Kahani Pyar ki - 3 in Hindi Fiction Stories by Dr Mehta Mansi books and stories PDF | कहानी प्यार कि - 3

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कहानी प्यार कि - 3


शाम के करीब सात बजे थे। मोहित तैयार होकर कहीं जा रहा था। राजेशजी ने जैसे ही उसे बाहर जाते देखा तो रोक लिया।
" अरे मोहित कहा जा रहे हो..? "

" पापा मे कुछ काम से जा रहा हूं .. मुझे आते आते देर हो जाएगी.. मम्मा से कह देना खाने पर मेरा वेइट ना करे।" वो बोला और राजेश जी का जवाब सुने बिना ही वहा से चला गया।

इधर त्रिपाठी निवास में जगदीशचंद्र किसी से फोन पर बातें कर रहे थे।

" देखो कल कोई ग़लती नही होनी चाहिए। कल हमारी बहुत ही बड़ी डिल होने वाली है। एकबार ये डील हो जाए तो हमे मालामाल होने से कोई नहीं रोक पाएगा। पर ध्यान रहे उन लोगो को कहीं हम पर शक ना हो जाए। तुम्हे सिर्फ उन लोगो को ओब्रॉय फार्मा इंडस्ट्री पर जाने से रोकना है और मैने कहा है उस जगह पर लाना है समझे ? उसके बाद का में सब देख लूंगा "

" ओके सर " सामने से आवाज आई और जगदीशचंद्र ने फोन काट दिया।

पीछे से हरदेव ने उनकी सारी बात सुन ली । वो सोच में पड़ गया कि एसी कोन सी डील करने जा रहे है पापा ? और उनका ऑब्रॉय फार्मा इंडस्ट्री से क्या लेना देना ? उसने थोड़ा सोचा पर फिर मुझे इस सब से क्या लेना देना ये कहकर वहा से चला गया।

जगदीशचंद्र के पास खड़ा उसका सेक्रेटरी बोला..
" सर .. आप को क्या लगता है .. कि हम सब ये करेंगे और उस ओब्रोय को कुछ पता नहीं चलेगा ..? "
" नहीं चलेगा .. " जगदीशचंद्र ने पूरे कॉन्फिडेंस मे कहा।

" पर सर वो ओब्रॉय बड़ा ही चालाक है .. इतनी छोटी उम्र में उसने ओब्रोय इंडस्ट्री को कहां से कहा पहुंचाया है । आज इंडिया कि टॉप फार्मा इंडस्ट्री है वो। और मैने तो ये भी सुना है की वो ओब्रोय बड़ा ही खुशमिजाज और मन मौजिला सा लड़का है। वो तो काम के बिना कभी ऑफ़िस भी नहीं जाता सीधा अपने क्लाइंट से मिलता है । उसके अलावा किसी से मिलता भी नहीं और मीडिया से तो बिल्कुल नहीं। मैंने भी उसे कभी देखा नहीं। वो तो दो साल पहले ही केनेडा से अपनी पढ़ाई पूरी करके लौटा है । इस दो साल मे ही उसने ओब्रोय फार्मा इंडस्ट्री कि तस्वीर ही बदल दी। " उसके सेक्रेटरी ने कहा।


" तुम मेरे सामने उसकी तारीफ कर रहे हो ? " जगदीशचंद्र ने गुस्सा होते हुए कहा।

" सॉरी सर... "
" नाम क्या है उस ओब्रोय का ? " जगदीशचंद्र ने कड़क स्वर में पूछा।

" वो..." सेक्रेटरी जैसे ही बोलने जा रहा था तभी किसी कि आवाज़ सुनाई दी।
" नमस्ते अंकल ! " उन्होंने जैसे ही आवाज सुनी तो दरवाजे कि तरफ देखा। दरवाजे पर मोहित खड़ा हुआ था।

" अरे ! मोहित बेटा आओ ना अंदर ... " जगदीशचंद्र ने उसके पास जाते हुए कहा।

" जी ..." इतना कहकर मोहित अंदर चला आया।

" बेटा अचानक इस तरह .. घर पर सब ठीक तो है ना ? "
" हा अंकल सब कुछ ठीक है बस आप लोगो से कुछ बात करनी थी। " मोहित ने कहा।

" हा बोलोना बेटा ..."

" एसे नहीं वो हरदेव भी आ जाए तो आप दोनो को साथ मे ही.. " मोहित आगे कुछ बोल पाए उससे पहले ही जगदीशचंद्र बोल पड़े,
" बेटा हरदेव तो अभी अभी बाहर गया है .. "

" ओह.. तो मे थोड़ी देर यहां वेइट करता हूं.."

" ठीक है तुम यहीं बैठो .. सुनो राजू .. मोहित के लिए चाय नाश्ता लेकर आओ... और मोहित तुम थोड़ी देर इंतजार करो मे बस यूं गया और यू आया.. " जगदीशचंद्र ने कहा और वहा से चले गए।

उनके जाते ही दरवाजे पर एक लड़का आया। दाढ़ी मूंछ वाला वो लड़का .. शायद कुछ रिपेयरिंग के लिये आया था।
" घर पे कोई है ..?." उसने कहा।

तभी एक नौकर वहा पे आया और बोला
" आप कौन ? "

" में ए.सी चेक करने के लिए आया हूं मुझे सुबह यहां से फोन आया था। " उस लड़के ने कहा।

वो नौकर कुछ कहे उससे पहले ही दूसरे नौकर ने आते हुए कहा..

" हा.. मैंने ही उसे बुलाया था.. वो ना हरदेव बाबा के कमरे के रूम का ए.सी ठीक से चल नहीं रहा था तो मैने सोचा कि एकबार इनको बुलाकर सारे ए.सी चेक करवा लेते है। "

" ठीक है .. इनको ले जाओ " उसने कहा और वो लड़का उस दूसरे नौकर के पीछे जाने लगा। मोहित भी उसे देख रहा था।

थोड़ी देर ऐसे ही बैठने के बाद मोहित खड़ा हुआ और इधर उधर देखते हुए ऊपर की और जाने लगा।

वो दूसरा नौकर जो उस लड़के को छोड़ने गया था वो मोहित के पास आया और बोला..
" सर आप को कुछ चाइए क्या ? "

" नहीं में तो बस एसे ही टहल रहा था.. आप का काम हो गया ? " मोहित ने पूछा।

" जी सर .. मे चलता हूं, कोई काम हो तो मुझे बता देना .. " उस नौकर ने कहा और वहा से चला गया।

मोहित आगे की तरफ जाने लगा। तभी उसके फोन पर किसिका मैसेज आया । उसने मैसेज देखा और आगे बढ़ गया। मोहित जगदीशचंद्र की ऑफ़िस मे गया और तभी लाइट चली गई ।
" अरे ! ये लाइट कैसे चली गई ? " उसने कहा और फोन कि फ्लैशलाइट ऑन करदी।


लाइट जाते ही जगदीशचंद्र जो अंदर आ रहे थे वो रुक गए। उनको कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। उन्होंने तुरंत फ्लैश लाइट ऑन कि और स्टाफ को फयुज चेक करने के लिए भेज दिया। वो मोहित को इधर उधर ढूंढने लगे। थोड़ी देर बाद वो मोहित को ढूंढते हुए उपर आ गए । तभी उनको मोहित वहा आता हुआ नजर आया।

" मोहित बेटा तुम यहां ? " जगदीशचंद्र ने पूछा।
" वो अंकल मे बोर हो गया था तो सोचा थोड़ी देर टहल लू पर जब ऊपर आया तो लाइट चली गई। " मोहित ने जवाब देते हुए कहा।

तभी सभी लाइट ऑन हो गई। दोनो के चहेरे पर मुस्कुराहट आ गई। दोनो नीचे होल में आ गए। इतनी देर में हरदेव भी वहा आ गया। जगदीशचंद्र ने मोहित को अपने साथ डिनर करने को कहा और उनके बहुत कहने से मोहित भी उन्हें मना नहीं कर पाया और तीनों डाइनिंग टेबल पर बैठ कर डिनर करने लगे।

" अंकल बाकी सब कहा है ? " मोहित को घर में और कोई नहीं दिख रहा था इसलिए उसने पूछ ही लिया।

" वो वो सब तीन दिनों के लिए वैष्णोदेवी गए हैं वो क्या है ना की हमारे यहां रिवाज है कि शादी में माता को चढ़ाया हुआ सिंदूर ही लगाया जाता है तो इसीलिए ..." जगदीशचंद्र ने कहा।

" ओह... "

" मोहित.. पापा बता रहे थे कि आपको हमसे कुछ जरूरी बात करनी थी ? " हरदेव ने बड़े ही शांत स्वर में मोहित से पूछा।

" हा.. इसीलिए मे यहां आया हूं.. " मोहित थोड़ा उदास हो गया था।

" क्या बात है बेटा ...? " जगदीशचंद्र ने मोहित के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

" वो आप तो जानते है ना कि संजू की सगाई मे क्या हुआ था। वो अनिरुद्ध मेरी संजू को छोड़ कर चला गया था। " मोहित बोल रहा ता तभी हरदेव ने उसे टोकते हुए कहा।

" हा पर ये तो आप हमे पहले ही बता चुके है , और हमे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता .. तो फिर.."

" आप को कोई फर्क नहीं पड़ता पर मेरी संजू को अभी भी फर्क पड़ता है। वो उसे नहीं भुला पा रही है । अपने सीने मे दर्द छिपाकर जी रही है वो.. उसके आंसू अब और नहीं देखे जाते मुझ से.." कहते कहते मोहित की आंखे नम हो गई थी।

ये सुनते ही हरदेव और जगदीशचंद्र एक दूसरे कि और देखने लगे। फिर हरदेव ने मोहित के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा..
" अगर ऐसा है तो हमे इस शादी कि कोई जल्दबाजी नहीं है .. हम संजना जी को और टाइम दे सकते हैं "

" नहीं ऐसा कुछ नहीं है मे तो बस आप से ये कहना चाहता हूं कि आप मेरी मदद करे "मोहित ने नोर्मल होते हुए कहा।

" मदद ? कैसी मदद ? " जगदीशचंद्र को कुछ समझ नहीं आ रहा था।
" वो में चाहता हूं कि आप मेरी मदद करे अनिरुद्ध को ढूंढने ने में " मोहित ने कहा और ये सुनते ही हरदेव और जगदीशचंद्र शोकड़ हो गए। वो आंखें फाड़े बस मोहित को देख रहे थे।

" अरे ! आप ग़लत समझ रहे हो .. मे उस अनिरुद्ध को सजा दिलवाना चाहता हूं... सजा मेरी बहन का दिल तोड़ने की.. उसके जज्बातों से खेलने कि , उसके हर एक आंसुओ कि.. इसलिए मुझे आपकी मदद चाइए उस अनिरुद्ध को ढूंढने में .. " ये सुनते ही हरदेव और जगदीशचंद्र के चहेरे के तो तोते उड़ गए। वो दोनो एक दूसरे को घबराए हुए से देखने लगे।

मोहित उन दोनों के चहेरे को ही देख रहा था। उनके एक्सप्रेशन मोहित को बहुत ही अजीब लग रहे थे ।
" पर वो वो कैसे वापस आ सकता है .. " हरदेव ने हड़बड़ाते हुए कहा।

" मतलब मे कुछ समझा नहीं.. वो वापस क्यों नहीं आ सकता ...? " मोहित ने संदेहभरी नजर उन पर डालते हुए पूछा।

" पर वो तो.... " हरदेव आगे कुछ बोले इससे पहले ही जगदीशचंद्र ने उसकी बात काटते हुए कहा..

" अरे अरे बेटा.. वो वापस आएगा तो तुम्हारी शादी थोड़ी ना रुकेगी.. तुम क्यों फिक्र कर रहे हो मोहित है ना वो सब संभाल लेगा , हमे तो सिर्फ उसे ढूंढने में इनकी मदद करनी है " ये बोलकर वो जूठ मूठ का हसने लगा। मोहित को उनकी ये हरकत बहुत अजीब लगी। वो बस उन्हें घुर रहा था। मोहित कुछ बोला नहीं तो जगदीशचंद्र फिर से बोले .. " मैने सही कहा ना मोहित बेटा..? "

" जी हा.. " मोहित ने कहा।

" ठीक है हम आपकी मदद करेंगे " हरदेव ने कहा।

" आप का बहुत बहुत शुक्रिया... मे आपको अनिरुद्ध की फोटो सेंड कर दूंगा " मोहित ने खुश होते हुए कहा।

तब नौकर चाय लेकर आया। वो जैसे ही जगदीशचंद्र को चाय देने गया तब मोहित का हाथ उसे लग गया और गर्म गर्म चाय जगदीशचंद्र पर गिर गई।

वो चिल्लाते हुए खड़े हो गए । और अचानक से एसे खड़े होने कि वजह से उनके जेब में रखी पेंन नीचे गिर गई।
" सॉरी सॉरी सर गलती से हो गया मे अभी दवाई लेकर आता हूं ... " नौकर ने घबराते हुए कहा।

" जाओ जल्दी से जाओ और हा उसके बाद मुझे तुम यहां दिखाई नहीं देने चाहिए में आज ही तुम्हे इस नौकरी से निकालता हूं " जगदीशचंद्र ने गुस्से में चिल्लाते हुए कहा।

वो नौकर चला गया। उसके जाते ही मोहित ने कहा , " अंकल इसमें उस बिचारे कि कोई ग़लती नही है , मेरा ही हाथ उसे लग गया था , आप प्लीज़ उसे नौकरी से मत निकालो " मोहित को अच्छा नहीं लग रहा था उसकी वजह से किसी और को तकलीफ़ पहुंचे।

" ठीक है बेटा .. तुम कह रहे तो मैने उसे माफ किया .. " जगदीशचंद्र का गुस्सा थोड़ा कम हो गया था। पर उनका हाथ अभी भी जल रहा था।

नौकर दवाई लेकर आया और उसने जगदीशचंद्र को दवाई लगा दी।

" अंकल .. ये आपकी पेन गिर गई थी। मैने देखी तो उठा ली थी सोचा बाद मे आप को दे दूंगा।" मोहित ने पेन जगदीशचंद्र को देते हुए कहा।

" ओह शुक्रिया बेटा... तुम जानते नहीं कि ये पेन मेरे लिए क्या मायने रखती है ..? " जगदीशचंद्र पेन को देखकर खुशी के साथ बोले।

" मे कुछ समझा नहीं अंकल .." मोहित उलझन भरी नजरो से उनको देखने लगा।

" ये पापा कि लकी पेन है.. दादाजी ने उनको दी थी। पापा इसे हमेशा साथ रखते है । मीटिंग हो या फिर कोई अच्छा काम हो ये पेन हमेशा उन के साथ रहती है " हरदेव ने स्माइल करते हुए कहा।

" ओह..ऐसा है.. तो फिर संभलकर रखिएगा इस पेन को ... चलता हूं... अब तो शादी में मिलते है " मोहित ने हस्ते हुए कहा और वहा से चला गया।

मोहित के जाते ही दोनो बाप बेटे के चहेरे कि मुस्कुराहट चली गई। दोनो के चहेरे पर परेशानी के भाव साफ नजर आ रहे थे। दोनो ही सोफे पर बैठ गए। थोड़ी देर तक होल मे शांति छा गई। दोनो में से कोई भी कुछ बोल नहीं रहा था। फिर कुछ समय के बाद दोनो ने एक दूसरे को देखा और जोर जोर से हसने लगे। पूरा हॉल उन दोनों कि हसी से गूंजने लगा।

" बोलता है कि हम उसकी मदद करे वो भी उस लड़के को ढूंढने में..." जगदीशचंद्र हस्ते हुए बोले।

" अब मे उसे वापस कैसे ला सकता हूं जिस पर मैने अपने ही हाथो से गोली चलाई थी, और इसी हाथो से उसकी लाश समुंदर में फेंकी थी। बात करता है उसे ढूंढने कि .. हुह.... " हरदेव ने शैतानी मुस्कुराहट लेते हुए कहा...

दोनो बाप बेटे शराब पीते हुए बाते किए जा रहे थे।

इधर त्रिपाठी निवास के बाहर बड़ी सी गाड़ी खड़ी थी। गाड़ी मे कोट और चश्मा पहने हुए एक शख्स बैथा बैठा मुस्कुरा रहा था। उसने किसी को फोन लगाया और उससे कहा...
" सुनो .. मीटिंग ओब्रोय फार्मा इंडस्ट्री में नहीं होगी.. कहीं और होगी.. इसलिए कल आप कि छुट्टी शर्मा जी... जाईए मजा करिए... और हा वाइफ को मूवी दिखाने जरूर ले जाइए गा .. वो भी रोमेंटिक वाली... "

" पर सर..." सामने से शर्माजी कुछ बोले उससे पहले ही उसने फोन कट कर दिया और फिर से मुस्कुराने लगा।

" अब तुम्हारी बर्बादी का टाइम शुरू त्रिपाठी... टिक टिक टिक.... जानेमन आई एम् कमिंग...." उसने हस्ते हुए कहा और गाड़ी ड्राइव करता हुआ वहा से निकल गया।

🥰 क्रमशः 🥰