Golu Bhaga Ghar se - 28 in Hindi Children Stories by Prakash Manu books and stories PDF | गोलू भागा घर से - 28

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गोलू भागा घर से - 28

28

अखबारों में छपी कहानी

यह रहमान चाचा का जादू ही था कि अब घर में गोलू की इज्जत पहले से कई गुना अधिक बढ़ गई थी। अब कोई उसे ताने नहीं देता था और न यह कहता था कि गोलू, तुझमें यह कमी है, वह कमी है।

शायद रहमान चाचा ने ही गोलू के घर वालों को इशारा कर दिया था, इसलिए किसी ने खोद-खोदकर उससे पिछली बातें नहीं पूछीं।...हाँ, अखबारों में गोलू के बारे में जो भी छपता था, उसकी कटिंग गोलू के घरवाले सँभालकर रखते जाते थे। बहुत से अखबरों के संवाददाता तो गोलू के घर भी आ पहुँचे थे। और उसकी पूरी कहानी नोट करके ले गए थे। ‘अमर उजाला’, ‘दैनिक जागरण’, ‘भास्कर’, ‘दैनिक हिंदुस्तान’ और ‘नवभारत टाइम्स’ ने गोलू के संघर्ष और बहादुरी की पूरी कहानी उसके फोटो के साथ छापी थी। गोलू के दोस्त उन अखबारों को लेकर दौड़े-दौड़े गोलू के पास आते और कहते, “वाह दोस्त, तुम तो रातोंरात महान हो गए!” इस पर गोलू हँस पड़ता।

मास्टर गिरीशमोहन शर्मा और रंजीत को भी गोलू की बहादुरी की यह कहानी अखबारों में पढ़ने को मिली थी। किसी अखबार में गोलू का पूरा पता भी छपा था। वहीं से पता लेकर मास्टर गिरीशमोहन शर्मा ने गोलू को शाबाशी की चिट्ठी लिखी थी। और लिखा था कि मैं तो शुरू से ही जानता था कि तुम जरूर कोई बहादुरी का काम करोगे।

रंजीत ने भी गोलू को बड़ी प्यारी सी चिट्ठी लिखी थी जिसमें उसके साथ बिताए दिनों को याद करते हुए कहा था, “गोलू, तुमने मेरी आँखें खोल दीं। मैं जिस बुरे धंधे के आकर्षण में मुंबई गया था, अब उससे मुझे घृणा हो गई है। मैं भी अब तुम्हारे जैसा सीधा-सादा प्यार और इनसानियत का जीवन जीना चाहता हूँ।”

इन सब चीजों से गोलू को बड़ी प्रेरणा मिली। पिछले कई दिनों से अतीत की घटनाएँ उसके दिमाग में चक्कर-पर-चक्कर काट रही हैं।

कोई महीने भर में गोलू ने दिल्ली में बिताए अपने दिनों की पूरी कहानी लिख डाली। ढाई सौ पन्ने का बड़ा रजिस्टर था, वह पूरा भर गया। और गोलू की कहानी भी पूरी हो गई जिसमें मास्टर गिरीशमोहन शर्मा, रंजीत, आर्टिस्ट पागलदास, मिस्टर डिकी, मिस्टर विन पॉल और सबसे ज्यादा तो रहमान चाचा, सफिया चाची, फिराक और शौकत का जिक्र था। और हाँ, कमरे में झाड़ू-पोंछा लगाने वाली रामप्यारी को भी वह भूला नहीं था। उसने लिखा था, “असल में तो मुझे मैनपुरी की उस सीधी-सादी काम करने वाली आंटी रामप्यारी ने ही इस सारे चक्कर से बाहर निकलने की प्रेरणा दी थी। मुझे कुछ-कुछ संदेह तो था कि ये लोग कुछ गड़बड़ कर रहे हैं, लेकिन रामप्यारी की बातों से मेरा संदेह यकीन में बदल गया। फिर रामप्यारी ने ही मुझे बताया कि इस जासूसी की संस्था में हर आदमी के पीछे जासूस लगे हैं, इसलिए बचकर रहो। शुरू-शुरू में तो रामप्यारी ने सब कुछ कहा, लेकिन बाद में उसने शब्दों से कहना बंद कर दिया। हाँ, पर उसकी आँखें कहा करती थीं, ‘भाग जा लल्ला, यहाँ से भाग जा, भाग जा। ये लोग अच्छे नहीं हैं।...रामप्यारी में अकसर मुझे अपनी मम्मी की छवि दिखाई देने लगती थी। और इसीलिए अभिमन्यु की तरह मैं इस पूरे चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए कसमसा उठा।”

गोलू ने अपनी कहानी पूरी होते ही सबसे पहले मन्नू अंकल को पढ़ने के लिए दी। मन्नू अंकल पढ़कर खुशी से झूम उठे। बोले, “अद्भुत है गोलू। इतने अच्छे ढंग से तो मैं भी नहीं लिख सकता था। तू तो सचमुच लेखक हो गया।”

फिर गोलू ने अपनी कहानी सुजाता दीदी को पढ़ने को दी। सुजाता दीदी ने पढ़कर बहुत तारीफ की। उन्हों आशीष भैया, मम्मी और पापा को इसके बारे में बताया तो उन्होंने भी इसे खूब मन लगाकर पढ़ा। मन्नू अंकल ने इसके कुछ हिस्से अखबारों में छपने के लिए भेजे। एक अखबार ‘नया सवेरा’ ने तो गोलू की इस पूरी कहानी को धारावाहिक रूप से छापना शुरू कर दिया।

जब यह पूरी कहानी छप गई, तो गोलू ने ‘नया सवेरा’ में छपी अपनी कहानी की कतरनों को सिलसिले में लगाकर रजिस्ट्री से रहमान चाचा को भेज दिया।