Sapne - 44 in Hindi Fiction Stories by सीमा बी. books and stories PDF | सपने - (भाग-44)

Featured Books
  • خواہش

    محبت کی چادر جوان کلیاں محبت کی چادر میں لپٹی ہوئی نکلی ہیں۔...

  • Akhir Kun

                  Hello dear readers please follow me on Instagr...

  • وقت

    وقت برف کا گھنا بادل جلد ہی منتشر ہو جائے گا۔ سورج یہاں نہیں...

  • افسوس باب 1

    افسوسپیش لفظ:زندگی کے سفر میں بعض لمحے ایسے آتے ہیں جو ایک پ...

  • کیا آپ جھانک رہے ہیں؟

    مجھے نہیں معلوم کیوں   پتہ نہیں ان دنوں حکومت کیوں پریش...

Categories
Share

सपने - (भाग-44)

सपने.......(भाग-44)

सारे दोस्तों ने पूरे दो दिन मस्ती में बिताए...।
अब सोमवार को अलग होने का टाइम भी आ गया था। सोफिया और श्रीकांत अपने गाँव जा रहे थे....। श्रीकांत और सोफिया को
रेलवे स्टेशन छोड़ने सब दोस्त गए। अगले दिन नवीन भी अपने टूर पर चला गया। पीछे रह गए राजशेखर, आदित्य और आस्था। कुछ दिन आदित्य और आस्था दिन रात एक दूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा टाइम एक दूसरे के साथ बिताने की कोशिश में थे। आदित्य और आस्था अभी अपना रिश्ता छिपाने की कोशिश में थे, पर प्यार को कितना भी छुपाया जाए, वो छिपता नहीं। सबसे पहले इन के प्यार की खुशबू सविता ताई को आ गयी...पर वो उन दोनो में से किसी से ये बात नहीं पूछ सकती थी। सभी कितना ही प्यार और सम्मान क्यों न देते हों पर वो है तो उनकी हाउस मेड ही...सो वो चुपचाप उनकी प्यारी हरकतें देख कर वो मन ही मन मुस्कुरा देती। अब आस्था के जाने की बारी थी। उसे इलाहाबाद जाना ही था। आदित्य भी जाना चाहता था, पर राजशेखर ने उसे ये कह कर रोक लिया कि उसकी शादी की शॉपिंग करने भी तो उसे ही करानी होगी। वैसे भी आस्था के लिए मुश्किल था उसे अपने घर यूँ ही ले कर जाना । आस्था जब घर अचानक पहुँची तो सब हैरान हो गए। घर मैं खुशी का माहौल बन गया था। आदित्य जब से आस्था को एयरपोर्ट छोड़ कर आया था उसके इलाहाबाद पहुअचने तक कई बार फोन कर चुका था। पिछले कई दिनों से आस्था के साथ दिन रात बिताने की वजह से वो आस्था को मिस कर रहा था और ये तो होना ही था। नए नए हुए प्यार का अहसास भी तो रोमाचंक होता ही है और रूमानियत से भरा होता है, जिसकी वजह से दोनो ही बेचैन थे, एक दूसरे से दूर हो कर... पर ये तो पहला ही दिन था। अभी तो बहुत दिन रहना था दोनो को अलग अलग। अगले दिन आस्था जब स्नेहा से मिलने गयी तो वही अपने फेवरिट हीरा हलवाई के समोसे और जलेबी खा कर अपना दिल खोल कर अपनी बचपन की सहेली के आगे खोल कर रख दिया। स्नेहा तो आदित्य का नाम सुनते ही खुशी से चहक कर बोली," देख ले आस्थू मैंने सही कहा था न तुझे"! "हाँ यार तूने सही कहा था, पर ये सब भाभी या किसी के सामने मत बोल देना, दिक्कत हो जाएगी"। आस्था ने कहा तो स्नेहा बोली," मैं किसी को नहीं बताऊँगी, पर तेरे चेहरे का ग्लो सब को खुद ही बता देगा" , कह कर वो हँस दी और आस्था शरमा गयी। बाकी दिन स्नेहा और अपनी शॉपिंग में आस्था ने बिता दिए। धीरे धीरे स्नेहा की शादी के दिन नजदीक आ रहे थे और आस्था को स्नेहा ने अपने घर पर ही रोक लिया था। आदित्य से रात को ही बात हो पाती थी..। क्योंकि आस्था की भाभी निकिता ने ही रिश्ता करवाया था स्नेहा का तो आस्था का परिवार भी पूरी हेल्प कर रहा था। स्नेहा की शादी की सभी रस्मों में आस्था ने बढ चढ कर हिस्सा लिया। स्नेहा की शादी बहुत अच्छे से हो गयी। उसको विदा करने के बाद वो पूरा दिन सोती रही। कई रातों से वो ठीक से कहाँ सोयी थी। एक तो शादी की तैयारियों की थकान दूसरे आदित्य से दिन में बात नहीं हो पाती थी तो रात को घंटो उसके साथ बातें करती रहती....। स्नेहा की शादी के बाद आस्था एक हफ्ता और इलाहाबाद में अपने परिवार के साथ रही, फिर वापिस मुंबई आ गयी। इस बार आस्था के पापा ने उसे साफ साफ बोल दिया था कि वो अब शादी के लिए मना नहीं कर सकती, जो उसने चाहा वो करने दिया है पर टाइम पर शादी करना भी जरूरी है तो आस्था ने भी इस बार कोई बहाना ना बना कर उनकी बात को मान लिया और बोला, " जी पापा कुछ महीनों की बात है मेरे इस प्ले तक आप रूक जाइए"।विजय जी ने भी उसकी बात खुशी खुशी मान ली। आस्था का परिवार बहुत खुश था, उसकी कामयाबी से और उसके सपने पूरे हो रहे हैॆ सोच कर। आस्था वापिस आयी तो राजशेखर बैंग्लूरू जाने की तैयारी कर रहा था। वो तो जिद पकडे हुआ था कि नवीन, आस्था और आदित्य उसके साथ चलें, पर आदित्य ने कहा उसे समझाया कि, "वो लोग उसके पहले फंक्शन पर पहुँच जाँएगे तब जा कर वो माना"! श्रीकांत और सोफिया से आदित्य की बात हुई तो वो बोले," हम लोग ट्रेन से सीधा पहुँच जाएँगे पर आदित्य बोला, " यार यहाँ आ जाओ तुम दोनों सब साथ चलेंगे"! "ठीक है हम आ जाते हैं पर एक शर्त है, वापिस तुम सब लोग ट्रेन से हमारे साथ आओगे हमारे गाँव दो दिन यहाँ रूक कर ही मुंबई जाओगे, टिकिट मैं सब की अभी करा लेता हूँ"। श्रीकांत की शर्त सुन कर आदित्य बोला, "ठीक है यार पक्का। मैं पहले कभी ट्रेन में बैठा नहीं हूँ, ये भी एक्सपीरियंस कर लूँगा"! आदित्य ने आस्था और नवीन को बता दिया कि, "श्रीकांत और सोफिया के साथ उनके गाँव जाना है शादी के बाद सीधा तो अपनी पैंकिग उसी के हिसाब से करना"। जैसा उन्होंने प्रोग्राम बनाया था वैसे ही श्रीकांत और सोफिया सुबह सुबह मुंबई पहुँच गए, फिर वहाँ से वो लोग सीधा एयरपोर्ट पर ही मिलेंगे ये उसने आदित्य को बता दिया क्योंकि कुछ घंटो के लिए उन्हें घर जाना ठीक नहीं लग रहा था, फिर दो कैब करनी ही पड़ती तो आदित्य ने भी मना नहीं किया। आदित्य, नवीन और आस्था भी एयरपोर्ट के लिए निकल गए। वहाँ श्रीकांत पहले से ही सोफिया के साथ बाहर ही इंतजार कर रहा था। सब एक साथ अंदर गए और बोर्डिंग पास ले कर पहले सबने वहीं लंच किया, क्योंकि फ्लाइट में टाइम था तो सब आराम से बैठ कर बातें करने लगे। सिक्योरिटी चैकिंग के बाद बोर्डिग शुरू हो चुकी थी......सब लोग 4 बजे शामको बैंगलूरू पहुँच गए थे। राजशेखर पहले से ही इंतजार कर रहा था। इस बार एक कार राजशेखर ले कर आया और दूसरी ड्राइवर। एक कार में आस्था, सोफिया और नवीन बैठे थे तो दूसरी में आदित्य और श्रीकांत बाकी सामान ही इतना था कि दोनो गाडियों में सामान आ पाया था। पिछली बार की तरह इस बार राजशेखर ने सबके रहने का इंतजाम अपने घर के पास ही एक फर्नीश्ड फ्लोर पर किया था। वो चाहता था कि सब आसपास रहें, आने जाने का टाइम बचे। राजशेखर ने पहले उनका सारा सामान उस घर में रखवाया जहाँ उन्होंने रहना था, फिर उन्हें घर ले कर आया। राजशेखर के पापा बहुत खुश थे, उन्होंने और माया जी ने बहुत प्यार से उनका वेलकम किया। सब थके हुए थे तो सबसे पहले कॉफी और स्नैक्स तैयार हो कर आ गए। कुछ देर बातें करने में बीती, फिर राजशेखर सबको आराम करने के लिए छोड़ आया.....। शाम को सब ने एक साथ डिनर किया। उनके यहाँ कोई और मेहमान नहीं आया हुआ था। सब अगली सुबह ही आने वाले थे तो डिनर करते करते सारे फंक्शन्स की बातें होती रहीं। रस्में घर में ही होनी थी तो सब इंतजाम माया जी देख रही थी, पर आस्था और सोफिया ने उनकी कुछ जिम्मेदारियाँ आपस में बाँट ली। सब रात को जल्दी सोने के लिए चले गए क्योंकि सुबह जल्दी उठ कर तैयारियाँ करनी थी।
क्रमश: