Maut ka Chhalava - 3 in Hindi Adventure Stories by Raj Roshan Dash books and stories PDF | मौत का छलावा - भाग 3

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मौत का छलावा - भाग 3



'उस खुदा के नेक बंदे ने, जिसके पास उस खुदा की दी हुई असीम " ताकते थी ने तुरंत मेरे उस कंकाल को साफ किया। फिर उसने अपनी ताकत के व्दारा मुझे मेरी आत्मा से जोड़ दिया। और फिर उसने मुझे बताया की मै तुम्हारे इस शरीर को भौतिक शरीर जैसा तो नहीं बना सकता पर इसमें असीम ताकते भर सकता हूँ, यह वैसे कार्य करेगा जैसे तुम्हारा भौतिक शरीर काम करता है । यह इतना ताकतवर हो जायेगा की इस धरती का रहने वाला शायद ही इसे हरा पायेगा। यह शायद मैने इसलिए लगा दिया कि इस धरती पर कुछ ऐसी सात्विक शक्तियां भी मौजूद होती है जिन पर तेरी या मेरी कोई भी शक्ति काम नही करेगी। इसलिए तुम किसी से उलझने से पूर्व उसके बारे मे पता कर लेना, " उस योगी ने मुझसे कहा।

बस उसी पल उसने मेरे शरीर मे न जाने क्या किया की मेरा शरीर और आत्मा आपस मे गुथ गये। अब मुझे अहसास होने लगा की मेरे शरीर है। यह शरीर जो मुझे मिला था यह केवल कंकाल का ढांचा था इसलिए उस योगी ने अपनी शक्तियों की सहायता से मुझे ये वस्त्र पहना दिये, उसने मुझसे कहा भी की यह वस्त्र कभी भी खराब या मैला नही होगा। वह मुझे असीम शक्तियों से नवाजने के बाद चला गया और मै फिर तुम्हारी तलाश मे लग गया।

उस कंकाल ने यह तो बता दिया की उसे यह शक्तियां कैसे प्राप्त हुई पर अभी उसका यह बताना बाकी रह गया था कि मैने उसे क्यों मारा था। मेरी जिन्दगी का यह अजीबोगरीब अजीबो-गरीब वाक्या था जिसमें मैं परेशान हो उठा था। ऐसा नही कि मेरी जिन्दगी मे ऐसे हादसे कभी हुए ही नही थे। एक से एक आपदाओं से मै मिला था पर इस तरह कभी भी विवश नही हुआ था। इन लाल रस्सियों ने तो मुझे ऐसा विवश कर दिया था की मै मानसिक रूप से पीड़ित होने लगा था। मैं लोगों को सलाह दिया करता था कि वो कभी भी अपना आपा न खोये पर यहाँ पर परिस्थियां मेरे साथ भी कुछ ऐसा कर रही थी की मै चिडचिडा हो गया था।

मेरी ताकत का पता मुझे पता था पर मेरी वह ताकत इन लाल रस्सियों के आगे बेकार हो गयी थी। मैं जब इन रस्सियों पर ताकत लगाता तो यह और ज्यादा फैल जाती, मैं जितनी ताकत लगाता जाता उतनी यह रस्सी फैलती जाती और जब मैं थक इन्हें छोड़ देता तो यह वापस पहले जैसे आकार मे आ जाती। बार-2 की असफलता ने मेरे भीतर एक चिडचिडा पन कर दिया था।

इन रस्सियों की एक सबसे बड़ी खूबी थी कि मेरे शरीर के अंगों को कुछ भी करने के लिए विवश नही करती थी। यह सब होने के बाद मुझे इस अंधेरी गुफा में रहना बहुत बुरा लग रहा था। इस गुफा मे प्रकाश तभी होता था जब वह नरकंकाल आता था। जाते समय वह फिर से मशाली को बुझा जाता। उस गुफा अनेकों प्रकार के कीड़े-मकौड़े थे जो मशाल बंद होने के बाद मेरे शरीर पर चढने लगते थे। उनके चढने से मुझे बहुत ही कोफ्त होती थी पर क्या करता। मै वहाँ से कही जा भी नही सकता था।

वो कीड़े मेरे शरीर का कुछ बिगाड़ नही सकते थे पर शरीर पर रेंग-2 कर मेरी मानसिक स्थिति को बिगाड़ रहे थे। अब वह अगली सुबह से पहले आने वाला नही था. मेरे लिए सुबह नाम की कोई चीज नही थी, जिस जगह वह मुझे कैद करके रख रहा था वह शीलन भरी गुफा थी। जिस जगह में कैद था उसके बगल मे ही एक और वैसी ही गुफा थी। वह मेरी इस गुफा से थोड़ी बड़ी थी। नित्य कर्म के लिए मुझे उसी गुफा में जाना पड़ता था।
मेरी स्थिति किसी ऐसे कैदी की तरह हो गयी थी जिसे मृत्यु दण्ड मिला हो पर यह पता न हो की उसे मृत्यु दण्ड कब दिया जायेगा। आज रात मेरी तबियत कुछ ज्यादा ही अजीब हो चुकी थी, कीडो ने मेरे पुरे शरीर को अपने खेलने का स्थान बना लिया था। आज तीसवी रात थी, हर रात मेरे लिए एक मौत जैसी थी। वह कल सुबह से पहले आने वाला नही था, आज की रात वैसे भी इन कीड़ो ने सोने नही था तो मेरे पास एक तरीका बचा था की मै ध्यान लगाकर अपने मस्तिष्क को स्वस्थ करूं यदि यह बीमार हो गया तो फिर मै कुछ भी नही कर पाऊंगा। मैने पद्मासन लगाया और फिर ध्यान लगाने लगा। थोड़े से प्रयास के बाद आखिर मेरी ध्यान समाधि लग गयी।

आज उन्नतीस दिन बाद मेरी समाधि लगी थी। इस समाधि ने मुझे बहुत सूकून दे दिया था। अब मुझे उन कीड़ो से निजात मिल गयी। थी, समाधि के व्दारा मैने सबसे पहले अपने मस्तिष्क को काबू किया और फिर उसके व्दारा मैने अपने शरीर का तापमान बढ़ाना शुरू कर दिया। मैं अपने शरीर का तापमान इतना बढ़ा सकता था की मेरे शरीर के सम्पर्क में कोई जीव आ नही सकता था। यह योग समाधि थी। इसकी अवधि मै काफी लम्बी कर सकता था। शरीर का तापमान बढ़ जाने से सबसे बढ़िया बात यह हुई की वो कीड़े अब मेरे करीब नही आ रहे थे पर कुछ ढीठ कीडे नए फिर भी प्रयास किया, परिणाम उनकी मौत हुआ।

ध्यान समाधि मे जाकर मैने अपने गुरू को याद किया, एक लम्बे समय हो गया था गुरू देव से मिले। आज मैं उनसे मिलना चाहता था. कुछ देर के प्रयास के बाद मेरे और उनके मध्य मानसिक सम्बन्ध बन गया।

'गुरू! मै सूर्यवंशी, बहुत ही बने संकट में फंस गया हूँ। यह कैसा माया जाल है मुझे समझ नही आ रहा है. यहां आकर मेरी शारीरिक शक्तियां काम नही कर रही। इन सब समस्याओं का कारण मेरे शरीर पर लिपटी हुई ये लाल रस्सियाँ है। मैने इन्हे तोड़ने का खूब प्रयास किया पर सब व्यर्थ गया। आज बहुत दिनों के बाद मैं आप से सम्पर्क कर पाया हूँ। अब केवल आपही मेरी सहायता कर सकते है, " मैने गुरू देव से निवेदन किया।