Hotel Haunted - 15 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | हॉंटेल होन्टेड - भाग - 15

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 15

सभी लोग अंदर जंगल की ओर बढ़ने लगते हैं पर तभी मनीष को अंकिता के पैरों की आवाज सुनाई देना बंद हो जाती है इसलिए वहां पीछे मुड़कर देखता है तो पाता है कि अंकिता उसके पीछे नहीं है इसलिए वह चौकते हुए बोल पड़ता है,'अंकिता..!!??!!अरे अंकिता कहां गई?' मनीष की आवाज सुनकर राज और रिया भी रूक जाते हैं और इधर उधर देखने लगते हैं, पर उन्हें अंकिता कहीं नहीं दिखाई देती। तीनों मिलकर अंकिता को जंगल में ढूंढने लगते हैं,वह तीनों दौड़ते हुए जंगल के बाएं हिस्से की ओर बढ़ने लगते हैं। जंगल का यह हिस्सा ज्यादा गहरा था यहां पर पिछले हिस्से के मुकाबले ज्यादा घने और बड़े पेड़ थे इसीलिए चांद की रोशनी यहां ज्यादा नहीं पड़ रही थी।

वहां तीनों ढूंढते हुए आगे बढ़ रहे थे कि तभी मनीष का ध्यान किसी चीज की ओर जाता है और वह वहीं पर रुक जाता है। वह बड़े गौर से उस तरफ देखने लगता है और उसके मुंह से बस इतना ही निकलता है 'अंकिता....!!??!!'

मनीष आवाज सुनकर राज और रिया भी उस ओर देखने लगते हैं। वह देखते हैं तो जंगल के बीचो बीच एक बड़ा कुआं था और अंकिता वहां कुए के पास खड़ी हुई थी।उस कुएं के पास ज्यादा पेड़ नहीं थे,बस आस-पास झाड़िया और कुछ घास उगी हुई थी। उसे देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता था कि शायद गांव वाले पहले इस कुएं का इस्तेमाल करते हो। चांद की हल्की सी रोशनी पेड़ो के बीच में से आते हुए कुएं के पास पड रही थी, इसीलिए वहां पर थोड़ा उजाला छाया हुआ था। अंकिता चुपचाप वहां खड़े होकर उसी कुए में अपनी नजरें गड़ाए हुए बैठी थी, उसके बाल उसके चेहरे पर आ रहे थे इसीलिए उसका चेहरा साफ साफ दिखाई नहीं दे रहा था। मनीष दौड़ते हुए उसके पास पहुंचता है और कहता है 'अंकिता तुम यहां पर कैसे पहुंच गई?'

मनीष की आवाज सुनकर अंकिता कुछ देर तक मनीष के चेहरे को देखती रहती है और फिर वापस कुएं की ओर देखते हुए कहती है 'चलते-चलते मुझे यह कुआं दिखा इसीलिए मैं इस तरफ देखने के लिए आ गई।' अंकिता की बात उन तीनों को अजीब लगती है क्योंकि वह लोग जिस और चलने के लिए निकले थे वहां से यह कुआं बिल्कुल भी नहीं दिख रहा था फिर अंकिता कैसे इस कुएं तक पहुंच गई?

मनीष भी इसी बात के बारे में सोच रहा था पर अंकिता बिल्कुल ठीक थी इसलिए उसने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। मनीष ने आगे बढ़ते हुए कुएं के अंदर देखा कुआं काफी गहरा था पर उसमें ज्यादा पानी नहीं था।वो जंगल में चारों ओर अपनी नजरें घुमाते हुए कहता है 'वैसे यह जगह इतनी भी बुरी नहीं है, क्यों ना हम लोग कुछ देर यहीं पर बैठकर आराम कर ले क्योंकि जंगल में चलते हुए इतनी दूर आ गए हैं।' राज और रिया को भी मनीष की बात ठीक लगती है इसलिए वह दोनों भी वहां कुए के पास आकर बैठ जाते हैं।

वह चारों कुएं के पास खड़े होकर आपस में बात करने लगते हैं तभी रिया की नजर कुएं के अंदर जाती है, उसे कुएं अंदर कुछ चमकती हुई चीज नजर आती है इसलिए वह बड़े ध्यान से कुएं के पानी में देखने लगती है। चांद की रोशनी की वजह से वह चीज और भी ज्यादा चमक रही थी, उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे पानी में कोई हीरे की अंगूठी हो तभी पानी में उसे कुछ हलचल दिखाएं लेती है।

उसके बाद का मंजर देख कर वह एकदम सहम सी जाती है, एक पल के लिए उसके मुंह से आवाज निकालना मुश्किल हो जाता है। उसे पानी में जो अंगूठी जैसी चीज दिखी थी उसके साथ उसे पानी में किसी का कटा हुआ हाथ भी दिखाई देता है। धीरे धीरे-धीरे करते हुए कुएं के पानी में बढ़ोतरी होने लगती है और कुए का पानी लाल रंग का होने लगता है जैसे वो पानी नहीं खून हो, उसके साथ कुएं के पानी मे कहीं इंसानी शरीर के टुकड़े तैरते हुए पानी के ऊपर आने लगते हैं और उसके साथ ही एक भयानक चेहरा भी उसे कुएं के पानी में दिखाई देता है।सफेद लाल‌ आंखे,चेहरे पर चोट के निशान, किसी ने नोचे हुए उसके बाल। इतना खौफनाक मंजर देख कर रिया की चीख निकल जाती है और वह राज से लिपट कर रोने लगती है।

प्रिया की चीख सुनकर सभी चौक जाते हैं,राज रिया को संभालने की कोशिश करने लगता है, पर रिया इतनी घबराई हुई थी कि वह राज से दूर ही नहीं हो रही थी।थोड़ी देर बाद रिया शांत होती है तो राज उससे पूछता है कि 'क्या हुआ वह इतनी घबराई हुई क्यों है?' उसके जवाब में रिया बस इतना ही कहती है "राज.... वो पानी... खून... हाथ...भयानक चेहरा'रिया इतनी डरी हुई थी की वह उस मंजर को बयां करने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। थोड़ी देर बाद शांत होकर रिया सब कुछ राज को बताती है,जिसे सुनकर राज समय सभी रिया के चेहरे को देखने लगते हैं।

अब सभी को इस माहौल में डर का अहसास होने लगता है, उन सभी के चेहरे पर डर की लकीरें साफ दिखने लगी थी। ठंडे मौसम में भी उन्हें पसीना आने लगा था, सभी के चेहरे पर चिंता के भाव थे,पर हैरान की बात तो यह थी कि अंकिता चुपचाप शांत खड़े होकर रिया को बस देखे जा रही थी और उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान थी।वो रिया की ओर देखते हुए कहती है 'शायद रिया का कहना सही हो क्योंकि आज दोपहर में रमेश भी तो यही कह रहा था और क्या पता यह जगह बनने से पहले यहां क्या क्या हुआ है, कितने हादसे हुए हैं या कितने लोगों की जानें गई है और कितने राज आज तक यहां पर दफन है?'

अंकिता के मुंह से यह बात सुनकर वो तीनों ओर भी डर जाते है मनीष अंकिता के चेहरे को हैरानी भरी नजरों से देखने लगता है और कहता है 'यह तुम क्या कह रही हों? क्या तुम्हें लगता है की रमेश जो कह रहा था वह सही है?' अंकिता उसके जवाब में कहती है 'मैंने कब ऐसा कहा..... पर रिया के साथ जो हुआ उसे नजर-अंदाज भी तो नहीं किया जा सकता।'अंकिता की बात सुनकर सब लोग चुप हो जाते हैं।

आखिरकार राज चुप्पी तोड़ते हुए कहता हैं,' रिया थोड़ा थक गई है बस और कुछ नहीं, थोड़ा आराम कर लेगी तो ठीक हो जाएगी और वैसे भी हमें होटल पर वापस चले जाना चाहिए क्योंकि रात बहोत हो चुकी है।' राज की बात सुनकर सभी अपना सर हा में हिलाते हैं और होटल की ओर बढ़ने लगते हैं।होटल की ओर जाते हुए मनीष अंकिता की ओर ही देखता रहता है,अंकिता आगे देखते हुए चुपचाप चलते जा रही थी। उसका बर्ताव पहले से थोड़ा अजीब था। सभी लोग होटल पर पहुंच कर अपने अपने कमरे में जाकर सो जाते हैं,पर आने वाला समय क्या दिखाएगा किसे पता है?

धीरे धीरे चांद अपनी चांदनी बिखेरते हुए ढलने लगता है और रात बितने लगती है‌।अपनी रोशनी भी खेलते हुए सूरज पहाड़ों के बीच में से उदय होने लगता है और सवेरा हो जाता है, तभी मनीष की नींद खुल जाती है और उसकी नजर घड़ी पर जाती है तो देखता है कि सुबह के 7:00 बज रहे थे।वह फिर आंख बंद करके सोने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी उनके दरवाजे पर दस्तक होती है।

To be continued.......