदित हो निज घर बाला।।

रतना सोच रही मन माहीं। लीला प्रभु की जानि न जाहीं।।

देखो सबके मन क्‍या भाया। राम विचित्र तुम्‍हारी माया।।

जब हम अंतर करें विचारा। तो घटनायें बने सहारा।।

घटना पूर्व नियोजित लागें। क्‍या होगा बतलावें आगें।।

करी व्‍यवस्‍था घर की सारी। सत्‍तू बांध लिया सुखकारी।।

हरको बोली संग चलूंगी। तुम बिन कैसे यहां रहूंगी।।

यात्री रतना के गृह आये। काशी चलन हेत हरषाये।।

दोहा – कर प्रदक्षिणा ग्राम की, हनुमता मंदिर आय।

दर्शन कर सब चल दिये, प्रभु को सभी मनाय।। 4 ।।

गये घाट तक प्रेमि जन, छू माता के पैर।

दान दक्षिण भैंट दी, करी नाव की सैर।। 5 ।।

पहुंची खबर महेवा जाई। रतना जाती मिलन गुसांई।।

खबर पाय सब ही चल दीने। स्‍वागत साज संग में लीने।।

पहुंचे पार महेवा ग्रामा। बैठे सब मिलने इक ठामा।।

मैया के पग सबही परसे। दान दक्षिणा भैंट नजर से।।

घर चलने की बात उचारी। यात्रा जान मना कर डारी।।

इलाहबाद को किया पयाना। पहुंच वहां कीना विश्रामा।।

सत्‍तू खाकर रात बिताई। प्रात: दल संगम पर जाई।।

तिरवेणी असनान कराई। अक्षय वट को भेंटा जाई।।

भरद्वाज आश्रम को हेरा। वेणी माधव दीन्‍हा डेरा।।

दोहा – एक दिवस विश्राम कर, प्रात काल चल दीन।।

बीच वसेरा कर सभी, काशी दरसन कीन।। 6 ।।

पता चला लोलार्क पर, गोस्‍वामी का बास।।

चले सभी उस दिसा को, श्री गुरू जी के पास।। 7 ।।

बाहर रुक सब करें प्रतीक्षा। आज्ञा मिले ठहरने इच्‍छा।।

रामू भैया अन्‍दर जाकर। लौटे गोस्‍वामी को लाकर।।

चरन कमल छूने सब दौड़े। आसीष पाई सभी कर जोड़े।।

रतना ने तब सीस नबाया। हुइ प्रसन्‍न पति दर्शन पाया।।

देखी सब प्रभु की प्रभुताई। तेज भाल चमके अधिकाई।।

गुरू जी एक साधु बुलवाया। उसने सब को जा ठहराया।।

था एक मंदिर परम सुहाना। सुख सुविधायें उसमे नाना।।

विछी हुई थी वहां चटाई। वैठत भोजन आज्ञा पाई।।

दोहा – सब ही भोजन को गये, सुन्‍दर रहा प्रबन्‍ध।।

पा प्रसाद विश्राम हित, लौटे हिय आनन्‍द।। 8 ।।

थकित श्रमित सब जन रहे, गये लेटते सोय।

सुनी आरती शंख धुन, जागे जड़ता खोय।। 9 ।।

शनै: शनै: चरचा सब फैली। दरस हेत पत्‍नी आ मेली।।

रतना सुनी खबर यह सारी। पति विरोध है यह पर भारी।।

भक्‍त रहे गोस्‍वामी जी के। दर्शन करें जाय मां जी के।।

करना चाहें सभी निमंत्रण। गंगाराम एक उनमें जन।।

रहा जोतिषी प्रिय उन चेला। आज्ञा पाय निमंत्रण मेला।।

दिन ढलते इक बग्‍घी आई । मैया बैठ उसी में जाई।।

ढिंग टोडर मल का परिवारा। आया मिलन मात से सारा।।

आज्ञा हो दरसन का वाऊँ। बोली मैया सब संग जाऊँ।।

दोहा – चर्चा राम चरित्र की, चली कान ही कान।।

प्रतियां निर्मित हो रही, मेरे घर दरम्‍यान।। 10 ।।

रतना सुन हरषित हुई, कैसा हुआ मिलान।।

जो इच्‍छा मेरे मन हि, पूर्ण करी प्रभु जान।। 11 ।।

दरसन हेत चाहथी सव मन। तीजे दिन सब चले मुदित मन।।

शाम होयगी सभी विचारा। लेन लगे कुछ स्‍वल्‍पा - हारा।।

साधू एक संग कर लीन्‍हा। जिसने था सब मारग चीन्‍हा।।

विश्‍व नाथ मंदिर जब आये। भारी भीड़ वहां पर पाये।।

मध्‍य मार्ग मिल गई सयानी। रही पूर्व की जो पहिचानी।।

संग हुई सब दरसन पाये। पूजे शिव अति मन हरषाये।।

इक दालान कियो विश्रामा। बंदर ताक रहौ घर ध्‍याना।।

रतना कर से छीन प्रसादी। खाने लगा देख हरषाती।।

दोहा – रतना कपि का नेहलख, जुड़े सभी नर नार।

पूछन लागे कौन यह, सुन्‍दरता की सार।। 12 ।।

गोस्‍वामी की भामिनी, सरसुती कहा पुकारि।

रामायण जिनने रची, उन ही की प्रिय नारि।। 13 ।।

सुन कर विस्‍मय में पड़े, कैसे तुलसी दास।।

वैरागी क्‍यों कर बनें, पत्‍नी थी जव पास।। 14 ।।

कलुषित हृदय रहे जिन जनके। वो ही व्‍यंग करे गिन गिन के।।

सुन बकवास मात चल दीनी। चलें प्रात ठान मन लीनी।।

संग सभी दर्शन कर आई। जहां साधु ले गयो लिवाई।।

संध्‍या हुई लौट तब आये। आश्रम आ सबने सुख पाये।।

रतना हरको सों यों बोली। गोस्‍वामी ढिंग जा हम जोली।।

जान चहें प्रात सब साथा। दें आज्ञा हम होंय सनाथा।।

हर को गई वहं कथा प्रसंगा। वहे जहां रामायण गंगा।।

बैठी सुने वाट को हेरें। कब गोस्‍वामी हमको टेरें।।

निरख गुसाई जी तब बोले। कहा हाल रतना मन डोले।।

सब कछु बातें जान गुसाई। लौट जाव अपने घर मांई।।

हर को तब रतना को लाई। चरनन छू कह देव विदाई।।

दोहा – बोले गोस्‍वामी तवहि, अब क्‍या मन रहि आय।

रामायण की एक प्रति, मोकूं देव गहाय।। 15 ।।

कल प्रात: ही जान चहुँ, लौट आपने धाम।।

और कछू मांगू नहीं, अंत गोद विश्राम।। 16 ।।

कहा गुसाई दे संतोषा। हमें राम का पूर्ण भरोसा।।

रात्री भोजन सब यहँ पावें। प्रात: काल हर्ष से जावें।।

कितनी चतुर हैं रतना मैया। मांगा क्‍या वर गति सुधरैया।।

फैली बात आश्रम हि जाई। कल मैया की होय विदाई।।

आटा दाल व्‍यवस्‍था कीनी। बॉंध पोटरी सब रख लीनी।।

कर भोजन कीनो विश्रामा। प्रात: चलने अपने धामा।।

प्रात काल उठ साज सजाई। रामू कह मठ चलिये भाई।।

कर तैयारी गुरू ढिंग आये। चरनन छू कर भेंट चढ़ायें।।

दोहा – सरसुति और शंकुन्‍तला, दीनी मैया भेंट।

इतना धन में क्‍या करूं, आय समय की पेंठ।। 17 ।।

भेंट लेय पति ढिंग धरी, कही स्‍वामि ले जाव।।

समय पाय आऊँ अवस, सीता राम कहाव।। 18 ।।

गोस्‍वामी प्रति रतना दीनी। सीस चढ़ाय हर्ष उर लीनी।

शिशु सम ताह गोद ले राखी। सिर धर चल भइ जै जै भाखी।।

सीताराम कह करी विदाई। सीताराम की फिरी दुहाई।।

भई राम धुन राह बताई। राजापुर सब चल हरषाई।।

राम नाम उच्‍चारण करते। मानो राम संग ही रमते।।

मनु जलूस रामायन केरा। जहं तहं लोग मुदित हैं हेरा।।

क्रम क्रम से लै सीस हि राखी। प्रेम मुदित राम ध्‍वनि भाखी।।

यों चलते राजापुर आये। समाचार सुन लेने धाये।।

दोहा – गाजे बाजे के सहित, मैया लई लिवाय।

सब ही मिल जुल प्रेम से, तखत दई पधराय।। 19 ।।

अपने अपने घर गये, रामायन रख आस।

मैया कहि कल से कथा, पहर तीसरे पास।। 20 ।।