Shraap ek Rahashy - 11 in Hindi Horror Stories by Deva Sonkar books and stories PDF | श्राप एक रहस्य - 11

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श्राप एक रहस्य - 11

वो अपनी मौत दोहरा रही थी। लेकिन लिली कहां समझ पाई थी कि ये जो उसने अभी अभी देखा है वो तो कई सालों पहले बीत चुका था। वो दौड़कर कुएं के किनारे गई उसने हर तरफ़ आवाज़ दी, घर के भीतर के भीड़ को भी बहुत पुकारा लेकिन सभी तो पूजा में व्यस्त थे। चाह कर भी तो लिली कुछ कर नहीं पा रही थी। किसी चीज़ को हाथ लगाती तो वो चीज़ रेत की तरह उसके हाथो से फिसल जाती। वो चिल्ला रही थी लेकिन उसकी आवाज़ जैसे उसके भीतर ही कहीं घुटकर रह जाती, और फ़िर कुछ देर बाद जब वो कुएं में देखने गई तब तक कुएं का पानी शांत हो चुका था। प्रज्ञा को निगल गया था ये विशाल कुंआ। पानी के सतह में तैर रही थी उसकी प्लास्टिक की वो गुड़िया।

लिली चिल्ला चिल्ला कर रोने लगी। आख़िर अभी अभी अपने आंखों के सामने उसने एक छोटी सी बच्ची की मौत देखी थी। लेकिन तभी फ़िर कुछ बदला अब उस पूजा वाले घर में मातम फैला था। लिली एक कोने में खड़ी लोगों को सुन रही थी। कुछ आस पड़ोस के लोग थे वहां, और प्रज्ञा के माता पिता थे जो उदासी से एक कोने में बैठे थे। प्रज्ञा की मां नीलिमा जी तो सिसक भी रही थी। सभी उन्हें सांत्वना दे रहे थे। नीलिमा जी जब अपनी रुलाई को संभाल नहीं पाई तो वे दौड़कर उपरी मंजिले पर एक कमरे में चली गई। वहां जाकर वो फफक फफक कर रोने लगी। लिली भी उनके पीछे उसी कमरे में चली गई। वे प्रज्ञा की मां को संभालना चाहती थी, लेकिन वो कहां छु पा रही थी उन्हें। वो बस किसी मुक दर्शक सी बनकर देख रही थी सबकुछ। तभी वहां सुब्रतो दास आते है। आते ही वे अपनी पत्नी के पास घुटने टेक कर बैठते है और आहिस्ते आहिस्ते उनके पीठ को सहलाने लगते है। नीलिमा जी अपनी फुट रही रुलाई को जबड़े भींचकर रोकने की कोशिश करती है।

सुब्रतो दास ने पीठ सहलाते हुए अचानक हरक़त बदली और बड़ी बेरहमी से उन्होंने नीलिमा जी के पीछे के बालों को जोर से खींचा, चीख पड़ी थी नीलिमा जी और दरवाज़े की ओट में खड़ी लिली भी चौक गई थी। सुब्रतो दास अब फुसफुसाकर नीलिमा जी से कह रहे थे। :-

"इतना नाटक क्यों कर रही हो..? तुम्हें तो ख़ुश होना चाहिए, अरे कल की जाने वाली आज गई। फ़िर क्यों इतना रोने का नाटक कर रही हो देखो सेहत बिगड़ी तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। याद रखना इस बार तुम्हारे पेट में मेरा लड़का पल रहा है। उसी की सलामती के लिए ना हम ये पूजा करवा रहे थे और देखो ईश्वर भी शायद हमारी मन का समझकर पहले ही इस मुसीबत को हमारे रास्ते से हटा दिया उन्होंने। अरे इसके होने पर भला हमारे बेटे के परवरिश में रुकावट नहीं आती। देखो नीलिमा हम तो उसे धीमा जहर दे ही रहे थे ना हर दिन, साल दो साल में वो खुद ही मर जाती। उसका मोह त्याग दो अब, और सिर्फ़ मेरे बेटे का ख़्याल रखो। लोगों को पता नहीं चलना चाहिए कि हर हफ्ते हम इस पागल को दिखाते तो थे मनोचिकित्सक को लेकिन दवाई इसे पहाड़ी वाले बाबा का ही दे रहे थे। दवाई जो आहिस्ते आहिस्ते जहर का काम करती है और एक दिन इंसान को ले डूबती है। चलो अब मैंने केसर वाला दूध मंगवाया है उसे पी लो, जानती हो ना केसर वाला दूध पीने से बच्चा गोरा पैदा होता है.."।

नीलिमा जो अब तक आहिस्ते आहिस्ते सुबक रही थी अचानक वो उठ खड़ी हुई। उसने घुरकर सुब्रतो जी को देखा और लगभग चिल्लाते हुए बोलने लगी। "और अगर इस बार भी बेटी हुई तो क्या करेंगे आप..? इसे भी मार देंगे। मेरी बेटी को पागल आपलोगों ने किया था समझे, आप और आपके पहाड़ी वाले बाबा ने मिलकर ना जाने ऐसी कौन सी औषधियां पिलाई मुझे की कोख में ही मेरी बच्ची का दिमाग़ ख़राब हो गया। अरे उस बार भी तो उन्होंने कहा था कि कोख में बेटा ही हो इसके लिए ये दवाइयां दे रहा हूं, लेकिन क्या हुआ..? और इस बार भी आप वहीं दवाइयां फ़िर से दे रहे है मुझे, देखिए मैं अच्छे से जानती हूं कि केसर वाला दूध तो बहाना है आप तो उसमें मिलाकर मुझे बाबा की औषधियां पिलाते है। आख़िर इतनी नफ़रत क्यों है आपको बेटियों से..? मेरी फूल सी बच्ची को आपने मार ही डाला। ईश्वर आपको कभी माफ़ नहीं करेगा....कभी भी नहीं"....।

लिली वहां खड़ी जड़ हो चुकी थी। उस यकीन नहीं हो रहा था सुब्रतो दास के जैसे मानसिकता वाले लोग भी होते है। उसका सर घूमने लगा उसने दोनों हाथों से अपने सर को पकड़ा और झटकने लगी। और फ़िर जैसे ही उसने आंखें खोली फ़िर वहीं सीलन भरा अंधेरा कमरा मौजूद था। हालांकि इस वक़्त इस कमरे में हलकी दूधिया रौशनी भी थी। उसने देखा प्रज्ञा अभी भी दरवाज़े पर बैठी थी। अब लिली को प्रज्ञा से डर नहीं लग रहा था। उसे हमदर्दी महसूस हो रही थी उस से।

लिली के आंखों से भी इस वक़्त अविरल धाराएं बह रही थी। सोच रही थी क्या मौत ऐसी भी होती है..? एक छोटी सी बच्ची को मारने के लिए इतने षड्यंत्र रचे जा सकते है..? क्या आज भी इस समाज को बेटे ही चाहिए बेटियां नहीं..? कितना निष्ठुर था प्रज्ञा का परिवार।
लिली सोच रही थी ना जाने ये सब कब बीता होगा। वो एक बार मिलना चाहती थी नीलिमा से, वो देखना चाहती थी क्या प्रज्ञा की मौत के बाद उनकी दूसरी संतान जिंदा है भी या नहीं। कहीं सुब्रतो दास जैसे नरपिशाच ने उसे भी मार दिया। हर वक़्त अच्छाई का मुखौटा पहने सुब्रतो दास भीतर से कितने बड़े पिशाच थे ये तो लिली देख ही चुकी थी। उनकी बुराइयों ने ही तो एक मासूम सी जान को आज एक बुरी ताक़त बनने को मजबुर कर दिया। तभी तो आज वो घिनू जैसे शैतान की मदद कर रही थी। ना जाने घीनू ने उसे अपनी कौन सी झूठी कहानी सुनाई होगी। ये तो वक़्त ही बताएगा।

फ़िलहाल लिली अब प्रज्ञा के लिए एक सही रास्ता बन गई थी। पहली बार प्रज्ञा ने किसी इंसान को अपनी आपबीती दिखाई थी, और लिली का चुनाव बिल्कुल सही साबित होने वाला था।

क्रमश :- Deva sonkar