bhram - 20 - last part in Hindi Fiction Stories by Surbhi Goli books and stories PDF | भ्रम - अंतिम भाग - 20

Featured Books
  • خواہش

    محبت کی چادر جوان کلیاں محبت کی چادر میں لپٹی ہوئی نکلی ہیں۔...

  • Akhir Kun

                  Hello dear readers please follow me on Instagr...

  • وقت

    وقت برف کا گھنا بادل جلد ہی منتشر ہو جائے گا۔ سورج یہاں نہیں...

  • افسوس باب 1

    افسوسپیش لفظ:زندگی کے سفر میں بعض لمحے ایسے آتے ہیں جو ایک پ...

  • کیا آپ جھانک رہے ہیں؟

    مجھے نہیں معلوم کیوں   پتہ نہیں ان دنوں حکومت کیوں پریش...

Categories
Share

भ्रम - अंतिम भाग - 20


समर की बात सुन कर वहां मौजूद हर इक का ध्यान पुजारी जी पर गया,

जो समर की बात सुन कर और भी गंभीर दिख रहे थे,

"बेटे..! मैं देख पा रहा हूँ कि आज की रात आप लोगो के लिए भारी है...बहुत भारी! बस इसी बात की चिंता हो ही है.." पुजारी जी बोले।

पीकू ने थूक गुटका,

रात के दो बज रहे थे, वो सब अभी तो पुजारी जी के एक छोटे से कमरे में आग के बीच बैठे थे, मगर उन्हें अब कुछ ही मिनटों में अपने काम को अंजाम देने जाना था।

सभी की सांसे अटकी हुई थी, दिल जैसे धड़कना बंद कर देना चाहते थे, क़ई बार उन सब के मन में उल्टे पैर लौंट जाने का ख्याल भी आया मगर सेजू के बारे में सोच कर कोई ये फैसला नहीं कर पाता!

आखिर वो सब सेजू के अच्छे दोस्त थे, अगर वो आज अपने हाथ खड़े कर देते तो शायद जिंदगी भर पछतावे के आंसू ही रौतें फिरते, और फिर..अब उनकी जान भी तो खतरे में थी, न वो यहां से बच सकते थे और न ही वहां से!

"अब हमें निकलना होगा! अगर हम अभी निकले तो आधे घण्टे में उस श्मशान में पहुँच जाएंगे जहां सपना किसी की बलि देने वाली है।" देव ने वॉच देखते हुए कहा।

सभी ने एक बार एक दूसरे को डर भरी नजरों से देखा।

"सम्भल कर! ईश्वर आप लोगो की रक्षा करे।" पुजारी जी ने उन सभी को विदा करते हुए कहा।

कार देव ड्राइव कर रहा था, देवीना देव के साथ बैठी हुई थी, उसका चेहरा दहशत से भरा हुआ था।

समर, पीकू और जयंत सामने पीछे वाली सीटो पर बैठे हुए थे, किसी के भी चेहरे पर खुशी नहीं नजर आ रही थी,

सड़को पर सूनापन था, बस सड़क के दोनों और हवा में झूमते हुए पेड़ खड़े हुए थे।

देव बेचैन सा था, उसे ये सब समझ नहीं आ रहा था कि अब तक उन लोगो के साथ कोई अजीब घटना क्यों नहीं घटी??

सेजू की परछाई के मिटते ही, ये सब करने वाले को सब पता लग गया होगा फिर भी...वो सेजू के दोस्तो को कोई नुकसान क्यों नहीं पहुँचा रहा था??? वो जो अपने साथ हथियार लाया है, इसलिए तो लाया है।


देखते ही देखते कार श्मशान पहुँच गयी, पीकू के पसीने छूटने लगे, उन सब ने कभी ये सब नहीं देखा था, बली देना! जादू टोने?? किसी का दूसरे टाइम में जाना और किसी का दूसरे टाइम से आना!

इसलिए वो लोग घबराए हुए थे।

शमशाम में आज, कल से भी ज्यादा गहरा सन्नाटा था, आज भी देव एक बड़े से बरगद के पेड़ के पीछे छुप कर उस मंदिर में यज्ञ कर रहे तांत्रिक और सपना को देख रहे थे, सपना के लंबे लंबे बाल आज खुले हुए थे और उसने साफ सफेद रंग की प्लेन साड़ी पहनी हुई थी, उसके गले में एक गेंदे के फूलों की माला थी और चेहरे पर एक तेज!

उसकी मुस्कान देखने पर बेहद ही मतलबी लग रही थी,

समर, पीकू, देवीना और जयंत ये सब कुछ आँखे फाड़े देख रहे थे, उन्हें तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सच भी हो सकता है।

"देव! यहां तो कोई इंसान दिख ही नहीं रहा है, जिसकी सपना आंटी बलि देंगी।" देवीना ने फुसफुसाते हुए कहा।

"वही मेरी समझ भी नहीं आ रहा देवीना!" देव ने हैरानी से कहा।

यहां तांत्रिक ने एक नींबू काट कर आग में फेंका और सपना से बोला..."नर बलि देने से पहले की सारी विधियां पूर्ण हुईं..? कहाँ है वो इंसान? जिसकी तू बलि देना चाहती है शैतान को???" तांत्रिक ने पहले से ही बड़ी बड़ी आँखों को और भी ज्यादा भयानक करते हुए सपना से पूछा,

सपना रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराई,

"तू ही तो है वो नर..., जिसकी बलि मैं आज दूँगी!" सपना ने तांत्रिक को देख कर कहा और जोरो से हँसने लगी,

"ओ..माय गॉड! ये तो एक पॉवरफुल इंसान की बलि देने वाली है, हमें इसे रोकना होगा..वरना सेजू का मिलना नामुमकिन है!" देव दे कहा,

"लेकिन..लेकिन कैसे??" कहते हुए देवीना का दिल जोरो से धड़कने लगा।

"जानती भी है..?? क्या बोल रही है तू??? मेरी बलि देगी शैतान को?? मेरी?? जानती नहीं है...शैतान मुझ से कितने प्रसन्न हैं, अगर तूने मेरी बलि दी तो शैतान तुझे...." तांत्रिक आगे कुछ कहता उसके पहले ही सपना ने अपने पास रखी तलवार उठा ली।

"शैतान...शैतान है! उसे इस बात से कभी फर्क नहीं पड़ेगा कि उसे किस इंसान का खून मिल रहा है..??? उसे तो बस एक इंसानी खून चाहिए, अब चाहे वो इंसान जो हो..." सपना ने तीखी आवाज में कहा।

तभी देव ने अपना बैग खोला, और उसमें से किताबें निकालने लगा,

पर तभी कुछ ऐसा हुआ कि देव को दौड़ना पड़ा,

सपना तांत्रिक का गला काटने ही वाली थी, देव ने भाग कर उसका हाथ पकड़ लिया,

सपना आंखें फाड़ कर रह गई,

बारी बारी से वहां सब पहुँच गये।

"मैं तुम्हे ये सब नहीं करने दूंगा!!" देव ने ललकारते हुए कहा।

तभी एक भयानक हँसी से सारा श्मशान कांप गया,

"आखिर मैं अपने खेल में सफल हो ही गई!" सपना ने हँसते हुए कहा।

देव के हाथ ढीले पड़ गए,

"तुम लोग अब शैतान की चौखट के अंदर आ चुके हो, अब यहां से कोई तुम्हे नहीं निकाल सकता...और जानते हो?? जानते हो मुझे कितने इंसानों की बलि देनीं है??? पूरे पांच!

वो भी अपने प्यारे पांच इंसानों की...और तुम सब से ज्यादा प्यारा मेरे लिए कौन था मेरे दोस्तों????" सपना बोलती जा रही थी,

किसी को भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

"तुम...तुम...कौन हो तुम???" देव लड़खड़ाती हुई जुबान में बोला।

सपना रहस्यमयी ढंग से एक बार मुस्कुराई और तुरंत बेहोश हो कर गिर पड़ी,

"ये..ये सब क्या हो रहा है???" देवीना चींख पड़ी।

तभी मंदिर के पीछे से किसी की परछाई नजर आयी,

और धीरे धीरे सब के होश उड़ते!

गहरे लाल रंग की साड़ी, खुले हुए बाल,

"से...से...सेजू......." कहते हुए समर की आवाज गले में ही अटक गयी।

वो लड़की सेजू थी, जिसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट थी, सपना बेहोश पड़ी हुई थी..

"हाँ दोस्तो! तुम्हारी सेजू...सो...ये बताओ कि कैसा लगा मेरा सबप्राइज???" सेजू मंदिर के अंदर प्रवेश कर गई थी, देव उसे हैरानी से देख रहा था, मानो उसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो।

"ये सब क्या है सेजू?? तू..तू यहां?? और जयंत कह रहा था कि तू???" देवीना की आवाज कांपने लगी थी।

"चलो अब! मरने वालों से क्या कोई रहज छुपाना!" सेजू ने कहते हुए तलवार अपने हाथ में ले ली।

"म..म..मतलब??" जयंत के मुँह से निकला।

"मतलब ये कि...जो कुछ हुआ! वो सब तुम लोगो को फंसाने के लिए हुआ! और वो सब मैंने ही किया...और क्यों किया इसकी वजह भी मैं तुम्हे बताऊंगी..." सेजू इस वक़्त कोई भोली भाली लड़की नहीं बल्कि कोई बहुत ही खतरनाक औरत मालूम पड़ रही थी,

"तुम लोग जानते हो?? मैं कौन-सी किताबे पढ़ती थी??? भूतों की??? नहीं नहीं नहीं, भूतो की नहीं बल्कि...तंत्र की, जादू की..

वो इसलिए कि मैं इक साधारण जिंदगी नहीं जीना चाहती थी, मैं कुछ बड़ा और अलग करना चाहती थी!

भगवान को तो सभी पूजते हैं न मेरी जान!

पर शैतान को..?? शैतान को कोई विरला ही पूज सकता है, शैतान! वो दे सकता है जो भगवान जन्मों की तपस्या से भी नहीं दे सकता!

शोहरत! इज्जत! और वो सब जो हम चाहते हैं...

और फिर! शैतान को चाहिए ही क्या है?? बस कुछ इंसान?? और भगवान! भगवान क्या मांगते हैं?? वक़्त..शदियाँ... जो मुझे तो मंजूर नहीं!" सेजू की हैवानियत उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी।

"कहानीकार बनने का सपना भी मेरा पूरा हो जाएगा, जब मैं अपना किया धरा सब कुछ एक कहानी में लिखूंगी, तुम सब को तंत्र विद्या से अपने जाल में फसाना! एक भ्रम में रखना...

तुम लोग समझ रहे थे कि मेरी भोली भाली मां, इंसान की और उस प्यारे से पपी की बलि दे रही थी?" सेजू जोर से हँसी!

"नहीं बेबकुफो, असलियत तो ये हैं कि मेरी माँ को मैंने अपने वश में किया हुआ था।" कहते सेजू ने देव की आंखों में डायरेक्ट देखा।

"अब सब जान गए हो तो बचा खुचा और सुन लो," कहते हुए सेजू ने अपनी तलवार को देवीना के कंधे पर आड़ा रखा,

देवीना की रूह कांप गई,

"कमलावती! मेरी नानी मां..., देव! सच बताना तुमने मेरी नानी मां को ही शक के घेरे में लिया था न पहली बार??? बिल्कुल, सेजू कोई चाल चले और मात खा जाए..., ये मुमकिन नहीं.." सेजू ने कहा,

"मेरी नानी मां तो दिल की बहुत अच्छी हैं! इतनी अच्छी की वो मेरी सच्चाई जान कर भी मुझे मार डालने की जगह सिर्फ मुझे समझाती रहीं..." कहते हुए सेजू ने इक बार फिर बेशर्मी भरा ठहाका लगाया।

"लेकिन अब नहीं सेजल...." दूर से कड़कती हुई आवाज आई, सेजू ने आवाज की दिशा में देखा..

सामने कमलावती थी...

"अब नहीं बेटा! मैं सिर्फ तुम्हारे लिए इन बच्चों को बलि नहीं चढ़ने दूँगी।" कमलावती ने कहा।

"तुम्हारे इस शैतान ने तुम्हे कुछ तांकते दी हैं, तो मेरी माँ दुर्गा ने भी मुझे खाली हाथ नहीं रखा! पर तुम जैसी लड़की के लिए मैं अपनी मां दुर्गा की ताकतों का इस्तेमाल नहीं करूंगी,

भूतकाल से एक नादान और निर्दोष लड़के को गुमराह कर के तुम यहाँ तक ले आयी?? वो भी सिर्फ शैतान के लिए बलि दे सको इस लिए???

कितना घिनौना खेल खेला है तुमने सेजू, तुम्हे अंदाजा नहीं!

तुमने वक़्त के साथ खिलवाड़ किया है सेजू! वक़्त के साथ...तुम जयंत को यहां ला कर समय को अपना दुश्मन बना चुकी हो!

तुमने अपने तंत्र मंत्र और तपस्या का गलत इस्तेमाल किया है..." कमलावती की उंगली सेजू की ओर तनी हुई थी।

सेजू गुस्से भरी आंखों से कमलावती को घूर रही थी।

देव इस मंदिर के अंदर अपने मंत्र तंत्रों को बाहर निकालने की गलतीं नहीं कर सकता था, क्योकि यहां सिर्फ नेगेटिव पावर ही काम कर सकती थी।

वो लाचार सा खड़ा सब देख रहा था।

सेजू बिना कुछ कहे देवीना के गले पर एक जोरदार बार करने को हुई..मगर तभी कमलावती ने सेजू के शरीर को गोलियों से छलनी कर डाला!

देवीना चींख पड़ी,

"सेजू...." समर की चींख से सारा मंदिर कांप उठा।

तांत्रिक दुम दबा कर वहां से भाग खड़ा हुआ।

कमलावती की आंखों से भी आंसू बह गए,

मगर उसका जो कर्तव्य था उसने वो पूरा किया और बुराई पर एक बार फिर अच्छाई की जीत हुई।

सुबह होने तक, कोई भी उस मंदिर के बाहर नहीं आ सका, क्योकि सुबह ही पॉजिटिव एनर्जी उस मंदिर में प्रवेश कर सकती थी, आधी रात के बाद नहीं।

इस के बाद सेजू के मृत शरीर को काफी पूजा आराधना करवाने के बाद आग दे दी गई,

यहां सबसे ज्यादा कोई रो रहा था तो वो थी सेजू की मां, जिसने अपनी एक लोती बेटी खो दी थी!

"मां! पर सेजू आंटी तो पहले अच्छी थी न, उन्होंने अचानक से ऐसा क्यों किया था??? और जब उन्हें हिपलोटाइज करना आता था तो उन्होंने ये सब क्यों किया..आप लोगो की बलि ही देनीं थी उन्हें तो आप लोगो को ही हिपलोटाइज कर लेतीं न!" एक करीब छः सात साल की बच्ची ने देवीना से पूछा!

ये बात थी उस घटना के नौ दस साल बाद की, जब सेजू के सभी दोस्तों ने अपनी जिंदगी आगे बढ़ा ली थी, समर को छोड़ कर सभी ने अपनी गृहस्ती जमा ली थी, उनके बच्चे भी थे,

समर सब कुछ जानने के बाद भी सेजू को अपने दिल से नहीं निकाल सका था।

"देव! देव की वजह से वो ऐसा नहीं कर पाई..क्योकि अगर वो हम सबको हिपलोटाइज करती तो देव उसका खेल तुरंत समझ जाता!
बेटा! कभी कभी अच्छे लोग भी बुरे बन जाते हैं, सेजू आंटी के साथ भी यही हुआ था...लेकिन ये बात कोई नहीं झुठला सकता कि चाहे कोई कितना ही बड़ा भ्रम रच दे, सच्चाई से बड़ा नहीं हो सकता!" देवीना ने कहा और अपनी बेटी को थपथपा कर सुला दिया।

देवीना भी सुकून से सो गई।

समाप्त!