Hudson tat ka aira gaira - 22 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | हडसन तट का ऐरा गैरा - 22

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हडसन तट का ऐरा गैरा - 22

घना अंधेरा था।
ये दो - तीन घने पेड़ों का एक झुरमुट सा था जो रात के इस वीराने में सहरा के किसी नखलिस्तान की भांति उन आकाश में उड़ते पंछियों को अकस्मात दिखाई दे गया था। आराम के लिए यहीं ठहरने को सब उतर गए।
आते ही ऐश को बहुत गहरी नींद आई थी। शायद कई दिनों तक ठीक से न सो पाने का ही नतीजा था। चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ था। जो भी आवाज़ थी वो इसी दल के मुसाफिरों की कानाफूसी सी थी।
जैसे कई बार देर रात को स्टेशनों पर रेल में चढ़ने वाले मुसाफिरों के साथ होता है। वो जब गाड़ी में चढ़ते हैं तब चारों ओर अंधेरा होता है, सब सोए हुए रहते हैं। वो तेज़ आवाज़ करने से बचते भी हैं पर उन्हें इस नीम अंधेरे में ही अपनी सीट भी तलाश करनी होती है, असबाब भी जमाना होता है और ये ध्यान भी रखना होता है कि कोई जाग न पड़े। थोड़ी देर की इस फुसफुसाहट के बाद वो ख़ुद भी नींद के आगोश में चले जाते हैं और फिर गाड़ी के दौड़ने की ही आवाज़ रह जाती है।
इसी तरह का शोर था। लहरों का शोर। ज़मीन के कंधों पर पानी की थपकियों का शोर। और शाम को वहां आकर सुबह तक के रात्रि- विश्राम के लिए ठहरे हुए परिंदों का शोर।
अचानक गहरी नींद के बीच भी ऐश की आंख खुल गई। वह हैरान रह गई। उसे जब सारी बात समझ में आई तो उसे कुछ शरम ख़ुद अपने पर भी आई और थोड़ा सा पश्चाताप भी हुआ कि उसने ये क्या किया?
वो बूढ़ा चाचा उसके ऊपर चढ़ा हुआ था और गर्दन घुमा कर उसके छितराए हुए पंखों को फैलाता हुआ उनके बीच जैसे कुछ टटोल रहा था। इसी नुकीली सी गुदगुदी से तो उसकी नींद खुली।
वह तेज़ी से फिसल कर उसके नीचे से निकली और फड़फड़ा कर पास वाली डाल पर जा बैठी।
चाचा निरीह सी नज़रों से उसे देखता रह गया।

देखो तो इस बूढ़े को? दिन भर उड़ कर थक गया होगा, यही सोच कर तो ऐश उसके पैरों और परों पर हल्की थपकियां दे रही थी लेकिन ये तो घने अंधेरे का फ़ायदा उठा कर उसी के तन पर हल चलाने की तैयारी करने लगा।
कौन कहेगा कि ये बूढ़ा है? जवानों से भी पैना हमला करने की तैयारी में था। ये तो अच्छा हुआ जो ऐन वक्त पर ऐश की आंख खुल गई वरना इसका तीर तो पार था।
ऐश को बड़ा पछतावा हुआ कि वो इसके पास बैठी ही क्यों। उसे उस लिजलिजे बूढ़े की गिलगिली हरकत पर घिन आने लगी।
साथ ही ऐसे में उसे रॉकी की याद भी बेसाख्ता आने लगी। वो बेचारा न जाने कब से ऐश की "हां" का इंतजार करता रहा था पर उसने साथ रहते हुए भी ऐश की मर्ज़ी के बिना कभी उसके बदन को छूने की कोशिश नहीं की। जब कि कितने ही ऐसे मौक़े आए थे जब रॉकी आराम से अपनी मनमानी कर सकता था। वो तो रहते ही एक आशियाने में थे। बारिश, आंधी, तूफान, अंधेरे, एकांत...क्या नहीं झेला ऐश के साथ वहां रॉकी ने। लेकिन क्या मजाल जो कभी उसके पेट या पीठ से सटा हो।
और एक इसे देखो। इसकी उम्र का लिहाज़ करके ऐश ने ज़रा सी हमदर्दी क्या जताई कि सीधे उछल कर सोती हुई ऐश के ऊपर ही आ गया। लंपट कहीं का!
लेकिन ऐश का दिल भीतर ही भीतर दहल गया। बूढ़े हर जगह जवानों से कमज़ोर नहीं होते? ओह, क्या छिपाए घूम रहा है चाचा! जान बची और लाखों पाए।
कुछ हो जाता तो रॉकी उसे आड़े हाथों लेता। उसे चार खरी - खोटी सुनाता - अच्छा, तो ये बूढ़े राजा पसंद आए तुझे?
ऐश खुद से ही शरमा गई।
दूसरी डाल पर आ कर भी अब ऐश की आंखों में नींद नहीं आई। क्या पता, कब उसकी आंख लग जाए और कब ये चाचा उस पर बरस पड़ें।
लेकिन उसकी इस तरह उपेक्षा से उस बूढ़े परिंदे को इतनी लज्जा आई कि वह ख़ुद ही उड़ कर दूसरे पेड़ पर जा बैठा और अंधेरे के बावजूद पत्तों में मुंह छिपा कर बैठ गया। वह आंखें बंद करके सोने की जबरन कोशिश करने लगा।
उसे लगा कि कहीं ऐश अपने किसी युवा साथी से उसकी शिकायत न कर दे जो उसे मारपीट कर इस समूह से ही खदेड़ दे।
युवा मादा के दोस्त तो अनजान नर भी तुरंत बन जाते हैं और उसका दिल जीतने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं उसके लिए!