Secret of universe - 6 in Hindi Science by Rajveer Kotadiya । रावण । books and stories PDF | Secret of universe - 6 - रात अंधेरी क्यों ?

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Secret of universe - 6 - रात अंधेरी क्यों ?

वर्ष 1826 में वियना के एक चिकित्सक ओल्बर्स ने एक प्रश्न उठाया कि रात में आकाश अंधकारपूर्ण क्यों रहता है? ओल्बर्स ने यह माना कि ब्रह्मांड अनादि है और अनंत रूप से विस्तृत है तथा तारों से समान रूप से भरा हुआ है। यहाँ पर यह प्रश्न उठता है कि इन सभी तारों से हमें कुल कितना प्रकाश प्राप्त होना चाहिए? दूर स्थित तारा अधिक प्रकाश नहीं भेज सकता है क्योंकि भौतिकी का यह नियम है कि कोई भी प्रकाशवान वस्तु प्रेक्षक से जितनी अधिक दूर होती है, उससे आनेवाला प्रकाश उतना ही कम मिलता है। परन्तु जितना अधिक दूर हम देखते है, उतने ही अधिक तारे हमे दिखाई देते हैं तथा उनकी संख्या इस दूरी के वर्ग के अनुपात में बढती जाती है। ये दोनों ही प्रभाव एक दूसरे को निष्फल कर देते हैं। अत: एक निश्चित दूरी पर स्थित तारे कुल मिलकर हमे एक जैसा ही प्रकाश देते हैं फिर चाहें वे पास हों या दूर!

इससे चिकित्सक ओल्बर्स ने यह निष्कर्ष निकाला कि चूँकि तारे असीमित दूरी तक फैले हुए हैं इसलिए हम तक पहुंचने वाला उनका सम्मिलित प्रकाश भी असीमित होगा। दूसरे शब्दों में सूर्य चाहें हो या न हो, चाहें रात हो या दिन हो आकाश असीमित रूप से प्रकाशमान होना चाहिए। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है क्योंकि यदि आकाश इतना अधिक प्रकाशमान होता तो हमारा अस्तित्व ही नहीं होता। मगर ओल्बर्स ने भी सामान्य तर्कों तथा गणित की सहायता से यह सिद्ध कर दिया कि रात्रि आकाश अंधकारमय होने की बजाय अत्यधिक मात्रा में प्रकाशवान होना चाहिए। इस गणना को ओल्बर्स विरोधाभास के नाम से जाना जाता है। उस समय के वैज्ञानिकों को स्पष्ट रूप से लगा कि ओल्बर्स के इस तर्क में कोई न कोई गलती अवश्य है। परंतु गणितीय दृष्टि से मजबूत होने के कारण उस समय ओल्बर्स के विवेचन में कोई भी गलती नहीं निकाली जा सकी। आधुनिक ब्रह्मांड विज्ञान ने ओल्बर्स के विवेचन में क्या त्रुटि निकाली, इसकी चर्चा हम बाद में करेंगे।
स्थिर ब्रह्मांड की अवधारणा
जब हम आकाश की ओर देखतें हैं तो हमे आकाश में न तो फैलाव दिखाई पड़ता है और न ही सिकुड़न तब हम उस स्थिति में आकाश को स्थिर आकाश कह सकते हैं। इस स्थिति में कोई भी विचारशील व्यक्ति यही मानेगा कि ब्रह्मांड का आकारसीमित है तथा इसका कुल द्रव्यमान निश्चित है, इसलिए ब्रह्मांड समय के साथ अपरिवर्तित (स्थिर) है।
फैलता हुआ ब्रह्मांड
बीसवीसदी के प्रारम्भ में कोई भी वैज्ञानिक नहीं जानता था कि तारों से परे ब्रह्मांड का विस्तार कहाँ तक है। वर्ष 1920 में खगोलविदों द्वारा एक अन्तर्राष्ट्रीय विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें ब्रह्मांड के विस्तार एवं आकार पर चर्चा होनी थी। हार्लो शेप्ली Harlow Shapley तथा बहुसंख्य खगोलविद इस मत के पक्ष में थे कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड का विस्तार हमारी आकाशगंगा तक ही सीमित है। दूसरी तरफ हेबर क्यूर्टिस Haber Curtis तथा कुछ थोड़े से लोगों का मानना था कि हमारी आकाशगंगा की ही तरह ब्रह्मांड में दूसरी भी आकाशगंगाएं हैं, जो हमारी आकाशगंगा से अलग अस्तित्व रखती हैं। जैसा कि बड़ी-बड़ी विचार गोष्ठियों में होता है, इस बैठक में भी बहुमत का ही पलड़ा भारी रहा।