Khaali Kamra - Part 11 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | खाली कमरा - भाग ११ 

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खाली कमरा - भाग ११ 

खुशबू ने अपनी मम्मी को फ़ोन लगाया। उधर फ़ोन की घंटी बजते ही खुशबू की मम्मी ने फ़ोन उठाया, “हेलो …”

“हेलो मम्मा मैं खुशबू।”

“हाँ वह तो मुझे पता है खुशबू, काम बोलो?” 

“मम्मा आपको बहुत बड़ी ख़ुश खबरी देनी है।”

“तुम माँ बनने वाली हो, यही ना?”

“अरे मम्मा, आपको कैसे पता?”

“इस समय ख़ुश खबरी तो केवल यही हो सकती है। कोई तुम्हारे सास ससुर का जन्मदिन तो तुम मनाओगी नहीं जो …!”

“मम्मा आप यह क्या कह रही हैं? मुझे आपकी ज़रूरत है, डॉक्टर ने मुझे बेड रेस्ट करने के लिए कहा है।”

“तो करो ना, तुम्हारी सास हैं ना? बोल ना खुशबू, कुछ बोलती क्यों नहीं? होंठ सिल लिए क्या तूने? शर्म आनी चाहिए तुझे। हमें धोखा दिया, हमारा दिल तोड़ा। वहाँ जाकर बूढ़े सास ससुर को भी तू अपना ना पाई। उन्हें भी वृद्धाश्रम भेज दिया। लानत है तुझ पर, तेरी सोच पर और तेरी पसंद पर। वह राहुल उसे दर्द नहीं हुआ, जिसने पाला तन-मन-धन सब लगा दिया, उनका ही ना हो पाया वह। हमसे तो तू कोई उम्मीद ही मत करना। गए थे हम वृद्धाश्रम, मुरली और राधा से मिलने, माफ़ी मांग कर आए हैं। रो रहे थे दोनों लेकिन फिर भी तुम दोनों के खिलाफ़ एक शब्द भी नहीं कहा उन्होंने। आँसू छुपाने की बहुत कोशिश कर रहे थे लेकिन ना तो उनके आँसू उनके बस में थे और ना ही उनकी आवाज़। बेचारे बोल ही नहीं पा रहे थे। उनका दुख देखा नहीं गया हमसे। हम तो ख़ुद शर्मिंदा थे समझाते भी तो क्या ? तुझे ऐसे संस्कार तो नहीं दिए थे हमने। जब लड़की का जन्म होता है तब लोग कहते हैं घर में लक्ष्मी आ गई। जब उसका विवाह होता है तब कहते हैं गृह लक्ष्मी आ गई लेकिन तू तो गृह लक्ष्मी नहीं उस घर के लिए खल नायिका बन गई। काश तू भी तेरी भाभी जैसी होती …” 

“मम्मा …! मम्मा …!” अब तक खुशबू की मम्मी ने फ़ोन काट दिया था। 

खुशबू की आँखों में आँसू तैरने लगे, उसने राहुल की तरफ़ देखा तो उसकी आँखें भी नम दिख रही थीं। 

उसने एक हफ़्ते बाद फिर से अपनी मम्मी को यह सोच कर फ़ोन लगाया कि शायद अब तक उनका गुस्सा शांत हो गया होगा।

फ़ोन की घंटी बजते ही इस बार खुशबू के पापा ने फ़ोन उठा लिया, “हेलो …”

“हेलो पापा …”

“बोलो खुशबू क्या बोलना चाहती हो?”

“पापा आई एम सॉरी …”

“हमें सॉरी बोलने से पहले जाओ जाकर अपने सास-ससुर को सॉरी बोलो। उन्हें इज़्ज़त के साथ अपने घर वापस ले कर आओ। उसके बाद हमें फ़ोन करना उससे पहले नहीं समझी …,” कहते हुए उन्होंने भी फ़ोन काट दिया।

खुशबू निराश हो गई। यहाँ तो पल-पल पर किसी अपने की मदद की ज़रूरत थी । लेकिन वह अपना आज उसके पास कोई ना था जिसे वह प्यार से पुकार सके। ऐसा कोई ना था जो प्यार से उसके सर पर हाथ फिराये, माथे का चुंबन लेकर कहे खुशबू बेटा चिंता बिल्कुल नहीं करना मैं हूँ ना या फिर हम हैं ना। यह सब खुशबू के ख़ुद के कर्मों का फल था जो आज वह इस तरह अकेली रह गई थी।

आज खुशबू अपने घर में उसी भीड़ को देखना चाह रही थी जो फूटी आँखों उसे नहीं सुहाती थी।

१५-२० दिन बाद जब वे डॉक्टर के पास गए, तब उन्होंने फिर कहा प्लीज़ आप कंप्लीट बेड रेस्ट कीजिए वरना बच्चा गिर सकता है।

आज घर आकर राहुल ने कहा, “खुशबू मैं सोच रहा हूँ, माँ पापा को वापस ले आऊँ।” 

“हाँ तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। मैं उनसे माफ़ी मांग लूंगी। हमने बहुत बड़ी ग़लती कर दी है।”

“…पर खुशबू मुझे समझ नहीं आ रहा है कि मैं किस मुँह से उन्हें लेने जाऊँ। तुम्हारी देख-रेख करनी है, आज भी केवल अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ही मैं उनके पास जा रहा हूँ,” कहते हुए राहुल दुःखी हो गया।

खुशबू ने कहा, “तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो राहुल आज हम उन्हें इसलिए वापस लाना चाह रहे हैं क्योंकि हमें उनकी ज़रूरत है।”

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः