Hudson tat ka aira gaira - 41 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | हडसन तट का ऐरा गैरा - 41

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 41

बार - बार घोषणा हो रही थी। अब जो महिला आई उसने चारों ओर देखते हुए तेज़ आवाज़ में कहा - ये पैसेंजर जॉर्ज बब्लू के लिए लास्ट एंड फाइनल कॉल है। हवाई जहाज़ के गेट बंद होने वाले हैं...वो जहां भी हैं तत्काल गेट पर पहुंचें।
वेटिंग लाउंज में बैठे बाकी उड़ानों के यात्री वहां सन्नाटा पसरा देख कर यही सोच रहे थे कि मिस्टर जॉर्ज बब्लू जो भी हैं, उनकी फ्लाइट तो छूटेगी ही। आवाज़ लगाने वाली महिला भी चौकन्नी निगाहों से चारों ओर देखती हुई गेट पर खड़े गार्ड को आंखों ही आंखों में दरवाज़ा बंद कर देने का इशारा करने लगी थी।
लेकिन तभी किनारे की शॉप्स में कुछ हलचल हुई और एक अजीबोगरीब कपड़ों में लिपटा युवक लगभग दौड़ता हुआ गेट की ओर लपका।
वहां खड़े लोग और वो महिला लड़के की ओर रूखी- झुंझलाई नज़रों से देखते हुए उसे लगभग दरवाज़े से भीतर ठेलने ही लगे। लेकिन बाहर लाउंज में बैठे लोगों की दिलचस्पी ये जानने में बिलकुल नहीं थी कि कौन से देश के किस नगर की फ्लाइट इस लापरवाह यात्री के कारण लेट हो रही है। कई लोग ये ज़रूर देख और सोच रहे थे कि बेहद अटपटी पोशाक वाला ये युवक आख़िर क्या काम करने घर से निकला है, जिसने एयरपोर्ट को हिला कर रख दिया। वो विद्यार्थी तो हरगिज़ नहीं लगता था। व्यवसाई या कारोबारी- कर्मी होने की उसकी उम्र नहीं लगती थी। बेतरतीब कबीलाई आदिवासियों से बाल, चमकते सफ़ेद जूतों के खुले और दूर तक घिसटते लेस, इतनी ऊंची टीशर्ट जिसमें से पेट ही नहीं बल्कि घुटनों तक झूलते शॉर्ट्स का मोटा नाड़ा तक हिलता- उछलता और कंधे पर आधी खुली ज़िप का रंगीन बैग जिसके एक हिस्से से किसी जूस या पानी की बूंदें टपक कर उसे ताज़ा - ताज़ा भिगो चुकी थीं, सबके देखते - देखते शीशे के दरवाज़े में बिला गया।
शांति सी हुई। गेट बंद हो गया।
आवाज़ लगाने वाली महिला को एक कर्मचारी ने बताया कि इस पैसेंजर के चैक- इन लगेज में कोई प्रॉब्लम आई थी जिसके कारण इसे फिर से कॉल किया गया था। इसकी वहां काफ़ी बहस भी हुई और शायद एक बार तो एक सिक्योरिटी स्टाफ पर इसने हाथ भी उठा लिया था। पास ही खड़े एक पुलिस वाले ने इससे उसे बचाया।
और तभी हंसता हुआ एक सफ़ाई कर्मचारी भी ट्रॉली लेकर वहां आ पहुंचा और उसने इस पैसेंजर की जो रामकहानी बताई तो किसी को यकीन भी नहीं हुआ लेकिन उसे सुनने के लिए घेर कर कई लोग खड़े हो गए।
असल में ये युवक पक्षियों के एक म्यूज़ियम- कम- एक्वेरियम में काम करने वाला स्टाफ था। इसने दो कीमती दुर्लभ बर्डस को ले जाने की विशेष अनुमति भी ले ली थी और उनके टिकिट भी ले लिए गए थे।
लेकिन यात्रा से चार घंटे पहले इसके लाए प्राणियों की अनुमति रद्द कर दी गई क्योंकि उनका वजन बुकिंग के समय बताए गए वजन से बहुत ज़्यादा निकला। बल्कि खुफिया एजेंसी के अधिकारियों को तो संदेह था कि ये मानव तस्करी का मामला था। शक था कि किसी विशेष पोशाक में ढक कर इन दुर्लभ पक्षियों के साथ ज़रूर किसी बच्चे को छिपा कर ले जाने की तैयारी थी। टिकिट वापिस करते समय धन वापसी को लेकर काफ़ी कहासुनी हुई।
इसकी सघन तलाशी ली गई।
अंततः दुर्लभ प्रजाति के उन पक्षियों को फिर पानी के रास्ते भेजा गया। किंतु इन जीवों का हवाई यात्रा के लिए भारी मूल्य का जो बीमा किया गया था वह समुद्री यात्रा में नहीं माना जा रहा था क्योंकि वह बेहद सीमित अवधि का था। ये सारा गोरखधंधा निपटा कर युवक अपनी उड़ान पकड़ सका था और उसके साथी लोग पक्षियों को वापस लौटा ले गए थे।
विचित्र बात ये थी कि म्यूज़ियम ने प्राणियों का वज़न एकाएक इतना बढ़ जाने पर अनभिज्ञता और आश्चर्य व्यक्त किया था।
बात ये थी कि पेरू के जंगलों में एक विलक्षण प्रजाति के पक्षी पाए गए थे जिनकी सूचना मिलते ही इस संग्रहालय ने अपने विशेषज्ञ आदमियों को उन्हें पकड़ने और सुरक्षित लाने के लिए वहां भेजा था। ये लोग पिछले तीन सप्ताह से इस मुहिम पर थे। जंगली क्षेत्र में इन पंछियों को खोजने, कई दिन तक इनका पीछा करने, इन पर नजर रखने और इन्हें पकड़ने की कहानी बेहद दिलचस्प थी।
तरह- तरह की अफवाहें थीं। कोई कह रहा था कि ये परिंदे नहीं बल्कि मानव हैं जिनकी परवरिश जीव- जंतुओं के बीच ही हुई है। किसी का मानना था कि ये पूरी तरह मनुष्य भी नहीं हैं। ये निर्जन इलाके में दरिया में रहने वाले ऐसे प्राणी हैं जो वैसे तो मनुष्य जैसे ही हैं पर इनके भारी डैने भी हैं, जिनके कारण ये उड़ भी सकते हैं। इनका चेहरा- मोहरा पंछियों से भी मिलता है।
राम जाने, सच क्या था, झूठ क्या? जितने मुंह उतनी बातें। कुछ पत्रकारों ने तो इस पूरे अभियान की स्टोरी भी उजागर कर दी थी लेकिन म्यूजियम द्वारा पूरे मामले को भरसक गोपनीय रखने का प्रयास किया जा रहा था।
एक लड़की ने तो पत्रकारों के समक्ष ऐसा बयान भी दर्ज कराया कि उसने जंगल में इन्हें इंसानों की तरह बोलते हुए भी सुना है। उसका कहना था कि वो इनकी भाषा तो नहीं जानती लेकिन इनके मुंह से निकले कुछ शब्द जैसे ऐश, रॉकी... आदि उसने अपने कानों से सुने हैं जैसे कि ये इन्हें पुकारने के नाम ही हों!
अद्भुत! मीडिया जुटा था सच्चाई का पता लगाने।