Ek Anokha Vivah - 5 - Last Part in Hindi Short Stories by S Sinha books and stories PDF | एक अनोखा विवाह - 5 - अंतिम भाग

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एक अनोखा विवाह - 5 - अंतिम भाग

अंतिम भाग Part 5 - पिछले अंक में आपने पढ़ा कि उमा को अस्पताल से डिस्चार्ज कराने पुलिस अफसर राज तारा को ले कर आया था , अब आगे पढ़ें  किस तरह दोनों विवाह के बंधन में बंधे …. 

 

                                      कहानी - एक अनोखा विवाह अंतिम भाग 5


“ तुम कितने पुलिस वालों से मिल चुकी हो ? “  राज बोला 


“ अभी इस वारदात के अलावा सिर्फ एक बार और  . “


“ उस समय भी तुम ऐसी ही हालत में पकड़ी गयी थी ? “


“ नहीं  . उस बार पुलिस मुझ से मदद मांगने आई थी  .  “


“ और तुमने पुलिस की मदद की , वह कैसे ? “  इतना कह कर उमा ने उस रात जंगल में हुई वारदात को विस्तार से बताया 


 राज को भी उस रात की कहानी याद आयी  . वह समझ चुका था कि उसकी जान बचाने वाली लड़की उमा ही है  .  पर उसने उमा के सामने इसे जाहिर नहीं किया और उसके मन में उमा के प्रति दया भर आयी  . उसने कहा  “ यह तो बहुत अच्छा रहा  .  अच्छी बात है  .  तुम्हारी पहली गलती थी और तुम्हारे खिलाफ कोई भी सबूत पुलिस को नहीं मिला है  . इसलिए तुम्हें कुछ नहीं होगा , डरने या घबराने की कोई बात नहीं है  . “ 


“ अस्पताल से छूट कर कहाँ जाना चाहोगी ? “


“ फिलहाल तो कोई ठिकाना नहीं , उसी पुराने अपार्टमेंट में जाना होगा  . “


“ तुम वहां नहीं जा सकती हो  . “


“ तुम्हारा बॉस बहुत बड़ा अपराधी था  . वह ड्रग तस्कर था और बेसहारा मजबूर लड़कियों से गलत काम करवाता था  . वह अब पुलिस की गिरफ्त में है और उसका घर सील कर दिया गया है  . भूल कर भी वहां जाने का नाम नहीं लेना वरना फिर से पुलिस तुम्हें शक़ की निगाह से देखेगी  . “


“ तब ऐसे में मैं तारा को ले कर कहाँ जाऊँ ? “


“ फिलहाल तुम मेरे साथ चलो , आगे सब ऊपर वाले पर छोड़ दो  . जो भी होगा अच्छा होगा  . “


“  साहब , मैं आपके घर चलूँ ? अभी तो मैं चाह कर भी कुछ काम नहीं कर सकती  . डॉक्टर ने एक महीने तक कोई काम करने से मना किया है  .  फिर मैं और तारा दोनों आप पर अतिरिक्त बोझ बन कर रहेंगे  . “


“ बोझ वोझ  कुछ नहीं  . बल्कि तुम्हारे चलने से मेरे मन का बोझ कुछ हल्का होगा  . बहस नहीं करो और माँ बेटी दोनों मेरे साथ चलो  . हो सकता है पुलिस तुमसे कुछ और पूछताछ भी करे  . “  उमा और तारा दोनों के सर पर हाथ फेरते हुए राज ने कहा   


अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर उमा अपनी बेटी को लेकर राज के साथ उसके घर आयी   . राज ने  उमा और तारा के रहने के लिए एक अलग कमरे का  इंतजाम कर दिया था  . घर के काम के लिए  एक औरत थी जो दिन भर रह कर साफ़ सफाई ,  खाना बनाया करती थी  . राज दिन भर ऑफिस में रहता और शाम के बाद घर आता   . वह  माँ बेटी दोनों का बहुत ख्याल रखता  . लगभग तीन सप्ताह के बाद राज ने तारा को वापस बोर्डिंग में भेज दिया  . तारा रहती थी तब माँ की  दिनचर्या के छोटे मोटे कामों में मदद करती थी  . उसकी अनुपस्थिति में यह काम राज खुद करता  . 

 

करीब एक महीने बाद राज उमा को डॉक्टर के यहाँ फ़ॉलोअप के ले गया  . X रे एवं अन्य चेकअप के बाद डॉक्टर ने कहा “ उमा अब करब करीब ठीक हो चुकी है पर दो तीन सप्ताह तक उसे और आराम करने की जरूरत है ताकि हड्डी और मजबूत हो जाये  . अभी भारी कामकाज न कर हल्के फुल्के काम कर सकती है , उसके बाद वह घर के सारे कामकाज कर सकेगी  . “


उमा ने महसूस किया राज उसका बहुत केयर करता था  .  जंगल में गोली लगने के बाद  राज के पैर और बांह  का ऑपरेशन किया गया था जिसके बाद उसके दोनों पैर बराबर नहीं हो सके और वह थोड़ा लंगड़ा कर चलता  . इसके बावजूद  उमा की देखभाल में उसने कोई कोताही नहीं बरती  . उमा मन ही मन राज को चाहने लगी थी पर अपनी बात जबान पर लाने की हिम्मत नहीं जुटा सकी  . राज को भी उसके प्रति बहुत सहानुभूति थी जो धीरे धीरे प्यार में बदल गयी थी  पर उसके मन में भी कुछ शंका और कुछ डर समाया था जिसके कारण वह भी चुप रहा  . 


एक दिन अचानक उमा राज के गले लगकर रोने लगी और बोली “ पिछले जन्म में जरूर आप से मेरा गहरा रिश्ता रहा होगा जो इस जन्म में आप जैसा रहनुमा मुझे मिला  . आप से मेरा क्या रिश्ता है जो आप मुझे अपने घर लाये और मेरा और तारा का इतना ख्याल करते हैं  . “


“ रहनुमा जैसा  कुछ नहीं है , बस इंसान होने का फ़र्ज़ अदा कर रहा हूँ  . “ अपने को अलग करते हुए राज बोला 


“ पर मुझे भी अपने फ़र्ज़ निभाने का मौका मिलना चाहिए  . आपके उपकार का प्रत्युपकार करने का सौभाग्य मुझे भी मिलना चाहिए न  . “


“ भगवान् ने चाहा तो वह भी मिल जायेगा  . “


“ मुझे उस पल का बेसब्री से इन्तजार रहेगा  . “


कुछ दिनों बाद राज का  जन्मदिन था  . राज ने घर पर एक पार्टी रखी थी  . उसके कुछ कुलीग  आये थे जिनमें कुछ सीनियर तो कुछ जूनियर थे  . कुछ बैचलर थे तो कुछ शादीशुदा  .  कुछ उमा को राज की पत्नी  समझ रहे थे  . किसी ने राज से कहा “ चुपचाप शादी कर ली और शादी की पार्टी  के डर से हमें भनक तक नहीं लगने  दिया  . “


किसी दूसरे ने उमा से कहा “भाभीजी , आप भी किस कंजूस के पल्ले पड़ गयीं हैं  . “


उमा और राज दोनों उनकी बातें सुन कर कुछ शर्माए और  झेंप गए  . राज ने सहमे हुए कहा “ हमारी शादी नहीं हुई है  . “


“ तो अभी से कर लो , देर किस बात की  . “ किसी ने कहा 


राज ने उन्हें एक कोने में ले जा कर कहा  “ मेरी शादी न करने की एक  खास वजह है  . या यूं कहें तो मन में एक शंका है  . वह सुलझ जाए तो शादी करने में देर नहीं लगेगी  .  “


“ क्या हमलोग कुछ मदद कर सकते हैं ? “


“ मदद तो दोस्तों और सीनियर्स से लेनी ही होगी , इसलिए तुमलोगों को ख़ास कर बुलाया है  . “


“ ऐसा करते हैं संडे के दिन क्लब में हमलोग मिलते हैं , हमारे बॉस भी रहेंगे  . हमलोगों को तुम्हें दो चार पेग पिलानी होगी , मुफ्त में आजकल कुछ नहीं मिलता है  . समझे ? “


“ हाँ , समझ गया  . ठीक है संडे को मिलते हैं  . बॉस को भी बुला लेते हैं  . “


राज को ढूंढते हुए तब तक उमा  भी वहां आ गयी , उसने पूछा “क्या बात है , आप लोग यहाँ चुपचाप छिप कर क्या बातें कर रहे हैं ? “


“ कुछ नहीं , हमलोगों ने राज से क्लब में ड्रिंक पिलाने को कहा है  . “

 

संडे को पुलिस क्लब में राज अपने दोस्तों और बॉस से क्लब के एक रूम में मिला  . वहीँ पर उनकी क्लोज्ड डोर मिनी पार्टी थी  . ड्रिंक चल रहा था , इसी दौरान  एक ने कहा “ आज राज को हमलोगों से कुछ मदद चाहिए  . इस गेट टुगेदर का यही मकसद है  . उसके मन में कुछ शंका है जिसे हमलोगों को दूर करनी होगी  .”


“ इसमें खास कर हमें सीनियर्स और दुनियादारी के तजुर्बेकार की सलाह चाहिए  .  “  राज बोला 


“ क्यों नहीं , तुम हमारे चहेते कुलीग हो  . तुम्हारी मदद कर हमें ख़ुशी होगी  .  यू कैन टॉक फ्रैंकली  “  दो सीनियर कुलीग ने कहा 


पहले राज ने जंगल वाली घटना सभी को सुनाई फिर कहा “ अभी हाल यह है कि हम दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे हैं पर किसी ने आज तक अपने प्यार का इजहार नहीं किया है  . मैंने उसे पहचान लिया है पर उसने मुझे अभी तक नहीं पहचाना है  . मुझे उस से शादी करनी चाहिए या नहीं ? ऐसे में मैं समझ नहीं पा  रहा हूँ उसे सारी बताऊँ या नहीं  . “


“ इसमें दुविधा  वाली बात क्या है ? “  कुछ लोगों ने पूछा 


“ मैंने उमा का स्तनपान किया है  . स्तनपान तो माँ  अपनी संतान को कराती है  . क्या वह मेरी माँ जैसी हुई ?  फिर  क्या मेरा उस से शादी करना ठीक रहेगा ? “


“ माँ जैसी और माँ में फर्क है  . उमा एक सामान्य औरत थी और इंसानियत के नाते उसने तुम्हें जीवनदान दे कर एक बहुत बड़ा उपकार किया  है  . अब वह बेसहारा है तुम उस से शादी कर इस उपकार का एहसान चुका सकते हो  . “ हमलोगों की यही राय है , सभी ने एक साथ कहा 

 

राज ने फिर कहा “ हमारी उम्र में भी करीब आठ साल का फर्क है  . जब  हमलोग उस से मिले थे वाह मात्र पंद्रह साल में माँ बन गयी  थी और मैं करीब  तेईस साल का था  . “


“ इस बात में कोई दम नहीं है , यह बकवास है  . ऐसे फितूर अपने दिमाग से निकाल दो और उस से शादी कर लो  . “


“ उमा मुझे पहचान नहीं पायी है  . क्या शादी के पहले मैं उसे सब बता कर याद दिला दूँ  . डरता हूँ कि सच जान कर कहीं उसके मन में भी शंका न उठे और मैं उसे खो दूँ  . “


“ अगर तुम्हें ऐसा लगता है तो मत बताना  . “ लोगों ने कहा 


कुछ दिनों के बाद राज और उमा की शादी हुई  . राज तारा को बोर्डिंग से ले कर आया और कहा “अब ये हमारे साथ रह कर यहीं के स्कूल में   . “


 शादी के कुछ महीनों बाद उमा गर्भवती हुई  . प्रसव के बाद उमा अपने नवजात शिशु को स्तनपान करा रही थी  . राज ने टोका “ तुम्हारा दूध तो अमृत तुल्य   है  , बिलकुल संजीवनी की तरह  . “


उमा ने शरमा कर कहा “ धत ,  आपको इस दूध का स्वाद कैसे पता है ? आपको अपनी माँ के दूध का स्वाद अभी तक याद है  ? “


“ नहीं , अपनी माँ के दूध का स्वाद तो नहीं पता है  . वैसे भी माँ का दूध मेरे नसीब में ज्यादा दिन नहीं था  . पर तुम्हारे दूध का असर मुझे अच्छी तरह याद  है , मैं इसे आजीवन नहीं भूल सकता हूँ   क्योंकि  जिस समय मुझे यह पीने को दिया गया मैं मौत के करीब था  .  इसके पीने के बाद ही मुझे होश आया था  .   “


“ ऐसा आप कैसे कह सकते  हैं , यह कैसे सम्भव है ? “  उमा ने पूछा 


“ क्योंकि मैं इसे चख  चुका हूँ  . तुमने कुछ दिन पहले मुझ से कहा था कि एक पुलिस वाले की जाना तुमने अपना दूध दे कर  बचायी थी   . वह पुलिस वाला और कोई नहीं मैं ही था  .   इतना कह कर उसने जंगल वाली घटना की याद दिलाई  . “


इतना सुन कर उमा के गाल शर्म से आरक्त हो गए  . उसने अपने आँचल को और ज्यादा खींच  कर बच्चे को आँचल के अंदर ढक लिया और उसे दूध पिलाना जारी रखा  और सर झुका कर कहा “ नियति को यही मंजूर था  . “ 

 

समाप्त