The Author बिट्टू श्री दार्शनिक Follow Current Read दहेज प्रथा और दार्शनिक दृष्टि By बिट्टू श्री दार्शनिक Hindi Philosophy Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books बकासुराचे नख - भाग १ बकासुराचे नख भाग१मी माझ्या वस्तुसहांग्रालयात शांतपणे बसलो हो... निवडणूक निकालाच्या निमित्याने आज निवडणूक निकालाच्या दिवशी *आज तेवीस तारीख. कोण न... आर्या... ( भाग ५ ) श्वेता पहाटे सहा ला उठते . आर्या आणि अनुराग छान गाढ झोप... तुझी माझी रेशीमगाठ..... भाग 2 रुद्र अणि श्रेयाचच लग्न झालं होत.... लग्नाला आलेल्या सर्व पा... नियती - भाग 34 भाग 34बाबाराव....."हे आईचं मंगळसूत्र आहे... तिची फार पूर्वीप... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share दहेज प्रथा और दार्शनिक दृष्टि (4) 3k 10.9k जुगाड़ू: दार्शनिक! यहां अकेले खड़े क्या सोच रहे हो ?वो भी इतनी रात गए !?दार्शनिक: देख रहा हूं।जुगाड़ू: क्या ?दार्शनिक: शादी के वक्त दहेज वाले हालात।जुगाड़ू: अच्छा !? एसा क्या देख रहे हो उसमे ?दार्शनिक: पहले जो दहेज की परंपरा थी, वो मुझे आज सही दिख रही है। उसके पीछे का उद्देश्य साफ साफ दिख रहा है।जुगाड़ू: क्या ? मुझे भी बताओ ! एसा तो क्या देख लिया ?दार्शनिक: काफी सारी वजह है। सुनोगे ?जुगाड़ू: हां बिलकुल! क्यूं नहीं?दार्शनिक: धन यानी पैसों की सबसे ज्यादा जरूरत लडको को होती है। क्यों की उन्हे काफी सारी जगहों पर भागना दौड़ना पड़ता है। और तो और काफी सारी चीजों को मैनेज और मेंटेंन भी करना होता है। उसमे खर्च होता है।जुगाड़ू: हां! तो ?!दार्शनिक: इस वजह से उन्हें हर बार ज्यादा आय की जरूरत होती है। उसके लिए ज्यादा जगह से पैसा आए यह जरूरी हो जाता है। निर्णय बड़े धैर्य और भरोसे के साथ लेने पड़ते हैं। फिर निर्णय को अमली करने के लिए भी अधिक से अधिक पैसों की आवश्यकता होती है।जुगाड़ू: हां! सही है। तो?दार्शनिक: इस हिसाब से शादी के बाद, लडको को घर का सुव्यवस्थित और सुचारू खर्च , नई और नैतिक आमदनी हो उसका खर्च, संबंधी के व्यवहारू खर्च, अपने और अपनो के विकास के खर्च, स्वास्थ्य के खर्च और नौकर - चाकर आदि की सहायता के खर्च लडको को ही संभालने पड़ते है। इस हिसाब से, लडको को आवश्यक खर्च लड़कियों के शौक वाले खर्च से कहीं अधिक होते है।जुगाड़ू: हां।दार्शनिक: जब शादी की आयु होती है तो लड़का काफी कम आयु का होता है। उसके पास खुद का उतना पैसा कमाने का समय नहीं हो पाता। शादी के बाद आगे के जीवन में लड़का अपनी पत्नी का सारा खर्च बिना किसी परेशानी के निकाल पाए तथा स्वयं का अधिक से अधिक विकास कर पाए, इस बात को मद्दे नजर करते हुए शादी के वक्त लड़के को कुछ न कुछ, कम या अधिक धन राशि दी जाती है। जिससे शादी के बाद एक पराई स्त्री का पालन पोषण लड़के को बोज ना लगे और उनका वैवाहिक जीवन प्रेम से परिपूर्ण रहे।जुगाड़ू: बात तो वैसे सही है।दार्शनिक: अभी यहीं काफी नहीं है यार। और भी है। सुन...अब जब लडको को दहेज नहीं दी जाती है तो देखो उस घर में क्या माहोल है। जो लोग पहले ही धनवान है उनका तो ठीक है। पर जिस लड़के का परिवार पहले ही अधिक धनवान नहीं है, वहां यदि शादी हो तो नई ब्याही दुल्हन उस परिवार पे बोज हो जाएगी। यदि बच्चे हो गए तो वे निर्दोष बालक भी उस परिवार के लिए बोज होंगे ना की खुशियों की किलकारी। आज अधिकतर लोग मध्यम वर्गीय है। जो स्वयं की आवश्यकता को परिपूर्ण करने के लिए संघर्ष करते है। अब असंतुष्ट व्यक्ति स्वयं खुश कैसे होगा ?! और भला किसी और को क्या खुश रख पाएगा? जहां तक स्त्री का स्वभाव है, वह अधिकतर स्वयं और स्वयं की वस्तुओं पर खर्च करना जानती है, स्त्री अधिक मेहनत नहीं चाहती है। उन्हे सारा कार्य सरल चाहिए। जो उनके मन को पसंद आ जाए उसे तुरंत ही प्राप्त करना चाहती है, और कष्ट से छुटकारा चाहती है। यदि ऐसा नहीं होता तो उसका मन दु:खता है। और वहां प्रेम संभव नहीं। इस सरलता के लिए संसाधन की आवश्यकता होगी। और उन संसाधन के लिए पैसों की आवश्यकता। यदि ऐसे में किसी लड़के ने बिना कोई दहेज के शादी कर ली तो यह सब परिस्थिति उस लड़के के लिए मानसिक तनाव का कारण रहेगी। वहां प्रेम का अस्तित्व ही नहीं होगा। और सफल प्रगतिपूर्ण वैवाहिक जीवन संभवित न होगा।जुगाड़ू: अब तो ये बात मेरे भी गले पड़ रही है।दार्शनिक: यहां एक बात यह भी है कि स्त्री यदि लक्ष्मी है तो वह किसी पे भारण नहीं होती। उसका ब्याह होता है तो वह लड़का स्वयं नारायण बनता है। तो इस नजरिए से भी देखे तो नारायण को किसी भी कार्य को सफलता पूर्वक और उसे उचित रूप से सम्पन्न करने के लिए वैभव यानी की लक्ष्मी की आवश्यकता होती है। अभी के समय में देखे तो उसे पैसा (जिसका संचालन के लिए एक अथवा दूसरे तरीके से उपयोग किया जा सके) कह सकते है।जुगाड़ू: वाह क्या बात कही है यार!दार्शनिक: अरे पूरी बात सुन तो लो पहले!जुगाड़ू: हां हां! बोलो !दार्शनिक: पहले की कोई बात नहीं करता पर अभी के समय में जो देख रहा हूं, आबादी इतनी अधिक है की आमदनी करने को कोई काम नहीं है। स्वयं के अधिक उपयोगी बनाने के लिए कोई अभ्यास नहीं है। इस वजह से लडको के व्यवहारु निर्णय कमज़ोर पड़ते है और धन की कमी तो होती ही है। यहां लोग किसी भी लड़के जिसे नारायण के रूप में सम्मान मिलना चाहिए, उसकी क्षमता को उसकी आमदनी से तोला जाता है। किंतु आमदनी जब केवल शुरू ही होती है, उस समय में उससे अधिक ही अपेक्षा की जाती है। उतनी अधिक आमदनी करते करते उस की युवानी की समग्र आयु निकल जाती है। इस समय लोगो को उस युवक पर विश्वास करना अपेक्षित होता है न की उसकी क्षमताओं पर संदेह। जब यह होता है तो, युवक अनावश्यक संघर्ष में जाता है जो उसकी क्षमता, चरित्र, समय, स्वास्थ्य की हानी करता है। और युवक के प्रेम पर हमेशा के लिए प्रश्न चिन्ह छूट जाता है। यदि युवती लक्ष्मी है तो एक दहेज (नारायण रूप युवक का सम्मान) आवश्यक प्रतीत होता है। और युवक का धन राशि का मांगना भी अनुचित प्रतीत नहीं होता।जुगाड़ू: बहोत सही लग रहा है यार! एक बात बताओ अगर किसी ब्याह के आयु की लड़की के मां बाप दहेज दे पाए ऐसी क्षमता न हो तो?! दार्शनिक: तो उस लड़की या कन्या का अत्यंत ही सुंदर, आकर्षक, सुमधुर वाणी और स्वयं लक्ष्मी के समान गुणवान, विवेकी, धैर्यवान, स्वयं तथा अन्य की मर्यादा जानने वाली, साहसी, उद्यमी और स्वास्थ्यमान होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। और युवक का धनी होना आवश्यक हो जाता है। अब लोगो ने दहेज को स्त्री परिवार को लूटने का जरिया समझ के रखा है। दहेज ऐसी मनसा से ना तो दी जाती है, ना ही ली जाती है। दहेज भी लक्ष्मी (तरक्की) का प्रतीक है, उसका भी सम्मान होना चाहिए। हर ब्याह के समय दहेज़ होनी ही चहिए, एसा भी आवश्यक नहीं।जुगाड़ू: पर यार अब तो लड़कियां भी कमाती ही है। आमदनी वे भी कर लेती है। तो वो कहां लड़के पे बोज बनेगी ?दार्शनिक: लड़कियों की कमाई पर अधिकतर लड़के निर्भर नहीं रहते। यदि किसी कारण वश युवक उस युवती की आमदनी का उपयोग करता है तो उस युवक की क्षमता, स्वाभिमान और सामर्थ्य पर संदेह किया जाता है। आमदनी करती हुई स्त्री की आमदनी पर नैतिक रूप से नारायण रूप युवक(होनेवाला पति) अधिकार नहीं समझ पाता। युवती (होने वाली पत्नी) की आमदनी होने के बावजूद भी युवक की क्षमता युवक की अकेले की आमदनी पर नापी जाती है। "यदि भविष्य में युवती की आमदनी न हो तो कोई दिक्कत न आनी चाहिए।" इस तरह की सोच रखी जाती है। इस समय भी युवक को अधिकाधिक आमदनी का प्रयास निरंतर करना ही पड़ता है। उन प्रयासों के लिए युवक को शुरू से ही स्वयं की अधिकाधिक धनराशि अथवा अधिकाधिक संपत्ति की आवश्यकता रहती है। जो कम आयु में संभव नहीं। जिसकी आपूर्ति दहेज के माध्यम से हो जाती है।जुगाड़ू: यार इतना कुछ केसे देख लेते हो?दार्शनिक: दार्शनिक दृष्टि है ! यह वो हालात है जो दार्शनिक यहां से देख पा रहा है। सारी कहनीच बड़ी लंबी है फिर कभी बात करेंगे। अभी काफी देर हो गई है। चलते है अब।जुगाड़ू: हां चलो। चलते है।____________________________________________#दार्शनिक_दृष्टिInstagram ID: @bittushreedarshanikयहां किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का कोई मंतव्य नहीं है। कृपया धैर्य को साधे।बताए गए इंस्टाग्राम आई. डी. पे फोलो कर सकते है और अपने सुझाव इंस्टाग्राम पे दे सकते है। आप चाहे तो प्रतिभाव के रूप में यहां रेटिंग और आपके मंतव्य को "फीडबैक" में दे सकते हैं। "दार्शनिक" और "दार्शनिक दृष्टि " संबंधी प्रश्नों को इंस्टाग्राम में पूछ सकते है।पढ़ने के लिए धन्यवाद !आपके लिए "बिट्टू श्री दार्शनिक" की मंगल कामना। Download Our App