Picnic in Hindi Motivational Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | पिकनिक  

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पिकनिक  

प्रिया एक प्राइमरी स्कूल में टीचर थी। उसके दो बच्चे थे, आठ साल का बेटा युवान और सात साल की बेटी रुहानी। अभी युवान तीसरी क्लास में था और रुहानी दूसरी क्लास में। प्रिया उन्हीं के स्कूल में टीचर थी। वह युवान की क्लास को पढ़ाती थी। रुहानी की क्लास में एक लड़का था विवेक जो कि ठीक तरह से बोल नहीं पाता था। किसी-किसी शब्द में वह अटक जाता था। इसलिए कई बच्चे क्लास में उसका मज़ाक उड़ाते थे, उस पर हँसते भी थे। उनकी टीचर को इस बात की भनक तक नहीं थी क्योंकि बच्चे ना उनके सामने विवेक का मज़ाक उड़ाते और ना ही कभी विवेक उन बच्चों की टीचर से शिकायत ही करता। विवेक मन ही मन बहुत दुःखी हो जाता था। वह उदास भी रहने लगा था।  
 
घर पर जब उसकी मम्मी उससे पूछती, "क्या हुआ विवेक कोई तकलीफ़ है क्या? क्यों इतने गुमसुम रहते हो?"   
 
"कुछ भी तो नहीं मम्मी," वह अपनी मम्मी से भी कभी यह नहीं कह पाता था कि बच्चे उसका मज़ाक उड़ाते हैं।  

लेकिन विवेक की माँ अपने बच्चे की कमज़ोरी जानती थी, उसका दर्द पहचानती थी। वह हमेशा भगवान से यह प्रार्थना करती थी कि हे प्रभु हमारे विवेक को जल्दी से ठीक कर दो। अपने बच्चे को उदास देखकर वह भी दुःखी हो जाती थी। 
 
एक दिन घर पर युवान और रुहानी दोनों भाई-बहन साथ में पढ़ाई कर रहे थे। रुहानी ने युवान से कहा, " युवान भैया मेरी क्लास में कुछ बच्चे विवेक का मज़ाक उड़ाते हैं । उसे हकला-हकला कहकर बुलाते हैं।"  
 
"रुहानी, तू तो नहीं उड़ाती उसका मज़ाक?"  
 
"नहीं भैया, मुझे तो बहुत बुरा लगता है, जब सब उसे चिढ़ाते हैं। वह बेचारा किसी को कुछ नहीं बोलता।"  
 
युवान ने कहा, "मेरी क्लास में भी एक लड़की है रश्मि, उसकी आँखों में कुछ तकलीफ़ है। उसके साथ भी ऐसा ही व्यवहार करते हैं।"  
  
अब तक प्रिया दोनों बच्चों की बातें सुन चुकी थी। वह तुरंत ही उनके पास आई और बोली, "बेटा इस तरह किसी का मज़ाक उड़ाना, उनका अपमान करना, उन पर हँसना बिल्कुल अच्छी बात नहीं है। इसमें उन बच्चों की क्या ग़लती है कि उनमें कोई कमी रह गई है। यह तो सब भगवान के हाथ में है।"   
  
प्रिया को आज बच्चों के मुँह से यह सब सुनकर बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। वह सोच रही थी उसे इसे रोकना होगा। उन बच्चों को इस बात का एहसास दिलाना होगा कि ऐसा करके वह कितना ग़लत कर रहे हैं। 
 
प्रिया ने मन ही मन यह तय कर लिया कि अगले हफ़्ते पिकनिक पर बच्चों को लेकर जाना है तो वह उन्हें ऐसे ही किसी स्कूल में ले कर जाएगी जहाँ इस तरह के बच्चे होते हैं जिनमें कुछ शारीरिक कमी रह जाती है। वह अपने स्कूल के बच्चों को यह एहसास दिलाएगी कि वह बच्चे किसी से कम नहीं होते। वह भी प्रतिभाशाली और सक्षम होते हैं।  
 
प्रिया ने स्कूल की प्रिंसिपल मैडम से बात की, "मैडम इस बार मैं बच्चों को पिकनिक के लिए किसी बगीचे या ज़ू में नहीं बल्कि मानसिक तौर से पिछड़े बच्चों का स्कूल दिखाने ले जाना चाहती हूँ। वहाँ पास के दिव्यांग बच्चों के स्कूल से भी बच्चों को बुला लेंगे।"   
 
प्रिंसिपल ने पूछा, "प्रिया तुम्हें अचानक ऐसा ख़्याल क्यों आया?"   
 
प्रिया ने कहा, "मैडम हमारे स्कूल के कुछ बच्चे उन बच्चों का मजाक उड़ाते हैं, उन्हें हेय दृष्टि से देखते हैं। मैडम मैंने मेरे बच्चों को बात करते हुए सुना था। रुहानी बता रही थी कि उसकी क्लास में एक लड़का है जो ठीक से बोल नहीं पाता। अटक-अटक कर बोलता है तो क्लास के दूसरे कई बच्चे उसका मज़ाक उड़ाते हैं। कोई उसे हकला कहता है तो कोई हकलू। मैडम मैं बच्चों को यह सीख देना चाहती हूँ कि ऐसा किसी के भी साथ हो सकता है। हमें अपने बच्चों को सिखाना होगा कि उनके साथ मित्रता से पेश आएं और उन्हें अलग ना समझें।" 
 
प्रिंसिपल मैडम ने कहा, "वाह प्रिया यह तुम्हारी दूरदर्शिता मुझे बहुत पसंद आई। बच्चों को यह सिखाना बहुत ज़रूरी है। यह पिकनिक हर साल की पिकनिक से बिल्कुल अलग होगी। प्रिया तुम अपने साथ अर्पिता को भी रख लेना ताकि तुम दोनों मिलकर बच्चों का ख़्याल रख सको।" 
 
"जी ठीक है मैडम।"  
 
प्रिया ने अपनी क्लास के साथ ही साथ रुहानी की क्लास के बच्चों को भी इस पिकनिक में साथ में ले जाने के लिए उनकी क्लास टीचर अर्पिता से बात की । अर्पिता ने प्रिया की बात सुनकर तुरंत ही हाँ कह दिया। 
 
आज शुक्रवार था, पिकनिक पर जाने का दिन। सुबह दस बजे सभी बच्चे एकत्रित हो गए। प्रिया ने सभी बच्चों से कहा, "आज हम तुम्हें एक ऐसे स्कूल में लेकर जाने वाले हैं, जहाँ तुम्हें वह बच्चे मिलेंगे जो तुम्हारे से थोड़े अलग हैं। इनमें कुछ बच्चे दिव्यांग, कुछ मंद बुद्धि हैं लेकिन तुम्हारे जितने ही होशियार और प्रतिभाशाली हैं। यह भी हो सकता है कि उनमें से कई बच्चे आप लोगों से भी ज्यादा होशियार हों, ज्यादा प्रतिभावान हों। "  
 
अर्पिता और प्रिया ने उस स्कूल में जाकर पहले से ही बात कर ली थी और उनकी प्रिंसिपल की परमिशन भी ले ली थी। यह सारे बच्चे जब वहाँ पहुँचे तो उस स्कूल के बच्चों ने प्रिया और अर्पिता टीचर का स्वागत किया। इन बच्चों को देखकर वह सारे बच्चे बहुत ख़ुश हुए। 
 
आज का पूरा दिन यह बच्चे इसी स्कूल में बिताने वाले थे। आज यहाँ छोटे-छोटे से कई कार्यक्रम थे। विभिन्न वेशभूषा, सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य, संगीत, खेल -कूद। कोई बच्चा बहुत अच्छा तबला बजाता, कोई हारमोनियम तो कोई बांसुरी और कोई गिटार। वहाँ किसी की ड्राइंग बहुत अच्छी थी, तो किसी की पेंटिंग। भांति-भांति की कलाओं से सुसज्जित थे वहाँ के बच्चे। कुछ बच्चे पढ़ने में बहुत ही होशियार थे। नृत्य संगीत में भी पीछे नहीं थे।  
 
शारीरिक रुप से कमज़ोर होने के बावज़ूद भी यह बच्चे हमेशा ख़ुश दिखाई देते थे क्योंकि उन्होंने अपनी इन कमियों को स्वीकार करके उनसे लड़ना सीख लिया था। कुछ छोटे-छोटे बच्चे थे जो अभी सीख रहे थे। सब साथ में ख़ुशी-ख़ुशी खेलते थे। वहाँ का यह दृश्य देख कर आज़ाद हिंद स्कूल के बच्चे हैरान रह गए। वह यह सोचने पर मजबूर हो गए कि सच में यह तो कितने प्रतिभाशाली हैं।  
 
एक स्कैच को देखकर रुहानी ने कहा, "देखो यह स्कैच कितना अच्छा है और कितना सही। इस स्कैच में एक बच्चा देख नहीं सकता तो दूसरा जिसका केवल एक ही पाँव है वह उसे रास्ता पार करवा रहा है।"   
 
तभी अर्पिता ने भी वह स्कैच देखा तो उसके मुँह से अनायास ही निकल गया, "वाह देखो बच्चों यह स्कैच तो अद्भुत है, कितना प्रेरणादायक है। तुम में से तो शायद यह स्कैच कोई भी नहीं बना पाएगा।"   
 
तभी प्रिया ने एक बच्चे को देखा जो बहुत ही जल्दी-जल्दी बिना रुके कब से रस्सी कूद रहा था। वह बिल्कुल ठीक लग रहा था। प्रिया ने उनकी टीचर स्मृति से कहा, " मिस स्मृति एक बात पूछूँ?" 
 
"हाँ प्रिया पूछो ना?" 
 
"वो देखो वह लड़का जो रस्सी कूद रहा है, एकदम फिट लग रहा है। वह यहाँ क्यों है? उसे क्या परेशानी है?"   
 
"प्रिया वह लड़का पूरा फिट है किंतु बोलने में बहुत ज़्यादा हकलाता है। अच्छे से बोल ही नहीं पाता,  फिर भी यदि हम ध्यान दें और उसकी बात को समझने के लिए थोड़ा सा समय दें, तो समझ में आ जाता है कि वह क्या बोल रहा है। उसके माता-पिता ने उसे आपके जैसे ही किसी स्कूल में डाला था किंतु वहां के कुछ बच्चों ने उसे चिढ़ा-चिढ़ा कर इतना परेशान कर दिया कि उसका हकलाना और भी बढ़ गया। तब उसने स्कूल जाने से ही इंकार कर दिया। उसके पेरेंट्स ने वहाँ की प्रिंसिपल से शिकायत भी की थी। उन्होंने उन बच्चों को बहुत डांटा, समझाया भी। उन बच्चों ने सॉरी भी कहा किंतु इस सौरभ ने तो ठान ही लिया था कि वह उस स्कूल में नहीं जाएगा। शायद वह अपना अपमान बर्दाश्त नहीं कर पाया। इसलिए उसके पेरेंट्स ने उसे यहाँ हमारे बाल कल्याण स्कूल में भेज दिया। यहाँ वह बहुत ख़ुश है क्योंकि यहाँ उसे चिढ़ाने वाला कोई नहीं है। सब उससे प्यार करते हैं। वह दौड़ता भी बहुत ही तेज़ है। दौड़ने में तो उसकी रफ़्तार देखकर आश्चर्य होता है।" 
 
अर्पिता यह सारी बातें सुन रही थी। उसने कहा, "प्रिया क्यों ना इन बच्चों की रेस कराई जाए। मेरी क्लास का विवेक जो ठीक से बोल नहीं पाता उसे बच्चे चिढ़ाते हैं ना। उन्हें एहसास दिलाया जाना चाहिए कि यह बच्चे भी उन से कम नहीं हैं।" 
 
अर्पिता ने अपनी क्लास में से चार बच्चों को बुलाया और सौरभ को भी। चारों बच्चे जोश में थे, दौड़ पाँचों के बीच शुरू हुई। किंतु इस रेस में सौरभ फर्स्ट आया। सारे बच्चे उसकी दौड़ने की रफ़्तार देखकर आश्चर्यचकित थे। जीतने के बाद सौरभ तुरंत ही वापस जाने लगा। वह इन बच्चों से बात करने में घबरा रहा था। 
 
तभी युवान ने उसे रोककर कहा, "ऐ सौरभ कांग्रेचुलेशन! तुम तो बहुत तेज़ दौड़ते हो।"  
  
युवान को देखकर दूसरे बच्चे भी आकर उसे बधाई देने लगे। सौरभ को यह बहुत अच्छा लगा। अर्पिता और प्रिया ने भी सौरभ को बुलाया और बधाई दी।  
 
प्रिया ने कहा, "सौरभ क्या तुम हमारी स्कूल में पढ़ने आना चाहोगे?"  
 
उसने कहा, "न… न …न …  नहीं मिस मुझे यहाँ बहुत अ… अ …अ … अ …अच्छा लगता है।" 
 
इतना कहकर सौरभ ने युवान और सभी बच्चों की तरफ मुड़ कर देखा और कहा थैंक यू।  
 
उसके जाने के बाद प्रिया ने स्मृति से कहा, "स्मृति यह तो मुझे काफी ठीक लग रहा है।"  
  
"हाँ प्रिया यहाँ आने के बाद उस में बहुत फ़र्क आया है। उसके पेरेंट्स ने उसके लिए एक पर्सनल टीचर भी लगवा दी है। जो उसे बोलने में काफी मदद करती है।" 
 
"स्मृति आप लोगों को भी काफी मेहनत करनी पड़ती है ना, इन बच्चों के साथ?" प्रिया ने पूछा।   
 
"हाँ प्रिया काफी धैर्य की ज़रूरत होती है इन बच्चों के साथ लेकिन भगवान उन्हें भी कुछ ना कुछ तो अवश्य ही देते हैं।"  
 
"हाँ तुम ठीक कह रही हो स्मृति," प्रिया ने कहा।  
 
इतने सुंदर और इतने प्यारे-प्यारे बच्चों को देखकर प्रिया थोड़ी भावुक हो रही थी।  
 
तब स्मृति ने कहा, "प्रिया हम कभी भी इन बच्चों के सामने कमज़ोर नहीं होते, भावुक नहीं होते। वह बेचारे हैं यह बोध उन्हें कभी नहीं होने देते। हम उन्हें हमेशा हिम्मत और साहस के साथ हालातों से मुकाबला करना सिखाते हैं।" 
 
"प्रिया जब इन बच्चों के पेरेंट्स यहाँ आते हैं इनकी एक्टिविटी देखकर बहुत ख़ुश हो जाते हैं। ख़ुशी के आँसू उनकी आँखों में छलक आते हैं। कई तो बहुत ही ज़्यादा भावुक हो जाते हैं। तब हम उन्हें भी यही समझाते हैं कि इन बच्चों के सामने आँसू बहा कर उन्हें उनकी कमज़ोरी का एहसास मत दिलाओ। उनके सामने ख़ुश रहो, उनकी तारीफ़ करो, उनका हौसला बढ़ाओ ताकि वह कभी भी हिम्मत ना हारें।" 
 
"आप लोगों का काम बहुत कठिन है," प्रिया ने कहा। 
 
"हाँ प्रिया उनका हौसला बढ़ाना ही हमारा पहला ध्येय, पहला उद्देश्य होता है। तुम्हें पता है जब हम पूरी ट्रेनिंग लेकर यहाँ आते हैं। तब शुरू में कुछ दिनों तक बहुत मुश्किल होता है, इन बच्चों को इस तरह देखना। जब हम उन्हें कुछ सिखाते हैं और वे सीखने लगते हैं तब उन्हें देखकर हममें भी और अधिक हिम्मत आने लगती है। सच कहूँ तो यह बच्चे हमें संघर्ष करना सिखाते हैं। जितना हम कर सकते हैं, उससे कहीं अधिक संघर्ष सिखाते हैं।" 
 
प्रिया और अर्पिता की क्लास के सारे बच्चे यह सब देख रहे थे और दोनों टीचरों की बातें सुन भी रहे थे। आज उन बच्चों की आँखें स्वयं ही शर्म से नीचे झुकी हुई थीं जो विवेक को चिढ़ाते थे। रश्मि को कहीं पर निगाहें और कहीं पर निशाना कहकर सताते थे। 
 
आज उन्हें याद आ रहा था कि विवेक को वह कैसे कह देते थे, छोड़ यार, तुझ से बोलना नहीं होगा। इतना समय नहीं है हमारे पास तेरी बात सुनने के लिए। जा कल आना। आज वह सारे बच्चे यह देखकर हैरान थे कि यह बच्चे उनसे किसी भी हालत में कम नहीं हैं। 
 
आज का पूरा दिन आज़ाद हिंद के बच्चे यहाँ पर ही थे और आज उन्हें इन बच्चों की क्षमता, इच्छा शक्ति और ख़ुद पर विश्वास का पता चल रहा था। वह बच्चे जिन्हें भगवान ने संपूर्ण नहीं बनाया, सब कुछ नहीं दिया फिर भी वह स्वयं से लड़ कर, हालातों से लड़ कर, इतना कुछ कर लेते हैं। वह अपने अंदर की कमी से, अपनी मेहनत और लगन से जीतते हैं। 
 
यहाँ आकर आज़ाद हिंद स्कूल के सभी बच्चे बहुत ख़ुश थे। उन बच्चों की आपस में दोस्ती भी हो गई थी।  
 
प्रिया ने अपनी स्कूल के बच्चों से पूछा, "क्या अगले पिकनिक पर वापस यहाँ आना चाहोगे?"   
 
सब की एक ही आवाज़ आई यस टीचर। 
 
अब क्लास के सब बच्चे विवेक के दोस्त बन गए। सौरभ की तरह उसे अपना यह स्कूल छोड़कर नहीं जाना पड़ा। अब वह भी सभी बच्चों की तरह ख़ुश रहता था। वह घर पर भी ख़ुश होकर अपने पेरेंट्स को बताता था कि अब उसके भी बहुत सारे दोस्त बन गए हैं। सब उसके साथ खेलते हैं और बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं। यह सुनकर उसके पेरेंट्स को जिस ख़ुशी का एहसास होता होगा उसे शब्दों में बयान करना असंभव है। 
 
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 

स्वरचित और मौलिक