Hudson tat ka aira gaira - 30 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | हडसन तट का ऐरा गैरा - 30

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 30

ऐश की आंखों में आंसू आ गए। वह इधर- उधर उड़ती- हांफती न जाने कितनी देर से बदहवास सी घूम रही थी पर उसे उसके साथी लोग कहीं नहीं दिख रहे थे।
ऐसा कैसे हो सकता है कि उसे इतना दिशाभ्रम हो जाए। फिर भी उसने सुबह से हर तरफ उड़ - उड़ कर देख लिया। चप्पे- चप्पे की ख़ाक छान ली।
पहली बात तो यही थी कि परिंदों का वह समूह दो- एक दिन वहां रुकने वाला ही था। इतनी जल्दी सब कहां चले गए, कैसे चले गए।
फिर अगर किसी वजह से वो विश्राम स्थल छोड़ना भी पड़ा हो तो इतनी जल्दी और कहां जा सकते हैं। ऐश ने चारों तरफ़ तो ख़ाक छान कर देख लिया।
उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया।
चारों तरफ़ पेड़ थे, खुली हवा थी लेकिन फिर भी एक अजीब सा सूनापन ऐश के मन में घर कर गया। ऐसी अनहोनी हो कैसे गई? क्या उसके सभी साथी किसी मुसीबत में घिर गए? लेकिन सैंकड़ों पंछियों के दल पर एक साथ संकट कैसे आ सकता है? कोई तो मिलता, कुछ साथी तो दिखाई देते। कहां लोप हो गए सारे के सारे।
उल्टे मुसीबत में तो बेचारी ऐश खुद फंस गई।
कल रात की ही तो बात है। जिस समय उनके दल ने दिनभर की थकान से चूर होकर यहां डेरा डाला था तब काफ़ी अंधेरा हो चुका था। पेड़ों के इस घने झुरमुट के पास थोड़ा बहुत पानी और दलदल होने से उन्हें खाने को तो भरपूर मिल गया था। छोटे मेंढकों, कीट- पतंगों, झींगुरों की यहां भरमार थी। इसलिए सब खा- पीकर आसपास की टहनियों पर ठिकाने ढूंढते हुए टिकने लगे थे।
ऐश ने भी अपने दल के एक नटखट युवा के अभिसार को परख कर उसी टहनी पर डेरा डाल लिया था जिस पर वो बैठा था।
आज ऐश ने मन ही मन अपने आप को समझा भी लिया था कि वो अपने साथी का मन रखने में कोई कोताही नहीं करेगी। क्या होता है इससे?
हम सब निसर्ग की पैदाइश ही तो हैं। अगर किसी को हम में कोई सुख दिखाई देता है तो हम उसे क्यों रोकें? क्या ख़ुद हमारा दिल नहीं करता कि कोई हमारा साथी हो जो हमारे बदन को आराम पहुंचाए।
लेकिन इसकी नौबत ही नहीं आई।
अंधेरे में ही ज़ोर से दो - चार पंछियों के चीखने- चिल्लाने की आवाज़ सुन कर ऐश वहां से उड़ गई। उसे क्या मालूम था कि वो दुष्ट बाज़, जिस के हमले से डर कर उसके साथी चिल्लाए थे ख़ुद ऐश के ही पीछे पड़ जायेगा। ऊपर अकेले में उसे उड़ते हुए देख कर बाज उसी पर झपट पड़ा।
ऐश ने आव देखा न ताव और पूरी ताकत से अपने डैने खोल कर खुले आकाश का रुख किया। बाज़ भी न जाने कब का भूखा था, ऐश पर जैसे टूट ही पड़ा। भला हो बिजली के खंभे पर लगे तारों का कि उन्हीं में से एक तार से उलझ कर बाज एक पल को रुक गया। मौका मिलते ही ऐश ने ऐसी उड़ान भरी कि ये जा, वो जा। न जाने कितनी ही देर तक वो सांस थामे उड़ती ही चली गई। अपनी जान हथेली पर लेकर।
बाज़ एक बार जो पिछड़ा तो फ़िर न जाने कहां दिग्भ्रमित हो गया। ऐश उसकी नज़र से ओझल ही हो गई।
लेकिन ऐश ने कोई जोखिम नहीं लिया। वह दम साधे सीधी एक दिशा में उड़ती ही चली गई। आधे घंटे बाद जब उसे यकीन हो गया कि वो दुष्ट बाज़ कहीं और भटक गया है तभी उसने वापसी के लिए इधर रुख किया।
और अब, यहां आकर उसे ये सन्नाटा पसरा हुआ दिखाई दिया। हो न हो, जगह तो यही थी। पर अब यहां कोई नहीं था। उसके सब साथी न जाने कहां चले गए थे।
उसका डर मानो उसके ही कंधों पर सवार होकर बैठ गया। एक तो मुश्किल से जान बची, ऊपर से दल से बिछड़ और गई।
हार- थक कर उसने थोड़ी देर सो लेने का मानस बनाया। थोड़ी ही देर में पौ फटने से शायद दिन के उजाले में उसे दूर से ही अपने साथियों का कोई सुराग मिल जाए। विश्राम करने के लिए भी उसने पेड़ की वही सबसे ऊंची वाली फुनगी चुनी जिस पर उसका साथी और वो सबसे पहले आकर बैठे थे।
ऐश ने आंखें बंद कर लीं। कुछ तो नींद से, कुछ भय से।