Milan.. in Hindi Short Stories by Navjot Kaur books and stories PDF | मिलन

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मिलन

शादी के 6 महीने बाद भी अपनी पत्नी के प्यार को तरस रहा था मंयक...वजह थी...मंयक की साधारन सी छवि,और साधारन सी नौकरी....कोई बनावट नही...संयम से काम लेने वाला, गुस्सा तो मंयक को आता ही नही था ...अपनी प्राची को भी देखते ही पंसद कर लिया था मंयक ने....

प्राची गेहूआ रंग,तीखे नैन नक्श ,के साथ बला की खुबसूरत थी....बस एक ही कमी थी उसमे...कि वो खुद की तुलना हमेशा दूसरो से करती थी....
इस शादी के लिए भी वो राजी नही थी ...पर पिता की बीमारी...और मा के भारी भारी...डायलोग के सामने उसकी एक ना चली....वो किसी को बोल ही नही पाई कि उसे ये रिश्ता मंजूर नही...और ना ही उससे किसी ने कुछ पुछा...क्योकि सभी जानते थे...अल्हड पने मे प्राची गलत फैसला ही लेगी...फिर मंयक बहुत ही अच्छा और सुलझा हुआ लडका था...तो चट मंगनी पट ब्याह वाली बात हो गई....
और हद तो तब हो गई ...जब प्राची की पक्की सहेली की शादी...एक बहुत ही अमीर घर मे तय हो गई...फिर तो प्राची के जलने की कोई हद ना रही...
एक तो शादी के लिए किसी ने उससे कुछ पूछा नही...और शादी भी की तो एक मामूली सी नौकरी करने वाले से...(प्राची की नजर मे) ...अँदर ही अँदर घूट रही थी...

और उसका सारा गुस्सा बाहर निकला ..शादी की पहली रात को...जब मंयक उसके पास गया...तो वो फट पडी....

खबरदार जो मेरे करीब आए ...क्या सोचकर तुमने मुझसे शादी की हा...पता नही मेरे पिता जी को तुम मे क्या दिखा...

मंयक बहुत ही शांति से उसकी बात सुन रहा था...
तो क्या तुमसे पूछा नही किसी ने....

अरे मुझसे पूछते तो...मना नही कर देती मै.....

क्या तुम किसी और से...मंयक के शब्द बीच मे ही रह जाते है....

उसकी बात पर गुस्से से तमतमाती हुई बोलती है..प्राची...बस तुम लडको की सोच ना यही तक सीमित है...अरे हम लडकियो के कोई और अरमान नही हो सकते क्या,और कोई वजह नही हो सकती क्या...
मंयक को अपनी कही बात पर पछतावा होता है...वो माफी मांगता है...और कहता है...मै अपने शब्द वापस लेता हू....चलो बताओ क्या बात है....

बात है...जैसे जीवन साथी की मैने कल्पना की थी...तुम वैसे नही हो...ना रूप ,ना रंग,ना पैसा....मै नही मानती इस शादी को...मेरे करीब आने की कोशिश भी मत करना....ये बोल वो करवट बदल कर लेट जाती है...और रोते रोते सो जाती है.....

पर मंयक की आँखो मे नीद नही होती...प्लंग के एक सिरहाने पर वो लेटा हुआ खुली आँखो से बस छत को देखता रहता है....प्राची के कहे शब्द उसके कानो मे घूम रहे थे....

कुछ दिन बीत जाते है...मंयक हर तरीके से प्राची का दिल जीतने की कोशिश करता है...पर सब बेकार...क्योकि प्राची ने ये तय कर लिया था कि..मंयक को इतना परेशान करेगी...कि वो खुद ही उसे छोड देगा....

घर का माहौल खराब ना हो..और सांस ससुर की नजर मे प्राची की छवि खराब ना हो ..ये सोचकर मंयक उसे अपने साथ शहर ही ले जाता है...जहा वो नौकरी करता था...

हालाकि...उसकी नौकरी इतनी छोटी भी नही थी कि..वो प्राची की खुशियो का ख्याल ना रख पाए...बस प्राची की दूसरो से तुलना करने की आदात . ...उसकी ग्रहस्थी खराब कर रही थी. .जिसकी अभी उसे समझ नही थी...

खैर वो प्राची को लेकर घर आता है...स्वागत है आपका मैडम...वो दरवाजे पर खडा बोलता है....

दो कमरे का छोटा सा घर पर साफ सुथरा,जिसमे जरूरत का सारा सामान मौजूद था...

प्राची मूंह बनाके...स्वागत तो ऐसे कर रहे हो..जैसे राजमहल मे लेकर आए हो...

प्राची की बाते..मंयक का दिल तोड देती थी...पर मंयक हर बार हसकर टाल देता था....

अगले दिन सुबह...प्राची आराम से सो रही थी....
मंयक...उठो प्राची...मुझे लेट हो जाएगा....जल्दी नाश्ता बना दो....

प्राची ...मुझसे कोई उम्मीद मत रखो ..समझे...मै नही बनाने वाली कोई नाश्ता ...ये बोल वो करवट ले लेती है..मन मे...अब तो पक्का झगडा होगा....

मंयक हसकर...कोई बात नही...पहले भी मै खुद ही बनाता था...अब भी बना लूंगा...बताओ क्या खाओगी....

प्राची मन मे...किस मिट्टी का बना है ये आदमी...कितना भी कुछ कह दो...गुस्सा ही नही करता .....
मंयक..बोलो जल्दी क्या खाओगी...

जहर....प्राची बोलती है...

अब जहर तो मुझे बनाना नही आता ,उसके लिए तो तुम्हे खुद ही मेहनत करनी पडेगी...ये बोल वो हसता हुआ..किचन मे चला जाता है....

प्राची झल्ला जाती है...उसकी बात पर...पर वो उठती नही है...

कुछ समय बाद मंयक वापस आता है...मैने तुम्हारे लिए भी नाश्ता बना दिया है..ओके...ये बोल वो जल्दी से उसका माथा चूम लेता है...और बाय करके चला जाता है...

ये सब इतनी जल्दी होता है...कि प्राची को कुछ समझ नही आता...आज मंयक ने पहली बार उसे छुआ था..एक मिट्ठा सा एहसास..उसके अँदर दौड गया..पर जल्दी ही...फिर से वही सब उसके दिमाग मे घूमने लगता है...
वो उठती है...और नहाकर तैयार हो जाती है....

बाहर आकर देखती है...टेबल पर नाश्ता रखा हुआ था और साथ मे एक चिट्ठी भी...

वो चिट्ठी पढने लगती है....

हम्म अब तो उठ गई ना...तुम्हारे तकिए के नीचे कुछ पैसे रखे है...घर पर बैठकर..बोर होने की जरूरत नही है...पास मे ही माल है...वहा जाओ...और जिस चीज की जरूरत हो वो ले आओ.....
शाम को जल्दी आ जाऊँगा....
तुम्हारा ...मंयक...

चिट्ठी पढकर हल्की सी स्माइल आ जाती है उसके चेहरे पर...
और वो चली जाती है...बाहर...

माल मे घूमते हुए ..उसकी नजर अपनी सहेली...रूपाली पर पडी...
उसने आवाज लगाई ..रूपाली....
रूपाली को देखते ही उसकी आखे फटी रह गई...मंहगी साडी..गहने ...क्या ठाठ थी रूपाली की....

रूपाली उसको देखकर...खुशी से अपने गले लगा लेती है....तू यहा,कैसी है तू...बहुत सुंदर लग रही है....
प्राची होश मे आते हुए....अच्छी हू...तू तो पहचान मे भी नही आ रही.....

इतने मे हैंडसम सा लडका रूपाली के पास आकर...मुझे नही मिलाओगी अपनी सहेली है.....
प्राची ये है मेरे पति....

अब तो प्राची के जलने की कोई सीमा नही रही थी...रूपाली का पति बिस्कुल वैसा था ...जिसकी कल्पना कभी प्राची ने की थी...बस अब तो उसे मंयक पर और भी गुस्सा आने लगा था...

उस पर से रूपाली के पति का रूपाली के लिए बेहिसाहब प्यार ...आग मे घी डालने का काम कर रहा था...
वो प्राची के सामने ही ...उसको ज्वैलर्स की दुकान पर ले गया और रूपाली के मना करने के बावजूद भी उसके गले मे सोने की चैन पहना दी थी...
मन मे कितनी लक्की है रूपाली...और एक मै...हहह बस दस हजार रूपये दे दिए ...जाओ शांपिग करलो....

दन दनाती हुई वो वापस आ जाती है...और गुस्से से सारा समान वही सोफे पर पटक देती है....

और खुद खडी हो जाती है...खिडकी पर जाकर...

कुछ समय बाद मंयक आता है....

खिडकी पर खडी ...प्राची पर नजर जाती है...गुलाबी रंग की साडी मे वो कहर ढा रही थी....दिल मचल उठा था मंयक का....

वो धीरे से उसके पीछे जाता है...और उसके बालो मे गजरा लगाने लगता है...अचानक से हुई इस हरकत से प्राची सम्भल नही पाती...वो पीछे पलटती है...तो मंयक को खुद के बेहद करीब पाती है.....

गजरा लगा कर मंयक उसको आईने के सामने ले जाता है...और पूछता है...कैसा लगा...

गुस्से से अपने बालो से गजरा निकाल वो...कूडे मे फेंक देती है...मंयक उसकी तरफ हैरानी से देखता है....

ये लाए हो तुम मेरे लिए...इतना मामूली सा तोहफा ..खैर मै क्यो शिकायत कर रही हू....जबकि मुझे पता है...इससे ज्यादा देने की औकात नही है तुम्हारी.....
उसका एक लफ्ज मंयक का सीना छलनी कर रहा था....

पर भी प्राची का चेहरा अपने दोनो हाथो मे लेकर...क्या हुआ है...प्राची ..क्यू तुम हर समय ऐसा व्यवहार करती हो मेरे साथ....

मै तुमसे बहुत प्यार करता हू...मै वो लाऊगा तुम्हारे लिए ...जो जो तुम्हे चाहिए....दिन रात मेहनत करूंगा...तुम्हारा हर सपना पूरा करूंगा....बस तुम अपने दिल मे थोडी सी जगह दे दो मुझे....थोडा सा प्यार देदो...प्लीज...ये बोल वो प्राची को अपने सीने से लगा लेता है....
पर प्राची ...उसको दूर धक्केल देती है....

नही चाहिए मुझे तुमसे कुछ भी...दम घुटता है ..मेरा इस घर मे..इस रिश्ते मे....आजाद होना चाहती हू मै....तुमसे ...तलाक चाहिए ....बोलो दे सकोगे....

उसकी बातो से मंयक की आँखो मे आसू आ जाते है....दिल बुरी तरह टूट जाता है उसका.....
ठीक है...अगर तुम्हारी यही इच्छा है...तो यही सही....बस मुझे थोडा टाईम दो...जल्द ही मै तलाक के पैपर तैयार करवाता हू ...

ये बोल वो घर से बाहर चला जाता है....और प्राची वही बैेठ रोने लगती है....

दिन बीत रहे थे...मंयक अब प्राची से बहुत कम बात करता था...बस उतनी जितनी जरूरत हो....और ना ही प्राची कोशिश करती थी कभी उससे बात करने की.....
सुबह जल्दी उठ नाश्ता बना देती थी....मंयक भी चुपचाप खा लेता और आफिस चला जाता .....

और रात को देर से आता.....बस यही रूटीन हो गया था उसका....

एक दिन प्राची...किसी काम से बाहर गई ....कि एक रेस्ट्रोरैंट मे बैठे रूपाली के पति पर उसकी नजर गई ...जो किसी लडकी के साथ था...और दोनो बहुत ही करीब थे...
प्राची को तो विश्वाश नही हो रहा था.....

ये ..ये तो रूपाली के पति.....ये ऐसे किसी के साथ.....

उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है.....वो उलटे पैर वापस घर आ जाती है.....
रात को मंयक आता है...तो देखता है...कि आज प्राची खोई खोई सी है.....
बिस्तर पर भी वो करवटे बदलती रहती है...जब मंयक से रहा नही जाता तो वो पूछ ही बैठता है....क्या बात है...कोई परेशानी है....

प्राची मन मे...इन्हे कैसे पता कि मै परेशान हू....मै तो कभी कोई बात इनसे नही करती....
नही कोई बात नही है....ये पहली बार था जब प्राची ने मंयक की बात का सीधा जवाब दिया था....

ये बोल वो करवट बदल लेती है....और मंयक भी....

पर दोनो की आँखो मे नींद नही होती....

अगली सुबह मंयक के आफिस जाने के बाद...प्राची सोचती है...एक बार रूपाली से बात की जाए...उसके पास उसके घर का पता था...वो वहा के लिए निकल जाती है....

उसके घर जाते समय वो उसके लिए...एक दो तोहफे ले लेती है...ये सोचकर की खाली हाथ जाना अच्छा नही लगता ....
उसके घर के सामने पहुंच कर...वो अपनी साडी ठीक करती हुई आगे बढती है...
कि हाथ मे से गिफ्ट वाली बैग नीचे गिर जाती है....
वो उसको उठाने के लिए जैसे ही झुकती है...कि उसकी नजर खिडकी से होते हुए...अँदर जाती है...

अँदर रूपाली अपने पति पर चिल्ला रही थी...आपके किसी और लडकी के साथ संबध है....शर्म नही आई आपको....
अभी उसकी बात पूरी नही हुई थी कि...एक चांटा उसके मूंह पर पडता है....रूपाली का पति...उसका मूंह दबाते हुए.....औकात मे रह अपनी...समझी...अरे थी क्या तू...मेरे से शादी करने के बाद तेरी पहचान बनी है...
ये मंहगे कपडे ,ये जेवर..ये शानो शौकत...कभी सोचा था..सपने मे भी.....नही ना...यहा रहना है...तो सब बर्दाशत करना पडेगा.....

बाहर खडी प्राची को लगता है...कि ये चांटा उसके मूंह पर मारा है उसकी सोच पर मारा है....

इतने मे रूपाली एक जोरदार थप्पड खींचाकर ...अपने पति के मूंह पर मारती है..
और सारे गहने भी...ये रखो...अपने गहने अपने पास...मुझे नही चाहिए...तुम्हारा कुछ भी...मुझे एक प्यार करने वाला पति चाहिए...दिखावा करने वाला नही....जो बिना बोले मेरी सारी बात समझ जाए...ऐसा जीवन साथी चाहिए मुझे...और उसके साथ तो मै झोपडी मे भी रह लूंगी....समझे...ये बोल रूपाली अपने पति का घर छोड चली जाती है....

और प्राची अपने घर...सैकंडो विचार उसके मन मे घूम रहे थे...आज एहसास हो गया था उसको कि वो कितना गलत कर रही है....आज मंयक के लिए ईज्जत बढ गई थी उसके दिल मे.....
आज उसको समझ आ गया था कि....जीवन साथी पैसो वाला ना सही पर प्यार करने वाला होना चाहिए.....
उसे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था...आत्मा धिकार कर रही थी उसकी......
उसने सोच लिया था...कि मंयक से अपने किए की माफी मांग लूंगी . ..उसके बाद मंयक जो भी सजा देगा...वो भी सह लूंगी....

ये सोचते हुए वो घर पहुच जाती है....आज पहली बार ये घर उसे अपना घर लग रहा था....
जल्दी से खाना बनाकर...वो मंयक का इंतजार करने लगती है.....

मंयक घर आता है....वो थका हुआ सा सोफे पर बैठ जाता है.....कि प्राची उसके सामने जाकर...पानी...
मंयक हैरानी से उसकी तरफ देखता है...इससे पहले कभी प्राची ने...उसकी तरफ इतना ध्यान नही दिया .....
वो पानी का गिलास ले लेता है....

वैसे मेरे पास भी तुम्हारे लिए कुछ है....प्राची एकटक उसकी तरफ देखती है....

वो अपने बैग मे से...तलाक के पैपर निकाल उसके हाथ मे रख देता है....प्राची को एक धक्का लगता है....
मैने अपने साईन कर दिए है...तुम भी कर दो...

और तैयारी करो ...कल रात को ही मै तुम्हे तुम्हारे घर छोड आऊगा.....और तुम्हे किसी को भी कुछ कहने की जरूरत नही है.....मै सारा इल्जाम अपने ऊपर ले लूंगा..

ये बोल वो कमरे मे जाकर लैट जाता है.....
प्राची बाहर खडी बस खाली आँखो से उन कागजो को देखती रहती है...जिन पर मंयक के साईन थे.....खुद से नफरत होने लगी थी उसको....उसका दिल कर रहा था कि...धरती फट जाए और वो उसमे समा जाए....

अगली सुबह प्राची के उठने से पहले ही मंयक आफिस चला गया था....
प्राची उठती है...देखती है कि नाश्ता टेबल पर रखा है...और साथ मे एक चिट्ठी भी.....

आज आफिस मे ज्यादा काम है तो जल्दी चला गया हू...तुम तैयारी कर के रखना...रात को निकलना है.....

ये पढते ही...कब से रूके हुए आसू बह जाते है उसके....रोते रोते वो बोलती है...कम से कम माफी मांगने का मौका तो दे देते ...
पूरा दिन रोती रहती है...वो...खाना भी नही खाती....बडी मुश्किल से वो अपना सामान पैक करती है....

रात होती है...
थके कदमो से मंयक वापस आता है....रो रो कर आँखे उसकी भी लाल हो गई थी.....वो अँदर आता है.....

बाहर सोफे पर ही प्राची बैठी होती है... चेहरा मुरझाया हुआ था....
मंयक उसकी तरफ बिना देखे....सारा सामान रख लिया ना...कही कुछ रह तो नही गया....

प्राची मन मे...मेरा दिल रह गया है....तुम्हारे पास...
मंयक प्राची के पास जाकर...चले...

वो सामान उठाकर आगे बढता है....कि प्राची उसका हाथ पकड लेती है....
मंयक के कदम रूक जाते है....वो पीछे मुडकर देखता है...
आसुओ से भीगा हुआ प्राची का चेहरा नजर आता है.....
उसको ऐसे देख मंयक के दिल मे एक टीस सी उठती है....

क्या बात है....कुछ चाहिए ...क्या....
प्राची का सब्र जवाब दे जाता है....वो रोते रोते उसके सीने से लग जाती है....
मुझे माफ कर दो...प्लीज मुझे खुद से दूर मत करो....मुझे समझ मे आ गया है...कि...पैसो से ज्यादा प्यार जरूरी है....
मुझे एक मौका दो....मुझे तलाक नही चाहिए....नही चाहिए....
रोने की वजह से उसकी आवाज साथ नही दे रही थी....उसके आसू ..मंयक की कमीज को भिगो रहे थे...और बैचेन कर रहे थे.मंयक को....
जिस प्यार का इंतजार मंयक इतने दिनो से कर रहा था ...वो आज उसको महसूस हो रहा था....
उसकी आँखो से भी आसू गिर रहे थे....
वो कस कर ...प्राची को अपने सीने से लगा लेता है....और रोते हुए बोलता है...फिर से छोडकर जाने की बात तो नही करोगी ना....वरना मै मर...
प्राची उसके होंठो पर अपने होंठ रख देती है....फिर उससे हल्का सा दूर होकर...खबरदार जो दोबारा तुमने ऐसी बात की....
मंयक मुस्कुरा कर...उसकी तरफ देख रहा था....उसको अपनी तरफ एकटक देखता पाकर...प्राची शरमा कर अपनी प्लके झुका लेती है......
मंयक उसको अपने करीब कर ....अपने होंठ उसके होंठो पर रख देता है....प्राची के हाथ उसकी कमर पर कस जाते है....मंयक उसको गोद मे उठाकर कमरे मे ले जाता है.....

आज सही मायने मे मिलन हुआ था...दो जिस्मो का ही नही...दो आतमाओ का भी....मंयक के प्यार ,सब्र और त्याग की जीत हुई थी आज....

समाप्त