Ishq a Bismil - 47 in Hindi Fiction Stories by Tasneem Kauser books and stories PDF | इश्क़ ए बिस्मिल - 47

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इश्क़ ए बिस्मिल - 47

दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई थी। उमैर घर नहीं लौटा था। ज़मान खान ऑफिस नहीं जा सके थे, उनकी हिम्मत नहीं हुई थी कहीँ भी जाने की। अरीज अपने कमरे में बंद थी, सोनिया दोस्तों के साथ आउटिंग पे गई हुई थी मगर आसिफ़ा बेगम बेचैनी से पूरे घर में उमैर को ढूंढ रही थी…. उन्हें वह अन्नेक्सी में नहीं मिला तो वह उसे ढूँढती हुई उसके कमरे में चली गई फिर उसके बाद नौकरों से कह कर अपने दूसरे बंगले भी उसे धुंधवा लिया मगर उसका कोई आता पता नहीं था।
दरासल उन्होंने दोपहर में ही उमैर को कॉल लगाई थी ताके पता कर सके की सनम ने क्या कहा है। उमैर उन्हें सनम से कब मिलवाने के लिए लेकर जा रहा है? उन्हें बोहत ज़्यादा जल्दी थी अरीज को उमैर की ज़िंदगी से निकालने की। मगर उमैर ने उनकी कॉल ही नहीं उठाई,, उन्होंने उसे लगातार तीन दफा कॉल की…. लेकिन हर बार सिर्फ रिंग ही जाती रही, उमैर ने कॉल नहीं उठाई। फिर एक घंटे के बाद भी वही हाल रहा तो उन्होंने ऑफिस कॉल की तो पता चला उमैर कई दिनों से ऑफिस नहीं आ रहे है।
वह बैचैन होकर अन्नेक्सी में आई मगर उमैर उन्हें वहाँ भी नहीं मिला। उन्हें किसी अनहोनी का अंदेशा हुआ। वह तुरंत लगभग दौड़ते हुए उसके कमरे में गई थी। मगर उमैर की जगह उनकी सोच से हटकर उन्हें सोफे पर लेटे हुए ज़मान खान दिखे। वह जाने किन ख्यालों में गुम थे। ये जानते हुए भी की आसिफ़ा बेगम आई है उन्होंने उनकी तरफ़ नहीं देखा था।
वह ये सोच कर अन्नेक्सी से भागी भागी आई थी के कहीं उमैर और अरीज में सुलाह तो नहीं हो गया। कहीं वह अरीज के साथ उसके कमरे में तो नहीं शिफ़्ट हो गया? मगर यहां ना तो उमैर का पता था और ना ही अरीज का।
कहाँ थे वह दोनों?
कहीं फिर से तो नहीं बाहर घूमने फिरने चले गए?
अगर ऐसी बात है तो यकीनन उन दोनों की सुलाह हो गई है।
वह अपने ही ख्यालों में खोई हुई थी। परेशानी से उनकी पेशानी air conditioned रूम में भी पसीनों से तर हो रही थी।
गुस्सा उनके रगों में जैसे दौड़ रहा था। वह ज़मान खान को ही देखे जा रही थी।
“ज़रूर इन्होंने ही कुछ घोल कर पिला दिया होगा मेरे बेटे को। अच्छी खासी ब्रेन वाशिंग की होगी उसकी तभी वो उस लड़की को लेकर गया है और ये जनाब यहाँ पड़े हुए है।“ वह अपने मन में बोले जा रही थी। जब ही किसी का फोन vibrate होने की आवाज़ आई। ज़मान खान ने अब भी कोई रेस्पॉन्स नहीं दिया। वह गुस्से मे अब ज़मान खान को छोड़ फोन के vibration की तरफ़ अपना पूरा ध्यान लगा कर उन्हें ढूँढने के लिए मुड़ी। फोन बेड के साइड टेबल के उपर रखा हुआ था और फोन की स्क्रीन पर किसी हर्ष अगरवाल का नाम जगमगा रहा था।
ये उमैर का फोन था। आसिफ़ा बेगम उसे लमहों में पहचान गई थी। उमैर के फोन कॉल ना उठाने से भी ज़्यादा वह उमैर का फोन रूम मे पड़ा देख कर बेचैन हो गई थी। उनकी बेचैनी में और ज़्यादा इज़ाफ़ा तब हो गया जब उन्होंने उमैर की गाड़ी की चाभी फोन के ही बगल मे पड़ी हुई देखी।
वह हैरान परेशान होती कमरे से बाहर आई और एक सर्वेंट को अपने दूसरे बंगले में भेज कर पता लगवाया मगर जब उमैर उन्हें वहाँ भी नहीं मिला तब वह तिलमिला कर वापस उमैर के कमरे में आई और ज़मान खान को उठाया।
“उमैर कहाँ है?....कहाँ भेज दिया आपने उसे?...कहाँ है वो लड़की?” उन्हें फिर से गुस्से का दौरा पड़ गया था।
“मुझे नहीं मालूम।.... जाओ ढूंढो उसे.... और जब मिल जाए तब उसे मेरे पास ले आना... मैं उस से माफ़ी मांग लूंगा।“ ज़मान खान आसिफ़ा बेगम को देख कर खोए खोए से अंदाज़ में बोल रहे थें। दूसरी तरफ़ आसिफ़ा बेगम खुद शॉक में थी।
“अब नया क्या हुआ था इन बाप बेटे के बीच में जो ये माफ़ी मांगने पर मजबूर हो गए थे।“ वह ये सोच सोच कर परेशान हो रही थी। उनका सर फटा जा रहा था वह अपने सर को थाम कर सोफे पर बैठ गई थी।
सनम उमैर के बदले हुए रवय्ये से काफी परेशान दिख रही थी। मगर उसने बड़े सब्र से काम लिया था, हालांकि वह बड़ी बेसब्र तबियत की मालिक थी।
“उमैर मैं बोहत बोर हो रही हूँ... चलो कहीं बाहर चलते है।“ उसने झट से प्लेन बनाया था।
“मेरा मन नहीं है.... प्लिज़... मुझे फ़ोर्स मत करना... तुम्हे जाना है तो जाओ... मैं यही रहूँगा।“ उमैर ने चाय का सिप लेते हुए कहा था। उसके चेहरे पर बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था। जैसे वह वहाँ होकर भी वहाँ मौजूद नहीं था। जाने कहाँ खोया हुआ था। सनम की परेशानी हर एक बात के बाद बढ़ती चली जा रही थी।
“क्या बात है?... क्या परेशानी है तुम्हें.... प्लिज़ मुझे बताओ?” उसने उसके टांग को सहलाते हुए उस से पूछा था।
“कुछ नहीं... तुम जाओ... मुझे थोड़ी देर के लिए अकेला छोड़ दो।“ उसका बिल्कुल भी मूड नही हो रहा था कुछ भी बोलने का इसलिए सनम को टालने के लिए वह उसे जाने को बोल रहा था।
“नहीं छोड़ सकती तुम्हें अकेले... चलो मेरे साथ।“ वह और सब्र नही कर सकती थी उसे जानना था की आखिर बात क्या है।
“नहीं जा सकता मैं।“ उमैर उसकी बातों से चिड़चिड़ा गया था।
“क्यों नही जा सकते?” वह भी ज़िद पर अड़ गई थी। सिर्फ़ ये जानने के लिए के बात क्या है।
“पैसे नहीं है मेरे पास... तुम्हारे नख़रे उठाने के लिए।“ उसने गुस्से में सच्ची बात मूंह से निकाल दी थी।
सनम उसे हैरानी से देखती रह गई थी। उसकी ज़िद लम्हों में बुलबुले की तरह उड़ गई थी। उसे इस बात का डर था जो हा चुका था।
“तुम्हारे घर वाले नहीं माने नाना, हमारी शादी के लिए?” उसकी आँखें आँसुओं से भर गई थी।
“मुझे पहले ही पता था... वो लोग कभी नहीं मानेंगे।“ सनम अब फूट फूट कर रो रही थी।
“नहीं... ऐसी बात नहीं है... घर वाले मान गए है।“ वह फ़र्श पर बिछे कार्पेट पर अपनी नज़रें टिका कर सनम को जवाब दे रहा था। मगर इस जवाब से सनम और भी ज़्यादा उलझ गई थी। वह उसे हैरानी से देख रही थी।
ज़िंदगी में कभी कभी हमें मन चाही चीज़ मिल जाने पर भी दिली सुकून और ख़ुशी नहीं मिलती... क्योंकि दिली ख़ुशी का मज़ा तब आता है जब हमें मिली हुई ख़ुशी हमें अपने बलबूते पे मिली हो.... दूसरों की इनायत और रहम पर नहीं।
उमैर को भी उसकी खुशी मिल गई थी...
उसे सनम मिल गई थी
फिर भी वह खुश नहीं था
क्योंकि ये इनायत उस के लिए रहम की सूरत में की गई थी।
क्या होगा?
क्या उमैर सनम से दूर हो जायेगा सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उसने सनम को जीता नहीं है बल्कि सनम उसे दे दी गई है?
या फिर वो सनम के बदले बाकी सब को छोड़ देगा?
मगर सनम का क्या?
वह सब उमैर को छोड़ने देगी?
क्या होगा आगे? जानने के लिए बने रहें मेरे साथ और पढ़ते रहें