Tere Ishq me Pagal - 8 in Hindi Love Stories by Sabreen FA books and stories PDF | तेरे इश्क़ में पागल - 8

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तेरे इश्क़ में पागल - 8

कल हॉस्पिटल से आने के बाद से ही ज़ैनब अपने कमरे में ही थी। घड़ी में टाइम देखने के बाद वोह उठ कर वाशरूम में फ्रेश होने के लिए चली गयी।

कासिम ने गाड़ी ज़ैनब के घर के सामने रोकी।
अहमद और ज़ैन गाड़ी से उतर कर घर के अंदर गए। वोह दोनो सोफे पर बैठ गए और कासिम उनके पीछे खड़ा हो गया।

फुरकान और उसकी बीवी उन दोनों के सामने ही बैठे थे।

"आप लोग कौन है?" फुरकान ने उन तीनों को देखते हुए पूछा।

"हम ज़ैनब का रिश्ता ले कर आये है।" अहमद ने सोफे पर पीठ टिकाते हुए कहा।

हमें अभी उसकी शादी नही करनी है। आप लोग यहाँ से जा.........

"पाँच करोड़।" फुरकान की बात पर ध्यान दिए बिना ज़ैन ने कहा।

अहमद ने हैरानी से ज़ैन की तरफ देखा। जबकि पांच करोड़ का सुनकर फुरकान और उसकी बीवी एक दूसरे की तरफ देखा। उन्होंने इतने पैसे अपनी पूरी ज़िंदगी मे नही देखे थे।

फुरकान की बीवी ने मुस्कुराते हुए जल्दी से कहा। "हमें मंज़ूर है।"

उसकी बात सुनर कर ज़ैन के होंठो पर मुस्कुराहट आ गयी जबकि अहमद ने अफसोस के साथ अपना सिर हिलाया और उनकी तरफ देखते हुए कहा:"सब रिश्ते मैले हो गए।"

उसकी बात सुनकर फुरकान और उसकी बीवी ने मुंह बनाया लेकिन कुछ कहा नही।

बात फाइनल होने के बाद ज़ैनब की भाभी उसके रूम में आई और उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोली:"चलो"

ज़ैनब हैरानी से उनकी तरफ देखते हुए बोली:"लेकिन कहा!!!"

उसको हैरान देख कर उसकी भाभी ज़ोर से हस्ते हुए बोली:"आखिरकार तुमसे पीछा छूट ही गया, हमने तुम्हे बेच दिया है, अब तुम इस घर से अपनी मनहूस शक्ल ले कर निकल जाओ।"

आ....आप.....झूठ बोल रही है ना। ज़ैनब ने लड़खड़ाती जुनाब में खुद को तस्सली देते हुए कहा।

"नही...में सच कह रही हु।" वोह गुस्से से बोली और उसको खींचते हुए ड्राइंग रूम में ले कर आयी।

ज़ैन को सोफे पर बैठे देख वोह एक पल के लिए ठिठक गयी, लेकिन वोह इस वक़्त उस पर धयान देने के होश में नही थी। वोह सीधा अपने भाई के पास जा कर उसके पैरों के पास बैठ कर बोली:"भाई भाभी झूठ कह रही है ना, आप मुझसे प्यार करते है ना।"

"नही, तुम मेरी सौतेली बहेन हो मैं तुमने नफरत करता हु।" फुरकान ने गुस्से से कहा और उसे खुद से दूर किया।

ज़ैनब तोरे हुए उससे मिन्नतें कर रही थी।

अहमद को उसकी हालत देख कर बहोत दुख हो रहा था, जबकि ज़ैन को गुस्सा आ रहा था।

"उसके पैरों में बैठ कर मिन्नतें क्यों कर रही हो चलो यहां से।" ज़ैन ने गुस्से से कहा।

ज़ैनब ने ज़ैन की तरफ देखा और अपने भाई से कहा:"प्लीज भाई मैं मर जाउंगी।"

"अपनी अमानत को ले जाये शाह साहब।" ज़ैनब की बात पर धयान दिए बिना ही फुरकान ने ज़ैन से कहा।

ज़ैन ने ज़ैनब का बाज़ू पकड़ा और उसे खींचते हुए बाहर ले जाने लगा। बाहर जाते हुए उसने कासिम से उन्हें पैसे देने को कहा। जबकि ज़ैनब अपना बाज़ू छुड़ाने की पूरी कोशिश कर रही थी। लेकिन ज़ैन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वोह खुद को छुड़ाने में नाकाम रही। ज़ैन ने उसे पीछे की सीट पर बिठाया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और अहमद भी फ्रंट सीट पर आ कर बैठ गया।

ज़ैनब बार बार दरवाज़ा बजा रही थी और अहमद को उसकी हालत देख कर उस पर तरस आ रहा था।

ज़ैन ने एक नज़र ज़ैनब पर डाली और गाड़ी को स्टार्ट करके सड़क पर दौड़ा दी।

जब घर ज़ैनब की नज़रों से दूर हो गया तो वोह अपने हाथों से अपना मुंह छुपा कर रोने लगी।

ज़ैन को उसके रोने की वजह से तकलीफ हो रही थी।

"अब रोना बन्द करो।" ज़ैन ने गुस्से से कहा।

उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी कि ज़ैनब सहम गयी।

अहमद ने घूर कर ज़ैन कि तरफ देखा।

उसे खुद को घूरते हुए देखा ज़ैन प्यार से ज़ैनब से बोला:"बटरफ्लाई रोना बन्द करो तुम्हारे रोने से मुझे तकलीफ हो रही है।"

"प्लीज आप मुझे घर छोड़ दे वोह ज़रूर मुझसे किसी बात के लिए नाराज़ है मैं उन्हें मना लुंगी।" ज़ैनब ने रोते हुए कहा।

"वोह तुमसे प्यार नही करते।" ज़ैन ने नरम लहजे में उससे कहा तो वोह घुटने में सिर छुपा कर रोने लगी।

कुछ देर बाद ज़ैन ने गाड़ी रोकी और ज़ैनब को बाहर निकाला और घर मे ले जाने के बाद उसने ज़ैनब को एक कमरे में बंद कर दिया। ज़ैनब बार बार दरवजा खटखटा रही थी। जब किसी ने दरवाजा नही खोला तो वोह थक हार कर ज़मीन में बैठ कर रोने लगी।

"अड्डे पर जाओ और अपने दो भरोसे मन्द आदमियो को यहां पहरेदारी के लिए लगा दो।" ज़ैन ने सिगरेट के कश भरते हुए कासिम से कहा।

"अब क्या करना है?" अहमद ने ज़ैन से पूछा।

"फिलहाल तो रात की फ्लाइट से मैं दो दिन के लिए दुबई जा रहा हु बाकी का आने के बाद देखता हूं तू घर पर चक्कर लगाते रहना।" ज़ैन ने ज़ैनब के कमरे की तरफ देखते हुए अहमद से कहा।

"ओके।" अहमद ने सिर हिला कर कहा।

ज़ैनब बैठी रो रही थी, वोह सोच भी नही सकती थी उसका भाई ऐसा भी कुछ कर सकता है। रोत रोते उसकी आंख कब लग गयी उसे पता ही ना चला।

दो दिन बाद..........

ज़ैनब सोच रही थी दो दिन हो गए उसे यह आये हुए। एक औरत अति है और उसे खाना दे कर चली जाती है और वोह मिन्नते करती है कि खाना खाले नही तो शाह जी हमें छोड़ेंगे नही और ज़ैनब उनका खयाल करके खाना खा लेती थी। ज़ैनब यह सोच कर की इनका शाह जी मेरे साथ क्या करेगा कांप जाती है।

यह सब सोचते हुए उसने आज कमरे के चारो ओर नज़र दौड़ाई उसे आज अहसास हुआ था कि उसका कमरा बहोत खूबसूरत है। हस चीज़े कायदे से रखी हुई थी। वहां एक शीशे के दरवाज़ा था जब ज़ैनब ने उसे खोल कर देखा तो वोह एक टैरिस थी। उसको बहोत खूबसूरती से सजाया गया था। चारों तरफ हरे भरे पेड़ थे वहां दो कुर्सियां और एक छोटा से टेबल रखा हुआ था। वहां एक सीढ़ी थी जो नीचे गार्डन की तरफ जाती थी। ज़ैनब ने इधर उधर देखा वहां कोई नही था। वोह धीरे से सीढ़ियों से नीचे आयी और मेन गेट की तरफ जाने लगी। उसने दरवाज़े से बाहर देखा तो वहां दो आदमी थे,एक कुर्सी पर बैठ कर सो रहा था जबकि दूसरा आदमी दूसरी तरफ मुंह करके मोबाइल में गेम खेल रहा था। ज़ैनब ने धीरे से दरवाज़ा खोला और वहां से बाहर निकल गयी।

ज़ैन आज घर वापस आया वोह बहोत खुश था कि अब वोह ज़ैनब को देख पायेगा। लेकिन जैसी ही उसने रूम का दरवाजा खोला वहां कोई नही था उसने वाशरूम में देखा वहां भी कोई नही था। फिर उसने टैरिस की तरफ देखा जिसका दरवाज़ा खुला हुआ था, ज़ैन दौड़ते हुए वहां गया लेकिन वहां भी कोई नही था। वोह गुस्से से सीढिया उतरते हुए ज़ैनब की मासी को आवाज़ देने लगा।

वोह जल्दी से किचन से भगति हुई उसके पास आ कर बोली:"क्या हुआ साहब?"

"ज़ैनब कहा है?" उसने गुस्से से पूछा।

"साहब वोह तो थोड़ी देर पहले अपने रूम में थी।" उन्होंने डरते हुए कहा।

"लेकिन अब वोह वहां नही है।" ज़ैन का गुस्से से बुरा हाल हो रहा था। उसने अहमद को फ़ोन किया और उसे अपने घर आने के लिए कहा।

ज़ैन बाहर खड़े पहरेदारो को गुस्से में देख रहा था।

"बॉस हम बाहर से एक सेकंड के लिए भी हिले है बाहर कोई नही गया है।" एक पहरे दर डरते डरते बोला।

"अगर वोह बाहर नही निकली तो आसमान उसे खा गया या ज़मीन उसे निगल गयी।" ज़ैन ने गुस्से से उसे देखते हुए कहा।

तब तक अहमद भी रश ड्राइविंग करते वहां पहुंच चुका था।

"बॉस हमें नही पता मैडम कहा गयी है हमारा यक़ीन करे।" वोह दोनो ज़ैन के कदमो में बैठ कर गिड़गिड़ा रहे थे।

क्योंकि वोह दोनो जानते थे उनकी गलती की सज़ा शाह की अदालत में सिर्फ मौत है।

कासिम जो ज़ैन के वापस आने पर उससे मिलने आया था उसे गुस्से में देख कर वो भी सहम गया।

"बॉस" उसने डरते डरते ज़ैन को आवाज़ दी।

"दिल तो कर रहा है तुम दोनों को शूट कर दूं, तुम दोनों के होते हुए वोह यहां से भागी कैसे।" ज़ैन ने गुस्से से चिल्ला कर कहा।

"कासिम मुझे गन दो।" ज़ैन ने गुस्से से कासिम को देखते हुए कहा।

नही बॉस हमें माफ करदें। उन दोनों ज़ैन से गिड़गिड़ा कर कहा।

"तुम दोनों जाओ यहां से।" अहमद ने उन दोनों से कहा।

उसकी बात सुनकर ज़ैन ने खूंखार नज़रो से अहमद की तरफ देखा।

"ज़ैनु रिलैक्स यह वक़्त गुस्सा करने का नही है। हमें पहले भाभी को ढूंढना चाहिए।" अहमद ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा।

"कासिम अपने आदमियो को शहर में फैल जाने को कहो। हमे जल्द से जल्द उन्हें ढूंढना होगा।" अहमद ने कासिम को आर्डर दिया और कासिम अपना सिर हिलाते हुए फौरन वहां से चला गया।

ज़ैनब भागते हुए कुछ लड़कों से टकरा गई। सॉरी कहते हुए जैसे वोह पीछे मुड़ी सामने खड़े शख्स को देख कर उसकी सांसे ही रुक गयी।

कहानी जारी है.......
©"साबरीन"