Ishq a Bismil - 72 in Hindi Fiction Stories by Tasneem Kauser books and stories PDF | इश्क़ ए बिस्मिल - 72

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इश्क़ ए बिस्मिल - 72

अपने माज़ी (गुज़रा हुआ वक़्त)) के तसव्वुर (imagination) से हैराँ सी हूँ मैं
अपने गुज़रे हुए ऐयाम (दिनों) से नफ़रत है मुझे
अपनी बेकार तमन्नाओं पे शर्मिंदा हूँ
अपनी बसूद (बेकार) उम्मीदों पे निदामत (पछतावा) है मुझे
मेरे माज़ी को अंधेरे में दबा रहने दो
मेरा माज़ी मेरी ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं
मेरी उम्मीदों का हासिल, मेरी काविश (कोशिश) का सिला
एक बेनाम अज़ीयत के सिवा कुछ भी नहीं
कितनी बेकार उम्मीदों का सहारा लेकर
मैंने ऐंवाॅ (महल) सजाए थे किसी की खातिर
कितनी बेरब्त ( बिना जुड़ा हुआ) तमन्नाओं के मुबहम (जो साफ़ ना हो) ख़ाके (outlines)
अपने ख्वाबों में सजाए थे किसी की खातिर
मुझसे अब मेरी मोहब्बत के फसाने ना कहो
मुझ को कहने दो की मैंने उन्हें चाहा ही नहीं
और वो मस्त निगाहें जो मुझे भूल गई
मैंने उन मस्त निगाहों को सराहा ही नहीं
मुझ को कहने दो की मैं आज भी जी सकती हूँ
इश्क़ ना काम सही, ज़िंदगी ना काम नहीं
उनको अपनाने की ख़्वाहिश, उन्हें पाने की तलब
शौक बेकार सही, साए गम (एक दर्द भरी कोशिश) अंजाम (परिणाम) नहीं
वोही खुशबू, वोही नज़रें, वोही आरिज़(गाल), वोही जिस्म
मैं जो चाहूँ तो मुझे और भी मिल सकते है
वोह कंवल जिनको कभी उनके लिए खिलना था
उनकी नज़रों से बोहत दूर भी खिल सकते है
__साहिर लुधियानवी
अरीज ने ग़ज़ल पढ़ी थी और एक लंबी सांस खीच कर हवाओं के सुपुर्द कर दी थी। उस किताब को साइड टेबल पर रख कर वह अपने गुज़रे हुए ऐयाम (दिनों) को सोच रही थी। मगर अफ़सोस उसके पास तो सोचने के लिए कोई खूबसूरत पल था ही नहीं। आज जो मौजूदा हालात थे, उस पर वह अगर किसी से शिकवा भी करती तो क्या करती।
उमैर ने उसे मोहब्बत के कोई बोल नहीं थमाए थे, कोई वादा नहीं किया था जिसे तोड़ने का वह उसे मुजरिम ठेहराती। उस पर बेवफ़ाई का लैबल लगाती। अगर आज उसे तकलीफ़ हो रही थी तो इसकी ज़िम्मेदार शायद वह खुद ही थी।
बिना किसी सुनेहरे पल...कोई खुश ग़वार यादें... कोई वादा... कोई इज़हारे मोहब्बत के ही उसने उमैर से मोहब्बत करने का जुर्म जो किया था... तो अब सज़ा भी उसे खुद ही काटनी थी।
“अगर तुम उन्हें सम्झाओगे तो वो समझ जाएंगे.... एक बार ट्राई कर के तो देखो...” अज़ीन ने नाश्ते की टेबल पर हदीद से कहा था। वह दोनों स्कूल जाने के लिए तय्यार बैठे नाश्ता कर रहे थे।
“ये तुम्हें लगता है... मगर ऐसा होगा नहीं।“ हदीद ने उसके मशवरे को लाल झंडी दिखा दी थी।
तभी वहाँ पे उमैर पहुंच गया।
“अस्सलामो अलैकुम... क्या हाल है... स्कूल के लिए तय्यार?” उमैर ने उन दोनों को काफी खुशगवार अंदाज़ मे कहा था।
मगर उन दोनों ने उसे बोहत बेदिली से जवाब दिया था, जिसका नोटिस उमैर ने कर लिया था। साथ में वह ये भी देख रहा था की हदीद और अज़ीन जो उसके आने से पहले खुल कर बातें कर रहे थे अब उनकी बातें इशारों में हो रही थी या फिर बोहत धीमी आवाज़ में। वह समझ गया था की उन दोनों उसे अपने conversation में शामिल करना नहीं चाहते थे।
उमैर भी चुप चाप टेबल पर लगे नाश्ता को चेक करने लगा। उसके बाद उसने अपने लिए ग्लास में juice डाला और बेदिली से टोस्ट और egg poch लेकर खाने लगा... उसे उम्मीद थी की आज उसे कोई ढंग का नाश्ता करने को मिलेगा मगर यहाँ पे भी वही था जो वो पिछले दो सालों से खा रहा था।
“ये लो तुम दोनों का लंच बॉक्स तय्यार हो गया है... हदीद ध्यान रखना की अज़ीन इसे पूरा खतम कर ले।“ अरीज किचन से निकलती हुई अपने ध्यान में बोलते हुए डाइनिंग रूम में दाखिल दाखिल हो रही थी, लेकिन जैसे उसकी नज़र उमैर पर पड़ी उसके मूंह को ब्रेक लग गया।
उसने दोनों के लंच बॉक्स उनकी बैग में डाल रही थी। तभी उमैर ने हदीद से कहा था।
“हदीद वो नई मैड... उनका नाम क्या है?... उनसे पूछो नाश्ते में कुछ और नहीं है क्या?”
“आप थोड़ा रुकें मैं कुछ बना देती हूँ।“ अरीज उमैर से बोल पड़ी थी।
उमैर ने उसे देखा था। “मैं तुम से नहीं कह रहा।“ और जवाब देकर वही खाने लगा था।
अरीज भी चुप हो कर बैठ गई थी और नाश्ता करने लगी थी।
हदीद और अज़ीन की इशारे बाज़ी अभी तक जारी थी, फिर हदीद ने कहा था।
“देखा... मैंने कहा था ना कुछ नहीं हो सकता।“ कहा तो उसने धीमी आवाज़ में ही था, मग़र ख़ामोशी की वजह से उमैर और अरीज ने साफ़ साफ़ सुन लिया था।
हदीद और अज़ीन नाश्ता कर चुके थे और अब अपनी अपनी चेयर से उठ रहे थे जब उमैर ने उनसे कहा था।
“रुको!.... मेरे साथ चलना मैं तुम दोनों को ड्रॉप कर दूंगा।“ उमैर ने juice का एक सिप लेते हुए कहा था।
“और भाभी?....वो भी हमारे साथ जाती है।“ हदीद ने मौके पे चौका मारा था मगर उसकी बात ने उमैर को चौंका दिया था। उसने पहले हदीद फिर अरीज को देखा था जो हदीद को अपनी आँखें बड़ी कर के हैरानी से देख रही।
“हदीद!... “ अरीज उसे टोके बग़ैर नहीं रह सकी थी।
“Sorry मूंह से गलती से निकल गया था।“ हदीद की बात पर अज़ीन मुस्कुरा उठी थी। उसका दिल चाह रहा था इस बात पर उसकी पीठ थपथपा कर उसे शाबाशी दे।
“दुबारा ऐसी गलती भूल से भी मत करना।“ अरीज ने उसे समझाया था। उमैर मग़र बिल्कुल चुप रहा था।
आगे और क्या क्या ये बच्चे करते इस से पहले वह यहाँ से निकल जाना ही बेहतर समझ रहा था। वह भी चेयर से उठा था और अरीज को देख रहा था वह दरसाल उसके नाश्ता खत्म होने का इंतेज़ार कर रहा था। अपने चेहरे पर उमैर की नज़रों की तपिश महसूस कर के उसने उमैर को देखा था और उसे इंतेज़ार करते हुए देख कर कहा था।
“आप तीनों जाएं... मैं टैक्सी कर के चली जाऊंगी।“ अरीज उमैर के साथ नहीं जाना चाहती थी।
“जल्दी करो मैं कार में तुम्हारा इंतेज़ार कर रहा हूँ।“ वह इतना कह कर उन दोनों को लेकर चला गया था।
अब अरीज को उसके साथ ना चाहते हुए भी जाना पड़ रहा था। वह जल्दी जल्दी आधा अधूरा नाश्ता कर के उठ गई थी। तय्यार तो वह पहले ही से थी।
कार पोर्च में पहुंच कर उमैर ने उन दोनों के लिए पीछे का दरवाज़ा खोला था। हदीद तो चुप चाप बैठ गया मगर अज़ीन उमैर को देखने लगी जैसे कुछ सोच रही हो और कुछ कहने के लिए खुद को तय्यार कर रही हो।
उमैर दरवाज़ा पकड़ कर उसके बैठने के इंतेज़ार में खड़ा था और उसे खुद को तकता हुआ पा कर उसे सवालिया नज़रों से देख रहा था। अरीज ने कुछ सोच कर उसे इशारों में झुकने को कहा था। उमैर ने उसकी बात मान कर थोड़ा झुका था। अज़ीन के उसके कान में कहा था।
“मेरी आपी उस से ज़्यादा अच्छी है।“ उमैर ये सुन कर अज़ीन को बेयकिनी से देखने लगा था।
तभी तेज़ तेज़ चलती हुई अरीज भी वहाँ आ रही थी। उमैर अब अज़ीन को छोड़ अरीज को देख रहा था।
क्या होगा आगे?
जितनी अकल हदीद और अज़ीन को है क्या उतनी अकल उमैर लगा कर अरीज को अपना लेगा?