Allhad Ladki Geeta - 4 in Hindi Love Stories by Shiv Shanker Gahlot books and stories PDF | अल्हड़ लड़की गीता (भाग-4)

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

Categories
Share

अल्हड़ लड़की गीता (भाग-4)

अल्हड़ लड़की गीता

(भाग-4)

गीता के घर जाने की खुशी मे धरम के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे । कब घर आ गया पता ही नहीं चला । पर अभी चार ही बजे थे । यहां से गीता के घर जाने मे पन्द्रह मिनट ही तो लगने थे । घर मे मन नहीं लग रहा था । कुछ पढ़ने की कोशिश की पर ध्यान नहीं लगा । खुशी ने दिल तो क्या शरीर मे भी बेचैनी भर दी थी । सोचता रहा कि क्या करूँ । दिल उछलने कूदने को कर रहा था । तभी उसे याद आया कि बहुत दिनों से वो सोचता रहता था कि पहाड़ी की चोटी तक चढ़ कर देखूं पर कभी चढ़ा नहीं था । पहाड़ी के दूसरी तरफ क्या है ये जानने की उत्सुकता रहती थी । आज वो मौका था । धरम ने कमरा बन्द किया और स्टेप्स चढ़कर पहाड़ी पर जाने लगा । रास्ते मे विजी का मकान पड़ा पर अब वो वहां नहीं रहती थी । जैसे शरीर से आत्मा निकल जाती है वैसे ही कुछ धरम को लगा मकान देखकर । नीचे से पहाड़ी की चोटी ज्यादा दूर नहीं लगती थी पर ये आंखों का भ्रम ही था ऊपर चढ़ता गया और मकानों की लाइन खत्म हो चुकी थी । झाड़ियों के बीच पगडंडियां इधर उधर बनी हुई थीं । किसी से भी ऊपर जाया जा सकता था । झाड़ियां बिना कांटों की और किसी एक ही प्रजाति की थीं । चलते चलते काफी समय हो गया था पर ऊपर सूर्य की रोशनी बदस्तूर आ रही थी । बार बार ये खयाल भी आता था कि नहीं देर ना हो जाये और गीता के पास समय से ना पहुंच पाऊँ । ऊपर पहाड़ी पर पहुंचा तो देखा कि इस पहाड़ी के बाद जंगल भरी घाटी थी और उस पार ऐसी ही एक पहाड़ी ओर थी । भेद तो खुला पर हासिल कुछ नहीं हुआ । हां उत्सुकता जाती रही । धरम वापस लौट चला । नीचे उतरने मे ज्यादा समय नहीं लगा । नीचे पहुंचा तो अभी साढ़े पांच बजे थे यानि कि समय था अभी । मुंह हाथ धोकर धरम ने पाउडर लगाया और प्रैस की हुई पैंट और कमीज़ पहनी । जूते तो कपड़े के ही थे जिन्हें पहन कर वो कॉलेज जाता था । वही पहन लिये ।


गीता के घर पहुंचा तो गेट पर गार्ड ने रोक दिया । धरम ने बताया भी कि गीता से बात हो गयी है पर वो बिना परमिशन अन्दर जाने देने को राजी नहीं था । आवाज़ लगाकर नौकर बदरी को बुलाया और गार्ड ने उससे कहा :


“बेबी से पूछो कोई धरम मिलने आया है । अन्दर भेज दें क्या?”


थोड़ी सी देर मे गीता दौड़ कर आती दिखाई दी । वो गार्ड पर नाराज़ हो गयी ।


“क्यों रोका धरम को । कल देखा था ना कि मेरे साथ आया था ।”


“सॉरी बेबी जी ! आईन्दा ध्यान रखूँगा।” - गार्ड ने माफी मांगते हुए कहा ।


“आज के बाद कभी मत रोकना । पहचान लो । चलो धरम!” - गीता धरम की बांह पकड़ कर अन्दर ले गयी ।


अन्दर आकर गीता धरम को सीधे अपने बैडरूम मे ले गयी जो पहली मंजिल पर था । सीढ़ीयां ड्राइंग रूम से ही ऊपर जाती थीं । ये कमरा ठीक रानी मां के कमरे से ऊपर था । रॉयल साज सज्जा वाला ही था । बड़ी सी स्टडी टेबल थी जो खिड़की के साथ लगी थी । खिड़की काफी बड़े साइज़ की थी जिसमे से बाहर दूर तक के मकान नज़र आते थे ।


“पहले जल्दी होम वर्क खत्म कर लें फिर बैडमिंटन खेलेंगे ।” - गीता ने धरम को कहा ।


धरम ने तुरन्त किताब कॉपी निकाल ली । दोनों स्टडी टेबल पर बैठकर होम वर्क करने लगे । ज्यादा मुश्किल तो मैथ्स मे ही थी जिसमे गीता को टाइम लगने वाला था । बाकि सब्जैक्ट का होमवर्क तो जल्दी ही हो गया । गीता को मैथ्स मे परेशानी होती थी जो धरम ने स्टेप बाई स्टेप समझा कर गीता से ही हल करायी । धरम का पढ़ाई करने का अपना तरीका था । वो चीजों को समझ कर ही पढ़ता था । किसी निर्मेय या प्रमेय को रटकर याद नहीं करता था जो ज्यादातर स्टुडेंट करते थे । इसलिये उसे अपने किये पर विश्वास होता था । ज्यादातर स्टूडेंट अपने जवाब दूसरे स्टूडेंट्स से मिलाकर ही ठीक होने के लिये आश्वस्त होते थे । गीता का होमवर्क खत्म हुआ ही था कि रानी मां आ गयीं । धरम कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और नमस्ते की ।


“गीता बेटा! याद नहीं है तुम्हें जन्मदिन के लिये नये कपड़े सिलवाने हैं । नीचे दीवान जी तैयार हैं बाज़ार चलने के लिये ।


“ठीक है मम्मी ।” - गीता उठ खड़ी हुई ।


“धरम को भी साथ लेकर जायेंगे ।”


“हां! धरम तो जायेगा ही ।” - रानी मां ने धरम की ओर देखकर मुस्कुरा कर कहा और उसकी कमर में हाथ डाल कर अपने पास खींच लिया ।


रानी मां से छूट कर धरम किताब कॉपी समेटने लगा साथ ले जाने के लिये तो गीता ने रोक दिया ।


“ये वापस आकर लेना । यहीं छोड़ो ।”


“नहीं मै बाजार जाकर क्या करूँगा ।” -धरम बोला ।


“धरम हमारे साथ चलो वरना गीता को कपड़े कौन पसंद करवायेगा? “ - रानी मां बोली ।


धरम रानी मां के सामने कुछ बोल नहीं सकता था । उसने कॉपी किताब वहीं छोड़ दी और सब नीचे ड्राइंगरूम मे आ गये जहां दीवान बशेशर दयाल इंतज़ार कर रहे थे । वो लम्बे कद के थे और उनका शरीर कुछ स्लिम था । सर पर पगड़ी बांधते थे । शेरवानी और चूड़ीदार पायजामा उनका लिबास था और पांव मे जोधपुरी जूती पहनते थे । पूरे घर की देखभाल, नौकरों का हिसाब किताब, किचन का सामान आदि सब उनकी जिम्मेदारी थी जिसे वो बड़ी कुशलता से हैंडल कर लेते थे । पूरे घर की व्यवस्था बनाये रखने की और घर के हर सदस्य की जरूरतों का ध्यान रखने की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी । शैवरले गाड़ी का ड्राइवर गाड़ी के बाहर इंतज़ार कर रहा था और रानी मां के बैठने के लिये पीछे का दरवाजा खोला और उन्हें बिठा दिया । दूसरी तरफ से गीता को पहले बीच मे बैठाया और फिर धरम को गीता के साथ दरवाजे की तरफ बैठा दिया । दीवान साहब आगे की सीट पर बैठे और ड्राइवर गाड़ी लेकर चल दिया । बाजार ज्यादा दूर नहीं था । मेन रोड पर आकर ऋषिकेश की ओर चलते हुए बस पांच मिनट मे पहुंच गये । हरिद्वार मे ज्यादातर दुकानें यात्रिओं के सामान से अटी पड़ी होती हैं । प्रसाद के रूप मे मुरमुरे, इलायची दाना, बताशे, गुड़ के लड्डु आदि । इसके साथ ही ताम्बे और पीतल के पूजा के बरतन, लोटे, दीपक, थालियां, गंगा जल भरने के लिये प्लास्टिक के डिब्बे आदि । कुछ दुकानें सस्ते कपड़े, गहने, प्रीसियस स्टोन, धार्मिक किताबों आदि की हैं । कई दुकानें तो सिर्फ सिंदुर की ही थीं । यात्री गण घर के लिये सिंदुर ले जाते हैं । बाकि सारे होटल, ढाबे और रैस्टोरैंट हैं । हर की पौड़ी के साथ से निकलते हुए भी गोडा पर कर खड़खड़ी से पहले कुछ बड़े स्टोर्स थे । उन्ही मे से एक बड़ा स्टोर कपड़ों का भी था । उस स्टोर पर जाकर गाड़ी रुकी ड्राइवर ने उतर कर दरवाजा खोला एक एक कर सबको उतारा । दीवान जी आगे चले और धरम और गीता दोनों रानी मां के पीछे चल रहे थे । दुकान मे पहुंचे तो दुकान के मालिक उठ खड़े हुए और राना मां और दीवान जी का अभिवादन किया ।


“दर्जी को बुला लिया लाला जी?” - दीवान जी ने पूछा ।


“जी हां! बस आता ही होगा ।” - लाला करम चंद ने बताया ।


“लो जी! वो आ गया ।” - करम चंद बोले ।


“गीत! तुम दर्जी को अपना नाप के दो ।” - रानी मां ने कहा तो गीता उठकर अलग बने छोटे से कमरे मे चली गयी। देर कर दर्जी के साथ आयी महिला ने गीता का नाप लिया ताकि उसकी ड्रैस तैयार हो सके ।


“धरम! तुम भी अपना नाप दे दो ।” रानी मां ने धरम की ओर देखकर कहा । धरम सुनकर चौंका । मेरा क्यों? पर बोला कुछ नहीं और चुप चाप कमरे मे चला गया । वहां दर्जी ने उसका बांह, गरदन, कमर और तीरे का नाप लिया । पैंट के लिये कूल्हे से पांव तक और घुटने पर चौड़ाई और जाँघों के बीच ले पांव तक की लम्बाई नोट की ।


रानी मां ने गीता के लिये फ्रॉक का कपड़ा पसंद किया जो सिल्क का था और उसके इनर साइड मे लगाने को इजीप्शियन कॉटन और चूड़ीदार पायजामे के लिये कॉटन लिया । धरम के लिये खाकी पैंट का और ऑफ व्हाइट कॉटन का कपड़ा कमीज़ के लिये लिया । दूसरी पैंट के लिये मंहगा काले रंग का कपड़ा और कमीज़ के लिये रंग बिरंगा चैक वाला कपड़ा लिया । सब कपड़े दर्जी की बताई लैंग्थ के काटकर करम चंद ने दर्जी के हवाले कर दिये । दीवान जी ने दर्जी को ताकीद कर दी कि कपड़े हर हालत मे एक सप्ताह के अन्दर तैयार हो जाने चाहियें । दस दिन बाद गीता का जन्मदिन था जो धूमधाम से मनाया जाना था ।


वहां से निकल कर पास ही जूतों के बहुत बड़े स्टोर मे पहुंचे । दिन मे भी दुकान बल्बों की रोकनी से चमक रही थी । दुकान मे एक तरफ लेडीज़ सैक्शन का और दूसरी तरफ जैनट्स । गीता के लिये लाल सैंडल लेनी थी । सामने बने शोकेस मे देखकर गीता और रानी मां ने कुछ सैंडल पसंद किये और उन्हें लाल रंग में दिखाने को कहा । दुकानदार ने कई डिब्बे ऊपर से आवाज़ देकर मंगवाये । एक एक करने सैंडल आते गये और सेल्स मैन गीता के पांव मे ट्राई कर कम्फर्ट का अन्दाज़ा करने को चल कर देखने को कहता । गीता पहन कर धरम के पास जाती और पूछती :


“कैसी लग रही है ।”


एक तो गीता थी ही बहुत सुन्दर गोरी चिट्टी इसलिये उस पर हर सैंडल बहुत खूबसूरत लगती थी । धरम को कई सैंडल जानलेवा सुन्दर दिखीं । वो गीता को अपने मन की बात बताता रहा । काफी देर के ट्रायल के बाद गीता और रानी मां ने दो सैंडल पसंद कर पैक करवाने को कहा । दीवान जी को रानी मां ने धरम को जूते पसंद करने के लिये मैन्स सैक्शन की तरफ भेज दिया । दीवान जी ने धरम को कहा की अपना लिये जूते पसंद कर लो । धरम तो इन चीजों के लिये बिल्कुल तैयार नहीं था । फिर भी शोकेस मे लगे जूतों को उसने ध्यान से देखा और दो तीन तरह के पसंद किये । सेल्ल मैन ने कई जोड़ी जूते धरम को ट्राई कराये । धरम ने दुकान के अन्दर पहन कर चल कर देखा । जूते अच्छे और आरामदायक थे । धरम ने एक जोड़ा पसंद किया । दीवान जी ने धरम को एक ओर जोड़ी जूता पसंद करने को कहा । धरम दूसरी जोड़ी के लिये इच्छुक नहीं था पर यहां दीवान जी को मना करने का साहस उसमे नहीं था । वो गीता के परिवार के लोगों के बीच थोड़ा बहुत बोल लेता था यही बहुत था । उसके लालन पालन का स्तर उतना ऊँचा नहीं था कि इतने ऊंच्च कुलीन रोगों का सामना कर पाये । इसलिये उसने चुपचाप एक जोड़ी की तरफ इशारा कर दिया । जूते काउंटर पर पहुंचा दिये गये । धरम गीता के पास जा बैठा । जो सैंडल डब्बे मे बन्द करा रही थी । काउंटर पर धरम गीता के साथ था । गीता ने उसे दो जुराब पसंद करने को कहा । पर इसके पहले कि गरम कुछ देखता गीता ने खुद ही आगे बढ़ कर दो गुलाबों पसंद कर लीं और धरम से पूछा:


“अच्छी हैं? “


“हां! बढ़िया है ।” धरम इसके अलावा क्या कहता । गीता को पसंद हैं तो भला उसे कैसे नापसंद हो सकती हैं ।


जूते के डिब्बों को प्लास्टिक के थैले मे डाल कर दुकानदार ने गाड़ी मे रखवा दिये । सब गाड़ी की ओर बढ़ गये । कोठी आकर गाड़ी पोर्च मे रुकी तो ड्राइवर ने रानी मां की तरफ का दरवाजा खोल दिया और रानी मां उतरकर चलीं । दूसरी ओर का दरवाजा गार्ड ने खोला और धरम और गीता को उतारा । गीता और धरम दोनों गीता के बैडरूम मे चले गये । पीछे पीछे बदरी गीता की सैंडल और धरम के जूते ले आया और दोनों थैले कार्पेट पर रख दिये । धरम को देर हो गयी थी । वो अपनी कॉपी किताबें संभालने लगा । तभी बदरी नाश्ते की ट्रे लेकर आ गया जिसमें गर्म समोसे, पकोड़े और कटे हुए फल रखे थे । ट्रे सेन्ट्रल टेबल पर रख कर उसने गीता की ओर मुखातिब होकर पूछा :


“बेबी साहिबा! आप साथ में दूध लेंगी। या जूस ।”


“मेरे लिये एक कप दूध । और धरम तुम क्या लोगे?” - गीता ने धरम से पूछा ।


“मै भी थोड़ा सा दूध ही ले लूँगा ।”


सुनकर नौकर बदरी बाहर चला गया । पकोड़े आलू, प्याज और पालक के थे । साथ मे ही चटनी और सॉस थी । सेव और नाशपाती काट कर प्लेट मे रखी थीं । उन पर छिड़कने के लिये मसाले और नमक की दो स्प्रे करने वाली चांदी की शीशियां रखीं थी । पकौड़े खाने के लिये दो प्लेट थीं जिनमे कांटे छुरी भी रखे थे । भला छुरी कांटे से पकौड़े कौन खाता है धरम ने सोचकर हाथ से उठाकर पकोड़े अपनी प्लेट मे रखे और बराबर मे चटनी और सॉस डाल ली । पकोड़े चटनी सॉस मे डुबो डुबो कर खाने लगा । भूख लगी हुई थी । पकोड़े तो प्लेट भरे रखे थे और धरम ने भर पेट खा लिये । गीता ने भी पकोड़े छुरी कांटे की बजाय हाथ से ही खाये । उसने कटे फलों पर नमक मसाला छिड़क कर धरम को खाने को कहा । पर धरम को तो फल फ्रूट खाने की आदत ही नहीं थी । भूख मे पकौड़ों से पेट भी भर गया था । धरम मना करने लगा तो गीता ने सेब का टुकड़ा उठाया और धरम का सर पीछे से पकड़ कर धरम के मुंह मे डालने लगी :


“मुंह खोलो! धरम ।”


धरम ने गीता को देखा कि वो उसके ऊपर झुकी खड़ी है सेब उसके मुंह मे डालने को कटिबद्ध है तो उसने मुंह खोल दिया और गीता ने टुकड़ा अन्दर डाल दिया । धरम ने सेब खाया तो वो बहुत रसीला मीठा लगा । फिर तो उसने कई टुकड़े खाये । नौकर केतली मे गर्म दूध और दो कप लेकर आ गया । ट्रे मे चीनी की पॉट और चांदी के चम्मच भी थे । गीता ने दोनों कपों मे दूध उड़ेल कर डाल दिया । फिर धरम से पूछा :


“चीनी कितने चम्मच डालूूं?”


“बस दो चम्मच डाल दो” - धरम ने जवाब दिया ।


दूध का कप गीता ने उठाकर धरम को दिया । दूसरा गीता ने उठाया । दोनों दूध पीने लगे । कॉलेज की बातें करते करते बात हॉफ इयरली एग्ज़ाम तक आ पहुंची ।


“मुझे मैथ्स से डर लगता है । कहीं फेल ना हो जाऊं ।” -गीता कह रही थी । इतना सुनना था कि धरम का पौरुष जाग उठा । एक सुन्दर लड़की खतरे मे थी और वो बचाने सक्षम था । उसने पलटकर जोर देकर कहा :


“किसी कीै हिम्मत नहीं है जो तुम्हे फेल करा सके जब तक धरम तुम्हारे साथ है ।”


“तुम पर तो पूरा भरोसा है मुझे । इसी से सन्तुष्ट रहती हूँ । वैसे तुमने मुझे फिसड्डी से कॉन्फिडेंट तो बना दिया है । मै सिन्सियरली तुमसे पढ़ना चाहती हूँ ताकि मेरा डर बिल्कुल निकल जाये ।” - गीता ने कुछ सीरीयस मूड मे कहा ।


“चिन्ता मत करो । कुछ ही दिनों मे फर फर दौड़ने लगोगी ।” धरम चालु हो गया । ये उसकी अपनी टैरीटरी थी ।


“सच!” - चहकते हुए गीता ने कहा ।


गीता को यकीन नही हो रहा था कि वो मैथ्स मे इतनी आगे जा सकती है । पर उसे धरम पर बहुत यकीन था । धरम की बातों मे सच्चाई होती थी । उस पर विश्वास किया जा सकता था । इतने समय मे गीता ने यही महसूस किया था । यही सोचते हुए गीता को यहां सामने बैठा धरम अच्छा लग रहा था । उसका मासूम चेहरा दमक रहा था और वो सुन्दर तो था ही । गीता को अचानक न जाने क्या सूझा कि उठकर दोनों हाथ से धरम के कान पकड़कर कर कहा :


“मुझे पक्का यकीन है धरम!” दांत भींचते हुए कहकर खिलखिला कर हंस पड़ी ।


हंसी हंसी मे गीता की आंखों के कोर गीले हो गये । धरम की केयरिंग नेचर की याद करके प्यार का सैलाब उमड़ आया था । धरम यकायक गीता के प्यार के इस सैलाब से भावुक हो गया । वो पिघल कर बह चला । उसके शरीर में इतनी सनसनी हुई कि वो चेयर पर पीछे पसर गया । उठना अब दूर की बात लग रही थी ।


धरम कुछ देर गीता की बातों से सुरूर मे रहा और फिर होश मे आया तो किताबें उठाकर जाने की तैयारी करने लगा । गीता ने कहा जूते भी ले जाने हैं । आज गाड़ी तुम्हारे घर पर छोड़ देगी क्योंकि दो जोड़ा जूते कैसे ले जाओगे ।


“नहीं नहीं मै ले जाऊँगा । कुछ ज्यादा परेशानी नहीं होगी ।” - धरम ने कहकर दोनों थैले भी उठा लिये ।


“क्या बात करते हो । तुम क्यों ले जाओगे । गाड़ी छोड़ कर आयेगी ।” - कहकर गीता ने दोनों थैले धरम के हाथ से छीन लिये और लेकर चल पड़ी ।


कमरे से निकल कर दोनों सीढ़ीयों से ड्राइंग रूम मे आये । गीता ने नौकर को दोनों थैले थमाकर कहा कि ड्राइवर को बोलो कि धरम को ब्रिगेडियर कॉलोनी छोड़कर आयेगा । दोनों ड्राइंग रूम मे खड़े थे कि रानी मां वहां आ गयी। उन्होंने धरम के कंधे पर हाथ रखा और बोली:


“10 तारीख संडे को गीता का बर्थडे है । धरम तुम्हें आना है । चाचा जी को बता देना ।उन्हें भी आना है । गीता तुम्हारे बिना नहीं मनायेगी । कपड़े भी सिलकर फ्राइडे तक आ जायेंगे उन्हें भी ट्राई करना है । याद है ना ?”


“ठीक है आंटी जी । गीता का जन्मदिन हो और मै ना आऊं ये तो हो ही नहीं सकता । फ्राइडे को भी आ जाऊँगा ।” धरम ने गीता की तरफ देख कर कहा जो चहक रही थी ।


इतने मे नौकर आ गया और बोला :-


“गाड़ी तैयार है बेबी साहब ।” -धरम ने देखा गाड़ी दरवाजे के सामने पोर्च मे आ गयी थी ।


गीता और धरम दोनों बाहर आये । धरम के लिये ड्राइवर ने पीछे का दरवाजा खोला । धरम ने देखा जूतों के थैले आगे की सीट पर रखे थे । धरम ने किताबें कॉपियां सीट पर फेंकी और सीट पर बैठ गया । ड्राइवर ने दरवाजा बाहर से धकेल कर बन्द कर दिया । धरम ने गीता को बॉय किया । ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट की ओर चल पड़ा । मेन रोड से होकर ब्रिगेडियर कॉलोनी के लिये उसने कुछ दूर जाकर राइट टर्न लिया और रेलवे अंडरपास से निकलते हुए ब्रिगेडियर कॉलोनी आ पहुंचा । कुल पांच सात मिनट का तो सफर था । धरम ने ड्राइवर को कहा :


“लैफ्ट साइड मे जो बरगद का पेड़ है उससे थोड़ा पहले ही रोक लेना ।”


“ठीक है साहब!“ - ड्राइवर ने जवाब दिया और गाड़ी रोक दी ।


ड्राइवर ने उतरकर धरम के लिये दरवाजा खोला और उसे आराम से उतरने दिया । उतरकर घरम ने कॉपी किताबें संभाली । फिर ड्राइवर ने दरवाजा बन्द कर दिया । उसने आगे का दरवाजा खोलकर दोनों थैले उठा लिये । दरवाजा बन्द करके वो थैलों को लेकर धरम के निवास तक छोड़ने जाने लगा तो धरम ने कहा :


“रहने दो । मै ले जाऊँगा ।”


“मै छोड़ आता हूँ साहब ।” ड्राइवर ने जोर देकर कहा ।


“नहीं! इसकी जरूरत नहीं है । सामने ही तो घर है ।” यह कहकर धरम ने दोनों थैले ड्राइवर के हाथ से ले लिये ।


“ठीक है साहब! मै चलता हूँ । गुड नाइट! साहब” उसने एक हाथ माथे तक ले जाकर सल्यूटनुमा अंदाज़ मे कहा ।


“ओ के !” धरम कहकर अपने कमरे की तरफ जाने लगा और ड्राइवर गाड़ी लेकर घुमाने लगा वापस जाने के लिये । कुछ बच्चे और कॉलोनी के बड़े और बुजुर्ग ये देखकर विस्मित थे कि इतनी बड़ी गाड़ी यहां किसके घर आयी है । धरम को देखकर ओर भी अचम्भा हुआ क्योंकि चाचा भतीजे यहां किराये पर रहते थे । कुछ ड्राईवर के साहब साहब कहने और सैल्यूट से विचलित थे कि आखिर माजरा क्या है । धरम आज बहुत खुश था । नये जूते मिल गये थे और नये कपड़े सिलने चले गये थे । इससे भी बड़ी बात थी कि गीता के नजदीक रहने का अवसर मिल रहा था । गीता का निश्चल प्यार वो धन सम्पदा थी जिसे धरम किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता था । उसने मन ही मन ये तय कर लिया था कि चाहे जितनी भी मेहनत करनी पड़े और चाहे कितना भी समय गीता को पढ़ाने समझाने मे लगाना पड़े गाता को मैथ्स मे आगे लाना ही होगा । वैसे धरम के लिये ये कोई मुश्किल काम नहीं था । अगर कुछ मुश्किल था तो वो था कि गीता कहां तक मैथ्स मे मेहनत करती है कितना प्रैक्टिस कर पाती है । उसकी कैपेबिलिटी धरम के बराबर तो नहीं थी पर वो मेहनत करे तो काफी अच्छे मार्क्स ला सकने में सक्षम थी ।